लीबिया के संघर्षग्रस्त इलाके में परिवार सहित फंसी भारत की 11 नर्सों ने अपने साथ ‘दुर्व्यवहार’ का आरोप लगया है.
इन नर्सों का करार करीब दो महीने पहले खत्म हो चुका है लेकिन जिस अस्पताल में वो काम कर रहीं थीं, उसने अभी तक उनके बकाए का भुगतान नहीं किया है.
ये सभी नर्सें साल 2011 से अल-ज़ाविया मेडिकल सेंटर एंड टीचिंग हॉस्पिटल मे काम कर रही हैं.
अल-ज़ाविया लीबिया की राजधानी त्रिपोली से करीब 45 किलोमीटर दूर है.
बीती 25 मार्च को अल-ज़ाविया स्थित अस्पताल परिसर पर रॉकेट हमले में एक भारतीय नर्स सुनू सत्यन और उनके 18 महीने के बेटे की मौत हो गई थी. सुनू और उनके बेटे का अंतिम संस्कार रविवार को केरल में किया गया.
इसके बाद से बाकी की भारतीय नर्स अस्पताल परिसर छोड़कर सुरक्षित स्थान पर चली गई हैं.
लीबिया में फंसी नर्सों में से एक नीति थॉमस ने बीबीसी को फोन पर जानकारी दी कि उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जा रहा है.
उन्होंने कहा, " स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि उनके पास धन नहीं है. अस्पताल के डॉयरेक्टर हमसे बात नहीं करना चाहते हैं. हमारे साथ कुत्तों जैसा बर्ताव हो रहा है."
नीति थॉमस ने ये भी बताया कि वो और दूसरी नर्सें बेहद डरी हुई हैं.
उन्होंने कहा, " अस्पताल हमारी रवानगी का आदेश भी जारी नहीं कर रहा है. वो ऐसा क्यों कर रहे हैं? हम लगातार डर के साए में हैं. हमें पता नहीं कि संघर्ष कब थमेगा और कब ये दोबारा शुरु हो जाएगा. "
थॉमस का कहना है कि वो और दूसरी नर्सें धन की कमी से भी जूझ रही हैं.
वहीं केरल के अप्रवासियों से जुड़े विभाग के मंत्री केसी जोसेफ का कहना है कि उनकी सरकार नर्सों की समस्या से वाकिफ़ है.
वो कहते हैं, " मुख्यमंत्री (ओमन चांडी) ने केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से बात की है. मुझे यकीन है कि केद्र सरकार वहां के हालात की गंभीरता से वाकिफ है. "
उन्होंने कहा कि वो नर्सों को भुगतान नहीं कर रहे हैं.
जोसेफ कहते हैं, " हम उम्मीद करते हैं कि केंद्र सरकार इस मुद्दे को पूरी गंभीरता से लेगी."
इस सवाल पर कि लीबिया में फंसी नर्सें अस्पताल से बकाए का हिसाब किए बिना वापस क्यों नहीं आ जाती हैं, केरल के एक अधिकारी ने कहा, "वो ऐसा कैसे कर सकती हैं? उनके पास बाकी की ज़िंदगी के लिए शायद यही रकम हो. अगर अच्छी ज़िंदगी की चाहत नहीं हो तो कोई इंसान ऐसे खतरनाक हालात में काम क्यों करेगा."
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