क्या आप भी कार चलाते हैं या आने वाले दिनों में कार खरीदने की मंशा रखते हैं?
अगर आप दिल्ली-एनसीआर में रहते हैं, तब भी और किसी दूसरे ‘वायु-प्रदूषित’ शहर में हैं तब भी इस ख़बर पर गौर करें.
क्योंकि 15 अप्रैल से अगले 15 दिनों के लिए दिल्ली सरकार ऑड-ईवन योजना का दूसरा चरण शुरू कर रही है.
यानी इन दिनों नंबरप्लेटों के आख़िरी नंबर और महीने के दिनों से मेल खाती ही निजी गाड़ियां सड़कों पर चल सकेंगी.
दूसरे शहर वालों की दिलचस्पी रहे इसलिए आपको बताते चलें कि इससे मिलते-जुलते फ़ॉर्मूले दुनिया के पांच और शहरों में आज़माए जा चुके हैं.
बहरहाल, अगर आप दिल्ली में गाड़ी चलाते हैं या गाड़ी में चलते हैं तो अगले दो हफ़्तों में ये पांच नुस्खे आपके काम आ सकते हैं:
कार-पूल
अगर आपके पड़ोस या इलाक़े में कोई ऐसा मित्र या सहयोगी है, जिसकी कार रजिस्ट्रेशन नंबर का आखिरी अंक वो नहीं, जो आपका है, तो तुरंत उनसे संपर्क करें.
हो सकता है वह भी आपसे बात करने के उतने ही इच्छुक मिलें, जितने आप, लेकिन कार शेयर करने की हिचक रोड़ा बन रही हो. अगर उनके दफ़्तर जाने-आने का समय आपसे मिलता है तो क्या बात है और अगर पास हैं, तब तो सोने पर सुहागा.
अगर इससे भी बात न बने तो एक नए मित्र या सहयोगी की तलाश करें जिनके साथ आप और कई लोग कार पूल कर सकें.
टैक्सी ऐप
कई टैक्सी सेवाओं ने दिल्ली में इस प्रयोग के चलते ऐसी योजनाएं शुरू की हैं, जिसमें आप टैक्सियों के ज़रिए भी कार शेयर कर सकते हैं. आपको बस अपने स्मार्टफ़ोन पर इन कंपनियों के ऐप डाउनलोड करने होंगे.
जब भी आप किसी टैक्सी की बुकिंग करेंगे, तो ये ऐप खुद ही आपसे शेयर करने के ऑप्शन के बारे में पूछेगा.
जवाब में इससे आपको क्या फ़ायदा होगा तो अगर आप शेयर करते हैं तो किराया भी कम देना होगा और दो के बजाय एक कार से वायु प्रदूषण भी कम होगा.
पब्लिक ट्रांसपोर्ट
मुमकिन है कि आप या आपके परिवार के सदस्य रोज़ सिर्फ़ कारों का ही इस्तेमाल करते हों. संभव है कि आपका पहले सार्वजनिक परिवहन का अनुभव खट्टा रहा हो. यह भी मुमकिन है कि आपके काम पर आने-जाने का समय सार्वजनिक परिवहन की उपलब्धता से मेल न खाता हो.
इसके बावजूद, बेतहाशा बढ़ती कारों से होने वाला वायु प्रदूषण कम करने का भागीदार बनने के लिए बस-मेट्रो या लोकल ट्रेनों का सहारा लेना पड़ सकता है.
वैसे दिल्ली सरकार ने भी सार्वजनिक परिवहन में सुधार की बात मानते हुए कहा है कि दिल्ली में बसें और मेट्रो के फेरे बढ़ाए जाएंगे.
यानी सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट से जितनी जल्दी दोस्ती, उतना आराम!
वर्क फ़्रॉम होम
आईटी, फाइनेंस और ई-कॉमर्स जगत में इस पर बहस हो रही है कि कुछ कर्मचारियों को वर्क फ़्रॉम होम का विकल्प दिया जाए. यानि जिन्हें पब्लिक डीलिंग का काम रोज़ नहीं करना पड़ता, वे बारी-बारी से घरों से इंटरनेट के माध्यम से काम कर सकते हैं.
भारत के ही बंगलौर और हैदराबाद शहरों में आईटी क्षेत्र में कर्मचारियों की ख़ासी संख्या घरों से काम करती है.
पश्चिमी देशों में भी कई जगहों पर वर्क फ्रॉम होम का ज़बर्दस्त चलन है.
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