ऐसे में टेलीविजन कलाकारों का सारा वक्त सेट पर बीतता है. वे बाहर की वास्तविक दुनिया से कटते चले जाते हैं. उनके पास बाहरी दुनिया के लोगों से मिलने-जुलने और बातें करने का वक्त ही नहीं होता. यही वजह है कि वे सेट की दुनिया को ही अपनी दुनिया समझ लेते हैं और अपना प्यार भी उसी चहारदीवारी में खोजने लगते हैं. वहां वे स्टूडियो में ही रहते हैं. जंक फूड खाते हैं. यह बातें आपको अजीब लग सकती हैं. लेकिन यह हकीकत है कि जंक फूड खाने से आपकी सोचने-समझने की क्षमता कम होती जाती है.
आपके खाने के चुनाव और आदत पर भी आपके मस्तिष्क में चल रही सारी गतिविधियां निर्भर करती हैं. ऐसा मेरा मानना है. मैं इस बात पर इसलिए जोर डाल रहा हूं कि आपके खाने के चुनाव से आपकी दिमागी सोच का भी स्तर तय होता है. जाहिर है कि जंक फूड पसंद करनेवालों को घर की दाल पसंद नहीं होगी, तो उन्हें घरेलू माहौल कैसे पसंद होगा! चौबीस घंटे तो उन्हें उसी शोर-शराबे से घिरे रहने की आदत हो जाती है. और यही वजह है कि इन्हें लगता है कि उन्हें वहां जिसका भी साथ मिल रहा है, वही प्यार है. वही जिंदगी में असली हकीकत है.
असलियत यह है कि ये स्टार्स जीवन के यथार्थ से कटते जाते हैं. वे आर्टिफिशियल प्यार को असल प्यार समझ लेते हैं. वे समझते हैं कि वे प्रेमी या प्रेमिका उनका वास्तविक सपोर्ट सिस्टम है, जबकि वे सिर्फ गिमिक दुनिया में ही रहनेवाले लोग हैं और फास्ट फूड, फास्ट लाइफ ही गुजर-बसर करना चाहते हैं. उन्हें नाइट लाइफ पसंद है जहां खूब शोर-शराबा है. वे शांति पसंद भी नहीं करते. कभी उनकी जिंदगी में शांति आये भी, तो वे उसे सन्नाटा और अकेलापन समझने लगते हैं. और इसी दौरान वे खुद से ऐसा कदम उठाते हैं, जो उनकी जिंदगी तबाह कर देता है.
यह टाइमपास प्रेम है. लेकिन, इसमें कोई संवेदनशील लड़की या लड़का पूरी तरह से उलझ जाता है और वे जल्दी दुखी हो जाते हैं. फिल्मी दुनिया में भी संबंध टूटते हैं. उनमें कई बहुत गंभीर भी होते हैं. लेकिन, ज्यादातर मामलों में प्रेमी और प्रेमिकाएं आगे बढ़ जाते हैं, क्योंकि फिल्मों में आनेवाले लोग जिंदगी की हकीकत से ज्यादा वाकिफ होते हैं. साथ ही टीवी की तरह फिल्मों के लोग डेडलाइन के दबाव से नहीं जूझ रहे होते हैं. वे थक जाते हैं तो ब्रेक लेते हैं. वे अपनी सेहत का पूरा ख्याल रखते हैं.
उन्हें भी लगता है कि कम वक्त में उन्हें अधिक सफलता हासिल कर लेनी है, तो उन्हें भी इस बात से परेशानी नहीं होती है. फिल्मों की दुनिया में आप गौर करें, तो उसमें लोग या तो फिल्मी पृष्ठभूमि से होते हैं या परिपक्व होकर आते हैं. वे हर वक्त सेट की दुनिया से ही घिरे नहीं होते. तो वे ज्यादा दुनियादारी से जुड़े होते हैं. छोटे परदे की यह सबसे बड़ी विडंबना है कि यह किसी व्यक्ति को रातों-रात शोहरत देती है. उसे खूब व्यस्त रखने के बाद कभी-कभी बिल्कुल अकेला कर देती है. आप कम उम्र में लीड निभाने का बावजूद दूसरे धारावाहिक में लीड भूमिका निभाने के लिए जद्दोजहद करते हैं.
मैं तो बहुत हद तक दोष टीवी के लेखकों को भी देता हूं. वे अपने किरदारों में महिला पात्रों को लिखते समय इतने झूठे इमोशन लिखते हैं और फिर उनसे एक्ट करवाते हैं कि वे धीरे-धीरे अपनी आॅन स्क्रीन छवि और जिंदगी को ही वास्तविक जिंदगी मान बैठती हैं और वास्तविक जिंदगी में भी वे एक्ट ही करने लगती हैं. वे रियल इमोशन भूल ही जाती हैं.
जिंदगी की असल भावना से तो उनका नाता ही नहीं होता है. आप देखें कि जिस तरह से सीरियलों में झूठे इमोशनवाला प्रेमी प्रेमिका के प्यार में कुछ भी कर जाने को तैयार है. उसके लिए फंटासी दुनिया का प्यार ला रहा है. माहौल बना रहा है. वास्तविक जिंदगी में भी लड़कियां वैसा ही प्रेमी और आशिक ढूंढ़ती है. लेकिन हकीकत तो इसे परे है असली जिंदगी की.
एक बात और जो मैंने गौर की है कि छोटे परदे पर लड़के-लड़कियों को कम उम्र में शोहरत तो मिलती ही है, उनमें ज्यादातर छोटे शहरों से आते हैं. वहां जो उनकी पैदाइशी जीवनशैली होती है और यहां जो उन्हें जीवनशैली मिलती है, उसमें जमीन-आसमान का फर्क होता है.
आप छोटे शहर की संतुलित जीवनशैली से अचानक हाइ प्रोफाइल जिंदगी की जीवनशैली अपनाते हैं. कई बार आपका दिमाग यह सब कुछ एक साथ नियंत्रित नहीं कर पाता, इसी कारण से वे सच और झूठ को समझ ही नहीं पाते हैं. वे फंटासी की दुनिया में काम करते हैं. यथार्थ से उनका संपर्क टूट जाता है. प्रत्युषा ने भी कम उम्र में सफलता हासिल की. मेरा मानना है कि जिन अभिनेत्रियों ने या अभिनेताओं ने संतुलित जिंदगी जी है. जिनका जीवन के यथार्थ से आमना सामना है, वे खुशहाल जिंदगी जीते हैं. और यह मुमकिन है.