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पतले लोगों को शिकार बना रहा है डायबिटीज़

अनु आनंद बीबीसी वर्ल्ड सर्विस, कोलोंबो पूरे विश्व में, ख़ासकर विकासशील देशों में डायबिटीज़ यानि मधुमेह के रोगियों की संख्या काफ़ी तेज़ी से बढ़ रही है. सालों तक अमीर देशों के लिए आफ़त बनने वाले चीनी और स्टार्च भरा खाना विकासशील देश अपना रहे हैं. और ऐसा लगता है कि एशियाई, ख़ासकर दक्षिण एशियाई लोगों […]

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पूरे विश्व में, ख़ासकर विकासशील देशों में डायबिटीज़ यानि मधुमेह के रोगियों की संख्या काफ़ी तेज़ी से बढ़ रही है.

सालों तक अमीर देशों के लिए आफ़त बनने वाले चीनी और स्टार्च भरा खाना विकासशील देश अपना रहे हैं. और ऐसा लगता है कि एशियाई, ख़ासकर दक्षिण एशियाई लोगों को इससे ख़तरा है.

मेरी उम्र 42 साल है और दो बच्चों की मां हूं. मैं भारत की राजधानी दिल्ली में एक पत्रकार के तौर पर काम कर रही हूं जो आज विश्व का सबसे प्रदूषित शहर माना जाता है.

मुझे लगता है कि मैं पतली और सक्रिय हूं, ख़ासकर अपने अमरीकी दोस्तों की तुलना में मैं स्लिम हूं.

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पतले दिखने वाले भारतीय और श्रीलंकाई क्यों टाइप-2 डायबिटीज़ के शिकार होते हैं, यह जानने मैं पहुंची श्रीलंका के राष्ट्रीय डायबिटीज़ केंद्र में न्यूट्रीशनिस्ट छाया रणसिंगे के पास. टाइप-2 डायबिटीज़ को अधिकतर उन लोगों से जोड़ के देखा जाता है जो मोटे हैं.

मेरी कमर नाप कर छाया रणसिंगे ने मुझे बताया कि मैं अपनी उम्र के हिसाब से थोड़ी मोटी हूं. मुझे डायबिटीज़ का कितना ख़तरा है वो इसका आकलन करने की कोशिश कर रही हैं.

एशियाई लोगों में यह जानने का तरीक़ा है कमर की नाप लेना क्योंकि उनमें वसा (फैट) कमर के आसपास ही जमा होता है.

कमर के आसपास का यह फ़ैट और लीवर के अंदर का फ़ैट ख़तरनाक हो सकता है.

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2009 में जर्नल ऑफ़ अमरीकन मेडिकल एसोसिएशन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, "मानव शरीर में फ़ैट की मात्रा मापने वाली मेडिकल तकनीक ने साबित किया है कि स्वस्थ्य शरीर द्रव्यमान सूचकांक वाले यूरोपीय लोगों में अंगों और कमर के आसपास कम फ़ैट होता है, जबकि एशियाई लोगों में यह ज़्यादा होता है. इससे ख़तरा बढ़ जाता है."

फ़ैट के कारण टीशू उस होर्मोन इन्सुलिन के प्रतिरोधी हो जाते हैं जो ख़ून में चीनी की मात्रा नियंत्रित करता है. इस कारण ग्लूकोज़ बढ़ने लगता है और आपको टाइप 2 का डायबिटीज़ हो जाता है.

कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार, एशियाई, ख़ासकर दक्षिण एशियाई लोगों में अधिक फ़ैट तो होता ही है, उनमें कम मांसपेशियां होती हैं जिससे भी इन्सुलिन के लिए प्रतिरोध बढ़ जाता है.

एशियाई महिलाओं में भी गर्भाधान के दौरान डायबीडिज़ होने का ख़तरे बढ़ जाता है, जिससे उनके बच्चों को बाद में टाइप-2 डायबिटीज़ होने का ख़तरा हो सकता है.

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कमर के नाप को डायबिटीज़ के ख़तरे का मानदंड मानें तो एशियाई महिलाओं में यह 80 सेमी (31.5 इंच) होनी चाहिए और पुरुषों में यह 90 सेमी (35.5 इंच) होनी चाहिए. साथ ही परिवार में इस बीमारी का इतिहास, धूम्रपान, शराब का सेवन, व्यायाम और तनाव भी इसके घटक हो सकते है.

श्रीलंका में डायबिटीज़ की रोकथाम के लिए टास्क फ़ोर्स, निरोगी लंका चलाने वाले प्रोफ़ेसर चंद्रिका विजयरत्ने कहते हैं, "एशियाई लोगों के शरीर की रचना ‘किफ़ायती’ प्रकार की होती है ताकि वे अधिक उर्जा इकट्ठा कर उसे फ़ैट के रूप में जमा कर सकें."

वे कहते हैं, "लेकिन आज के माहौल में जब हम ऊर्जा बचाते हैं तो हम ज़रूरत से कहीं अधिक ऊर्जा बचा लेते हैं"

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विजयरत्ने समझाते हैं कि एशियाई लोगों के लिए शरीर द्रव्यमान सूचकांक को सुलझाने की ज़रूरत है.

उनका कहना है कि एक औसत वेस्टर्न व्यक्ति का द्रव्यमान सूचकांक 25 से 30 का हो तो उसे मोटा माना जाएगा लेकिन एशियाई मूल के व्यक्ति के लिए 23 से 25 तक का द्रव्यमान सूचकांक काफ़ी है.

उन्होंने मुझे बताया, "यह मिथक है कि सिर्फ़ चीनी से ही डायबिटीज़ होता है, स्टार्च भी एक बड़ी समस्या है."

मैंने उन्हें बताया कि मैं ताज़े फल सब्ज़िय़ां खाती हूं. लेकिन उन्होंने मेरा सामना डायबिटीज़ के अनपेक्षित अपराधी चावल से करवाया.

चावल को हमेशा से स्वस्थ एशियाई खाने का सार माना जाता रहा है. लेकिन सफ़ेद, पॉलिश किए हुए चावल के लिए आनुवांशिक तौर पर हमारा शरीर तैयार नहीं है.

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छाया बताती हैं, "आप लाल चावल खा सकती हैं सफ़ेद चावल में फ़ाइबर होता है जो निकाल लिया जाता है. इसके कारण जब आप यह खाते हैं तो आपका पेट नहीं भरता लेकिन यह जल्दी चीनी में तब्दील हो कर ख़ून में मिल जाता है."

मेरे लिए यह आश्चर्य से कम नहीं. मैं दिन में दो कटोरी चावल खाती हूं. मुझे हमेशा से लगता है कि चावल मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी सही है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व में 35 करोड़ लोगों को टाइप 2 डायबिटीज़ है और यह आंकड़ा दो दशकों में 100 करोड़ तक पहुंच सकता है.

विजयरत्ने कहते हैं, "यह एक भयावह स्थिति है- डायबिटीज़ सुनामी की तरह बढ़ रहा है और दक्षिण एशिया इसके केंद्र में है."

चीन विश्व की डायबिटीज़ राजधानी है जहां 10.9 करोड़ लोग डायबिटीज़ से ग्रस्त हैं, जो कि यहां की जनसंख्या का 10 फ़ीसदी से भी ज़्यादा है.

इंटरनेशनल डायबिटीज़ फ़ेडेरेशन के बनाए डायबिटीज़ एटलस की मानें तो भारत में 6.9 करोड़ लोग डायबिटीज़ के शिकार हैं जो कुल जनसंख्या का 9 फ़ीसदी है. लेकिन चुंकि भारत में इसकी जांच की व्यवस्था नाकाफ़ी है इसलिए यह संख्या काफ़ी बड़ी भी हो सकती है.

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श्रीलंका में देश की जनसंख्या के 10 फ़ीसदी हिस्से को डायबिटीज़ है और अन्य 10 फ़ीसदी में इसके प्रारंभिक लक्षण देखने को मिल रहे हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक दशक पहले जमा किए तथ्यों को देखें तो पता चलता है कि श्रीलंका की एक चौथाई जनसंख्या को मोटापे की समस्या है.

श्रीलंका के कारापिटिया अस्पताल में डायबिटीज़ क्लीनिक चलाने वाले डॉक्टर मनिल्का सुमनातिलके कहते हैं, "आठ-दस साल पहले हम 45 से 60 साल में टाइप 2 डायबिटीज़ की बात करते थे. लेकिन मैं 20 साल के युवाओं में और 12 से 18 साल के स्कूली बच्चों में भी यह समस्या देख रहा हूं."

"मैं हर महीने अपने क्लीनिक में कम से कम 1 या 2 ऐसे युवा मरीज़ों को देखता हूं."

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वे नीरियल के तेल में भूने सफेद चावल की लोकप्रियता और मीट और सब्ज़ियों से भरी तली हुई रोटी- कोट्टू को इसका कारण मानते हैं.

वे कहते हैं, "उन्हें यह अच्छा लगता है, लेकिन यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है."

देश की राष्ट्रीय स्वास्थ्य व्यवस्था में 10 फ़ीसदी संक्रामक रोग का इलाज होता है जबकि 90 फ़ीसदी ग़ैर-संक्रामक रोग जैसे कि डायबिटीज़, कैंसर, दमा जैसी बीमारियों का इलाज होता है.

कोलंबो के राष्ट्रीय अस्पताल में प्रोफ़ेसर मंडिका विजयरत्ने डायबिटीज़ के असर को रोज़ देखते हैं. एक शल्य चिकिस्सक के तौर पर वे उन मरीज़ों के अंगों को काट कर अलग करते हैं जो डायबिटीज़ का समय पर इलाज न होने से ख़ून की नलियां फटने से परेशान हैं. इस कारण अंगों में चेतना कम हो जाती है, चोट आने पर पता नहीं चलता और भयानक नतीजे हो सकते हैं.

वे बताते हैं, "शुरूआत एक छोटे घाव से होती है."

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वे अस्पताल के वार्ड नंबर 28 में मुझे ले जाते हैं, और बताते हैं, "यहां पर एक व्यक्ति है जिसके पैर के नीचे को हिस्सा काटना पड़ा. उसने नंगे पैर एक नुकीले पत्थर पर रख दिया था जिससे वहां एक घाव हो गया. संक्रमण तेज़ी से ऊपर तक फैलने लगा. और उसकी जान बचाने के लिए हमें उनका पैर काटना पड़ा."

वे कहते हैं, "पिछले 20 सालों में यहां हालात काफ़ी बिगड़ गए हैं. लेकिन पहले यहां धूम्रपान की समस्या थी. अब यहां डायबिटीज़ की समस्या है."

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मैं दिल्ली लौटते हुए ख़ुद के बारे में सोचती हूं और तय करती हूं कि मैं खाने को ले कर क्या बदलाव करूंगी. कुछ महीनों के बाद मैं सफ़ेद चावल खाना छोड़ दूंगी, मैं लाल चावल ही खाऊंगी. मैं अधिक व्यायाम भी करूंगी. शायद एक प्रदूषित शहर से दूर जाना भी इसका समाधान हो.

लेकिन लाखों दक्षिण एशियाई लोगों के लिए डायबिटीज़ की रोकथाम के लिए ज़रूरी है कि वे इस समस्या को पहचानें और अपने खाने, काम करने और व्यायाम करने के तरीक़ों में ठोस बदलाव करें.

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