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ये वह प्यार है नहीं, जिसकी उन्हें तलाश होती है

जयप्रकाश चौकसे,वरिष्ठ फिल्म आलोचक टेलीविजन की दुनिया में पहले भी कुछ लड़कियों ने ऐसा दर्दनाक रास्ता अख्तियार किया है. यह वाकई बहुत दुखद है. मैं इस संदर्भ में कुछ बातें रखना चाहूंगा. टेलीविजन की दुनिया में डेडलाइन का मामला होता है. राउंड द क्लॉक काम होता है. घंटों आपको काम करना होता है. ऐसे में […]

जयप्रकाश चौकसे,वरिष्ठ फिल्म आलोचक
टेलीविजन की दुनिया में पहले भी कुछ लड़कियों ने ऐसा दर्दनाक रास्ता अख्तियार किया है. यह वाकई बहुत दुखद है. मैं इस संदर्भ में कुछ बातें रखना चाहूंगा. टेलीविजन की दुनिया में डेडलाइन का मामला होता है. राउंड द क्लॉक काम होता है. घंटों आपको काम करना होता है.

ऐसे में टेलीविजन कलाकारों का सारा वक्त सेट पर बीतता है. वे बाहर की वास्तविक दुनिया से कटते चले जाते हैं. उनके पास बाहरी दुनिया के लोगों से मिलने-जुलने और बातें करने का वक्त ही नहीं होता. यही वजह है कि वे सेट की दुनिया को ही अपनी दुनिया समझ लेते हैं और अपना प्यार भी उसी चहारदीवारी में खोजने लगते हैं. वहां वे स्टूडियो में ही रहते हैं. जंक फूड खाते हैं. यह बातें आपको अजीब लग सकती हैं. लेकिन यह हकीकत है कि जंक फूड खाने से आपकी सोचने-समझने की क्षमता कम होती जाती है.

आपके खाने के चुनाव और आदत पर भी आपके मस्तिष्क में चल रही सारी गतिविधियां निर्भर करती हैं. ऐसा मेरा मानना है. मैं इस बात पर इसलिए जोर डाल रहा हूं कि आपके खाने के चुनाव से आपकी दिमागी सोच का भी स्तर तय होता है. जाहिर है कि जंक फूड पसंद करनेवालों को घर की दाल पसंद नहीं होगी, तो उन्हें घरेलू माहौल कैसे पसंद होगा! चौबीस घंटे तो उन्हें उसी शोर-शराबे से घिरे रहने की आदत हो जाती है. और यही वजह है कि इन्हें लगता है कि उन्हें वहां जिसका भी साथ मिल रहा है, वही प्यार है. वही जिंदगी में असली हकीकत है.

असलियत यह है कि ये स्टार्स जीवन के यथार्थ से कटते जाते हैं. वे आर्टिफिशियल प्यार को असल प्यार समझ लेते हैं. वे समझते हैं कि वे प्रेमी या प्रेमिका उनका वास्तविक सपोर्ट सिस्टम है, जबकि वे सिर्फ गिमिक दुनिया में ही रहनेवाले लोग हैं और फास्ट फूड, फास्ट लाइफ ही गुजर-बसर करना चाहते हैं. उन्हें नाइट लाइफ पसंद है जहां खूब शोर-शराबा है. वे शांति पसंद भी नहीं करते. कभी उनकी जिंदगी में शांति आये भी, तो वे उसे सन्नाटा और अकेलापन समझने लगते हैं. और इसी दौरान वे खुद से ऐसा कदम उठाते हैं, जो उनकी जिंदगी तबाह कर देता है.

यह टाइमपास प्रेम है. लेकिन, इसमें कोई संवेदनशील लड़की या लड़का पूरी तरह से उलझ जाता है और वे जल्दी दुखी हो जाते हैं. फिल्मी दुनिया में भी संबंध टूटते हैं. उनमें कई बहुत गंभीर भी होते हैं. लेकिन, ज्यादातर मामलों में प्रेमी और प्रेमिकाएं आगे बढ़ जाते हैं, क्योंकि फिल्मों में आनेवाले लोग जिंदगी की हकीकत से ज्यादा वाकिफ होते हैं. साथ ही टीवी की तरह फिल्मों के लोग डेडलाइन के दबाव से नहीं जूझ रहे होते हैं. वे थक जाते हैं तो ब्रेक लेते हैं. वे अपनी सेहत का पूरा ख्याल रखते हैं.

टीवी की दुनिया में अभिनेत्रियों के पास ये अवसर कम होते हैं. वे इतने अधिक दबाव में काम करती रहती हैं कि वे अंदर से खोखली होती जाती हैं. वे सिर्फ काम करनेवाली मशीन ही बन जाती हैं.

उन्हें भी लगता है कि कम वक्त में उन्हें अधिक सफलता हासिल कर लेनी है, तो उन्हें भी इस बात से परेशानी नहीं होती है. फिल्मों की दुनिया में आप गौर करें, तो उसमें लोग या तो फिल्मी पृष्ठभूमि से होते हैं या परिपक्व होकर आते हैं. वे हर वक्त सेट की दुनिया से ही घिरे नहीं होते. तो वे ज्यादा दुनियादारी से जुड़े होते हैं. छोटे परदे की यह सबसे बड़ी विडंबना है कि यह किसी व्यक्ति को रातों-रात शोहरत देती है. उसे खूब व्यस्त रखने के बाद कभी-कभी बिल्कुल अकेला कर देती है. आप कम उम्र में लीड निभाने का बावजूद दूसरे धारावाहिक में लीड भूमिका निभाने के लिए जद्दोजहद करते हैं.

मैं तो बहुत हद तक दोष टीवी के लेखकों को भी देता हूं. वे अपने किरदारों में महिला पात्रों को लिखते समय इतने झूठे इमोशन लिखते हैं और फिर उनसे एक्ट करवाते हैं कि वे धीरे-धीरे अपनी आॅन स्क्रीन छवि और जिंदगी को ही वास्तविक जिंदगी मान बैठती हैं और वास्तविक जिंदगी में भी वे एक्ट ही करने लगती हैं. वे रियल इमोशन भूल ही जाती हैं.

जिंदगी की असल भावना से तो उनका नाता ही नहीं होता है. आप देखें कि जिस तरह से सीरियलों में झूठे इमोशनवाला प्रेमी प्रेमिका के प्यार में कुछ भी कर जाने को तैयार है. उसके लिए फंटासी दुनिया का प्यार ला रहा है. माहौल बना रहा है. वास्तविक जिंदगी में भी लड़कियां वैसा ही प्रेमी और आशिक ढूंढ़ती है. लेकिन हकीकत तो इसे परे है असली जिंदगी की.

एक बात और जो मैंने गौर की है कि छोटे परदे पर लड़के-लड़कियों को कम उम्र में शोहरत तो मिलती ही है, उनमें ज्यादातर छोटे शहरों से आते हैं. वहां जो उनकी पैदाइशी जीवनशैली होती है और यहां जो उन्हें जीवनशैली मिलती है, उसमें जमीन-आसमान का फर्क होता है.

आप छोटे शहर की संतुलित जीवनशैली से अचानक हाइ प्रोफाइल जिंदगी की जीवनशैली अपनाते हैं. कई बार आपका दिमाग यह सब कुछ एक साथ नियंत्रित नहीं कर पाता, इसी कारण से वे सच और झूठ को समझ ही नहीं पाते हैं. वे फंटासी की दुनिया में काम करते हैं. यथार्थ से उनका संपर्क टूट जाता है. प्रत्युषा ने भी कम उम्र में सफलता हासिल की. मेरा मानना है कि जिन अभिनेत्रियों ने या अभिनेताओं ने संतुलित जिंदगी जी है. जिनका जीवन के यथार्थ से आमना सामना है, वे खुशहाल जिंदगी जीते हैं. और यह मुमकिन है.

सफलता को सिर न चढ़ने दें
हमारी इंडस्ट्री में सफलता स्थायी नहीं है. इसलिए कभी सफलता को सिर पर न चढ़ायें. इससे जब आप नाकामयाब भी होंगे तो ग्राउंडेड ही रहेंगे. हम ऐसे कदम उठाने पर इसलिए मजबूर हो जाते हैं, क्योंकि हम इनसिक्योर हो जाते हैं. हमें लगता है कि हमसे बेस्ट कोई नहीं. अभिनेत्रियों के साथ परेशानी अधिक इसलिए होती है कि उन्हें हरदम खुद को बेस्ट दिखाना होता है.
हमेशा अपनी बॉडी, लुक पर काम करना होता है. वे कॉन्शस रहने लगती हैं. यह सब इस दौर में बढ़ा है. आजकल लोग निजी जिंदगी से ज्यादा सोशल साइट्स पर इंटरैक्ट करते हैं. उनके पास दोस्त, परिवारवाले नहीं हैं. नये लोगों को सलाह है कि अपनी सफलता से छेड़छाड़ न करें. सफलता और असफलता को लाइटली लें.

रिश्तों से भागें नहीं, उन्हें सहेजें
जो नये बच्चे इस इंडस्ट्री में आते हैं, वे परिवार से कटने लगते हैं. दिन में दो-चार बार घर पर बात कीजिए. यह इंडस्ट्री ऐसी है कि कामो या न हो, स्ट्रेस रहता ही है. हम काउज नहीं पकड़ते, इफेक्ट पर ध्यान देते हैं.

माता-पिता को भी डिप्रेशन के लक्षण देख कर समझना जरूरी है. आप इस जगह आये हैं और कामयाब नहीं हुए, तो इसका मतलब यह नहीं कि आप कुछ और नहीं कर सकते. कोई और रास्ता चुन लो. जिंदगी को एंजॉय करो. परिवार से जुड़ो. तभी आप खुश रहेंगे.
इंस्टाग्राम पर प्रत्युषा
प्रकाश कुमार रे
‘सबसे सुंदर मुस्कराहटें/ छुपाती हैं सबसे गहरे राज/ सबसे सुंदर आंखें/ बहाती हैं सबसे ज्यादा आंसू/ और सबसे दयालु दिलों को महसूस होते हैं/ सबसे ज्यादा दर्द.’
यह साझा किया था प्रत्युषा बनर्जी ने अपने इंस्टाग्राम पन्ने पर 24 सितंबर, 2015 को. इस सोशल मीडिया साइट पर उसकी आखिरी पोस्ट अपने साथी के साथ एक तसवीर है, जो उसने 26 अक्तूबर को साझा किया था.
इस तसवीर के साथ उसने लिखा था कि यह रियलिटी शो ‘पॉवर कॉपल हाउस’ में जाने से पहले की आखिरी तसवीर है और वह बहुत लंबे समय तक कोई तसवीर पोस्ट नहीं करेगी. इंस्टाग्राम पर प्रत्युषा के प्रोफाइल को देखकर अंदाजा लगाना मुश्किल है कि उसकी मनोदशा क्या थी या उसके व्यक्तिगत जीवन में कुछ तनाव था. यह प्रोफाइल किसी भी आम प्रोफाइल की तरह है.
इसमें दोस्तों संग खाते-पीते-घूमते-बतियाते तसवीरें हैं, माता-पिता की तसवीरें हैं, साथी कलाकारों के संग तसवीरें हैं. बीच-बीच में जीवन के बारे में कुछ टिप्पणियां हैं, जिन्हें आप आमतौर पर सोशल मीडिया पर पाते हैं. कहीं वह प्रार्थना करती है कि भले दिल की हर लड़की भले हाथों में अपना दिल रखे. कहीं कहती है कि अनेकों चीजों ने उसे नुकसान पहुंचाया, पर वह मजबूत बनी रही, क्योंकि उसने हमेशा खुशियों की बात की.
अपनी संभावित शादी के बारे में प्रत्युषा कहती है कि मैं ऐसी पत्नी होना चाहती हूं जो रात के दो बजे अपने पति का टी-शर्ट पहने रसोई में नाचे और कुछ पकाये. उसके एक पोस्ट में लिखा है कि हर मजबूत और आजाद स्त्री के पीछे एक टूटी हुई बच्ची होती है, जिसने खड़ा होना और किसी पर निर्भर नहीं होना सीखा.
उसके कुछ पोस्ट कैंसर रोगियों के समर्थन में हैं तो कुछ शरणार्थियों की बेबसी पर. ज्यादातर पोस्ट उसके प्रेम, काम और परिवार से संबंधित हैं. इंस्टाग्राम पर उसकी प्रोफाइल से गुजरते हुए यही अहसास होता है कि वह भले दिल की सुंदर लड़की थी, जिसे एक भली जिंदगी की चाह थी और उसके लिए पूरे जतन से वह कोशिश भी कर रही थी. प्रत्युषा का जाना हमारे समय की एक उम्मीद का भी जाना है.

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