सुशासन और भ्रष्टाचार
यह भ्रष्टाचार के खिलाफ साल-दर-साल बढ़ती जन-जागरूकता का ही नतीजा है कि केंद्र सरकार इस साल के आखिर में भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए लोकपाल बिल पारित कराने पर मजबूर हो गयी. राहत की बात यह भी रही कि बीते कुछ वर्षो की तरह इस साल कोई ‘सबसे बड़ा घोटाला’ सामने नहीं आया.
हालांकि देशवासियों को भ्रष्टाचार कम होने का इंतजार अब भी है. सुशासन और भ्रष्टाचार के पैमाने पर कैसा रहा साल 2013, नजर डाल रहा है यह विशेष आयोजन
देश में भ्रष्टाचार पिछले कुछ सालों में इस कदर बढ़ चुका है कि अब यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मिदगी का विषय बन रहा है. हालांकि इस मामले में एक बड़ा बदलाव यह आया है कि भ्रष्टाचार का दंश ङोल रहा देश का आम आदमी अब इसके खिलाफ आवाज उठाने लगा है.
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लोगों में जागरूकता बढ़ने में ‘सूचना का अधिकार’ (आरटीआइ) कानून की बड़ी भूमिका रही है. हालांकि हाल ही में किये गये एक सर्वेक्षण में एक और खास बात सामने आयी है, भ्रष्टाचार के खिलाफ आम लोगों की भागीदारी को लेकर. भारत में अधिकतर लोग यह तो मानते हैं कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगना चाहिए.
लेकिन इस प्रक्रिया में आम आदमी अपनी पूरी भागीदारी निभा नहीं रहा है. फिर भी, यह भ्रष्टाचार के खिलाफ बने जन दबाव का ही नतीजा है कि इस साल के आखिरी महीने में सरकार भ्रष्टाचार रोकने के लिए लोकपाल कानून को संसद से पारित कराने पर मजबूर हुई और विपक्षी दलों को भी अपना रुख बदलना पड़ा.
पिछले कुछ साल घपलों-घोटालों के रिकार्डस की चर्चा के बीच बीते था. इस लिहाज से यह राहत की बात कही जायेगी कि इस साल कोई नया ‘सबसे बड़ा घोटाला’ सामने नहीं आया, लेकिन भ्रष्टाचार के पैमाने पर देश में गवर्नेंस की स्थिति सुधरी हो, यह कहना भी मुश्किल है. केंद्रीय सतर्कता आयोग का कहना है कि देश में तकरीबन 1.8 अरब डॉलर की रकम अब तक घोटालों की भेंट चढ़ चुकी है.
भ्रष्टाचार रोकने में केंद्र के साथ-साथ ज्यादातर राज्य सरकारें विफल रही हैं. एक सव्रे के मुताबिक भ्रष्टाचार से निजात पाने के लिए लोग लोकतंत्र के चौथे स्तंभ यानी मीडिया से सबसे अधिक आशान्वित हैं.
लचर एवं लंबी कानूनी प्रक्रिया
इसी वर्ष बीबीसी ने लोगों के बीच किये गये एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के 66 प्रतिशत लोग भ्रष्टाचार को सबसे बड़ी समस्या मानते हैं और आम लोगों की चर्चा का मुख्य विषय भ्रष्टाचार रहता है. हालांकि आम लोगों की जागरूकता के बावजूद भ्रष्टाचार के मामले कम नहीं हो रहे हैं. दुर्भाग्य यह है कि देश में इस संबंध में अनेक कायदे-कानून तथा कानून का शासन होने के बावजूद भ्रष्टाचार बढ़ा है.
दरअसल, हो यह रहा है कि भ्रष्टाचारी इन्हीं कायदे-कानून की कमजोरियों का सहारा लेकर भ्रष्ट आचरण अपनाते हैं और जांच एवं न्याय की लंबी प्रक्रिया चलती रहती है. इसमें कई बार दोषी भी कानूनी दावंपेच का सहारा लेकर बच जाते हैं. इसके लिए न्यायिक सुधार की जरूरत भी वर्षो से महसूस की जा रही है.
विशेषज्ञों का मानना है कि सुशासन ही भ्रष्टाचार रोकने का मूलमंत्र है. इसलिए सुशासन का केवल प्रचार नहीं होना चाहिए, राजनेता एवं अधिकारियों को भ्रष्टाचार रोकने के प्रति अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति भी दिखानी चाहिए. विकास हेतु भ्रष्टाचार पर अंकुश जरूरी है, जो सुशासन से ही मुमकिन है. देखा यह गया है कि जनप्रतिनिधियों को मिलनेवाले फंड के माध्यम से संचालित होनेवाली स्कीमें राजनीतिक स्तर पर हो रहे भ्रष्टाचार का एक बड़ा माध्यम हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि आज जरूरत इस बात की है कि इस तरह की योजनाओं को बंद कर दिया जाए. भ्रष्टाचार से सख्ती से निबटने के लिए पिछले करीब चार दशकों से लोकपाल के गठन की मांग हो रही है.
हाल ही में इसे लोकसभा और राज्यसभा, यानी संसद के दोनों ही सदनों में पारित कर दिया गया है. उम्मीद की जा रही है कि 2014 से लोकपाल देश में भ्रष्टाचार खत्म करने में एक बड़ी भूमिका निभायेगा.
भ्रष्टाचार रोकने की बाधाएं
बाल्मीकि प्रसाद सिंह की किताब ‘द चैलेंज ऑफ गुड गवर्नेस इन इंडिया : नीड फॉर इनोवेटिव एप्रोचेज’ के मुताबिक, भारत में भ्रष्टाचार के उच्च स्तर को व्यापक रूप से शासन व्यवस्था की गुणवत्ता में सुधार के लिए एक बड़ी बाधा के तौर पर माना गया है. भले ही इनसान की लालची प्रवृत्ति भ्रष्टाचार का वाहक हो, लेकिन दंड देने का ढांचा सही न होने और लचर प्रणाली के चलते देश में इसे बढ़ावा मिलता है.
नियंत्रण की जटिल और गैर-पारदरशी प्रणाली, सेवा प्रदाता के तौर पर सरकार का एकाधिकार, अविकसित कानूनी ढांचा, जानकारी का अभाव और नागरिकों का इन समस्याओं से निबटने में कमजोर होने के चलते देश में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है. इन सभी समस्याओं से निजात के लिए नागरिकों में जागरूकता अभियान को मजबूती प्रदान करने और भ्रष्टाचार-निरोधी मौजूदा एजेंसियों को ज्यादा सशक्त बनाने की जरूरत है.
इस संबंध में ‘सूचना का अधिकार अधिनियम’ को उल्लेखनीय माना जा सकता है. इस अधिनियम के प्रावधान से जन-जागरूकता से जुड़े कार्यक्रमों को लोगों के बीच ले जाने में सहायता मिली है. फाइलों के प्रबंधन में मौलिक सुधार, सरकारी नियमों और अधिनियमों, सार्वजनिक खर्चो के प्रावधान की समीक्षा के माध्यम से सेवा प्रदाताओं को संबंधित नागरिकों के प्रति जवाबदेह बनाया जा सकता है.
अंतरराष्ट्रीय सूचकांक में भारत की स्थिति
दुनियाभर के देशों में भ्रष्टाचार की स्थितियों का आकलन करनेवाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने अपनी हालिया रिपोर्ट में भारत में इसकी भयावह स्थिति का जिक्र किया है. संस्था की ओर से इस साल जारी रिपोर्ट के मुताबिक, भ्रष्टाचार के मामले में भारत दुनिया के 176 देशों में 94वें स्थान पर आता है.
हालांकि, इस वर्ष शासन के स्तर पर कोई बड़ा भ्रष्टाचार का मामला सामने नहीं आया है, लेकिन ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि यह बिलकुल खत्म हो गया है. इस सूची में चीन 80वें, पाकिस्तान 127वें और श्रीलंका 91वें स्थान पर है. सूची में भारत को शून्य से 100 के पैमाने पर 36 अंक प्राप्त हुए हैं. इस सूची में डेनमार्क और न्यूजीलैंड 91 अंक के साथ सबसे कम भ्रष्ट देशों में शीर्ष स्थान पर हैं.
इसमें फिनलैंड 89 अंकों के साथ तीसरे स्थान पर है. मालूम हो कि ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल वर्ष 1995 से भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक जारी करता है. यह एक समग्र सूचक है, जो दुनियाभर के विभिन्न देशों में सार्वजनिक क्षेत्र में हो रहे भ्रष्टाचार को दर्शाता है.
भ्रष्टाचार का आकलन करनेवाली इस संस्था की रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में रिश्तखोरी का स्तर काफी ऊंचा है. भारत में 70 फीसदी लोगों का मानना है कि पिछले दो साल में भ्रष्टाचार की स्थिति और बिगड़ी है. हालांकि, पिछले वर्षो सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के नेतृत्व में विशाल भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन हुआ, लेकिन इस दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है.
राजनीतिक दल स्वयं को आरटीआइ कानून के दायरे से भी अलग रखना चाहती हैं. भारत में भ्रष्टाचार निम्न स्तर से आगे चल कर उच्चस्तर पर व्यापक हुआ है. सरकारी स्तर पर जिस तरह के घोटाले हो रहे हैं, उससे लगता है कि हमने लाखों के नहीं, अब अरबों-खरबों रुपये के भ्रष्टाचार में कीर्तिमान कायम किये हैं.
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के भ्रष्टाचार नापने के अपने मानक हैं, पर भारतीय परिदृश्य में भ्रष्टाचार को कम होते हुए स्वीकार करना थोड़ा मुश्किल लगता है. यह सही है कि आज पूरी दुनिया में सार्वजनिक क्षेत्र खासकर राजनीतिक दलों, पुलिस और न्यायिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार दुनियाभर में एक बड़ी चुनौती है. इस बारे में एजेंसी का कहना है कि सार्वजनिक संस्थानों को अपने काम, अधिकारों और निर्णयों के बारे में ज्यादा खुला होने की जरूरत है.
भ्रष्टाचार की जांच पड़ताल और उस पर कार्रवाई कठिन काम है. सोचनेवाली अहम बात यह है कि हम यह स्वीकार करते हैं कि देश में भ्रष्टाचार तो है. इस ओर ध्यान भी जाता है और हम यह भी समझते हैं कि उसे रोकनेवाले भी हम ही हैं, लेकिन कुछ खास कर नहीं पाते. भारत के राजनीतिक-सामाजिक माहौल की बात करें, तो अब भ्रष्टाचार के विरोध में समाज का हर तबका खड़ा दिखाई देता है. यह भी सच है कि भ्रष्टाचार के संबंध में अपने विचार प्रकट करना एक बात है और इसको हटाने के लिए वास्तव में कुछ करना अलग बात है.
– जागरूक हो रही है जनता
अनुपमा झा
कार्यकारी निदेशक, ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया
ले ही इस वर्ष भी छोटे-छोटे बहुत से घोटाले सामने आये हों, लेकिन कोई बड़ा घोटाला नहीं देखने में आया है. इससे कई निहितार्थ निकलते हैं. पिछले दो-तीन वर्षो के दौरान देशभर में आम जनता के बीच भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरूकता बढ़ी है. देश के अनेक इलाकों में भ्रष्टाचार-विरोधी अभियान की मुहिम छेड़ी गयी है.
गवर्नेस (सुशासन) में सुधार और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए लोग अब खुल कर आवाज उठा रहे हैं. हाल के वर्षो में इन मुद्दों पर कई आंदोलन भी हुए हैं. इसमें मीडिया और गैर-सरकारी संगठनों की भी बड़ी भूमिका रही है.
अब तक होता यह रहा है कि तमाम राजनीतिक दल और नौकरशाह यह समझते थे कि वे कुछ भी कर सकते हैं और जनता मूकदर्शक बनी रहेगी, लेकिन इस वर्ष इस प्रवृत्ति में काफी बदलाव देखा गया है. लोगों ने भ्रष्टाचार का व्यापक विरोध शुरू कर दिया है, कि अब यह सब नहीं चलेगा.
ग्लोबल करप्शन बैरोमीटर के एक सर्वे में बताया गया है कि देश की आम जनता का राजनेताओं पर से विश्वास कम हुआ है. लोगों का मानना है कि भारत में सबसे ज्यादा भ्रष्ट राजनेता हैं. सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक, नेताओं के बाद भ्रष्टाचार में नौकरशाह और कानून बनानेवाले आते हैं.
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की ओर से किये गये सर्वेक्षण के मुताबिक, गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करनेवाले लोगों को सालाना नौ अरब रुपये घूस देना पड़ता है. वह भी अपनी मूलभूत सुविधाओं से संबंधित जरूरतों को पूरा करने के लिए. यानी जो चीजें उन्हें मुफ्त मिलनी चाहिए, उनके लिए उन्हें इतनी बड़ी रकम का भुगतान करना होता है. सुना तो यहां तक गया है कि गरीबों को अस्पताल में भर्ती अपने बीमार संबंधियों के लिए खून की जरूरत होने पर उन्हें अस्पताल के कर्मचारियों को घूस देना पड़ता है.
स्वच्छ प्रशासन की मांग
देखा जाय तो लोगों को स्वच्छ प्रशासन मुहैया कराना चुनाव के लिहाज से एक बड़ा मुद्दा है. राजनेताओं के साथ एडमिनिस्ट्रेशन को भी इस पर ध्यान देना होगा. इसी वर्ष हुए ऑगस्टा वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर घोटाले पर नजर डालें, तो इसमें सरकार की ओर से व्यावहारिक अनियमितता बरती गयी है.
दरअसल, ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने सरकार को पूर्व में ‘इंटेग्रिटी पैक्ट’ की अवधारणा लागू करने का प्रस्ताव दिया था. सैद्धांतिक रूप से तो इसे मान लिया गया, लेकिन इस मामले में इसे व्यावहारिक रूप से कार्यान्वित नहीं किया गया. रक्षा विभाग ने इस प्रस्ताव को मानने की सैद्धांतिक सहमति भी दे दी, लेकिन व्यावहारिक तौर पर इसे लागू नहीं किया. मालूम हो कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगानेवाली देश की सरकारी संस्था केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) को भी यह प्रस्ताव अच्छा लगा था.
दरअसल, इंटीग्रिटी पैक्ट की अवधारणा को सार्वजनिक ठेकों में भ्रष्टाचार खत्म करने के मकसद से 1990 के दशक में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने विकसित किया था. यह पैक्ट सार्वजनिक ठेकों में सरकार या सरकारी विभागों (राष्ट्रीय, राज्य या स्थानीय स्तर पर) और ठेकों की बोली लगानेवालों के बीच का एक समझौता है.
इसमें दोनों ही पक्षों को इस संदर्भ में प्रतिबद्धता दर्शानी होती है कि वे न तो घूस लेंगे और न देंगे. साथ ही, इस बारे में प्रतिबद्धता जतानी होती है कि अन्य प्रतियोगियों से उनकी किसी तरह की टकराहट नहीं है.
कई देशों में यह पैक्ट अपनाया जा रहा है. सिविल सोसायटी के नेतृत्व में एक स्वतंत्र निगरानी प्रणाली के माध्यम से इसे ज्यादा प्रभावी बनाया जा सकता है. इससे सार्वजनिक स्नेतों के संदर्भ में ज्यादा से ज्यादा जवाबदेही तय की जा सकती है.
कानूनों का सही कार्यान्वयन जरूरी
हमारे देश में कानून तो बहुत से हैं, लेकिन उनका कार्यान्वयन ठीक से नहीं हो रहा है. कथनी और करनी में काफी फर्क देखा जा रहा है. शासन व्यवस्था में आंतरिक नियंत्रण जरूरी है. भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए निजी क्षेत्र को भी आगे आना होगा. मीडिया और सिविल सोसायटी तो पहले से ही इस कार्य में जुटी हुई है.
निजी क्षेत्र को अकसर शिकायत रहती है कि उन्हें भ्रष्टाचार का शिकार बनाया जाता है, पर अब उन्हें भी आगे आना होगा. अपनी ओर से उन्हें पूरी सक्रियता से कोशिश करनी होगी, ताकि सार्वजनिक क्षेत्र उन्हें भ्रष्टाचार का शिकार न बना सकें.
जहां तक भ्रष्टाचार के पैमाने पर गवर्नेस की स्थिति में सुधार की बात है तो इस दिशा में इस वर्ष कुछ हद तक सुधार हुआ है. हालांकि, देश में भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है कि एक साल में इससे निबटना मुमकिन नहीं है. हां, इस वर्ष एक अच्छी बात जरूर हुई है कि लोगों में भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरूकता बढ़ी है. सुशासन की ओर इसे पहला कदम तो माना ही जा सकता है.
अब जरूरत इस बात की है कि सरकार के कार्यक्रमों में भागीदारी निभानेवाली सभी एजेंसियां (सार्वजनिक क्षेत्र, निजी क्षेत्र, गैर-सरकारी संगठन, मीडिया, सिविल सोसायटी आदि) जागरूक हों. उम्मीद की जानी चाहिए कि इस दिशा में हम आगे बढ़ेंगे.
आप की जीत में भ्रष्टाचार अहम मुद्दा
अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में दिल्ली विधानसभा चुनावों में ‘आम आदमी पार्टी’ की जीत को इस संबंध में एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा सकता है. भले ही इस पार्टी को पूर्ण बहुमत न मिला हो, लेकिन इतना जरूर साबित हुआ कि जनता ने भ्रष्टाचार के खिलाफ किस हद तक अपनी राय स्पष्ट तौर पर जाहिर की है. केजरीवाल के घोषणापत्र में भ्रष्टाचार एक अहम मुद्दा रहा है और जनता ने विकल्प मिलते ही मौजूदा राजनीति करनेवाले तमाम बड़े नेताओं को सबक सिखाया है. दरअसल जनता भ्रष्टाचारियों को अब किसी भी कीमत पर बख्शना नहीं चाहती.
इस वर्ष इनमें हुई सुधार प्रक्रियाओं के चलते 2014 के लिए भी कुछ स्पष्ट संकेत छिपे हैं. नौकरशाहों और राजनेताओं को अब सजग हो जाना होगा. वे यह न समङों कि अब वे कुछ भी करते रहेंगे और लोग उनका कुछ नहीं बिगाड़ पायेंगे.
उन्हें अब इस मानसिकता को बदलना होगा कि पहले से जो चीजें चली आ रही हैं, उसे ही वे बरकरार रखेंगे. उन्हें अब लोगों की ताकत को समझना होगा. यह भी तय है कि चुनाव में जीत दर्ज करने के लिए अब राजनीतिक दलों को अपने एजेंडे में व्यापक बदलाव करना होगा. भ्रष्टाचार को प्रमुख मुद्दा बनाना होगा.
दिल्ली के हालिया विधानसभा चुनाव के नतीजों से भी उन्हें यह सबक मिला है. उम्मीद की जानी चाहिए कि अगले साल यह सबक राजनीतिक दलों को इस दिशा में आत्म-मंथन करने पर मजबूर करेगा. अब वे जनता से केवल वादेभर नहीं कर सकते हैं. उन्हें उन वादों को निभाना भी होगा. उन्हें यह समझना होगा कि जातीयता, सांप्रदायिकता आदि मुद्दों पर अब वे चुनाव नहीं जीत सकते. साथ ही, सुशासन और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जनता जागरूक हो चुकी है और अब उसे बरगलाया नहीं जा सकता.
(कन्हैया झा से बातचीत पर आधारित)
– 2013 के कुछ चर्चित घोटाले
रेलवे प्रोन्नति घोटाला
तत्कालीन रेल मंत्री पवन कुमार बंसल के कार्यकाल में इस वर्ष यह घोटाला सामने आया था. रेल मंत्री पवन कुमार बंसल के भांजे विजय सिंगला को केंद्रीय जांच ब्यूरो ने इसी वर्ष मई में चंडीगढ़ से गिरफ्तार किया था. सिंगला पर एक उच्च-स्तरीय अधिकारी से घूस की रकम लेकर उसे रेलवे बोर्ड में प्रोन्नति करने की सिफारिश करवाने का आरोप लगाया गया था.
बताया गया था कि पदानुक्रम के मुताबिक दो अन्य अधिकारियों को दरकिनार करते हुए किसी अन्य अधिकारी को प्रोन्नति दिये जाने की सिफारिश की गयी थी. हालांकि, रेल मंत्री ने इस आरोप को भले ही स्वीकार नहीं किया हो, लेकिन इस घूस कांड के बाद पवन बंसल को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था.
शारदा ग्रुप वित्तीय घोटाला
शारदा ग्रुप नामक एक निवेश स्कीम चलानेवाली कंपनी की ओर से पश्चिम बंगाल में की गयी वित्तीय धोखाधड़ी के तौर पर यह घोटाला सामने आया था. यह कंपनी पोंजी स्कीम के माध्यम से लोगों से फर्जी तरीके से रकम निवेश करवा रही थी. इसी वर्ष अप्रैल में पता चला कि यह समूह लोगों की जमा रकम चुकाने में असमर्थ हो चुका है. इस समूह में 17 लाख से ज्यादा निवेशकों के द्वारा 200 से 300 करोड़ रुपये निवेश किये जाने का अनुमान लगाया गया था.
हेलीकॉप्टर घोटाला
इस वर्ष के आरंभ में, संसदीय जांच समिति ने इस हेलीकॉप्टर घोटाले को सामने लाने का काम किया. दरअसल, हेलीकॉप्टर बनानेवाली ऑगस्ता वेस्टलैंड नामक कंपनी से कुछ हेलीकॉप्टरों को खरीदने के लिए हुई डील में शामिल कई वरिष्ठ अधिकारियों ने अनियमितता बरती थी.
कुछ राजनेताओं और सैन्य अधिकारियों पर ऑगस्ता वेस्टलैंड नामक कंपनी से 12 हेलीकॉप्टर खरीदे जाने की एवज में घूस लेने का आरोप लगा था. मालूम हो कि इस सौदे में भारत की ओर से 55 करोड़ डॉलर का भुगतान करना तय किया गया था. आरोप लगाया गया कि इस सौदे को हासिल करने के लिए इस कंपनी ने भारतीय नेताओं और सैन्य अधिकारियों को घूस दी थी. बताया गया है कि इन हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल राष्ट्रपति और अन्य बड़ी हस्तियों के लिए किया जाना है.
सोलर पैनल घोटाला
इसी वर्ष केरल में एक सौर ऊर्जा कंपनी की ओर से यह घोटाला सामने आया है. इसमें मुख्यमंत्री कार्यालय के संबंधित राजनीतिज्ञ के संपर्क से सात करोड़ रुपये घूस दिये जाने का आरोप लगाया गया है. बताया गया है कि कंपनी के हितों के लिए घूस की यह रकम दी गयी. टीम सोलर एनर्जी नामक कंपनी के अधिकारियों ने कंपनी में साङोदार बनाने के नाम पर अनेक लोगों से गलत तरीके से रकम वसूली थी. इस मामले में इसी वर्ष कुछ लोगों को गिरफ्तार भी किया गया.