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यात्रियों की सुविधाएं बढ़ाने के किये गये हैं वादे, लेकिन… राजस्व जुटाना बड़ी चुनौती

रेल मंत्री सुरेश प्रभु के दूसरे रेल बजट को विकास की ओर अग्रसर बजट माना जा सकता है. माल ढुलाई को सुगम और सस्ता बनाने से लेकर यात्रियों की सुख-सुविधा का ध्यान रखने के उद्देश्य से प्रेरित बजट ने आम नागरिक से लेकर उद्योग जगत तक की उम्मीदें बढ़ा दी हैं. आर्थिक स्थिति में धीमे […]

रेल मंत्री सुरेश प्रभु के दूसरे रेल बजट को विकास की ओर अग्रसर बजट माना जा सकता है. माल ढुलाई को सुगम और सस्ता बनाने से लेकर यात्रियों की सुख-सुविधा का ध्यान रखने के उद्देश्य से प्रेरित बजट ने आम नागरिक से लेकर उद्योग जगत तक की उम्मीदें बढ़ा दी हैं. आर्थिक स्थिति में धीमे विकास का असर रेल पर पड़ना स्वाभाविक है और इस कारण पिछले वर्ष निर्धारित राजस्व लक्ष्य हासिल नहीं हो सके हैं. इस बजट में 1.84 लाख करोड़ जुटाने का लक्ष्य बड़ी चुनौती होगी. बजट के मुख्य पहलुओं पर जानकारों की राय पर आधारित आज का विशेष…

अरविंद कुमार सिंह

वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व सलाहकार, भारतीय रेल

रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने कठिन हालात के बावजूद 2016-17 का लोक-लुभावना बजट प्रस्तुत करने की कोशिश की है. उन्होंने रेलवे के आधारभूत ढांचे के विकास के साथ-साथ अन्य सभी पक्षों पर ध्यान देने का दावा किया है. हालांकि यात्री और माल भाड़ा नहीं बढ़ा, जबकि इसके कयास लगाये जा रहे थे. लगता है रेल मंत्री ने राज्यों के चुनावी समीकरणों को ध्यान में रखते हुए इससे परहेज किया. रेल बजट को देखने से साफ हो जाता है कि इसे लोक-लुभावन बनाने की मजबूरी जल्दी ही होने जा रहे पश्चिम बंगाल, असम, केरल और पुडुचेरी जैसे राज्यों के चुनाव रहे हैं. जो रेल मंत्री किराया बढ़ाने का जोखिम लेता है, उसे उतनी ही नाराजगी झेलनी पड़ती है और अगर चुनाव सामने हो, तो राजनीतिक दल इसे बड़ा मुद्दा बना ही देते हैं. शायद इसी नाते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस रेल बजट की जम कर सराहना की है और निवेश के लिहाज से इसे यूपीए के रेल बजटों से काफी बेहतर और सभी श्रेणी के मुसाफिरों के हित में बताया है.

रेल मंत्री ने पिछले रेल बजट में लोक-लुभावन वायदों से परहेज करते हुए संरक्षा, तेज रफ्तार और आम मुसाफिरों की सुविधाओं पर जोर दिया था और कायाकल्प का सपना दिखाया था. लेकिन, वे सपने जमीन पर नहीं उतरे. कुछ काम शुरू हुए, लेकिन रेलवे अब पहले से अधिक कठिन चुनौतियों से घिर गया है. सबसे अधिक चिंताजनक स्थिति संसाधनों को लेकर है. कई संस्थाओं के दरवाजे खटखटाने के बावजूद डेढ़ लाख करोड़ रुपये का कर्ज एलआइसी से ही मिल पाया है. और इस कदम को लेकर रेलवे की खासी आलोचना भी हुई है और माना गया है कि इससे रेलवे कर्ज के दलदल में फंस जायेगा.

हालांकि, रेल मंत्री ने बजट भाषण में माना कि यह शायद सबसे मुश्किलों भरा समय है. दो प्रमुख चुनौतियां नियंत्रण के बाहर हैं. पहला, सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट लागू करने का प्रभाव और दूसरा, परिवहन में रेलवे की गिरती हिस्सेदारी, जो अब 36 फीसदी रह गयी है. सातवें वेतन आयोग के चलते रेलवे का परिचानल अनुपात का गणित बिगड़ कर 92 फीसदी पर आ गया. साथ ही साधारण संचालन व्यय में करीब 12 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है.

रेलवे द्वारा राजस्व सृजन के तमाम उपायों के बाद भी इस साल बजट अनुमानों में केवल 8,720 करोड़ रुपये की बचत होगी. रेलवे को उम्मीद है कि 2016-17 के दौरान वह 1.84 लाख करोड़ रुपये का राजस्व जुटा सकेगी, जो चालू साल के संशोधित लक्ष्य से करीब 10.1 फीसदी अधिक है. फिर भी रेल मंत्री ने 2016-17 में पूंजीगत योजना के लिए 1.21 लाख करोड़ रुपये रखे हैं. उसकी योजना है कि पीपीपी को प्रोत्साहित कर और राज्यों के साथ संयुक्त उद्यम आदि के जरिये इनका कार्यान्वयन किया जायेगा.

किसी भी रेल बजट का खास आकर्षण रेलगाड़ियां होती हैं. पिछले बजट में रेलगाड़ियों को बजट का हिस्सा न बनाने की परंपरा आरंभ की. लेकिन, इस बजट में रेल मंत्री ने यात्रा की गुणवत्ता में सुधार की पहल करते हुए आरक्षित और अनारक्षित श्रेणियों में कुछ नयी रेलगाड़ियों को चलाने का ऐलान किया है. कभी गरीबरथ तो कभी दुरंतों के नाम पर ऐसी गाड़ियों को चलाने का रिवाज रहा है और हर रेल मंत्री इस मामले में औरों से आगे निकलता चाहता है. सुरेश प्रभु ने अनारक्षित श्रेणी में अंत्योदय एक्सप्रेस चलाने की घोषणा की है. आरक्षित और अनारक्षित श्रेणी में दीन दयाल सवारी डिब्बे आरंभ करने की पहल भी की है, जिसमें पानी की सुविधा के साथ मोबाइल चार्जिंग की सुविधा होगी. आरक्षित श्रेणी के लिए रेलमंत्री ने हमसफर, तेजस और उदय गाड़ियों को चलाने का ऐलान किया है. इसमें तेजस 130 किमी प्रति घंटे या उससे अधिक रफ्तार से चलेगी. इनमें आधुनिक सुविधाएं होंगी, जबकि उदय व्यस्त मार्गों पर चलेगी और वह डबल डेकर होगी. हमसफर लालू प्रसाद की गरीबरथ का विस्तार है, क्योंकि उसमें खाना भी होगा.

मुसाफिरों के लिए वाइ-फाइ से लेकर टिकटिंग और बहुत सी नयी पहलों का ऐलान करते हुए रेल मंत्री ने समय-पालन पर भी जोर दिया है. गाड़ियों में जरूरत के हिसाब से आरक्षण, समय-पालन 95 फीसदी करना, संरक्षा रिकाॅर्ड में सुधार के लिए उच्च स्तरीय तकनीक, बिना चौकीदार के समपारों की समाप्ति, यात्री और मालगाड़ियों की औसत गति बढ़ा कर बढ़ाना, सेमी हाइस्पीड गाड़ियां चलाने जैसी योजनाओं को साल 2020 तक साकार करने की बात कही गयी है. कुछ ऐसे ही दावे ममता बनर्जी के रेल मंत्रित्व काल में विजन-2020 में किये गये थे.

रेल मंत्री की पहल पर राज्यों की साझेदारी में संयुक्त उद्यम बनाना आधारभूत ढांचे और वंचित इलाकों के हिसाब से एक बेहतर कदम हो सकता है. इसके तहत 5,300 किलोमीटर नयी लाइनों के निर्माण के लिए 44 नयी साझेदारी सराहनीय है. इसमें 92 हजार करोड़ से अधिक राशि व्यय होगी. इसी तरह पर्यटन क्षेत्र से राजस्व अर्जन के नये उपाय भी किये जा रहे हैं. लेकिन, ये सभी लंबी अवधि में फल दे सकेंगे. इसी तरह रेल मंत्रालय के एजेंडे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ड्रीम प्रोजेक्ट बुलेट ट्रेन है. जापान की मदद से इस पर काम होने जा रहा है, लेकिन इसमें अभी कितना समय लगेगा, इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता. रेल मंत्री जिस कायाकल्प का सपना दिखा रहे हैं, उसके लिए रेलवे को भारी संसाधनों की दरकार है.

यह ध्यान रखने की बात है कि दूसरे साधनों की तुलना में भारतीय रेल रोज ढाई करोड़ से अधिक मुसाफिरों को कम कीमत पर गंतव्य तक पहुंचा रही है. माल ढुलाई में भी यह अमेरिका, चीन और रूस के साथ एक बिलियन टन के विशिष्ट क्लब में शामिल हो चुकी है. एक ही प्रबंध व्यवस्था के तहत विश्व की सबसे बड़ी रेल प्रणाली भारतीय रेल 17 क्षेत्रीय और 68 मंडलों में विभक्त है. यह रोज औसतन 19,710 गाड़ियां चलाती है, जिसमें 12,335 सवारी गाड़ियां हैं. तमाम खंडों पर यात्री यातायात का दबाव बढ़ने के साथ सेवाओं का स्तर गिर रहा है. इन सारे तथ्यों को ध्यान में रखते हुए रेल बजट से जो अपेक्षाएं थीं, वह पूरी होती नहीं दिखती हैं.

वित्त जुटाने में सटीक संतुलन साधना होगा

बजट और निवेश योजनाओं के लिए वित्त जुटाने के मामले में रेल मंत्री को सटीक संतुलन साधना होगा. स्टेशनों के पुनर्विकास और सॉफ्ट परिसंपत्तियों से धन जुटाने के नये स्रोत स्वागतयोग्य हैं. माल ढुलाई के लिए वस्तुओं की संख्या का विस्तार, टर्मिनल क्षमता का परिवर्द्धन जैसे उपायों से राजस्व प्राप्ति में वृद्धि होगी. इसके अलावा, माल ढुलाई में रेल की हिस्सेदारी बढ़ाने की योजना भी सराहनीय है. यातायात के अन्य साधनों की तुलना में रेल के किराये की समीक्षा होनी चाहिए, ताकि प्रतिस्पर्द्धात्मक दरें निर्धारित की जा सकें. साथ ही, शून्य-आधारित खर्च, सस्ते दर पर बिजली, रेलवे के क्षेत्रीय विभागों को जिम्मेवारी देने जैसे तौर-तरीके खर्च कम करने में मददगार हो सकते हैं.

सुमित मजूमदार, अध्यक्ष, सीआइआइ

माल ढुलाई पर फोकस

मैन्यूफैक्चरिंग के मद्देनजर यह रेल बजट प्रशंसनीय है. इससे मैन्यूफैक्चरिंग को निश्चित रूप से ठोस मदद मिलेगी. इसमें ध्यान निश्चित तौर पर माल ढुलाई पर है, जो आज के समय में बहुत महत्वपूर्ण है. बोर्ड के पुनर्गठन का प्रस्ताव भी एक बड़ी पहल है.

नलिन जैन, प्रेसिडेंट एंड सीइओ, जीइ ट्रांसपोर्टेशन

खर्च में कमी पर ध्यान देने की जरूरत

अनेक चुनौतियों की मौजूदगी के तथ्य को ध्यान में रखते हुए दो लाख करोड़ से अधिक का वर्तमान निवेश उस दिशा में मददगार होगा, जो सरकार इस क्षेत्र के इस्तेमाल से अर्थव्यवस्था को मजबूती देने की कोशिश में है. सातवें वेतन आयोग के बावजूद, रेल की नजर 92 फीसदी के ऑपरेटिंग रेशियो को पाने पर है. यह तभी हासिल हो सकता है, जब खर्च में कमी पर ध्यान दिया जाये.

राजीव ज्योति, सीइओ (रेलवे बिजनेस), एल एंड टी

रेलवे की आर्थिक चुनौतियों के समक्ष खड़े हुए हैं प्रभु

सुनील कनोरिया, अध्यक्ष, एसोचैम

रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने चुनौतीपूर्ण आर्थिक माहौल में, जहां वस्तु क्षेत्र में गंभीर मंदी की स्थिति है, ढोने- यात्री और माल दोनों श्रेणियों में- की क्षमता बढ़ाने के लिए पूंजी खर्च पर समझौता किये बिना किराये में भी कोई बढ़ोतरी नहीं करनेवाला बजट पेश किया है, जबकि ये श्रेणियां रेल की कमाई का आधार हैं.

बेहतर यात्री सुविधाओं में सुधार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए और उद्योग जगत, जो रेल का मुख्य राजस्व ग्राहक है, के लिए सेवा-प्रदाता का रवैया अपनाते हुए प्रभु ने पूंजीगत योजनाओं के लिए गैर-बजटीय संसाधनों पर निर्भरता की वित्तीय जादूगर होने की अपनी छवि को बरकरार रखा है. उन्हें बहुत अच्छी तरह से पता है कि सकल बजटीय समर्थन के द्वारा सीमित संभावनाएं हैं.

हालांकि, वर्तमान वित्त वर्ष में राजस्व लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सका है, लेकिन इसका कारण आर्थिक मंदी है, खासकर कोयला, इस्पात, लौह अयस्क आदि क्षेत्रों में. ये क्षेत्र रेलवे राजस्व के बड़े स्रोत हैं और इन पर ही मंदी का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा है. अगर अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र में और हर कंपनी में कमाई की गति धीमी है, तो रेलवे अपवाद नहीं बन सकता है. लगातार मौजूद चुनौतियों के मद्देनजर 10 फीसदी की वृद्धि के साथ 1,84,820 करोड़ का राजस्व लक्ष्य उचित प्रतीत होता है, हालांकि वे मुख्य क्षेत्रों में बढ़ोतरी की उम्मीद पर ही निर्भर हैं.

इसी तरह से 1.21 लाख करोड़ का योजना आवंटन प्रशंसनीय है और इस तथ्य को देखते हुए कि वे धन जुटाने के कई नये तरीकों पर ध्यान दे रहे हैं, उनकी सफलता पर संदेह करने का कोई कारण नहीं दिखता है. परियोजनाओं को लागू करना एक मुख्य कारक बना रहेगा. सबसे अच्छी बात यह है कि वे उस पुरानी समझ को चुनौती दे रहे हैं जिसका मानना है कि रेलवे जैसे महत्वपूर्ण संस्थान में मूलभूत सुधार सिर्फ किराया बढ़ा कर ही किया जा सकता है. कार्यक्षमता और नयी सोच से भी सकारात्मक नतीजे पाये जा सकते हैं, और वे इन्हीं कारकों पर निर्भर कर रहे हैं.

स्टेशनों की बेहतरी जैसी यात्री सुविधाओं को बढ़ाने तथा माल ढुलाई में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाना स्वागतयोग्य संकेत है और सुरेश प्रभु तुरंत आरक्षण देने तथा माल ढुलाई के ग्राहकों को अच्छी सेवा देने जैसे लक्ष्यों को पाने के लिए वे व्यापारिक रुख अपना रहे हैं. साथ ही, वस्तुओं की मौजूदा सीमित संख्या के अलावा अपने राजस्व स्रोतों को बढ़ाने की योजना सामयिक है.

दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बंगलुरू और अन्य शहरों में उप-नगरीय यातायात तंत्र में बेहतरी पर रेलवे के फोकस को पूरी तरह से समर्थन दिया जाना चाहिए. हम वित्त मंत्री अरुण जेटली से रेलवे का पूरा साथ देने का निवेदन करते हैं, क्योंकि यह इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश बढ़ाने का महत्वपूर्ण वाहन हो सकता है जो व्यापारिक सुगमता और आम नागरिक के आवागमन में सहूलियत जैसे परिणाम दे सकता है.

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