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सीमा के प्रहरी बनना चाहते हैं गुमला के असुर

आमतौर पर जंगल में रहनेवाले आिदम जनजाति के लोग शहरों में जाना पसंद नहीं करते. इसलिए सदियों तक शिक्षा से दूर रहे. शहरी समाज से खुद को अलग-थलग रखा. लेकिन, धीरे-धीरे ये लोग अब मुख्यधारा में जुड़ रहे हैं. गुमला के िबशुनपुर प्रखंड से 45 किमी दूर पोलपोट पाट गांव में बसनेवाले असुर जाति के […]

आमतौर पर जंगल में रहनेवाले आिदम जनजाति के लोग शहरों में जाना पसंद नहीं करते. इसलिए सदियों तक शिक्षा से दूर रहे. शहरी समाज से खुद को अलग-थलग रखा. लेकिन, धीरे-धीरे ये लोग अब मुख्यधारा में जुड़ रहे हैं. गुमला के िबशुनपुर प्रखंड से 45 किमी दूर पोलपोट पाट गांव में बसनेवाले असुर जाति के युवा देश की सीमा के सुरक्षा प्रहरी बनना चाहते हैं और इसके लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं.
दुर्जय पासवान
गुमला : बिशुनपुर प्रखंड से 45 किमी दूर पहाड़ पर पोलपोट पाट गांव है. यहां आदिम जनजाति (असुर जाति) के लोग रहते हैं. उग्रवाद प्रभावित गांव है. सरकारी योजना नसीब नहीं है. लेकिन इस गांव के युवकों के इरादे नेक हैं. यहां के बेरोजगार युवक दिनभर मजदूरी और सुबह शाम को पढ़ाई करते हैं. मजदूरी के साथ पढ़ाई का यह नजारा हर रोज की है. युवकों को हर रोज आदर्श संसद भवन में पढ़ते देखा जा सकता है. उग्रवाद से जूझ रहे असुर जाति के युवकों की इच्छा है कि वे सेना में भरती होकर देश की सेवा करें. युवक सेना में भरती की तैयारी भी करने लगे हैं.
पोलपोल पाट गांव में आदर्श संसद भवन है. जहां असुर जाति के युवक सुबह शाम परीक्षा की तैयारी को लेकर पढ़ाई कर रहे हैं. सरकार ने आदिम जनजाति बटालियन बनाने की घोषणा की है. इसमें जल्द भर्ती शुरू होगी. दिलचस्प बात यह है कि ये युवक दिन में जहां तहां मजदूरी करते हैं. इसके बाद सुबह व शाम को परीक्षा की तैयारी करते हैं. इसमें कुछ युवक नन मैट्रिक तो कुछ मैट्रिक व इंटर पास है. पोलपोल पाट में 30 युवक हैं. इंटर पास युवक अपने से नीचे वर्ग के युवकों की पढ़ाई में मदद करते हैं. अगर कहीं कोई दिक्कत होती है तो गांव के शिक्षक टिपुन असुर व शिक्षिका सुमित्र असुर युवकों का मार्गदर्शन करते हैं.
जीवन को नयी राह देने की शुरुआत
गांव के राजेंद्र असुर, बालकिशुन असुर, फुलचंद असुर, महीप असुर, धर्मेंद्र असुर, रभेंद्र असुर, संजीत असुर और अभिराम असुर ने कहा कि झारखंड में आदिम जनजाति बटालियन में भरती होनेवाली है. इसकी तैयारी कर रहे हैं. सेना में भरती होकर देश की सेवा करेंगे. गांव में कोई काम नहीं है.
बॉक्साइट की खानें हैं. मजदूरी करते हैं, तो कुछ पैसे मिल जाते हैं. उसी से जी-खा लेते हैं. ऐसा कब तक चलेगा. आनेवाली पीढ़ी के बारे में भी सोचना है. यह उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र है. उग्रवाद के कारण हमारा जीवन, हमारा गांव बरबाद हो रहा है. सेना में जाकर अपनी अलग पहचान बनायेंगे. सरकार से उम्मीद है कि जल्द आदिम जनजाति बटालियन में बहाली हो, तो गरीबी, पिछड़ेपन और उग्रवाद से निकलें, अच्छी जिंदगी बसर करें.
पढ़ाई का केंद्र बना संसद भवन
आदर्श संसद भवन, जहां आज युवक पढ़ते हैं, बहुत मुश्किल से उसका निर्माण हुआ है. गुमला के शिक्षक हफीज-उर-रहमान और पोलपोल पाट के विमलचंद्र असुर ने बताया कि भवन बनना शुरू हुआ. पहाड़ पर काम करना मुश्किल था. सीमेंट, छड़ व ईंट गांव में लाना मुश्किल था, क्योंकि यहां सड़क नहीं है. इसके लिए रातभर ईंट और सीमेंट ढोकर लोग लाये. सरकारी योजना थी, लेकिन ग्रामीणों ने श्रमदान किया. आज यह एकमात्र भवन गांव के युवकों की पढ़ाई का केंद्र बन गया है.
मैं गांव के स्कूल में बच्चों को पढ़ाती हूं. मेरा प्रयास है कि बच्चे शिक्षा ग्रहण कर अपनी पहचान बनायें. युवकों को भी समय-समय पर मार्गदर्शन करती हूं.
सुमित्र असुर, शिक्षिका, पोलपोल पाट
एक समय था, जब गांव में सभी अनपढ़ थे. समय बदला. गांव के कई युवक पढ़-लिख कर भविष्य के बारे में सोच रहे हैं. सेना में भरती होने की तैयारी कर रहे हैं.
टिपुन असुर, शिक्षक, पोलपोल पाट

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