देश में स्कूली बच्चों को मध्याह्न भोजन देने की योजना 15 अगस्त 1995 को शुरू हुई थी़ प्रारंभ में यह योजना कक्षा एक से पांच तक के बच्चों लिए शुरू की गयी थी. वर्ष 2008-09 में कक्षा छह से आठ तक के बच्चों के लिए योजना शुरू की गयी. इसके तहत कक्षा एक से पांच के बच्चे को प्रतिदिन 450 कैलोरी तथा कक्षा छह से आठ के बच्चों को 700 कैलोरी युक्त पका हुआ भोजन देना है़ इसमें 60% राशि केंद्र तथा राज्य सरकार 40% राशि देती है़ राज्य गठन के 5 वर्ष बाद भी झारखंड में मध्याह्न भोजन संचालन के सिस्टम को दुरुस्त नहीं किया जा सका है़ यहां मध्याह्न भोजन की निगरानी अच्छी तरह से नहीं की जाती है. यही वजह है कि झारखंड में आये मध्याह्न भोजन खाने से बच्चों के बीमार होने का मामला सामने आते रहता है. महालेखाकार के वर्ष 2015 के प्रतिवेदन में राज्य में मध्याह्न भोजन योजना की स्थिति पर चिंता जतायी गयी है़ रिपाेर्ट में कहा गया है कि राज्य में अब तक जांच की ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, जिससे भोजन में कैलोरी व प्रोटीन के अंश की जांच की जा सके़ रसोई सह भंडार का निर्माण कार्य पूरा नहीं हुआ है़ निगरानी को लेकर गठित अनुश्रवण समिति की भी नियमित बैठक नहीं हाेती है़ इस व्यवस्था की पड़ताल करती सुनील कुमार झा की रिपोर्ट.
राज्य में मध्याह्न भोजन योजना का ठीक से संचालन नहीं होने के कारण आये दिन स्कूलों में बच्चों बीमार होने की बात सामने आते रहती है़ कांके प्रखंड के एक प्राथमिक विद्यालय की छात्रा की गरम दाल में गिर जाने से मौत हो गयी थी. राज्य में मध्याह्न भोजन की निगरानी के लिए समय-समय पर दिशा-निर्देश जारी किया जाता रहा है, पर निर्देश का पालन नहीं होता. खाना बनाने के दौरान साफ-सफाई का पूरा ख्याल नहीं रखा जाता. सभी स्कूलों में किचन शेड नहीं है. खुले आसमान के नीचे मध्याह्न भोजन बनाया जाता है. बच्चों को दिये जा रहे चावल में कीड़े मिलने की शिकायत आम है़ कई स्कूल तो ऐसे हैं, जहां विद्यार्थियों की संख्या एक हजार से अधिक है. प्रति दिन एक क्विंटल चावल की खपत होती है. चार से पांच घंटे में एक क्विंटल चावल की साफई करना मुश्किल होता है़ स्कूलों में किचन शेड नहीं होने कारण स्कूल भवन में ही खाना बनाया जाता है. लकड़ी पर खाना बनने के कारण क्लास रूम में धुआं भर जाता है. इससे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है.
पहले शिक्षक को करना है भोजन
बच्चों को मध्याह्न भोजन देने से पूर्व शिक्षक को खुद खाना खाकर देखना होता है. इसके लिए विद्यालयों में स्वाद पंजी के निर्धारण का निर्देश दिया गया था. इसके तहत अलग-अलग दिन अलग-अलग शिक्षकों को भोजन करना था. पर अधिकांश स्कूलों में इसका पालन नहीं होता है़
मध्याह्न भोजन की खाद्य सामग्री को लेकर निर्देश
भोजन निर्माण में अनिवार्य रूप से आयोडिन युक्त नमक का प्रयोग किया जाये.
सुरक्षित डब्बा बंद तेल सामग्री का इस्तेमाल किया जाये.
भोजन सामग्री (दाल-सब्जी) साफ व ताजी हो.
छाल व मसालों का एक साथ 15 दिन के लिए ही क्रय किया जाये.
खाद्य व गैर खाद्य सामग्री को एक साथ भंडारित नहीं किया जाये.
िनयम : स्कूलों में बच्चे कैसे करें भोजन
प्रतिदिन बच्चे भोजन से पूर्व साबुन से हाथ धोएं.
बच्चे चम्मच से खाना खाये.
भोजन वितरण के समय बच्चे कतारबद्ध हो, इसकी निगरानी शिक्षक करें.
बच्चे साफ स्थान पर पंक्ति में बैठ कर भोजन करें.
प्रत्येक 100 बच्चे पर अलग से हो भोजन वितरण की व्यवस्था.
खाने की राशि से मानदेय का भुगतान
राज्य में स्कूल में खाना बनानेवाली माता समिति के सदस्यों को वर्ष में 10 माह के लिए 1500 प्रतिमाह की दर से मानदेय का भुगतान किया जाता है. यह राशि भी समय पर नहीं दिया जाता. केंद्रीय टीम द्वारा पूर्व में की गयी जांच में पाया गया था. कई स्कूलों में मध्याह्न भोजन की राशि से माता समिति के सदस्यों को मानदेय का भुगतान कर दिया जाता है.
खाना में मिलते रहे हैं सांप-छिपकली
राज्य में मध्याह्न भाेजन में सांप-छिपकली मिलने का मामला सामने आते रहता है. इस कारण बच्चे बीमार भी हुए है. धनबाद के एक विद्यालय में मध्याह्न भोजन में सांप मिलने के कारण 20 बच्चे बीमार हो गये थे. 16 मार्च को देवघर के मोहनपुर प्रखंड स्थित उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय पुराना चितकाठ में भोजन में छिपकली गिरने से 56 बच्चे बीमार हो गये थे .
इन स्कूलों में हुई घटना
उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय पुराना चितकाठ
उत्क्रमित मवि कनसार
यूएमएस राधानगर बाघमारा
उत्क्रमित मध्य विद्यालय चुंगी
टीयादाह मध्य विद्यालय
प्राथमिक विद्यालय खूंटी
प्राथमिक विद्यालय कोलायकनादु
झारखंड का देश में 33वां स्थान
भारत सरकार द्वारा पहली बार देश के विभिन्न राज्यों में मध्याह्न भोजन संचालन की स्थिति का सर्वे कराया गया था. सर्वे में कुल 15 बिंदुओं के बारे में जानकारी एकत्र की गयी. सर्वे में कर्नाटक पहले स्थान पर रहा, जबकि झारखंड को देश में 33वां स्थान मिला. झारखंड को सौ में से 45.73% अंक मिला. दिल्ली की स्थिति सबसे खराब है. सर्वे में बिहार को पांचवां स्थान मिला है. सर्वे में राज्य में कक्षा एक से आठ तक नामांकित बच्चे के अनुपात में मध्याह्न भोजन खाने वाले बच्चे, स्कूलों में खाना बनाने वाली रसोइयों के मानदेय भुगतान की स्थिति, बच्चों के स्वास्थ्य की स्थिति, खाना बनाने में स्वच्छता की स्थिति, स्कूलों में किचन शेड समेत अन्य बिंदुओं को शामिल किया गया था.
सर्वे में राज्यों की स्थिति
राज्य रैंक स्कोर
कर्नाटक 01 77.79
पंजाब 02 76.81
दमन-दीव 03 71.40
हिमाचल प्रदेश 04 71.31
बिहार 05 70.36
तामिलनाडु 21 56.38
गुजरात 25 53.86
झारखंड 33 45.46
दिल्ली 35 44.73
बंद रहते हैं कई स्कूल
राज्य में प्राथमिक व मध्य विद्यालय के बंद रहने के कारण बच्चों को मध्याह्न भोजन नहीं मिल पता. वर्ष 2013-14 में राज्य सरकार द्वारा जारी रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ था कि स्कूल बंद रहने के कारण बच्चों को मध्याह्न भोजन नहीं मिल पाता. जिलों द्वारा समय पर उपयोगिता प्रमाण पत्र भी नहीं दिया जाता है़ राज्य के कई जिले के जिला शिक्षा अधीक्षक निर्देश के अनुरूप स्कूलो का निरीक्षण नहीं करते हैं. विभागीय बैठक में कई बार यह बात सामने आयी है कि मध्याह्न भोजन योजना को लेकर सरकार द्वारा दिये गये निर्देशों का ठीक से पालन नहीं होता है़ इसका खमियाजा बच्चों को उठाना पड़ता है.
िकतने फीसदी स्कूल जिलों में रहते हैं बंद
देवघर 27%
साहेबगंज 20%
गोडडा17%
पलामू14%
गिरिडीह12.7%
पाकुड़12.5%
गुमला9.5%
धनबाद8.17%
चतरा7.7%
हर बच्चे पर चार से छह रुपये खर्च
ब
च्चों को अब दिन के खाने में चावल, दाल व हरी सब्जी के अलावा सप्ताह में दो दिन भेज पुलाव व फराइड राइस देने का प्रावधान है़ सरकार द्वारा इस वर्ष जनवरी में मध्याह्न भोजन के मेनू में बदलाव किया गया था़ बच्चों को छोला व चने की सब्जी तथा सप्ताह में एक दिन उबले हुआ अंडे की जगह अंडा कड़ी देना है. सोमवार से शुक्रवार तक नाश्ता 10.30 बजे तथा खाना 1.30 बजे से दो बजे के बीच दिया जायेगा़ शनिवार को नाश्ता नहीं दिया जाता है़ खाना 11 से 11. 30 बजे तक दिया जाता है़ कक्षा एक से पांच के लिए प्रति बच्चा कुकिंग कॉस्ट 3.86 पैसा व कक्षा छह से आठ के लिए 5.78 पैसा दिया जाता है़
बच्चों को िकस िदन क्या िमलना है
दिन नाश्ता भोजन
सोमवार एक उबला अंडा/ चावल, दाल,
एक सेव/ एक केला हरी सब्जी
मंगलवार मूढ़ी/अंकुरित चावल, छोला या
चना व गुड़ चने की सब्जी
बुधवार एक उबला भेज पुलाव, हरी सब्जी व सोयाबीन
अंडा/एक केला बड़ी युक्त/चावल, दाल, हरी सब्जी
गुरुवार दो बिस्कुट चावल, दाल, हरी सब्जी
शुक्रवार एक उबला अंडा/ चावल, दाल, हरी सब्जी
एक संतरा/ एक केला
शनिवार खिचड़ी/ फराइड राइस, हरी
सब्जी सोयाबीन बड़ी, पालक युक्त, अचार व पापड़
महालेखाकार ने कहा, अपने उद्देश्य में विफल हो रही है योजना
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हालेखाकार की वर्ष 2014-15 की रिपोर्ट में कहा गया है कि झारखंड में मध्याह्न भोजन योजना अपने उद्देश्य को पूरा करने में सफल नहीं हो रही है़ योजना की शुरुआत स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ाने के उद्देश्य से की गयी थी. पर झारखंड के सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या कम हो रही है. वर्ष 2010-15 के दौरान बच्चों की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की गयी है़ इस दौरान विद्यालय में बच्चों की संख्या 60.35 लाख से घट कर 50.80 लाख हो गयी है़, जबकि निजी स्कूलों में इस दौरान बच्चों की संख्या 8.94 लाख से बढ़ कर 13.89 लाख हो गयी़ सरकारी स्कूलों में बच्चों की औसत उपस्थिति में भी सुधार नहीं हो रहा है़ प्राथमिक स्तर पर यह 48 से 55% तथा उच्च प्राथमिक स्तर पर यह 60 % से घटकर 48% हो गया़
समय पर नहीं मिलती राशि
रिपोर्ट में कहा गया है मध्याह्न भोजन के लिए केंद्र व राज्य सरकार द्वारा दी गयी राशि झारखंड राज्य मध्याह्न भोजन प्राधिकार द्वारा जिलों को समय पर आवंटित नहीं की गयी. भारत सरकार व राज्य सरकार द्वारा दी गयी राशि जिलों को देने में एक से सात माह का विलंब हुआ़ जिलों का आनाज देने में भी दो माह तक का विलंब किया गया़ जिस कारण स्कूलों में मध्याह्न भोजन योजना बाधित रहा. विद्यालय में किचन शेड का निर्माण भी नहीं हो पाया है़ राज्य में अब तक 20,654 स्कूलों में किचन शेड का निर्माण किया गया है़ जमीन नहीं मिलने, कम राशि निर्गत होने व जिला शिक्षा अधीक्षक द्वारा राशि निकासी नहीं करने के कारण शेड नहीं बनने की बात रिपाेर्ट में कही गयी है़
जांच की कोई व्यवस्था नहीं
महालेखाकार की रिपोर्ट में कहा गया है कि झारखंड राज्य मध्याह्न भोजन प्राधिकार द्वारा भोजन के नमूनों की जांच के लिए मान्यता प्राप्त संस्थान या प्रयोगशाला को नियुक्त नहीं किया गया़ विद्यालयों में नमूना जांच की ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, जिससे भोजन की पौष्टिकता की जांच की जा सके़ स्कूलों को दिये जाने वाले आनाज की गुणवत्ता की जांच की भी राज्य में कोई व्यवस्था नहीं है़ राज्य मध्याह्न भोजन प्राधिकार द्वारा ऐसी प्रणाली विकसित नहीं की गयी है, जिससे यह पता चले की आनाज कम-से-कम सामान्य औसत गुणवत्ता का है़
अनुश्रवण समिति की नहीं होती बैठक
रिपोर्ट में इस बात खुलासा हुआ है कि वर्ष 2010-15 के दौरान दस छमाही बैठक की जगह मात्र दो बैठक हुई़ राज्यस्तर पर प्रति छह माह में राज्य अनुश्रवण समिति की बैठक होनी है़ रिपोर्ट कहा गया है कि बोकारो, चतरा व धनबाद में 120 बैठक की जगह जिलास्तर पर गठित अनुश्रवण समिति की मात्र तीन बैठकें हुई़, जबकि लातेहार, जामताड़ा व पाकुड़ में तो अनुश्रवण समिति गठित ही नहीं की गयी है़ राज्य से लेकर जिला स्तर तक मध्याह्न भोजन योजना की निगरानी के लिए गठित कमेटी अपना काम ठीक से नहीं कर रही है़ किसी भी स्तर पर योजना में सुधार के लिए को ठोस उपाय सुनिश्चित नहीं किया गया़ इसका परिणाम यह होता है कि अक्सर बच्चों के साथ स्कूलो में दुर्घटनाएं होती रहती है. शुरुआत में हो हंगामा होता है, फिर सब वहीं के वहीं.