।। संतोष कुमार सिंह ।।
सिर्फ सत्ता नहीं, व्यवस्था में भी चाहते हैं बदलाव
अरविंद केजरीवाल की पार्टी ‘आप’ ने परंपरागत राजनीति के र्ढे को बदलने की शुरुआत की है. इसने दिल्ली में एक नये राजनीतिक प्रयोग की नींव रखी. बड़ी संख्या में युवा इस पार्टी की नीतियों से प्रभावित हुए हैं. कई लोगों ने घर छोड़ा, पढ़ाई छोड़ी, नौकरी छोड़ी, तब जाकर यह सफलता मिली है. जानिए, उन रणनीतिकारों को, जिन्होंने परदे के पीछे रह कर ‘आप’ को निर्णायक जीत दिलायी.
नयी दिल्ली : उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के छोटे से गांव शिकोहरा से निकल कर इलाहाबाद विश्वविद्यालय तक पहुंचना और अंगरेजी विषय के साथ स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल करना ग्रामीण पृष्ठभूमि के एक छात्र के नाते कोई छोटी उपलब्धि नहीं है. लेकिन वही विद्यार्थी जब सिविल सेवा की तैयारी के लिए दिल्ली का रुख करे, तो मां-बाप, पास-पड़ोस, गांव-समाज के सपनों को पंख लगना स्वाभाविक है.
एक छात्र के नाते 25 वर्षीय दुर्गेश पाठक का सफर कुछ ऐसा ही रहा है. उन्होंने दिल्ली आने के बाद समाजशास्त्र एवं लोक प्रशासन विषय के साथ तैयारी शुरू की. मन में जोश था, और दिल में तरक्की के लिए लगन. लेकिन अप्रैल, 2011 में जब अन्ना का आंदोलन शुरू हुआ, पत्र-पत्रिकाओं एवं अन्य संचार माध्यमों के जरिये आंदोलन के विषय वस्तु, प्रमुख मांगों से रू-ब-रू हुए.
जून आते-आते वे अन्ना हजारे के इंडिया अगेंस्ट करप्शन के साथ एक वालंटियर के रूप में जुड़े. गली-मुहल्लों में लोगों के बीच जाकर वे जनलोकपाल के फायदे, सरकार की मंशा, भ्रष्टाचार की समस्या, व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई आदि विषयों पर आम जनता को जागरूक करने के काम से जुड़ गये.
इस बीच मन में अपनी पढ़ाई को लेकर चिंता भी हुई. परिवार, रिश्तेदार, दोस्तों के तरफ से समझाने का प्रयास भी हुआ. लेकिन दुर्गेश के मन में एक ही सवाल घुमड़ रहा था, कि आखिर मैं आइएएस क्यों बनना चाहता था? क्या पैसा कमाने के लिए? गाड़ी, बंगले के लिए, या फिर देश की सेवा के लिए? जवाब मिला देश की सेवा के लिए, बदलाव के लिए.
और, अगर यही लक्ष्य है, तो बिना अच्छी सत्ता, प्रशासनिक व्यवस्था के यह कैसे संभव है? इन्हीं बातों पर चिंतन-मनन करते हुए दुर्गेश आंदोलन से जुड़े रहे. इस बीच इंडिया अगेंस्ट करप्शन के द्वारा विभिन्न राजनेताओं के क्षेत्र में जनमत संग्रह (रेफरेंडम) करा कर यह राय ली जा रही थी, कितने फीसदी लोग अन्ना के जनलोकपाल के पक्ष में हैं. उन्हें जिम्मेवारी दी गयी कि वे तत्कालीन केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल के क्षेत्र में जनलोकपाल के पक्ष में लोगों की रायशुमारी के काम से जुड़ गये.
अलग-अलग इलाकों में रहे जनमत संग्रह(रेफरेंडम) में आम जनता अपने घरों से बाहर निकल कर जनलोकपाल के पक्ष में अपनी राय रख रही थी, लेकिन सरकार का न झुकना दुर्गेश को नागवार गुजर रहा था. इसी उधेड़बुन में वे केजरीवाल की पार्टी ‘आप’ से पूरी तरह जुड़ गये और आज भी कैंपेन मैनेजर के रूप में दी गयी जिम्मेवारी का निर्वहन कर रहे हैं.
दिल्ली चुनाव के दौरान उन्हें एक कैंपेन मैनेजर के रूप में लोगों से मिलने के क्रम में कई चीजें सीखने को मिली. बकौल दुर्गेश इस चुनाव ने हमें सही मायनों में सिखाया है कि कैसे राजनीतिक दल आम जनता और उनकी समस्याओं से पूरी तरह से कट गये हैं. सामाजिक कार्यकर्ताओं, छात्रों, बुजुर्गो, सेवानिवृत्त कर्मचारियों की तरफ से रखी गयी बातों के आधार पर हम अपने विचार बनाते, क्षेत्र की लोगों की समस्याओं को समझते, ‘आप’ के समर्थन में लोगों से आगे आने का आह्वान करते, जगह-जगह चुनाव के परचे लगाते, चुनाव सामग्री का वितरण करते. इस तरह पूरे चुनाव अभियान में शुरुआती दौर में भले ही ‘आप’ के समर्थन में कम लोग दिखे, लेकिन भीतरखाने हमें व्यापक समर्थन प्राप्त हो रहा था. हर गली, चौराहे, घरों में जाकर लोगों से मिलना, उनकी समस्याएं सुनना, उनके सामने अपनी पार्टी की सोच को रखना, घोषणापत्र की बातों को समझाना एक नया अनुभव था.
लेकिन लोगों को हमारे तरीके पसंद आ रहे थे, खासकर ऑटो रिक्शा के पीछे चिपकाये गये पोस्टर जनता को काफी आकर्षित कर रहे थे. हम उन्हें यह विश्वास दिलाने में कामयाब हुए कि अगर हमारी सत्ता आयी, तो हम सही मायनों में जनतंत्र को मजबूत करने में कामयाब होंगे. जनता की समस्याओं का समाधान करेंगे. भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था के निर्माण की कोशिश करेंगे. नतीजा, सामने है.
हम भले ही पूर्ण बहुमत से दूर हैं, लेकिन दिल्ली के लोगों ने हम पर भरोसा दिखाया है. अब यह कहा जा रहा है कि ‘आप’ ने जिनके खिलाफ जनता से जनमत मांगा, उन्हीं के समर्थन से सरकार बनाइये. हमें लगता है कि यह दिल्ली की जनता के साथ धोखा होगा. आज जब अपने गांव जाता हूं,और यूं कहें कि लगभग भारत के हर गांव की यही समस्या है कि 90 फीसदी युवा आबादी अपने गांव से दूर है.
क्या उन्हें अपने गांव में रोजगार पाने का अधिकार नहीं है? आखिर हम क्यों वैसी व्यवस्था नहीं बना पा रहे हैं कि गांधी के ग्राम स्वराज का सपना पूरा हो. गांधी ने संघर्ष किया, तब हमें आजादी मिली. जेपी ने संघर्ष किया, तो हम सत्ता परिवर्तन में कामयाब हुए. अब ‘आप’ का संघर्ष है, इससे हम सिर्फ सत्ता परिवर्तन में ही कामयाब नहीं होंगे, बल्कि व्यवस्था परिवर्तन के लक्ष्य में भी कामयाबी पायेंगे