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मकर संक्रांति पर विशेष: दो ऋतुओं और दो राशियों के संधिकाल का पर्व

श्रीश्री शैलेश गुरु जी भारत में जितने भी प्राचीन पर्व हैं उन्हें किसी विशेष या एक संप्रदाय से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए. इन पर्वों का संबंध उस काल से है जब मानव पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर था और उसके अनुरूप ही अपना जीवन बिताया करता था. ऐसे ही प्राचीन पर्वों में एक पर्व […]

श्रीश्री शैलेश गुरु जी
भारत में जितने भी प्राचीन पर्व हैं उन्हें किसी विशेष या एक संप्रदाय से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए. इन पर्वों का संबंध उस काल से है जब मानव पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर था और उसके अनुरूप ही अपना जीवन बिताया करता था. ऐसे ही प्राचीन पर्वों में एक पर्व है मकर संक्रांति. भारत कृषि प्रधान देश होने की वजह से ज्यादातर त्योहारों की पृष्ठभूमि भारतीय परंपरा के अंतर्गत कृषि रही है. मकर संक्रांति दो ऋतुओं (शिशिर और बसंत) का संधिकाल और दो राशियों धनु से मकर का संक्रमण भी माना जाता है.

भारतीय त्योहारों के पीछे सूर्य की भूमिका उपयोगी है. हिंदू काल गणना के मुताबिक सूर्य का उत्तरायण होना लोक कल्याणकारी शुभक्षण माना जाता है. हम सभी इस तथ्य से अवगत हैं कि सामूहिक स्नानदान का सबसे बड़ा व विशेष पर्व है. इस दिन सामूहिक रूप से पवित्र नदियों में स्नान कर सूर्य को अर्घ्य देना बेहद पुण्य कर्म माना जाता है. जनश्रुति है कि प्रयाग के कुंभ मेले में स्नान-दान करने से जो पुण्य प्राप्त होता है वहीं पुण्य मकर संक्रांति के दिन स्नान व दान करने से प्राप्त होता है. मकर संक्रांति स्नान दान का विशेष पर्व है जो इस दिन स्नान नहीं करते, वे सात जन्म तक रोगी और दरिद्र (भाग्यहिन) होते हैं. ऐसा माना जाता है. इस विशेष मुहूर्त (अवसर) पर किया हुआ दान सौ गुना होकर प्राप्त होता है. तीर्थ राज प्रयाग में स्नान का विशेष महत्व है. मकर राशि के स्वामी शनि है जो सूर्य देव के पुत्र हैं और सूर्य से शत्रु भाव रखते हैं अत: इसलिए शनिदेव से संबंधित दान किया जाता है.
मकर संक्रांति का पर्व मूलत: ऋतु पर्व है और इस पर्व का महत्व इसी बात से है कि इस दिन सूर्यदेव उत्तरायण हो जाते हैं. उत्तरायण काल में जन्म लेना ही नहीं वरन मृत्यु तक को उत्तम (श्रेष्ठ) माना जाता है. श्रीमद् भागवत के आठवें अध्याय में भगवान कृष्ण ने भी सूर्य के उत्तरायण का महत्व स्पष्ट करते हुए कहा है- हे भरत श्रेष्ठ. अग्निमय ज्योति देवता के प्रभाव से जब छह माह सूर्य उत्तरायण होते हैं तो ऐसे लोग जिन्हें ब्रह्म का बोध हो गया हो और जो दिन के प्रकाश में अपना शरीर त्यागते हैं उन्हें पुन: जन्म नहीं लेना पड़ता, ब्रह्मलोक और मोक्ष की प्राप्ति होती है, जो दक्षिणायान में अपने शरीर का त्याग करते हैं उन्हें चंद्रलोक में जाकर पुन: जन्म लेना पड़ता है. सूर्य उत्तरायण महत्व के कारण ही शर शैया पर पड़े भीष्म ने अपने प्राण तब तक नहीं त्यागे जब तक सूर्य उत्तरायण न हो गये. मकर संक्रांति के ही दिन भगीरथ के पीछे-पीछे चल गंगा, सागर में जा मिली थीं और महाराज सगर के 60 हजार पुत्रों का उद्धार किया था. इसी दिन गुरु गोरख नाथ ने ज्वाला देवी के स्थान गये यह एक प्रसिद्ध कथा है जहां देवी ने गुरु गोरखनाथ का आदर-सत्कार किया था. माता ने पानी गरम किया था और गोरखनाथ ने भिक्षाटन कर लाये चावल से खिचड़ी बनाकर प्रसाद बांटा था.
सूर्य तो ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीन की शक्तियों का स्वरूप है यही विशेष कारण है कि इस दिन साधना करने से तीनों की शक्तियों व साधनाओं का लाभ एक साथ प्राप्त होता है. इसलिए साधु-संत साधक इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं. इस दिन यज्ञ-तप से दुखों (कष्टों) का निवारण (क्षय) होता है. साधना के लिए अनुकुल काल होता है, क्योंकि इस समय ब्रह्मांड की चंद्रनाड़ी ही कार्यरत होती है.

इसी दिन से सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं और वही एक माह व्यापी खरमास समाप्त होकर विवाहादि मांगलिक व शुभ कार्यों का आयोजन प्रारंभ हो जाता है. विष्णु धर्मोत्तर पुराण के अनुसार मकर संक्रांति के दिन कर्मकांडी विप्रो, दरिद्रों को वस्त्र दान से विशेष पुण्य फल तथा तिल सहित वृष दान से रोगों से मुक्ति मिलती है.
शिवरहस्यानुसार मकर संक्रांति को कृष्ण तिल युक्त जल से स्नान कर कन्याओं, विप्रो एवं दरिद्रों के लिए तिल का दान करें. साथ ही तिल तेल से शिव मंदिर में दीप जलावें इससे शुभ फल की प्राप्ति होती है. मकर संक्रांति पुण्यकाल में काशी खंड में दशाश्वमेध घाट, तीर्थराज प्रयाग एवं गंगा सागर में स्नान से समस्त पापों का क्षय हो, एक हजार अश्वमेध यज्ञ के पुण्य फल की प्राप्ति होती है. वहीं गंगा आदि पवित्र नदियों में भी स्नान करने से पुण्य लाभ मिलता है. ज्योतिष की दृष्टि से जो लोग अपने कुंडली के अनुसार शनि की सादेसाती, ढैया या शनि के अशुभ गोचर के चंगुल में है और प्रभावित है तो मकर संक्रांति पर शनि से संबंधित दान कंबल, कृष्ण तिल, सामुद्रिक नमक, काला नमक, तेल, काजल, सुरमा चमटा, जूता, नील-कृष्ण वस्त्र, दीप दान आदि मकर संक्रांति के दिन प्रशस्त है. इससे शनि ग्रह की शांति होती है.
लेखक युवा आध्यात्मिक गुरु और स्तंभकार हैं
पर्व निर्णय
भुवन भास्कर सूर्य देव इस वर्ष पौष शुक्ल पंचमी गुरुवार 14 जनवरी को भारतीय मानक समयानुसार (25/26) अर्थात मध्य रात्रि बाद एक बजकर 26 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश कर रहे हैं. संक्रांति प्रवेश अर्द्धरात्रि बाद होने से संक्रांति का पुण्यकाल 15 जनवरी शुक्रवार उत्तराभाद्रपद नक्षत्र, परिध योग, कौलव करण, मीन राशि पर हो रहा है. अत: इसका विशेष पुण्यकाल प्रात: 7:40 बजे से अपराह्न 3:42 बजे दिन तक रहेगा. वहीं सामान्य पुण्यकाल सूर्यास्त तक रहेगा.

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