हर साल दुनियाभर में लगभग 1.5 लाख बच्चे ऐसी बीमारियों से मर जाते हैं जो टीकाकरण के माध्यम से रोकी जा सकती हैं.
इसे लेकर भारत में हालात काफ़ी बुरे हैं. यहां टीकाकरण की दर काफ़ी कम है. भारत में टीकाकरण की दर 60 फ़ीसदी है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के 90% लक्ष्य से काफ़ी कम है.
लेकिन राजस्थान के दूर-दराज़ के ग्रामीण इलाक़ों में एक साधारण सा नेकलेस इस समस्या से बख़ूबी निपट रहा है. इसमें एक कम्प्यूटर चिप में बच्चे के टीकाकरण का रिकॉर्ड है. इससे बच्चों की बीमारियों से सुरक्षा की संख्या बढ़ रही है.
ख़ुशी बेबी जिसका अर्थ है ख़ुश बच्चा. एक काले रंग की तार पर एक प्लास्टिक का पेंडेंट है. इस पेंडेंट में एक कंप्यूटर चिप में इसे पहनने वाले बच्चे के टीकाकरण के रिकॉर्ड के साथ ही मां का स्वास्थ्य रिकॉर्ड भी है.
पेंडेंट में एक डॉलर से भी कम ख़र्चा आता है. ये मज़बूत, वॉटर प्रूफ़ होने के साथ ही ये अन्य तरह से पहना जा सकता है, जैसे मां की चूड़ी की तरह या बड़ों के लिए घड़ी की तरह.
ख़ुशी बेबी को साल 2013 में येल विश्वविद्लाय के स्नातक छात्रों ने डिज़ाइन किया था. तब से टीम ने 350,000 डॉलर का फ़ंड जुटा लिया और भारत के एक स्थानीय एनजीओ के साथ भागीदारी की.
बच्चे के बारे में चिकित्सा कार्ड में सूचना रखना आसान नहीं है. ये कार्ड खो सकता है या लॉग बुक में इसका रिकॉर्ड रखना काफ़ी बोझिल है. इसे खोजना भी लगभग असंभव हो सकता है.
इसकी तुलना में ख़ुशी बेबी से स्वास्थ्य कार्यकर्ता बच्चों के सही समय पर सही टीकाकरण सुनिश्चित कर सकते हैं.
ये चिप स्मार्टफ़ोन या टेबलेट के साथ काम करता है और दूरदराज़ में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को बच्चे के टीकाकरण कार्यक्रम का का सही डाटा उपलब्ध कराता है.
जब स्वास्थ्य कार्यकर्ता शहर लौटते हैं तो ये डाटा सेंट्रल सिस्टम में अपलोड कर दिया जाता है. इससे अगले दौरे पर स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को अपने क्षेत्र में वैक्सीन की सही आपूर्ति ले जाने में मदद मिलती है.
इससे स्वास्थ्य मंत्रालय और अन्य स्वास्थ्य अधिकारी इस डाटा का प्रयोग कर सकते हैं.
ख़ुशी बेबी से आठ साल की गुड़िया को अपनी उम्र में मिलने वाला सही टीकाकरण मिल पाया.
गुड़िया नवजात शिशुओं के लिए स्नेह का एक शब्द है, लेकिन शायद ही भारत के कुछ भागों में उनके जन्म का पंजीकरण किया जा रहा है. यह एक आम नाम है. गुड़िया कहे जाने वाले बच्चों की संख्या काग़ज़ पर आधारित प्रणाली के तहत भ्रम की स्थिति पैदा करती है.
गुड़िया की मां बबली कहती हैं कि ख़ुशी बेबी को धन्यवाद. हमेशा ही स्वास्थ्य कार्यकार्ता गुड़िया के टीकाकरण का डाटा मौक़े पर ही प्रयोग करने में सक्षम हैं. बबली को बेटी को लगने वाले अगले इंजेक्शन की याद भी ख़ुशी नेकलेस दिलाता है.
स्थानीय माताओं भी नेकलेस के डिज़ाइन में शामिल किया गया. ये भारत में नवजात शिशुओं को पहनाए जाने वाले तावीज़ जैसा है.
बबली कहती हैं, ”औरतें अपने बच्चों के गले में बुरी नज़र से बचने के लिए काला धागा पहनाती हैं.”
शोधकर्ताओं के मुताबिक़ ये वैसे ही है जैसे परंपरा का तकनीक के साथ मिलन हो रहा है. इससे एक अच्छे स्वास्थ्य के विश्वास को बल मिलता है.
ख़ुशी बेबी के टीके के सदस्य मोहम्मद शहनवाज कहते हैं, ”यहां ख़ुशी बेबी सांस्कृतिक महत्व का हो गया और भारत के इस हिस्से में लोग इसे पहनते हैं.”
इस सिस्टम में 1500 बच्चे पहले से ही है. इसका प्रारंभिक डाटा टीकाकरण में सुधार दिखा रहा है.
एक बार मां का संपर्क इस प्रणाली में आने पर परिवार को स्वतः ही उनकी स्थानीय भाषा में टीकाकरण की आवश्यकता के बारे में बताया जाता है. ये भी बताया जाता है कि अगले टीकाकरण कार्यक्रम में बच्चों को कब लाना है.
माएं कहती हैं कि ये नेकलेस बच्चों के प्रतिरोधक कार्यक्रम के बारे में याद दिलाने के लिए तस्वीर जैसा है.
स्वास्थ्यकर्ता भावना ने बताया कि निश्चित तौर पर इस पेंडेंट की वजह से अधिक लोग आ रहे हैं. इससे पहले वह ये नहीं जान पाते थे कि उनके बच्चे का अगला टीका कब लगना है.
ये आशा की जा रही है कि इस साल के अंत तक संभव हो सका तो ये प्रोजेक्ट 5,000 बच्चों तक पहुंचेगा.
इससे परे वे आशा करते हैं कि एक दिन भारत के हेल्थ केयर रजिस्ट्री के साथ इस डिजिटल प्रणाली से एकीकृत कर सबसे दूरस्थ क्षेत्रों के लोगों को जोड़े.
अब ये "चिकित्सा पासपोर्ट" गुड़िया जैसे बच्चों की मदद करने का लक्ष्य लेकर जीवन के कुछ प्रारंभिक वर्षों में जान लेने वाले सबसे ख़तरनाक संक्रामक रोगों से उन्हें सुरक्षित करने का प्रयास कर रहा है.
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