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शराब से आप नाता तोड़ कर देखिये हर रोज आपकी होगी होली-दीवाली

वीना श्रीवास्तव साहित्यकार व स्तंभकार, इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com, फॉलो करें – फेसबुक : facebook.com/veenaparenting ट्विटर : @14veena एक शादीशुदा महिला ने लिखा है कि वह अपने जीवन से तंग आ गयी है, क्योंकि उसमें जीने की कोई उमंग नहीं रह गयी. कारण- पति का रोज शराब पीना. पहले तो सहती रही, मगर जब उसने समझाना […]

वीना श्रीवास्तव

साहित्यकार व स्तंभकार, इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com, फॉलो करें –

फेसबुक : facebook.com/veenaparenting

ट्विटर : @14veena

एक शादीशुदा महिला ने लिखा है कि वह अपने जीवन से तंग आ गयी है, क्योंकि उसमें जीने की कोई उमंग नहीं रह गयी. कारण- पति का रोज शराब पीना. पहले तो सहती रही, मगर जब उसने समझाना चाहा तो पति को अच्छा नहीं लगा. शादी के समय वह लड़का जॉब में था, लेकिन दो साल बाद ही उसकी जॉब छूट गयी जिसका कुसूरवार लड़के ने अपनी पत्नी को ठहराया. महिला ने लिखा है- ‘मैंने बहुत समझाने की कोशिश की मगर वह नहीं माने.

वह मुझसे बात भी नहीं करते. कोई बात सुनते ही नहीं. उन्हें मुझसे या मेरी बातों से कोई फर्क ही नहीं पड़ता. अब वह जॉब भी नहीं करना चाहते. मैं उन्हें बहुत प्यार करती हूं. इसलिए यही चाहती हूं कि वह शराब पीना छोड़ दें. मैंने बहुत इंतजार किया. अब कोई आशा नहीं बची. मैं इस शादी से निकलना चाहती हूं लेकिन उनसे प्यार की वजह से निकल भी नहीं पाती. मैं अपने जीवन से बिलकुल भी संतुष्ट नहीं. जिन्दगी बोझ लगने लगी है. किसी से कुछ कह भी नहीं सकती और सह भी नहीं सकती. कहूंगी तो बाकी लोगों को भी तनाव होगा. समझ नहीं आता क्या करूं.’

मेरे पापा के ऑफिस में एक अंकल थे. हम उस समय छोटे थे मगर बहुत छोटे भी नहीं. वह बहुत ड्रिंक करते थे. पीने का आलम यह हो गया कि वे ऑफिस में भी पीकर आने लगे. उनकी शिकायत हुई तो उन्हें सस्पेंड कर दिया गया. आंटी कमिश्नर के पास गयीं और मिन्नतें की कि बच्चे छोटे हैं, वह कैसे पालेंगी ? एक मौके की दरख्वास्त की और वादा किया कि वह अब पीकर ऑफिस नहीं जाएंगे. कमिश्नर ने भी बात मान ली, क्योंकि एक महिला आयी थी, सस्पेंशन खत्म कर दिया. फिर वह सुबह से इतना ध्यान रखती कि वह ऑफिस में पीकर न जा पायें. वहां से तो उन्होंने रोका मगर रात में अगर मना करती तो मारपीट की नौबत आ जाती. इसका परिणाम हुआ कि उन्हें लीवर कैंसर हुआ.

लास्ट स्टेज में पता चला. एक वर्ष में ही वह चल बसे. आखिरी वक्त में वह बार-बार कहते थे कि अभी मरना नहीं चाहते, जीना चाहते हैं. उन्होंने यहां तक कहा कि सावित्री तो सत्यवान के प्राण बचा लायी थी, तुम मेरे बचा लो. यह बड़ा कष्टप्रद था आंटी के लिए. उनके तीन बच्चे थे. उसी ऑफिस में आंटी को स्टेनो की नौकरी मिल गयी मगर फिर पूरे जीवन उन्होंने संघर्ष किया. कम तनख्वाह और जिम्मेदारियां वही. बच्चों का स्कूल भी बदल गया.

यह केस कोई अकेला नहीं हैं, न जाने इस तरह कितने बच्चे फीस के अभाव में हर साल स्कूल से निकाल दिये जाते हैं. अंगरेजी माध्यम से किसी अन्य स्कूल में डाल दिये जाते हैं. हजारों बच्चे इस शराब के कारण अनाथ हो जाते हैं. महिलाएं विधवा हो जाती हैं. फिर पहले से ज्यादा जिम्मेवारियों के साथ बेरंग जीवन जीती हैं.

पीनेवाले को अंत समय में तब होश आता है जब मौत की तलवार सिर पर लटकी होती है. उस समय कुछ नहीं हो सकता. सुधरने का मौका ईश्वर भी देते है लेकिन अगर खुद की इच्छाओं पर काबू न कर सके, तो कोई कुछ नहीं कर सकता. यह कहानी सिर्फ इसलिए बतायी, क्योंकि जब अंत समय होता है तो अच्छे-अच्छे ज्ञानियों में भी जीने की इच्छा जाग्रत हो जाती है. बाकी तो साधारण इनसान हैं.

यह किताबी कहानी नहीं है, बल्कि ऐसी कई घटनाएं आपके आस-पास भी घटी होंगी. फिर भी कोई नहीं समझता. पत्नी मना करके थक जाती है लेकिन शराब पीना बंद नहीं होता. अगर किसी के घर में ऐसी कोई समस्या है तो एक बार जरूर सोचिए. क्या आप चाहेंगे कि आपके बाद आपकी पत्नी आपके बगैर जीवन गुज़ारे.

आपके बच्चे आपके प्यार और अपने सिर पर पिता के साए को तरसें. अगर पत्नी और बच्चे इस बात पर जोर देते हैं कि आप मत पीजिए तो कम से कम उनके लिए तो बात सुनिए. बच्चे आपके हैं. उनकी परवरिश, उन्हें समाज में जीने के काबिल बनाना आपकी जिम्मेवारी है. जिसके साथ आप विवाह करते हैं उसकी भी मान-मर्यादा आपके हाथ में है, उसकी खुशियां भी आपमें ही हैं. आप कैसे अपनी जिम्मेवारी से मुंह मोड़ सकते हैं ? क्या आपकी आत्मा दुखी नहीं होगी ? जब आप देखेंगे कि आपकी पत्नी और बच्चे पीड़ा-तकलीफों से गुजर रहे हैं.

सबको एक दिन जाना है मगर असमय मौत को दावत देना ठीक नहीं. जितने की आप शराब पियेंगे, उन रुपयों से बच्चों को दूध पिलाइए, उनके स्कूल की फीस भरिये या उनके मनपसंद खिलौने लाइए, देखिए, वे कितने खुश होंगे. वे गर्व करेंगे आप पर. आप जिस हाल में रखेंगे, वे रह लेंगे लेकिन उनका पिता-पति शराब पिये, यह सहना बहुत मुश्किल है. जिसके पास प्यार देनेवाली पत्नी हो, बच्चे हों, उसे वैसे भी शराब की क्या जरूरत और शादी नहीं की तो कम से कम अपने बूढ़े माता-पिता के बारे में सोचिए. आप उनके बुढ़ापे की लाठी हैं. क्या आप उनसे बुढ़ापे की लाठी छीनना चाहते हैं? कैसे जियेंगे बूढ़े मां-पिता ? उस उम्र में उन्हें अपने बच्चों को कंधा देना पड़े तो इससे दुखद और क्या होगा. वह तो जीते जी ही मर जाएंगे.

इसलिए अगर आपमें इस तरह की आदत है तो अपने न सही, अपने बच्चों, पत्नी, माता-पिता और परिवार के लिए जरूर छोड़ दीजिए. आप शराब छोड़ने का एलान करिए और फिर देखिए कि आपके घर में बिना दीपावली खुशियों के दीप जगमगाएंगे. बिना होली इंद्रधनुषी रंग आपके जीवन में भर जाएंगे. आप कोशिश करके तो देखिए. ऐसा कौन-सा काम है जो इनसान नहीं कर सकता. वह ठान ले तो पहाड़ काट सकता है फिर शराब छोड़ना कौन-सी बड़ी बात है ? जरूरत है तो आपकी इच्छा शक्ति की.

क्रमश:

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