– रिंकू झा –
– रोड नेशनल गेम में 18वां रैंक ला चुकी है प्रियंका
– रेसिंग साइकिल खरीदने के लिए नहीं है पैसा
– रेस जीत कर करना चाहती है राज्य का नाम रोशन
पटना : उसके पास जोश है, लेकिन प्रैक्टिस के लिए जगह नहीं. वह साइकिलिंग में राज्य का नाम रोशन करना चाहती है, लेकिन रेसिंग साइकिल खरीदने के लिए उसके पास पैसे नहीं हैं. यह किसी फिल्म की कहानी नहीं है, बल्कि हकीकत है कंकड़बाग, पटना की रहनेवाली एक हॉकर की बेटी प्रियंका की.
जोश और उत्साह के बल पर वह राष्ट्रीय स्तर तक तो पहुंच गयी, लेकिन अब उसे आगे का भविष्य अंधरे में नजर आ रहा है. एक बेहतर साइकिल खरीदने के लिए वह हर किसी के पास हाथ फैला रही है, लेकिन उसकी मदद के लिए कोई नहीं आ रहा है. पैसे की कमी के कारण वह रेसिंग साइकिल नहीं खरीद पा रही है.
12 को जाना है अहमदाबाद
प्रियंका के पिता चंद्रिका प्रसाद हॉकर का काम करते हैं. मां घर में रहती हैं. कंकड़बाग के शालीमार स्वीट्स के पास रहनेवाली प्रियंका ने बताया कि दो साल पहले उसके कोच संतोष ने एक रेसवाली सेकेंड हैंड साइकिल दिलायी थी, लेकिन अब वह चलने लायक नहीं है.
उसी साइकिल से प्रैक्टिस करके उसने 17 अक्तूबर, 2013 को आयोजित ऑल इंडिया रोड नेशनल गेम में 18वां स्थान हासिल किया था. प्रियंका ने बताया कि अब अहमदाबाद जाने के लिए मुझे एक अच्छी रेस साइकिल चाहिए, तभी मैं वहां पर अच्छा कर पाऊंगी.
प्रैक्टिस के लिए जगह नहीं
कॉलेज ऑफ कॉमर्स की बीकॉम प्रथम वर्ष की छात्राप्रियंका ने बताया कि मैंने 2012 से साइकिलिंग की प्रैक्टिस शुरू की. मैं साइकिलिंग में अपना और राज्य का नाम करना चाहती हूं. लेकिन, मेरे पास न तो ठीक रेस साइकिल है और न ही प्रैक्टिस के लिए पटना में कोई उपयुक्त जगह. एयरपोर्ट एरिया में सुबह के समय थोड़ी देर प्रैक्टिस हो पाती है, लेकिन उसमें भी हमेशा किसी सवारी के सामने से आ जाने का डर बना रहता है.
सरकार के पास भी जा चुकी है प्रियंका
प्रियंका कई बार राज्य के कला, संस्कृति एवं युवा मामलों की मंत्री व सचिव से मिली. तत्कालीन मंत्री सुखदा पांडेय व सचिव चंचल कुमार से भी उसने मिल कर समस्या बतायी. प्रियंका ने बताया कि साइकिल रेस में भाग लेने के लिए मुझे कम- से-कम 80 हजार की साइकिल चाहिए.
पर, इतने पैसे नहीं होने के कारण मैं रेस साइकिल नहीं खरीद पा रही हूं. आइपीएस के रूप में कैरियर बनाने की इच्छा रखनेवाली प्रियंका ने बताया कि साइकिलिंग के तीन तरह के गेम होते हैं- रोड नेशनल गेम, माउंटेन बाइक व ट्रैक नेशनल गेम. बिहार के खिलाड़ी बस रोड नेशनल गेम में ही आगे बढ़ पाते हैं.
क्योंकि ट्रैक और माउंटेन गेम में तो यहां के खिलाड़ी जा नहीं पाते हैं. बचा एक रोड नेशनल गेम, तो इसके लिए ना तो ट्रैक है और ना ही सुविधा. इस कारण टैलेंट होते हुए भी हम आगे नहीं बढ़ पाते हैं.
सरकार व खेल संगठन से सवाल
राज्य सरकार और यहां के विभिन्न खेल संगठन खेलों को बढ़ावा देने की अक्सर घोषणा करते रहते हैं. अगर एक गरीब हॉकर की बेटी को सरकार या खेल संगठनों से थोड़ी मदद मिल जाती, तो वह साइकिलिंग के क्षेत्र में राज्य का नाम रोशन कर सकती है. क्या इस दिशा में सरकार व खेल संगठनों की ओर से पहल होगी? व प्रतिभा को निखारने में संसाधनों की कमी आड़े नहीं आने देंगे.