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एशिया-पेसिफिक क्षेत्र के मुकाबले भारत में तेजी से बढ़ेगा टेक्नोलॉजी का कारोबार

भारत में विभिन्न सेक्टरों में टेक्नोलॉजी की दखलंदाजी बढ़ रही है. गैर-तकनीकी सेक्टर्स में भी कारोबार को बढ़ावा देने के लिए उसे किसी-न-किसी तकनीक से जोड़ा जा रहा है, ताकि उसकी पहुंच का दायरा बढ़ाया जा सके. विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगले कुछ वर्षों में पूरे एशिया-पेसिफिक क्षेत्र के मुकाबले भारत में तकनीक का […]

भारत में विभिन्न सेक्टरों में टेक्नोलॉजी की दखलंदाजी बढ़ रही है. गैर-तकनीकी सेक्टर्स में भी कारोबार को बढ़ावा देने के लिए उसे किसी-न-किसी तकनीक से जोड़ा जा रहा है, ताकि उसकी पहुंच का दायरा बढ़ाया जा सके. विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगले कुछ वर्षों में पूरे एशिया-पेसिफिक क्षेत्र के मुकाबले भारत में तकनीक का कारोबार तेजी से बढ़ेगा. कैसे होगा यह सब और किन-किन चीजों के सहारे यहां तक पहुंचने में मिल रही है कामयाबी, इससे जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में बता रहा है आज का नॉलेज ….
भारत में टेक्नोलॉजी सेक्टर का दायरा दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है. आर्थिक सुधारों को बढ़ावा देने की रणनीति तय करनेवाले लीडर्स और संबंधित कारोबारियों के साथ जुड़ कर काम करनेवाले संगठन ‘फोरेस्टर’ की एक अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक, एशिया-पेसिफिक क्षेत्र में तकनीकी सेक्टर में होनेवाले कुल खर्चों के मुकाबले भारत में इसकी दर अगले कुछ सालों में करीब दोगुनी रहने की उम्मीद है. वर्ष 2016 और 2017 में तकनीकी सेक्टर में एशिया-पेसिफिक क्षेत्र में कुल खर्चों में 4.5 फीसदी की दर से बढ़ोतरी की संभावना है, जो क्रमश: 693 बिलियन डॉलर और 727 बिलियन डॉलर तक पहुंच जायेगा.
इस अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक, भारत, चीन और कुछ दक्षिणपूर्व एशियाइ देशों में इस संबंध में दोगुनी तेजी आयेगी, जबकि ऑस्ट्रेलिया, जापान और हांगकांग जैसे मौजूदा तकनीकी अग्रणी देशों में ऐसे नतीजे देखने में नहीं आयेंगे. साथ ही सबसे बड़े क्षेत्रीय तकनीकी बाजार जापान को पीछे छोड़ते हुए चीन इसमें आगे निकल जायेगा. इस सेक्टर में यदि टेलीकम्युनिकेशंस पर होनेवाले खर्चों को भी जोड़ दिया जाये, तो भारत इस मामले में तीसरे पायदान पर आ जायेगा. टॉप पांच में भारत के बाद ही दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया की जगह बनेगी.
जानें, किस तरह के कारोबार की होगी चांदी
‘फोरेस्टर’ ने अपने अध्ययन में पहली बार तकनीकी सेक्टर को अनेक भागों में बांटते हुए भी उनका अलग-अलग ब्योरा दिया है. रिपोर्ट के मुताबिक, टेलीकॉम सर्विस की हिस्सेदारी 196 बिलियन डॉलर के साथ टेक्नोलॉजी मार्केट में सबसे ज्यादा रहेगी. दूसरा स्थान 142 बिलियन डॉलर के साथ कंप्यूटर उपकरणों का हो सकता है.
इसके बाद संचार उपकरणों की हिस्सेदारी 110 बिलियन डॉलर, सॉफ्टवेयर की 105 बिलियन डॉलर और टेक्नोलॉजी कंसल्टिंग व सिस्टम्स इंटेग्रेशन सर्विसेज की हिस्सेदारी 69 बिलियन डॉलर रहने का अनुमान है. ‘फोरेस्टर’ का मानना है कि अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए तमाम कारोबारों (इसमें गैर-तकनीकी किस्म के कारोबार भी शामिल होंगे) का फोकस ‘बिजनेस टेक्नोलॉजी’ पर खर्च करने की ओर होगा. इसका एक बड़ा कारण यह है कि अमेरिका के मुकाबले एशिया-पेसिफिक क्षेत्र के देशों में ‘बिजनेस टेक्नोलॉजी’ के थीम को बहुत कम अपनाया गया है.
उम्मीद यह भी जतायी गयी है कि वर्ष 2016 और 2017 में सूचना प्रौद्योगिकी के मुकाबले इन देशों में ‘बिजनेस टेक्नोलॉजी’ में चार गुना ज्यादा तेजी आयेगी.
भारतीय बाजार में अपार संभावनाएं
भारत में अगले पांच से सात सालों में टेक्नोलॉजी सेक्टर में एक ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा के स्तर तक पहुंचने की क्षमता है. डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी के एडिशनल सेक्रेटरी अजय कुमार का कहना है कि भारतीय बाजार में इसकी अपार संभावनाएं हैं.
हाल ही में इंडिया इलेक्ट्रॉनिक्स एंड सेमीकंडक्टर एसोसिएशन यानी आइइएसए द्वारा आयोजित एक बैठक में अजय कुमार ने कहा कि बाजार में हार्डवेयर के क्षेत्र में 400 बिलियन डॉलर, सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में 350 बिलियन डॉलर और टेलीकॉम व इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आइओआइ) के क्षेत्र में 250 बिलियन डॉलर की भागीदारी हो सकती है.
इस कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि किसी कंपनी को शुरू करने के दृष्टिकोण से मौजूदा समय भारत के इतिहास में सबसे बेहतर है. स्टार्टअप्स की ओर आगे बढ़नेवाले युवाओं और उद्यमियों को इससे बेहद प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है. इसके लिए सरकार भी अपनी ओर से कई तरह की पहल कर रही है. इसमें टेक्नोलॉजी और इएसडीएम (इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम डिजाइन एंड मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर) मुख्य रूप से शामिल हैं. इंटरनेट से इलेक्ट्रॉनिक्स को बढ़ावा विशेषज्ञों काे भरोसा है कि भारत सरकार की ‘डिजिटल इंडिया’ की पहल देश में इलेक्ट्रॉनिक सेक्टर को बढ़ावा देगी.
मोबाइल निर्माण यूनिट्स में 20,000 नये जॉब्स
दिसंबर, 2014 और दिसंबर, 2015 के बीच भारत में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या में 10 करोड़ की बढ़ोतरी हुई है. यह आंकड़ा इसलिए खास है, क्योंकि यह दुनिया में किसी भी देश के मुकाबले सबसे ज्यादा है.
विशेषज्ञों का मानना है कि टेक्नोलॉजी सेक्टर में भारत की जीडीपी (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट) में 25 फीसदी तक योगदान की क्षमता है. सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 10 माह के दौरान देश में मोबाइल निर्माण की 50 यूनिट स्थापित की जा चुकी है. इससे न केवल प्रति माह 90 लाख मोबाइल फोन के निर्माण की क्षमता हासिल हुई है, बल्कि इससे देशभर में करीब 20,000 नये जॉब्स का सृजन भी हुआ है. इसके अलावा भारत में पिछले साल इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम डिजाइन एंड मैन्यूफैक्चरिंग के करीब 159 प्रोडक्शन यूनिट हैं.
इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में वर्ष 2020 तक मांग के 400 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की संभावना है, जबकि उस समय तक इसके उत्पादन में करीब 100 बिलियन बढ़ोतरी होने की ही उम्मीद है. लिहाजा इच्छित लक्ष्य तक पहुंचने के लिए इसमें तेजी जारी रहेगी.
‘मेक इन इंडिया’ से आयेगी तेजी
आनेवाले वर्षों में भारत सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ पहल के कारण इसमें और तेजी आने की संभावना है. इंडिया इलेक्ट्रॉनिक्स एंड सेमीकंडक्टर एसोसिएशन (आइइएसए) के प्रेजिडेंट एमएन विद्याशंकर का कहना है कि विभिन्न राज्य सरकारों के योगदान और प्राकृतिक संसाधनों के भरपूर इस्तेमाल से इस सेक्टर में व्यापक तेजी आयेगी. घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण सेक्टर में तेजी लाने वाले अनेक कारक देश में मौजूद हैं, लिहाजा इस उद्योग को इसका फायदा मिलने की उम्मीद है.
मोबाइल वॉलेट का बाजार
‘टेकसाइंस’ की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में मोबाइल वॉलेट का बाजार वर्ष 2020 तक 6.6 बिलियन डॉलर का आंकड़ा पार कर जायेगा. इसका एक बड़ा कारण यह माना जा रहा है कि इसमें युवा आबादी का ज्यादा दिलचस्पी ले रही है. भारत में अगले दो से तीन सालों में 30 से 40 करोड़ नये स्मार्टफोन यूजर्स जुड़ेंगे, जो इस लिहाज से बड़े बदलावों के गवाह बनेंगे.
अक्तूबर-दिसंबर, 2015 तिमाही के दौरान भारत में जितने स्मार्टफोन बिके हैं, उनमें से आधे से अधिक ‘मेक इन इंडिया’ प्रोजेक्ट के तहत भारत में ही बनाये गये हैं.
(प्रस्तुति : कन्हैया झा)
अमेरिका को पछाड़ कर भारत बना दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्मार्टफोन मार्केट
अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्मार्टफोन का बाजार बन गया है. एक स्वतंत्र मार्केट रिसर्च और कंसल्टिंग फर्म ‘काउंटर प्वाॅइंट’ द्वारा हाल ही में जारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत ने इस लिहाज से अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है. भारत में इसकी वार्षिक ग्रोथ की दर 15 फीसदी तक पहुंच गयी है. इस शोध अध्ययन के मुताबिक, भारत में वर्ष 2015 तक स्मार्टफोन यूजर्स की संख्या 220 मिलियन यानी 22 करोड़ तक पहुंच चुकी थी.
‘अमेरिकन बाजार ऑनलाइन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में स्मार्टफोन की शिपमेंट्स की दर में भी काफी वृद्धि हुई है और 23 फीसदी की बढ़ोतरी दर के साथ यह 100 मिलियन यानी 10 करोड़ यूनिट को पार कर चुका है. आंकड़ों से पता चलता है कि मोबाइल फोन की कुल बिक्री में स्मार्टफोन ने करीब 40 फीसदी हिस्सा हथिया लिया है, जबकि इसकी बिक्री में 18 फीसदी की बढ़त रही है. चीन दुनिया का सबसे बड़ा स्‍मार्टफोन बाजार है. इसके बाद भारत और अमेरिका का नंबर आता है.
‘काउंटर प्‍वाइंट’ की रिपोर्ट के मुताबिक, अक्तूबर-दिसंबर, 2015 की तिमाही के दौरान एशिया की इस तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था में स्‍मार्टफोन का शिपमेंट सालाना आधार पर 15 फीसदी बढ़ा है. इंटरनेशनल रिसर्च कंपनी ‘स्ट्रैटजी एनालिटिक्स’ के मुताबिक, ग्लोबल स्‍मार्टफोन मार्केट का आकार वर्ष 2017 तक बढ़ कर करीब 1.7 अरब हो जाने की उम्मीद है. कंपनी का मानना है कि भारत में इसकी बढ़त होने का बड़ा कारण यहां स्‍मार्टफोन यूजर्स की कम संख्या, रिटेल में इसके मुहैया होने का विस्तार, ज्यादा अमीर होते जा रहे मध्यवर्गीय उपभोक्ताओं में इसका व्यापक होता दायरा और कई स्‍मार्टफोन कंपनियों द्वारा अपने उत्पादों का आक्रामक प्रचार करना भी है.
इस उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि ऑनलाइन खरीदारी की प्रक्रिया आसान होते जाने के कारण भी स्मार्टफोन की बिक्री में ज्यादा बढ़ोतरी हो रही है. इस रिपोर्ट में इस बात की ओर इशारा किया गया है कि हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर क्षेत्र में दुनिया का कोई भी गंभीर कारोबारी आज भारत के विशाल स्मार्टफोन बाजार की अनदेखी नहीं कर सकता है.
मेडिकल टेक्नोलॉजी बाजार का 10 फीसदी होगा भारत में
अगले एक दशक के दौरान ग्लोबल मेडिकल टेक्नोलॉजी बाजार का 10 फीसदी हिस्सा भारत में होने की उम्मीद जतायी गयी है. भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के बायोटेक्नोलॉजी विभाग द्वारा हाल ही में नयी दिल्ली में आयोजित एक सम्मेलन में डॉ हर्षवर्धन ने कहा कि भारत सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ पहल से तकनीक के मामले में देश नयी ऊंचाइयां हासिल कर सकता है. हेल्थकेयर और मेडिकल टेक्नोलॉजी में इनोवेशन से देश के सामाजिक और आर्थिक सुधारों को तेज गति मिलेगी. बायोटेक्नोलॉजी विभाग के गठन के बाद से देश ने इस दिशा में काफी प्रगति की है.
– भारत में मेडिकल टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री का कारोबार एशिया में चौथा
सबसे बड़ा है.
-6.3 बिलियन डॉलर था भारत में मेडिकल टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री का कारोबार वर्ष 2013 में.
-वर्ष 2025 तक इसमें 10 से 12 फीसदी की दर से बढ़ोतरी होने की उम्मीद है.
-250 से 350 बिलियन डॉलर तक हेल्थकेयर का खर्चा पहुंच जाने की उम्मीद है दुनियाभर में वर्ष 2025 तक.
-600 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की संभावना है वैश्विक मेडिकल टेक्नोलॉजी मार्केट के वर्ष 2025 तक, जिसमें 200 बिलियन डॉलर की हिस्सेदारी संबंधित विनिर्माण सेक्टर से जुड़ी होगी.
-10 फीसदी हिस्सेदारी हो जायेगी भारत की वैश्विक मेडिकल टेक्नोलॉजी मार्केट में वर्ष 2025 तक, जहां आज चीन खड़ा है. (स्रोत : बायोटेकनिका मैगजीन)
37.1 करोड़ मोबाइल इंटरनेट यूजर्स हो जायेंगे जून तक भारत में
इस वर्ष जून तक भारत में मोबाइल इंटरनेट यूजर्स की संख्या में 55 फीसदी तक बढ़ोतरी होने की उम्मीद है. ‘इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ (आइएएमएआइ) का कहना है कि इसका एक बड़ा कारण देश के ग्रामीण बाजारों की ओर इसकी व्यापक पहुंच होना है. आइएएमएआइ की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले जून, 2015 में भारत में मोबाइल इंटरनेट यूजर्स की संख्या 23.8 करोड़ थी और दिसंबर, 2015 तक यह आंकड़ा 30.6 करोड़ तक पहुंच चुका था. इन 30.6 करोड़ इंटरनेट यूजर्स में से करीब 21.9 करोड़ लोग देश के शहरी इलाकों के हैं.
कुल उपभोक्ताओं की संख्या के लिहाज से यह बढ़ोतरी करीब 71 फीसदी रही. लेकिन जब हम शहरी और ग्रामीण, दोनों सेक्टरों को अलग-अलग विभाजित करके देखेंगे, तो पता चलता है कि दिसंबर, 2014 से दिसंबर, 2015 के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में इसमें करीब 93 फीसदी की दर से बढ़ोतरी हुई है.
इस रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि शहरी क्षेत्रों में मोबाइल इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले यूजर्स में से सबसे ज्यादा यानी करीब 80 फीसदी इसका इस्तेमाल ऑनलाइन कम्यूनिकेशन के लिए करते हैं.
साथ ही 74 फीसदी लोग मोबाइल इंटरनेट के जरिये सोशल नेटवर्किंग से जुड़े हैं. जहां 30 फीसदी लोग मनाेरंजन के तौर पर मोबाइल इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं, वहीं 13 फीसदी लोगों ने ऑनलाइन शॉपिंग के लिए भी इसका इस्तेमाल किया. सबसे कम यानी 11 फीसदी लोगों द्वारा ही अब तक इसके माध्यम से ऑनलाइन टिकट बुकिंग किया गया है.
वहीं दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्रों में मोबाइल इंटरनेट का इस्तेमाल करनेवालों पर किये गये सर्वेक्षण से नतीजा आया है कि उनमें से 52 फीसदी लोग इसका इस्तेमाल मनोरंजन के लिए करते हैं.
39 फीसदी लोग सोशल नेटवर्क के लिए, 37 फीसदी लोग कम्यूनिकेशन के लिए करते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में मोबाइल इंटरनेट का इस्तेमाल करते हुए ऑनलाइन शॉपिंग और टिकट हासिल करनेवालों की संख्या अभी बहुत कम है और ये महज 0.4 फीसदी ही हैं. लिहाजा ग्रामीण क्षेत्रों में अभी इसके और बढ़ने की उम्मीद है.
इस रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि मोबाइल इंटरनेट पर होने वाले खर्चे यानी औसत मासिक बिल के अलावा इंटरनेट के खर्च में हिस्सेदारी बढ़ी है.
वर्ष 2014 में मोबाइल बिल में इंटरनेट पर खर्च कीहिस्सेदारी 54 फीसदी थी, जबकि वर्ष 2015 में यह बढ़ कर करीब 64 फीसदी तक पहुुंच गयी. यह प्रवृत्ति तब रही, जब औसत मासिक मोबाइल बिल में भी कमी आयी है. वर्ष 2014 में जहां औसत मासिक बिल करीब 439 रुपये था, वहीं वर्ष 2015 में इसमें 18 फीसदी की कमी आयी और यह 360 रुपये पर आ चुका था.

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