लंदन पुलिस युवाओं से मिलकर आतंकवाद विरोधी कार्यक्रम ‘स्टॉप एंड सर्च’ के बारे में खुलकर बातचीत कर रही है.
लंदन में ऐसे ही एक कार्यक्रम में भारतीय मूल के युवक और ब्रिटेन में रहने वाले अन्य अल्पसंख्यक नौजवान मौजूद थे.
लंदन पुलिस का कहना है कि उन्हें आम तौर पर युवा पीढ़ी से बातचीत का मौक़ा नहीं मिलता. जब बीबीसी की टीम सम्मलेन में पहुंची तो वहां मौजूद युवक पुलिस से काफ़ी सवाल पूछ रहे थे.
अब्बास नाम के एक छात्र ने पुलिस से स्टॉप एंड सर्च के बारे में पूछा- "मेरे ज़्यादातर दोस्तों की पुलिस ने तलाशी ली है".
उनका कहना था, "अगर सिर्फ़ एक नस्ल के लोगों को इस सर्च का निशाना बनाया गया, जैसे एशियाई या कालों को- तो हम इसे नस्लवाद समझेंगे."
क़ानून के मुताबिक़ लंदन पुलिस कभी भी, किसी को भी रोक कर उसकी तलाशी ले सकती है. 2013 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में इसके लिए पुलिस की कड़ी निंदा की गई थी.
आंकड़ों के अनुसार एशियाई लोगों की तलाशी अन्य नस्ल के लोगों की तुलना में दोगुनी बार ली गई.
2015 में 1,70,000 लोगों की तलाशी ली गई, इनमें से 13 फ़ीसदी एशियाई थे.
उत्तर पश्चिमी लंदन में पुलिस बल के प्रमुख कमांडर साइमन ओवन जो हैरो कहते हैं कि पुलिस पर लगाए गए इस आरोप का कोई आधार नहीं है.
वह कहते हैं, "ऐसा नहीं है कि हम लोग एशियाई या किसी और मूल के लोगों को निशाना बनाते हैं."
पिछले महीने इस विषय पर जारी पुलिस वॉचडॉग की रिपोर्ट में कहा गया कि कुछ पुलिसवाले ‘स्टॉप एंड सर्च’ की शक्ति का दुरुपयोग कर रहे हैं.
पुलिस अफ़सर और एशियाई मूल के अमृतपाल उप्पल कहते हैं, "पुलिस और स्टॉप एंड सर्च को लेकर कई बातें कही जाती हैं. हमारा काम लोगों के सामने पुलिस का सही चेहरा प्रस्तुत करना है. हम युवा पीढ़ी और पुलिस के बीच के फ़ासले को मिटाना चाहते हैं. हम सुनना चाहते हैं कि हमारा काम उन्हें कैसे लगता है."
चौदह साल की मलीहा लंदन पुलिस से संतुष्ट नहीं है. वह शिकायत करती हैं कि हिजाब पहनने वालों की हिफ़ाज़त करने में पुलिस कमज़ोर साबित हुई है.
उन्होंने कहा, "मुझे नस्लवाद का सामना करना पड़ा है. जब हम यहां नए-नए आए थे तो मुझे और मेरी मां को धमकी दी गई और हमें अपने देश वापस लौटने को कहा गया."
वह कहती हैं कि ऐसे मामलों में पुलिस को सख़्त कार्रवाई करनी चाहिए.
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