तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान का समय जैसे-जैसे नज़दीक आ रहा है, तमिल भावनाएं भुनाने के लिए डीएमके और एआईएडीएमके के बीच होड़ बढ़ रही है.
इसका अनुमान पहले से था. पर अब सत्ताधारी पार्टी और उसके धुर विरोधी, दोनों ही दलों ने केंद्र से मांग की है कि राजीव गांधी हत्याकांड में सज़ा पाए सात लोगों की सजा कम कर दी जाए.
तमिलनाडु सरकार के मुख्य सचिव के ज्ञानदेशिकन ने केंद्रीय गृह सचिव राजीव महर्षि को इस मामले में एक चिट्ठी लिखी.
ज्ञानदेशिकन ने ख़त में लिखा, "सातों सज़ायाफ़्ता क़ैदियों की याचिका पर गंभीरता से विचार करने के बाद तमिलनाडु सरकार ने फ़ैसला लिया है कि उनकी सज़ा कम कर दी जाए क्योंकि वे जेल में 24 साल काट चुके हैं."
उन्होंने चिट्ठी में कहा कि केंद्र सरकार को यह बात मान लेनी चाहिए क्योंकि ये लोग जेल में 24 साल की सज़ा पहले ही काट चुके हैं.
एआईएडीएमके सरकार की चिट्ठी के सार्वजनिक होने के कुछ घंटों बाद ही डीएमके प्रमुख एम करुणानिधि ने ऐसी ही मांग केंद्र सरकार से कर दी.
उन्होंने कहा, "पिछली बार तमिलनाडु सरकार के ग़लत फ़ैसले की वजह से उनकी रिहाई टल गई थी. मैं केंद्र से अपील करता हूं कि इस बार तमिलनाडु सरकार की चिट्ठी के बाद दोषियों की रिहाई के लिए ज़रूर क़दम उठाए जाएं."
ऐसा दूसरी बार हो रहा है कि तमिलनाडु सरकार ने इन सज़ायाफ़्ता क़ैदियों की रिहाई की मांग की है.
उसने पहली बार यह फ़ैसला साल 2014 के फ़रवरी महीने में लिया था. तब केंद्र की यूपीए सरकार यह मामला सुप्रीम कोर्ट ले गई थी.
तीन जजों की खंडपीठ ने संविधान से जुड़े सात सवाल उठाए थे. उन्होंने यह मामला पांच जजों की संविधान पीठ को भेजा था. फ़रवरी 2015 में यह मामला फिर तीन जजों की संविधान पीठ को भेजा गया.
तमिलनाडु सरकार ने इस बार यह साफ़ कर दिया है कि उसने केंद्र सरकार से सिर्फ़ ‘सहमति’ मांगी है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 435 के तहत "सलाह मशविरे" का मतलब यह है कि केंद्र सरकार राज्य सरकार के विचारों से सहमत हो.
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