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प्लास्टिक के डिब्बों में बंद कर लिया पूरा धंधा !
पंकज मुकाती आज से तीन दशक पहले तक हिंदुस्तान में प्लास्टिक के बरतन को बड़े निचले रूप से देखा जाता था. प्लास्टिक के बर्तनों में खाने का सामान या इसे किचन में रखना तो कोई पसंद ही नहीं करता था. जिस देश की एक बड़ी आबादी बरसों तक चीनी के मग, प्लेट और दूसरी क्राॅकरी […]
पंकज मुकाती
आज से तीन दशक पहले तक हिंदुस्तान में प्लास्टिक के बरतन को बड़े निचले रूप से देखा जाता था. प्लास्टिक के बर्तनों में खाने का सामान या इसे किचन में रखना तो कोई पसंद ही नहीं करता था.
जिस देश की एक बड़ी आबादी बरसों तक चीनी के मग, प्लेट और दूसरी क्राॅकरी को स्वीकार नहीं कर सकी, वहां प्लास्टिक में खाना बनाना, रखना और खाना नामुमकिन- सा लगता था. उसी देश में आज बिना प्लास्टिक के किचन के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता. इस प्लास्टिक को ख़ास और सोसायटी में रुतबे का प्रतीक बनाया टपरवेयर ने. टपरवेयर प्लास्टिक और एयरटाइट में सबसे बड़ा और भरोसेमंद ब्रांड है.
यही कारण है कि 2008 में फार्च्यून मैगज़ीन ने मोस्ट एडमायर हाउसहोल्ड प्रोडक्ट्स लिस्ट में टपरवेयर दूसरे नंबर पर रहा. भारत में टपरवेयर ने 1996 में प्रवेश किया. अभी पूरे देश में इसके सौ ज्यादा वितरक और 50000 के करीब सेल्सवुमन हैं. टपरवेयर का पुरा सेल्स महिलाएं ही देखती हैं. पूरी दुनिया में करीब 25 लाख सेल्स वुमन काम कर रही हैं.
टपरवेयर की शुरुआत 1946 में हुई. इसके पीछे अर्ल एस टपर की सोच थी. टपर मूल रूप से केमिस्ट थे. 1945 में उन्होंने एक नये प्लास्टिक पॉलीएथलीन टपर या पॉली-टी का पेटेंट करवाया. इस प्लास्टिक की विशेषता यह थी कि इसमें खाने-पीने की चीजें रखने पर ना उनका स्वाद बदलता था ना ही कोई नुकसान था.
हेल्थ के लिहाज से भी ये प्लास्टिक हानिकारक नहीं है. यही वह दौर था जिसने प्लास्टिक को फ़ूड कंटेनर्स में बदला. टपरवेयर को लोकप्रिय बनाया- हल्के होना, टूटने का खतरा कम. इसकी सबसे बड़ी खूबी एयर टाइट होना है, इससे कोई भी सामान कपड़े खराब नहीं करता, बिना गिरे सेफ रहता है. शुरुआत में टपरवेयर सिर्फ खाना रखने के ही काम आते थे. आज टपरवेयर प्रोडक्ट्स की पूरी किचन रेंज है. इनमे खाना बनाना, फ्रिज में रखना, माइक्रोवेव में इस्तेमाल करना. सब काम टपरवेयर के बर्तन से हो सकते हैं. सौ से ज्यादा देशों के बाद ये प्रोडक्ट 1996 में भारत में आये. टपरवेयर की बिक्री का मूल मन्त्र डायरेक्ट सेलिंग है.
इसका विचार भी एक झटके में टपर को आया. 1948 में कंपनी को मालूम हुआ कि स्टोर्स पर उनके प्रोडकट नहीं बिक रहे, बल्कि दूसरी कंपनी के सेल्समेन उन्हें घर- घर ले जाकर तेज़ी से बेच रहे हैं. इससे ये सिद्ध हो गया कि लोग आँखों देखी पर भरोसा करते हैं. डोर-टू-डोर सेलिंग से ही ये संभव है. अगर ये विश्लेषण नहीं होता तो शायद टपरवेयर इतना बड़ा ब्रांड नहीं बन पाता. टपरवेयर ने होम पार्टीज शुरू की इसमें मेजबान महिला अपने यहाँ पार्टी में आने वाली महिलाओं को इस प्रोडक्ट की जानकारी देती और उन्हें बेच देती. ये पार्टीज बेहद सफल रही.
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