पाकिस्तान में कथित भारतीय जासूस कुलभूषण यादव की गिरफ़्तारी और ईरान-पाकिस्तान संबंध ख़राब होने की आशंका पाकिस्तानी उर्दू मीडिया की चर्चा का मुख्य विषय है.
रोज़नामा ‘पाकिस्तान’ लिखता है कि कुलभूषण यादव ने पूछताछ के दौरान स्वीकार किया है कि वो ईरान के चाहबहार में ज़ेवरात के व्यापारी के भेष में रह रहा था और राकेश उर्फ़ रिज़वान नाम का उसका एजेंट है जो अब भी चाहबहार में ही है.
अख़बार के मुताबिक़ अब अगर ईरान पाकिस्तान की तरफ़ से उठाए गए सवालों का जवाब दे तो कुलभूषण के और भी साथियों की गिरफ़्तारी हो सकती है.
इस मुद्दे पर ‘जसारत’ ने लिखा है कि ऐसा लगता है कि भारतीय जासूसों का नेटवर्क सिर्फ़ पाकिस्तान में गड़बड़ी फैलाने के लिए काम नहीं कर रहा है बल्कि उसका मक़सद पाकिस्तान और ईरान को पास आने से रोकना है.
अख़बार का कहना है कि पाकिस्तान ने ईरान से छह बिंदुओं पर जबाव तलब किया है.
अख़बार के मुताबिक़ हालांकि इसका अंदाज़ दोस्ताना ही है, लेकिन इससे दोनों देशों के रिश्तों में खटास आना लाज़िमी है.
रोजनामा ‘दुनिया’ ने ईरानी नेतृत्व को ख़बरदार करते हुए लिखा है कि अगर ईरानी सरज़मीन किसी मुस्लिम देश के ख़िलाफ़ इस्तेमाल होती है तो इससे न सिर्फ़ पाकिस्तान की मुश्किलें बढ़ेगी बल्कि इससे ख़ुद ईरान की बर्बादी की इबारत भी लिखी जाएगी.
अख़बार लिखता है कि ईरान अगर अपने यहां मौजूद भारतीय एजेंटों को पाकिस्तान के हवाले नहीं करता है तो पाकिस्तानी जनता ये सोचने को मजबूर होगी कहीं न कहीं, किसी न किसी सतह पर ईरान भी इन मामलों में शामिल है.
‘नवा-ए-वक्त’ लिखता है कि क्षेत्र के दो मुस्लिम दोस्त मुल्कों के बीच गलतफ़हमी पैदा करने की भारत की कोशिशों को किसी भी सूरत में कामयाब नहीं होने देना चाहिए.
वहीं ‘एक्सप्रेस’ ने वॉशिंगटन में परमाणु सुरक्षा सम्मेलन पर संपादकीय लिखा है और वहां दिए गए पाकिस्तानी विदेश सचिव एजाज़ चौधरी के बयान का ज़िक्र किया है.
चौधरी ने कहा कि पाकिस्तान में कभी कोई परमाणु हादसा नहीं हुआ है और परमाणु प्रतिष्ठानों की सुरक्षा को लेकर भी कोई समस्या नहीं है, इसलिए इस बारे में किसी आशंकाओं का कोई औचित्य नहीं है.
अख़बार कहता है कि सम्मेलन में पाकिस्तान के परमाणु प्रतिष्ठानों को लेकर कोई सवाल नहीं उठाए गए और ये पाकिस्तान के लिए अहम कामयाबी है.
वहीं ‘मशरिक़’ ने अफ़ग़ान राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी के इस बयान की आलोचना की है कि पाकिस्तान की तरफ़ से अघोषित जंग जारी है जिसे ख़त्म करना होगा.
अख़बार लिखता है कि ग़नी अफ़ग़ानिस्तान में गृहयुद्ध को ख़त्म करने और उसमें शामिल गुटों से विवाद सुलझाने में नाकामी का ठीकरा पाकिस्तान के सिर फोड़ रहे हैं.
रुख़ भारत का करें तो कोलकाता में एक निर्माणाधीन फ्लाईओवर गिरने पर ‘हिंदोस्तान एक्सप्रेस’ लिखता है कि ये पूरी तरह लापरवाही का मामला लगता है और हो सकता है कि इसमें इस्तेमाल की जा रही सामग्री घटिया हो.
अख़बार के मुताबिक़ ये हासदा हुआ कोलकाता में है लेकिन मामला सिर्फ़ एक शहर का नहीं है क्योंकि देश के हर छोटे बड़े शहर और क़स्बों में फ्लाईओवर, पुल, सड़क, गली और फुटपाथ की शक्ल में ऐसे कई काम होते मिल जाएंगे जो बरसों बरस चलते रहते हैं
अख़बार लिखता है कि ऐसे हादसे पहले भी हुए हैं, लेकिन आगे न हों, इसके लिए कोई पुख़्ता और भरोसेमंद कोशिश कभी नज़र नहीं आई.
वहां रोज़नामा ‘खबरें’ ने इस घटना की कवरेज और क्रिकेट के दीवानेपन को लेकर कई सवाल उठाए हैं.
अख़बार कहता है कि टीवी चैनल भारत और वेस्टइंडीज के बीच टी-20 सेमीफाइलनल मुक़ाबले की पल पल की ख़बर दे रहे थे और यहां तक कि मैच ख़त्म होने के बाद इस बात पर बहस हो रही थी कि भारत क्यों हारा जबकि दूसरी तरफ़ पुल के मलबे में दबे भारत के ही लोग दर्द और तकलीफ़ से सिसक रहे थे.
क्रिकेट को एक बाज़ार बताते हुए अख़बार लिखता है कि इसमें राजनेताओं और उद्योगपतियों का पैसा लगा है.
अख़बार कहता है कि क्रिकेट अब एक मर्ज़ बन गया है जिसके दुष्प्रभाव दूसरे खेलों को भुगतने पड़ रहे हैं.
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