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त्याग, दृढ़ता व अटूट प्रेम की कहानी : बाजीराव पेशवा और मस्तानी

बाजीराव पेशवा और मस्तानी की प्रेम कहानी भारतीय इतिहास की सबसे रोचक प्रेम कहानियों में गिनी जाती है़ वैसे, इन दोनों के मिलन से लेकर मौत तक, इतिहास में कई तरह की बातें दर्ज हैं. लेकिन, इन सभी कहानियों में जो एक बात समान है, वह है इन दोनों के बीच मौजूद धर्म की दीवार […]

बाजीराव पेशवा और मस्तानी की प्रेम कहानी भारतीय इतिहास की सबसे रोचक प्रेम कहानियों में गिनी जाती है़ वैसे, इन दोनों के मिलन से लेकर मौत तक, इतिहास में कई तरह की बातें दर्ज हैं. लेकिन, इन सभी कहानियों में जो एक बात समान है, वह है इन दोनों के बीच मौजूद धर्म की दीवार को तोड़ता उनका अगाध प्रेम़
बाजीराव पेशवा और मस्तानी
छत्रपति शिवाजी के पौत्र शाहूजी महाराज के राज्य में बाजीराव, पेशवा यानी प्रधानमंत्री थे़ 20 वर्ष की उम्र में कमान संभालने वाले बाजीराव ने अपने शासनकाल में 41 युद्ध लड़े और हर लड़ाई जीती़ बचपन से बाजीराव को घुड़सवारी, तीरंदाजी, तलवार, भाला आदि चलाने का शौक था़ पेशवा बनने के बाद अगले 20 वर्षों तक बाजीराव मराठा साम्राज्य को बढ़ाते चले गये़ अपनी वीरता, नेतृत्व क्षमता और कुशल युद्ध योजना के दम पर उन्हें विश्व इतिहास में ऐसा अकेला योद्धा माना जाता है, जो कभी नहीं हारा़ जनरल मोंटगोमेरी, ब्रिटिश जनरल और फील्ड मार्शल ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद लिखी अपनी किताब ‘हिस्ट्री ऑफ वॉरफेयर’ में यह बात स्वीकारी थी.
बाजीराव की प्रेरणा से ‘हर हर महादेव’ का नारा लगाते हुए जब उनकी सेना युद्ध मैदान में उतरती थी, तो दुश्मनों के दांत खट्टे होना निश्चित रहता था़ बाजीराव में राजनीतिक और सैनिक नेतृत्व की अदम्य क्षमता भरी हुई थी़ इसी वजह से वह मराठा साम्राज्य को दक्कन से लेकर उत्तर भारत के हिस्से तक बढ़ा सके़ युद्धक्षेत्र की तरह ही बाजीराव का निजी जीवन भी चर्चित रहा़ एक विशुद्ध हिंदू होने के बावजूद, बाजीराव ने दो शादियां कीं. बाजीराव की पहली पत्नी का नाम काशीबाई और दूसरी मस्तानी थी.
दरअसल, सन 1727-28 के दौरान बुंदेल महाराजा छत्रसाल के राज्‍य पर मुगल सेनापति मोहम्मद खान बंगश ने हमला बोल दिया था. खुद पर खतरा बढ़ता देख छत्रसाल ने बाजीराव को एक गुप्त संदेश भेज कर बाजीराव से मदद मांगी.
बाजीराव ने छत्रसाल की मदद की और मोहम्मद बंगश से उनका साम्राज्य बचा लिया. छत्रसाल, बाजीराव की मदद से काफी खुश हुए और खुद को उनका कर्जदार समझने लगे. इस कर्ज को उतारने के लिए उन्होंने अपनी बेटी मस्तानी, बाजीराव को उपहार में दे दी. मस्तानी छत्रसाल बुंदेला और हैदराबाद के निजाम की राज-नृत्यांगना रुहानी बाई की बेटी थीं. बाजीराव पहली ही नजर में मस्तानी को दिल दे बैठे थे.
उन्होंने मस्तानी को अपनी दूसरी पत्नी बनाया. मस्तानी की परवरिश मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले से 15 किमी दूर मऊ सहनिया में हुई थी. बेपनाह खूबसूरत मस्तानी नृत्य-संगीत में पारंगत थीं. इसके अलावा, उन्हें घुड़सवारी, राजनीति, युद्धकला, तलवारबाजी और गृह कार्यों का पूरा प्रशिक्षण मिला हुआ था. मस्तानी ने कई सैन्य अभियानों में बाजीराव का साथ भी दिया. उच्च दर्जे के ब्राह्मण बाजीराव और फारसी-मुसलिम नृत्यांगना मस्तानी के विवाह का पूरे ब्राह्मण समुदाय और पेशवा राज्य के हिंदुओं ने विरोध किया.
बाजीराव द्वारा वैध रूप से विवाह कर मस्तानी को अपनी दूसरी पत्नी के रूप में स्वीकार किये जाने के बावजूद मस्तानी को बाजीराव की रखैल या प्रेमिका ही कहा जाता था. लेकिन विवाह के बाद मस्तानी ने बाजीराव के दिल में एक खास जगह बना ली थी, लेकिन इसके लिए उन्हें काफी दुख झेलने पड़े़ इसके बावजूद बाजीराव के प्रति उनका प्रेम अटूट था.
पेशवा बाजीराव के घरवालों को दूसरे धर्म की मस्तानी के साथ उनका संबंध मंजूर नहीं था़ यही नहीं, शाहूजी महाराज के कई दरबारी मंत्री और उनके राज्य की अधिकांश जनता को भी बाजीराव के साथ मस्तानी का रिश्ता खटकता था़ बाजीराव की मां राधाबाई, पहली पत्नी काशीबाई और भाई चिमाजी अप्पा, मस्तानी को बाजीराव से दूर करने की नाकाम कोशिश करते रहते थे.
बाजीराव का पुत्र बालाजी भी मस्तानी को उनके पिता को छोड़ने के लिए मजबूर करता था, लेकिन मस्तानी ने भी हिम्मत नहीं हारी़ बाजीराव इन सबको नजरअंदाज करते रहे़ जब बाजीराव अपने सैन्य अभियानों में व्यस्त थे, इसी का फायदा उठाते हुए बालाजी ने मस्तानी को कुछ समय के लिए उन्हें घर में ही कैद करके रखा था़ बाजीराव के परिवार के मस्तानी के साथ दुर्व्यहार के कारण उन्होंने मस्तानी के लिए कोथरुड में एक अलग निवास स्थान बनाया, जो पुणे स्थित शनिवार वाडा से कुछ ही दूरी पर था.
कुछ दिनों बाद बाजीराव को सैन्य अभियान के लिए पूना छोड़ना पड़ा़ मस्तानी पेशवा के साथ नहीं जा सकीं. उनके घरवालाें ने एक योजना के तहत मस्तानी को उनके महल में कैद कर दिया़ बाजीराव को जब यह खबर मिली, तो वे बड़े दुखी हुए और बीमार रहने लगे़ इसी बीच मस्तानी कैद से बच कर बाजीराव के पास पहुंची.
मस्तानी के पहुंचने से बाजीराव निश्चिंत हुए, लेकिन यह स्थिति ज्यादा दिनों तक नहीं रही़ जल्दी ही बाजीराव की मां राधाबाई और उनकी पत्नी काशीबाई के साथ अन्य घरवाले भी वहां पहुंचे़ वे मस्तानी को समझा-बुझाकर वापस पूना ले कर आये़ सन 1740 की शुरुआत में बाजीराव नासिरजंग से लड़ने के लिए निकल पड़े और गोदावरी नदी को पार कर शत्रु को हरा दिया.
इस बीच बाजीराव की बीमारी बढ़ती जा रही थी और 28 अप्रैल 1740 को उनकी मृत्यु हो गयी़ मस्तानी बाजीराव की मृत्यु का समाचार पाकर बहुत दुखी हुईं और अपनी अंगूठी का हीरा चख कर उन्होंने भी अपनी जान दे दी़ मध्य प्रदेश में इंदौर शहर के पास पेशवा बाजीराव की समाधि है और उससे लगभग 600 किलोमीटर दूर पुणे के पास पाबल गांव में मस्तानी का मकबरा आज भी उनके त्याग, दृढ़ता तथा अटूट प्रेम की कहानी बयां करता है.
और आखिर में…..
बाजीराव और मस्तानी के प्रेम पर मराठी, हिंदी और अन्य भाषाओं में कहानियां तो कई लिखी गयीं, लेकिन सन 1972 में नागनाथ संतराम ईनामदार की मराठी भाषा में लिखी किताब ‘राउ’, इस विषय पर सबसे प्रमाणिक दस्तावेज मानी जाती है़ बॉलीवुड के जाने-माने निर्माता-निर्देशक संजय लीला भंसाली ने वर्ष 2015 के आखिर में इस विषय पर ‘बाजीराव मस्तानी’ के शीर्षक से एक फिल्म रिलीज की, जिसने कई प्रतिष्ठित पुरस्कार जीते़

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