वायु प्रदूषण के कारण विश्व में हर साल 55 लाख से ज़्यादा लोग मौत का शिकार हो जाते हैं. इनमें से आधी मौतें भारत और चीन में होती हैं.
भारत में इन कारणों से होनेवाली मौतों की तादाद 13 लाख है जबकि चीन में 16. दोनों मुल्कों के आंकड़ें तीन साल पुराने हैं जिसके बाद प्रदूषण की स्थिति में और गिरावट आई है.
‘ग्लोबल बर्डन आफ़ डिजीज़ प्रोजेक्ट’ के तहत हुए शोध में वैज्ञानिकों ने कहा है कि आंकड़ें साबित करते हैं कि कुछ देशों को वायू प्रदूषण पर क़ाबू करने के लिए कितनी तेज़ी से काम करने की ज़रूरत है.
अमरीकी शहर बोस्टन के हेल्थ इफ़ेक्ट्स इंस्टीच्यूट के डैन ग्रीनबॉम ने कहा, "बीजिंग या दिल्ली में किसी दिन हवा में 300 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से ज्यादा महीन कण (जिन्हें पीएम2.5 कहा जाता है) हो सकते हैं, जबकि ये 25 से 35 माइक्रोग्राम होनी चाहिए."
महीन तरल या ठोस कणों के सांस के साथ अंदर जाने से दिल की बीमारी, दिल का दौरा, सांस लेने में तकलीफ़ और यहां तक कि कैंसर हो सकता है.
विकसित देशों ने बीते कुछ दशकों में स्थिति सुधारने के लिए कोशिशें की हैं पर प्रदूषित हवा की वजह से मौतें की तादाद विकासशील देशोें में उपर जा रही है.
अध्ययन में पाया गया है कि कुपोषण, मोटापा, शराब और दवाओं के बेज़ा इस्तेमाल और असुरक्षित सेक्स से जितने लोगों की मौत होती है, उससे ज़्यादा लोग वायू प्रदूषण के कारण मौत के शिकार हो रहे हैं.
ग्लोबल बर्डन ऑफ़ डिजीज़ ने वायु प्रदूषण के ख़तरे को उच्च रक्त चाप, खाने पीने के जोख़िम और धूम्रपान के बाद चौथा सबसे बड़ा खतरा माना है.
अलग अलग देशोें में प्रदूषण के अलग अलग कारण हैं.
चीन में बड़ी वजह कोयला जलाने से निकलने वाले महीन कण हैं. परियोजना का अनुमान है कि सिर्फ़ इस एक कारण वहां सालाना 3,60,000 लोगों की मौत हो रही है.
चीन ने कोयले के उत्सर्जन में कटौती का लक्ष्य तय कर रखा है. लेकिन इसमें दिक्कतें हैं क्योंकि मुल्क में बुज़ुर्गों की तादाद ज़्यादा है और अधिक उम्रवालों की ऐसी बीमारियों की चपेट में आने की आशंका अधिक होती है.
भारत में खाना बनाने और चीजों को गर्म करने के लिए लकड़ी, गोबर, खर पतवार और दूसरी चीजों को जलाने से समस्या पैदा होती है.
यहां "बाहर के प्रदूषण" की तुलना में "घर के अंदर के प्रदूषण" से अधिक लोग मरते हैं.
शोधकर्ताओं का कहना है कि आर्थिक स्थिति को देखते हुए वहां हवा प्रदूषण के बढ़ने की ज़्यादा आशंका है.
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