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पर्यावरण संरक्षण : विनाशक कचरे से मिलेगी मुक्ति बैक्टीरिया खायेंगे प्लास्टिक
– कन्हैया झा – प्लास्टिक कचरा अब एक बड़ी वैश्विक समस्या है. इसका पूरी तरह से रिसाइकल न हो पाना और नष्ट करने के बावजूद पर्यावरण पर इसका बुरा असर जारी रहना एक बड़ी चुनौती है. लेकिन, वैज्ञानिकों ने हाल में ऐसे बैक्टीरिया विकसित किये हैं, जिनसे इस समस्या को कम करने में आरंभिक सफलता […]
– कन्हैया झा –
प्लास्टिक कचरा अब एक बड़ी वैश्विक समस्या है. इसका पूरी तरह से रिसाइकल न हो पाना और नष्ट करने के बावजूद पर्यावरण पर इसका बुरा असर जारी रहना एक बड़ी चुनौती है. लेकिन, वैज्ञानिकों ने हाल में ऐसे बैक्टीरिया विकसित किये हैं, जिनसे इस समस्या को कम करने में आरंभिक सफलता हाथ लगी है. प्लास्टिक कचरे से निपटने की दिशा में हासिल इस बड़ी कामयाबी के साथ-साथ इससे जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं पर नजर डाल रहा है आज का साइंस एंड टेक्लोलॉजी पेज …
दुनिया में हर साल 300 मिलियन टन से ज्यादा प्लास्टिक तैयार हो रहा है. इनमें से ज्यादातर का इस्तेमाल विविध वस्तुओं की पैकेजिंग से लेकर कपड़ों के निर्माण में किया जाता है.
रोजमर्रा के उपयोग की कई चीजों के जरिये हमारे जीवन में घुसपैठ कर चुके प्लास्टिक का एक खतरनाक पहलू यह भी है कि इससे तैयार कोई भी उत्पाद पूरी तरह से नष्ट नहीं होता. प्लास्टिक को किसी भी तरीके से नष्ट या खत्म करने अथवा कहीं डंप करने के बावजूद उसका घातक असर पर्यावरण में मौजूद रहता है. गलियों-सड़कों-खेतों से लेकर नदियों और समुद्रों तक में यह प्रवाहित हो रहा है. आप धरती के किसी भी कोने में चले जायें, प्लास्टिक कचरा जरूर दिखेगा.
समुद्रों में जिस तरह से प्लास्टिक कचरा बढ़ता जा रहा है, उसे देखते हुए यह आशंका प्रबल हो रही है कि वर्ष 2050 तक समुद्र में यह इतना ज्यादा बढ़ जायेगा कि मछलियों से ज्यादा तादाद में प्लास्टिक कचरा मौजूद होगा. इससे निबटने के लिए वैज्ञानिक पिछले कुछ दशकों से गंभीर प्रयासों में जुटे हैं और हाल ही में इस दिशा में एक बड़ी कामयाबी मिली है.
बैक्टीरिया कुतरेंगे बोतल
वैज्ञानिकों ने ऐसे बैक्टीरिया तैयार किये हैं, जो प्लास्टिक कचरे को खत्म करेंगे. शुरू में इन्हें रिसाइकलिंग सेंटर में कचरे के ढेरों में डाला जायेगा, जहां ये डंप किये गये प्लास्टिक बोतलों को कुतरने का काम करेंगे. हाल ही में इसका परीक्षण किया गया है और विकसित किये गये बैक्टीरिया को इस कार्य के लिए उपयुक्त पाया गया है.
दरअसल, प्लास्टिक को मुख्य रूप से पेट्रोलियम पदार्थों से निकलनेवाले कृत्रिम रेजिन से बनाया जाता है. रेजिन में अमोनिया और बेंजीन को मिला कर प्लास्टिक के मोनोमर बनाये जाते हैं. इसमें क्लोरीन, फ्लोरिन, कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन और सल्फर के अणु होते हैं. लंबे समय तक अपघटित न होने के अलावा प्लास्टिक अनेक अन्य प्रभाव छोड़ता है, जो इनसान की सेहत के लिए हानिकारक हैं. जो प्लास्टिक कचरे में फेंक दिया जाता है, उसका वहां लंबे समय तक पड़ा रहना पर्यावरण में अनेक विषैले प्रभाव छोड़ सकता है.
हालांकि, ज्यादातर प्लास्टिक्स के कार्बन आधारित मोनोमर्स से बने होने के कारण ‘माइक्रोऑर्गेनिज्म्स’ के लिए यह भोजन का एक अच्छा स्रोत पाया गया है. लेकिन, नेचुरल पॉलिमर की तरह (जैसे पौधों में सेलुलोज होते हैं) प्लास्टिक आम तौर पर बायोडिग्रेडेबल नहीं होते हैं. बैक्टीरिया और फंजाई का संबंध प्राकृतिक पदार्थों के साथ देखा जाता है. मृत वस्तुओं के साथ नये बायोकेमिकल मैथॉड से ये जुड़ जाते हैं.
लेकिन प्लास्टिक धरती के लिए ज्यादा नयी चीज नहीं है और इसे महज सात दशक पहले बनाया गया है, इसलिए माइक्रोऑर्गेनिज्म्स को अभी ज्यादा समय नहीं मिल पाया है, ताकि वे प्लास्टिक फाइबर को प्राकृतिक रूप से नष्ट करने का कोई बायोकेमिकल तरीका विकसित कर सकें.
एंजाइम इनोवेशन
क्योटो यूनिवर्सिटी की रिसर्च टीम एक बार कचरे के ढेरों में कुछ उम्मीदें तलाश रही थी. उन्होंने प्लास्टिक को कुतरनेवाले कुछ माइक्रोब देखे. करीब 250 सैंपल्स पर पांच वर्षों तक शोध करने के बाद उन्होंने कुछ बैक्टीरिया को अलग किया, जो पॉली-इथिलीन टेरेफ्थालेट (पीइटी) में जीवित रह सकते हैं. दरअसल, ‘पीइटी’ एक कॉमन प्लास्टिक है, जिसका इस्तेमाल बोतलों और अनेक सिंथेटिक कपड़ों के निर्माण में किया जाता है.
क्या हुआ नया?
आप शायद सोच रहे होंगे कि यह पुरानी कहानी को ही दोहराने वाली बात है, क्योंकि प्लास्टिक खानेवाले माइक्रोब्स का धरती पर अस्तित्व कई वर्षों पहले ही खोज लिया गया था. लेकिन, हालिया खोजी गयी चीजों में कुछ महत्वपूर्ण फर्क पाये गये हैं. जैसे- हालिया शोध में यह साबित हुआ है कि इस कार्य के लिए उपयोगी माइक्रोब्स को आसानी से पैदा किया जा सकता है. शोधकर्ताओं ने परीक्षण के दौरान एक ‘पीइटी’ जार में बैक्टीरियल कल्चर और कुछ अन्य पोषक तत्वों को डाल कर उसे छोड़ दिया. कुछ सप्ताह के बाद उसमें से पूरा प्लास्टिक गायब हो गया.
शोधकर्ताओं ने दूसरी नयी चीज भी पायी है. उन्होंने उनमें एंजाइम्स की पहचान की है. ‘आइडियोनेला सेकेनसिस’ नामक यह एंजाइम ‘पीइटी’ को नष्ट करने में सक्षम पाया गया है. सभी जीवित चीजों में एंजाइम्स होते हैं, जिनका इस्तेमाल जरूरी केमिकल रिएक्शंस को गति देना होता है. कुछ एंजाइम्स हमारे भोजन को पचाने में मदद करते हैं. इन जरूरी एंजाइम्स के बिना शरीर कुछ खास प्रकार के भोजन से पोषक चीजें नहीं हासिल कर सकता है.
उदाहरण के तौर पर लैक्टोज नहीं पचा पानेवाले लोगों में एंजाइम नहीं होते, जो डेयरी उत्पादों में पाये जोनेवाले लैक्टोज सुगर को तोड़ते हैं. कोई भी इनसान सेल्यूलोज नहीं पचा सकता, जबकि माइक्रोब्स ऐसा कर सकते हैं.
‘आइडियोनेला सेकेनसिस’ में कुछ ऐसे सक्षम एंजाइम पाये गये हैं, जिन्हें बैक्टीरिया पर्यावरण में पैदा करते हैं. क्योटो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने बैक्टीरिया के डीएनए में जीन की पहचान की है, जो पीइटी को पचानेवाले एंजाइम के लिए उत्तरदायी होते हैं. इस प्रकार वे ज्यादा से ज्यादा एंजाइम बनाने में सक्षम पाये गये हैं और ये दर्शाते हैं कि महज ये एंजाइम ही इन पीइटी को पूरी तरह से नष्ट कर सकते हैं.
पहला वास्तविक रिसाइकलिंग
इस शोध ने प्लास्टिक रिसाइकलिंग और परिशोधन का एक नया नजरिया दिया है. मौजूदा समय में अधिकांश प्लास्टिक बोतलों को वास्तविक में रिसाइकिल नहीं किया जाता है. इन्हें पिघला कर और कुछ सुधार करके प्लास्टिक के कठोर उत्पाद बनाये जाते हैं. लेकिन पैकेजिंग कंपनियां ज्यादातर फ्रेश प्लास्टिक का इस्तेमाल करती हैं, जिन्हें पेट्रोलियम पदार्थों से हासिल होनेवाले रसायनों से बनाया जाता है.
पीइटी-डाइजेस्टिंग एंजाइम्स ने ही प्लास्टिक के रिसाइकल की वास्तविक राह तैयार की है. कूड़े-कचरे के साथ मिला कर इनके जरिये सभी प्रकार के प्लास्टिक बोतलों और अन्य आइटम्स को वास्तविक रूप से खत्म किया जा सकता है. इस प्रकार इन घातक रसायनों से आसानी से निबटा जा सकता है. साथ ही वास्तविक रिसाइकलिंग सिस्टम के जरिये फ्रेश प्लास्टिक बनाया जा
सकता है.
समुद्री कचरा खायेंगे सूक्ष्मजीव
समुद्री कचरे से निपटने में सूक्ष्मजीव अहम भूमिका निभा सकते हैं. शोधकर्ताओं ने एक खास तरह के सूक्ष्मजीवों की तलाश की है, जो पानी में प्लास्टिक खायेंगे. ‘द कंजर्वेशन’ की रिपोर्ट के मुताबिक, यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ताअों का कहना है कि एक खास तरह के सूक्ष्मजीव पानी पर तैर रहे कचरे को विघटित करने में मदद करते हैं.
विशेषज्ञों ने आशंका जतायी है कि पांच मिलीमीटर से छोटे आकार वाले माइक्रोप्लास्टिक समुद्र के प्राकृतिक पर्यावरण को बिगाड़ सकते हैं. संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम के आंकड़ों के अनुसार, उत्तरी प्रशांत महासागर के प्रतिवर्ग किलोमीटर में माइक्रोप्लास्टिक के करीब 13 हजार टुकड़े मौजूद हैं.
समुद्र का यह इलाका इक्रोप्लास्टिक से सबसे बुरी तरह प्रभावित है. रिपोर्ट के मुताबिक, ऑस्ट्रेलिया के तटों पर तैरनेवाले कचरे का विश्लेषण करने के दौरान पाया गया कि माइक्रोप्लास्टिक कूड़े पर कई सूक्ष्मजीव रह रहे हैं, जो भोजन के लिए माइक्रोप्लास्टिक के कचरे पर निर्भर हैं. साथ ही उन्हें इन पर कई नये प्रकार के सूक्ष्मजीव भी मिले. माना जा रहा है कि पहली बार किसी रिपोर्ट में पानी पर तैर रहे माइक्रोप्लास्टिक के कचरे पर रहनेवाले एक विशेष सूक्ष्मजैव समुदाय का जिक्र किया गया है. समुद्र विज्ञानी जूलिया राइसर का कहना है कि ऐसा लगता है, समुद्र में प्लास्टिक का विघटन हो रहा है. वह इस शोध से काफी उत्साहित हैं.
क्या है पीइटी
पीइटी यानी पॉली-इथिलीन टेरेफ्थालेट एक प्रकार से प्लास्टिक रेजिन है और पॉलिस्टर का एक कॉमन प्रारूप है. मोडिफाइड ग्लाइकॉल और प्यूरिफाइड टेरेफ्थालिक एसिड- ये दो मोनोमर्स मिल कर पॉलिमर बनाते हैं, जिसे पॉली-इथिलीन टेरेफ्थालेट कहा जाता है. वर्ष 1941 में इंगलैंड में पीइटी की खोज की गयी थी और उसे पेटेंट कराया गया था. खाद्य व पेय पदार्थों समेत बोतल और पैकेटबंद अन्य उपभोक्ता उत्पादों की पैकेजिंग करनेवाली अधिकांश कंपनियां जिस चीज का इस्तेमाल करती हैं, वह पीइटी से बना होता है. मजबूत, सुरक्षित और पारदर्शी होने के कारण निर्माता इसे उपयोग में लाते हैं.
प्लास्टिक कूड़ा खानेवाला वर्म्स
वैज्ञानिकों ने पशुओं की आंत में पाये जानेवाले एक ऐसे बैक्टीरिया की पहचान की है, जिसे प्लास्टिक को जैविक तरीके से खत्म करने में कामयाब पाया गया है. इससे पर्यावरण को प्लास्टिक के घातक असर से बचाया जा सकेगा. अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी और चीन की बेहांग यूनिवर्सिटी के के शोधकर्ताओं ने कुछ ऐसे मीलवर्म की तलाश की है, जो अनेक प्रकार के पॉलिस्टिरीन और स्टाइरोफोम को खाने और उसे पचाने में सक्षम पाये गये हैं. इन वर्म्स की आंत में प्लास्टिक जैविक तरीके से पच जाता है और इसका पूरी तरह से अपघटन हो जाता है.
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के सिविल और एनवायरमेंट इंजीनियरिंग विभाग के सीनियर रिसर्च इंजीनियर और इस शोध रिपोर्ट के लेखक वेइ-मेन वू का कहना है कि इस शोध से प्लास्टिक से पैदा होनेवाली वैश्विक समस्याओं को खत्म करने को एक नयी दिशा मिलने की उम्मीद जगी है. इस अध्ययन में पाया गया कि 100 मीलवर्म्स मिल करा रोजाना करीब 39 मिलिग्राम्स पॉलिस्टिरीन और टाइरोफोम को खाने और उसे पचाने में सक्षम हैं.
पानी में घुलनेवाला प्लास्टिक
इटली की एक कंपनी ऐसी प्लास्टिक बना रही है, जो पानी में घुल सकती है. यह कंपनी चुकंदर से निकलने वाले कचरे से प्लास्टिक बनाती है. विशेषज्ञों का कहना है कि चुकंदर के उत्पादन से निकलने वाले बाइ-प्रोडक्ट से बननेवाला प्लास्टिक पर्यावरण के लिए कोई खतरा नहीं बनेगा. इसके अलावा पेट्रोलियम पदार्थों से बननेवाले प्लास्टिक पर निर्भरता को कम करने में कामयाबी मिल सकती है. इटली की एक छाेटी कंपनी ‘बायो ऑन’ जैव प्लास्टिक के क्षेत्र में नवीनतम प्रयास का प्रतिनिधित्व कर रही है.
इटली के शहर मिनेर्बियो में सबसे बड़ी चीनी उत्पादक कंपनी ‘को प्रो बी’ चुकंदन से चीनी बनाती है. चुकंदर से चीनी बनने के बाद यह कंपनी कचरे के तौर पर जिन चीजों को फेंक देती है, ‘बायो ऑन’ उसी से प्लास्टिक का निर्माण करती है. दरअसल, चुकंदर के अशुद्धीकृत शीरे से यह कंपनी प्लास्टिक बनाती है और चीनी के कारखाने से शीरा कचरे के तौर पर निकलता है.
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