सऊदी अरब के पब्लिक स्कूलों में लड़कियों को खेलकूद में भाग लेने की अनुमति नहीं होती है.
इस कट्टरपंथी राजतंत्र में महिलाओं के अधिकार का यह मुद्दा हमेशा चर्चा में रहता है.
यहां हाल ही में अधिकारियों ने महिला स्कूलों में खेलकूद को शामिल करने के लिए एक मंत्रिमंडलीय पैनल बनाया है.
हाला अल होम्रानी इस बड़े कट्टरपंथी देश में महिलाओं को बॉक्सिंग सिखाने का व्यवसाय चलाती हैं. उन्होंने बॉक्सिंग की यह कला अमरीका में सीखी है.
उनका कहना है, "मुझे हर रोज़ 6-7 महिलाओं का ई-मेल आता है और वो जानना चाहती हैं कि क्या मेरे लिए यहां कोई जगह है, मैं सच में आना चाहती हूं."
वो बताती हैं, "ऐसे मेल लगातार आते हैं क्योंकि इसकी ज़रूरत है और इसलिए मैं प्रार्थना करती हूं कि जब बात फ़िटनेस और यहां एक जिम खोलने की हो तो हमारे लिए चीज़ें आसान हो जाएं."
सऊदी अरब में फ़िटनेस सेन्टर खोलना एक चुनौतीपूर्ण काम है. इसलिए हाला ने फ़ैसला किया कि वो किसी अधिकारी का इंतज़ार नहीं करेंगी, बल्कि वो इन महिलाओं को अपने माता-पिता के घर में ही ट्रेनिंग देंगीं.
इस जिम में महिलाएं वास्तव में लड़ाई वाले इस खेल को सीखने के लिए उत्सुक दिखती हैं.
व्यायाम करने के लिए यह एक बड़ा मौक़ा है, लेकिन सऊदी अरब की हर महिला के पास यह उपलब्ध नहीं है.
सऊदी अरब में खेलकूद में महिलाओं की भागीदारी में दो बड़ी बाधाएं हैं, यहां का क़ानून और पैसा.
सऊदी अरब के पब्लिक स्कूलों में महिलाओं को व्यायाम करने की अनुमति नहीं है.
2013 में राजा की एक सलाहकार समिति ‘शुरा काउंसिल’ ने पब्लिक स्कूलों में लगे इस विवादास्पद प्रतिबंध को हटाने का सुझाव दिया था. लेकिन सरकार ने अभी तक इस पर कोई फ़ैसला नहीं लिया है.
2006 में शुरू किए गए एक निजी एक बास्केटबॉल टीम को उम्मीद है कि यहां खेलकूद में महिलाओं को शामिल कर लिया जाएगा. लेकिन यह मौक़ा केवल उनके लिए होगा, जो इसका ख़र्च उठा सकती हैं.
लीना अल माइना जेद्दा यूनाइटेड बास्केटबॉल टीम की प्रमुख हैं.
उनका कहना है, "मैं कहुंगी कि केवल निजी क्षेत्र ही इसमें भाग ले रहे हैं, लेकन मुझे इसका असर नहीं पता है, हो सकता है कि यह सऊदी अरब में महिला खेलों के बुनियादी ढांचे का सबसे बड़ा सहारा हो."
वो कहती हैं, "हम उम्मीद करते हैं कि भविष्य में पब्लिक स्कूलों की लड़कियां खेलों में हिस्सा ले पाएंगी, लेकिन इसके साथ ही एक देश के नाते हमें लड़कियों के खेलकूद की सभी बाधाओं को दूर करना होगा."
निजी ट्रेनिंग के बाद सऊदी अरब की दो महिलाएं 2012 के लंदन ओलंपिक तक पहुंच गई थीं.
यहां कई और ऐसी लड़कियां हैं, जिन्हें उन्मीद है कि इस साल रियो ओलंपिक में उससे भी ज़्यादा महिलाएं भाग ले पाएंगीं.
लेकिन बदलाव का इंतज़ार कर रही सऊदी अरब की लाखों लड़कियों के लिए यह अवसर इस दुनिया का हिस्सा बनने का मौक़ा नहीं है.
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