शैलेश गुरुजी
दोनों माह सर्दी या गरमी की संधि के महत्वपूर्ण मास.
नवरात्र चैत्र और आश्विन में ही क्यों होता है? इसका वैज्ञानिक एवं स्वास्थ्य की दृष्टि से कारण है़ ऋतु विज्ञान के अनुसार ये दोनों ही महीने सर्दी या गर्मी की संधि के महत्वपूर्ण मास हैं. इसलिए हमारे स्वास्थ्य पर इनका विशेष प्रभाव पड़ता है़ चैत्र में गर्मी का प्रारंभ होते ही पिछले कई महीनों से जमा हुआ हमारे शरीर का रक्त उबलना आरंभ हो जाता है़ इसी के साथ-साथ शरीर के वात, पित्त और कफ भी उफनने लगते हैं. यही कारण है कि रोगी इन दोनों मासों में या तो शीघ्र अच्छे हो जाते हैं या मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं.
इसीलिए वेदों में ‘जीवेम शरद: शतम्’ प्रार्थना करते हुए सौ शरदकाल-पर्यंत जीने की प्रार्थना की गयी है, न कि वर्षाकाल पर्यंत. इसमें भी बसंत ऋतु की अपेक्षा शरद ऋतु का प्रकोप अधिक भयावह होता है़ यदि शरदकाल कुशलता से बीत जाये, तो फिर वर्ष भर सकुशल रहने की आशा हो जाती है़ इसी कारण से वर्ष का अपर या दूसरा नाम ‘शरत्’ पड़ गया़
हमारे आचार्यों ने संधिकाल के इन्हीं महीनों में शरीर को पूर्ण स्वस्थ रखने हेतु नौ दिनों तक विशेष व्रत का विधान किया है़ चूंकि व्रत के दिनों में भगवती पूजा-अर्चना हेतु पत्र-पुष्प का विधान किया गया है़ अत: सामान्य दिनों की अपेक्षा लोग प्रात: भ्रमण पर शीघ्र जाते हैं और पत्र-पुष्प लाते हैं.
धार्मिक कृत्य हेतु दस दिन तक प्रात: भ्रमण करते हुए प्राणप्रद वीर वायु का सेवन करते हैं, जो स्वास्थ्य हेतु अमृत होती है़ इस प्रकार फूल-पत्तों के संग्रह के बहाने का यह भ्रमण ‘वसंते भ्रमणम् पश्यम्’ शारीरिक स्वास्थ्य हेतु अतीव उपयोगी होता है़ दस दिनों तक निरंतर भ्रमण करने से फिर स्वत: प्रात: शीघ्र उठने का एक क्रम बन जाता है, जो हमारे स्वास्थ्य के साथ-साथ जीवन की अनेक क्रियाओं में लाभकारी सिद्ध होता है़
इन्हीं दिनों व्रत-पूजा के समय वसंत की मादकता का यदि हमारे शरीर पर प्रभाव भी पड़ता है और हम विषय-वासना से तरंगित होते हैं तो यह व्रत और नवरात्र काल हमें सावधान कर देता है – सावधान! ये व्रत के दिन हैं. अंतत: हम तन-मन दोनों से स्वस्थ होकर जीवन को सुखमय बनाते हैं.
(लेखक ज्योतिष वास्तुविद् एवं युवा आध्यात्मिक गुरु हैं. आेम ध्यान योग आध्यात्मिक साधना सेवाश्रम के संस्थापक हैं.)