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देश की तुलना में झारखंड में 17 प्रतिशत अधिक गरीबी

रांची: राज्य में पहले की तुलना में गरीबी कम हुई है, लेकिन राष्ट्रीय औसत और झारखंड की गरीबी के बीच का अंतर बढ़ा है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार जब राज्य बना था उस वक्त यहां 54 प्रतिशत गरीबी थी, जो घट कर 38 प्रतिशत हो गयी है. वर्ष 2001 में राष्ट्रीय औसत और झारखंड की […]

रांची: राज्य में पहले की तुलना में गरीबी कम हुई है, लेकिन राष्ट्रीय औसत और झारखंड की गरीबी के बीच का अंतर बढ़ा है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार जब राज्य बना था उस वक्त यहां 54 प्रतिशत गरीबी थी, जो घट कर 38 प्रतिशत हो गयी है. वर्ष 2001 में राष्ट्रीय औसत और झारखंड की गरीबी में सिर्फ आठ प्रतिशत का अंतर था.

तेंदुलकर कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार गरीबी का राष्ट्रीय औसत 21 प्रतिशत है. इस तरह गरीबी के मामले में राष्ट्रीय औसत के मुकाबले झारखंड का अंतर आठ प्रतिशत से बढ़ कर 17 प्रतिशत हो गया है. इसका तात्पर्य यह कि झारखंड में गरीबी कम करने की गति धीमी है.

वित्त आयोग को सौंपे जानेवाले ज्ञापन(मेमोरेंडम) में कहा गया है कि कुल 35128 करोड़ रुपये के कर्ज के बावजूद राज्य ने अपने राजकोषीय घाटे को तीन प्रतिशत के अंदर नियंत्रित रखा है. वित्तीय वर्ष 2011-12 में राजकोषीय घाटा 1.5 प्रतिशत था. वर्ष 2012-13 में यह बढ़ कर 2.5 प्रतिशत हो गया.

चालू वित्तीय वर्ष के दौरान यह 2.39 प्रतिशत रहने का अनुमान है. गरीबी के राष्ट्रीय औसत और झारखंड के बीच के हुए अंतर को कम करने के लिए धन की आवश्यकता है. इसलिए वित्त आयोग राज्य को अधिक धन देने की अनुशंसा करे. साथ ही सर्विस टैक्स की हिस्सेदारी को संवैधानिक करार देने के लिए उचित कदम उठाये.

राज्य में गरीबी कम करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में अधिक काम करने की जरूरत है. इसके लिए अधिक धन की जरूरत है. वित्त आयोग की अनुशंसा के आलोक में राजकोषीय उत्तरदायित्व व बजट प्रबंधन अधिनियम (एफआरबीएम एक्ट)का अनुपालन किया जा रहा है. सरकार द्वारा लिये गये कर्ज पर औसत ब्याज दर पहले 8.5 प्रतिशत थी. वित्तीय सुधार के जरिये इसे 7.5 प्रतिशत तक नियंत्रित किया गया है. आर्थिक मंदी के बावजूद राज्य की राजस्व वृद्धि दर 17-18 प्रतिशत के बीच है. इसके अलावा कुल राजस्व(केंद्र व राज्य)में राज्य की भागीदारी में भी सुधार हुआ है. पिछले कई वर्षो के दौरान कुल राजस्व में सिर्फ 42-43 प्रतिशत की राज्य खुद वसूलता था, शेष उसे केंद्र से मिलता था. अब कुल राजस्व का करीब 50 प्रतिशत राज्य को अपने स्नेतों से मिल रहा है.

सरकार ने 14 वें वित्त आयोग से केंद्रीय करों में राज्य की हिस्सेदारी तय करने के लिए जनसंख्या, जनसंख्या में वृद्धि सहित अन्य पहलुओं को महत्व(वेटेज) देने की मांग भी रखी है. तैयार दस्तावेज में कहा गया है कि राज्य की आबादी को 40 प्रतिशत महत्व दिया जाना चाहिए. आयोग अब भी 1971 की आबादी को आधार मानता है.

अब राज्य की आबादी बढ़ कर 3.29 करोड़ हो गयी है. राज्य की आबादी का 27 प्रतिशत अनुसूचित जनजातियों का है. राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का करीब 30 प्रतिशत वन क्षेत्र है. इससे विकास योजनाओं को क्रियान्वित करने में काफी परेशानी होती है.

इसलिए राशि आवंटित करते समय राज्य के भौगोलिक क्षेत्र को भी अधिक महत्व दिया जाना चाहिए. सर्विस टैक्स में राज्य की हिस्सेदारी को संवैधानिक करार देने का अनुरोध किया है. 13 वें वित्त आयोग ने केंद्रीय करों में राज्य की हिस्सेदारी तय की थी, पर सर्विस टैक्स के बंटवारे को उस सूची में नहीं शामिल किया गया था.

खास बातें

गरीबी के मामले में राष्ट्रीय औसत और झारखंड के बीच अंतर आठ से बढ़ कर 17 प्रतिशत हुआ.

सरकार ने एफआरबीएम एक्ट के तहत राजकोषीय घाटे को तीन प्रतिशत के नीचे रखा है

आर्थिक मंदी के बावजूद राजस्व वृद्धि दर 17-18 प्रतिशत बनाये रखा

कर्ज पर औसत ब्याज दर 8.5 प्रतिशत से घटाकर 7.5 प्रतिशत लाया गया है

कुल राजस्व में(केंद्र और राज्य) राज्य की भागीदारी बढ़ी है

केंद्रीय करों में हिस्सेदारी के लिए 1971 के बदले 2011 की आबादी को आधार बनाने का अनुरोध

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