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परिवर्तन उम्र की मोहताज नहीं

।। महेश पोद्दार ।। रिटायरमेंट के बाद भी जुटे हैं समाजसेवा में तनिअप्पा विद्याधर अक्सर रिटायरमेंट के बाद ज्यादातर लोग थक कर अपने घर में सिमट जाते हैं. जीवन का उत्साह खत्म होने लगता है. किसी तरह से अपना बुढ़ापा काट लेना चाहते हैं. मगर, कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो हार नहीं मानते हैं. […]

।। महेश पोद्दार ।।

रिटायरमेंट के बाद भी जुटे हैं समाजसेवा में तनिअप्पा विद्याधर

अक्सर रिटायरमेंट के बाद ज्यादातर लोग थक कर अपने घर में सिमट जाते हैं. जीवन का उत्साह खत्म होने लगता है. किसी तरह से अपना बुढ़ापा काट लेना चाहते हैं. मगर, कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो हार नहीं मानते हैं. हर दिन को एक नयी ऊर्जा के साथ जीते हैं. अपने आस-पास के लोगों के जीवन में रंग भरते हैं. आज पढ़िए एक ऐसी ही शख्सीयत के बारे में.

अक्सर मेरा ध्यान उस वर्ग की ओर जाता है, जो शारीरिक रूप से, उम्र के लिहाज से तो युवा नहीं हैं, पर सोच में भी अपने को युवा नहीं समझते. यह एक दुर्भाग्य है और चुनौती भी, कि कैसे ये लोग पद, सत्ता, पैसे से दूर होकर, राज्य निर्माण और छवि सुधारने में मददगार हो सकते हैं.

और मजे की बात यह है कि इसके लिए न योजना की जरूरत है, न बजट की, न नेता की और न अभिनेता की. मैं अपने एक मित्र की चर्चा करना चाहता हूं, जिनकी जीवनशैली एक मिसाल है. वृद्धावस्था वह स्थिति है, जब इंसान हर तरफ से विचार-शून्य होकर सिर्फ खुद के लिए जीने के बारे में सोचने लगता है. मेरा बुढ़ापा कैसे कटेगा, मेरे बच्चे मेरी देखभाल करेंगे या नहीं, मेरे बाद मेरी खड़ी की हुई इस धन दौलत को कौन संभालेगा.

पर, इन विचारों से अलग इस अवस्था में कोई यह नहीं सोच पाता कि यह मेरा शेष जीवन किसी अच्छे काम में लगे. जो अब तक मैंने नहीं सोचा या किया, उस बारे में कुछ किया जाये ताकि समाज का कुछ हित हो सके.

और जो लोग ऐसे सोच के साथ आगे बढ़ जाते हैं वो एक मिसाल बन कर लोगों के सामने आते हैं. ऐसे हैं तो बहुत सारे लोग, जो नि:स्वार्थ भाव से समाजसेवा में तल्लीन हैं, जिन्हें न नाम की जरूरत है न पैसे की. ऐसी ही एक शख्सीयत का नाम है, तनिअप्पा विद्याधर. वह एचएमटी के जनरल मैनेजर पद से रिटायर हो चुके हैं और समाज सेवा में लगे हुए हैं.

उन्होंने रिटायरमेंट के बाद एक सामान्य सजग नागरिक की तरह जिंदगी जीना तय किया. कभी सर्विस के बाद पद, पावर की, पैसे की लालसा नहीं की. अपने अनुभव, व्यक्तित्व को माध्यम बनाया.

1971 के भारत पाक युद्ध के दौरान से विद्याधर ने सामाजिक क्षेत्र में अपना कदम रखा. उस दौरान जवानों को खून की जरूरत थी. उन्होंने रक्तदान के जरिये इस कार्य में भरपूर योगदान दिया.

उन्होंने वृद्धाश्रम में भोजन और पैसे का प्रबंध करना शुरू किया. सामाजिक सेवा में जीवन देनेवालों का निजी जीवन भी मुश्किलों से भरा होता है, खासकर तब, जब लोग उन्हें पहचानना शुरू कर देते हैं, लेकिन निजी समस्याओं में उलझने वाले लोग मिसाल नहीं बनते, इसलिए विद्याधर जी ने उन समस्याओं की एक सूची बना कर उनको हल करने की कोशिश शुरू की.

समस्याएं वही हैं जो हम रोजमर्रा में देखते सुनते हैं, जैसे पानी, बिजली, साफ सफाई, आदि. पर हमें लगता है की क्यों हम इन फालतू बातों में अपना समय गवायें, ये सब सरकार की जिम्मेवारी है, वह समझे. हमारा काम है सिर्फसरकार की गलतियां खोज कर उसे गालियां देना.

विद्याधर जी ने एक दूसरा ही रास्ता चुना, जो हर किसी के पास होता है लेकिन कोई उसकी तरफ ध्यान नहीं देना चाहता. बच्चों को उनकी जिंदगी में व्यवस्थित करने के बाद, विद्याधरजी ने इन्हीं रोजमर्रा की समस्याओं के लिए अधिकारियों के सामने जाने के बदले, अधिकारियों को जनता के सामने लाने की कोशिश की.

इस बात का अंदाजा इस उदाहरण से लगाया जा सकता है कि शहर के बीचोबीच एक खुले मैदान को, जो कि खोमचे वाले, ऑटो रिक्शा वाले इस्तेमाल करते थे, बेकार समझ कर, उस मैदान की चहारदीवारी करवाने में उन्हें 10 साल लग गये. आज वह मैदान बच्चों के खेलने के लिए इस्तेमाल हो रहा है.

वर्ष 2001 में विद्याधर जी जनाग्रह में शामिल हुए. इसका मुख्य काम जनता को सामाजिक व्यवस्था से अवगत करने का है. उन्होंने अपना योगदान दिया जनता को मतदान संबंधी जानकारी देने में और सरकार की नीतियों से अवगत करवाने में. उन्हें शहर की अन्य संस्थाओं के निमंत्रण मिलने लगे, जो उन्हें अपने साथ जोड़ना चाहते थे.

सिटीजन एक्शन फोरम के साथ मिल कर उन्होंने सरकार के सामने पानी और कूड़ा की समस्या को हल करने का प्रस्ताव रखा, जो वातावरण को संतुलित रखेगा और शहर की पानी की समस्या का भी हल निकल आयेगा.

अगर सूखे कचरे को जमा कर के बेचा जाये तो इस से पैसे भी आयेंगे और गीले कचरे को खाद की तरह इस्तेमाल किया जाये तो प्रदूषण की समस्या हल हो जायेगी. उन्होंने हेब्बल विधानसभा क्षेत्र के मूलभूत प्रश्नों को सामने लाने की कोशिश की, जिसमें सड़कों का चौड़ीकरण, सुलभ शौचालय और पानी की समस्या शामिल थी. उनके अनुसार समस्याओं को खोजने की जरूरत नहीं होती, वो हमारे सामने ही होती हैं, जरूरत है बस अपना कदम बढ़ाने की.

73 वर्ष की उम्र में विद्याधर ने जी आरटी नगर और जेसी नगर पुलिस स्टेशन क्षेत्र के सिटीजन एक्शन फोरम बनाये. फोरम का काम जनता को सुरक्षा संबंधी उपायों के बारे में अवगत कराना है.

जनता की समस्या सुलझाने के लिए विद्याधर जी के नियम:

1. अधिकारियों के सामने अपनी समस्याएं लिखित रूप में देना

2. अगर इन समस्याओं पर ध्यान ना दिया गया तो रेजिडेंट वेलफेयर एसोसियेशन इन समस्याओं को कनिष्ठ कर्मचारी को देंगे

3. उन्हीं कर्मचारियों को हर हफ्ते काम की याद दिलाना और साथ में उस शिकायत की एक प्रति उच्च अधिकारियों को देना

4. सर्वोच्च संबंधित अधिकारी से मिलना और साथ में संबंधित मंत्री से भी मिलना

5. कभी हार नहीं मानना

जनता को प्रोत्साहित करने और काम में उनकी दिलचस्पी बनी रहे, इसके लिए उन्होंने कई तरह के इनामों की घोषणा की. उन्होंने अपनी तरफ से बेंगलुरु नगर निगम के कर्मचारियों के साथ बैठक की शुरुआत की ताकि आधारभूत समस्याओं पर विचार किया जा सके.

और साथ ही साथ हर हफ्ते सड़कों का भी निरीक्षण शुरू किया. अपने काम के दौरान उन्हें हर तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा. मसलन, एक रेस्तरां को आवासीय क्षेत्र से हटाने के लिए उन्हें गुंडों की धमकी भी सुननी पड़ी. उन्होंने इस उम्र में भी डट कर सामना किया, बिना डरे! पर सामाजिक क्षेत्र में कितने लोगों के पास वो जज्बा होता है, दूसरों की खातिर मुसीबत लेना.

उन्होंने इस उम्र में भी अपनी अनिवार्य दिनचर्या बना ली है. सोमवार, बुधवार और शुक्र वार की सुबह 4.45 से बैडमिंटन के मैदान से शुरू हो जाती है. मंगलवार और गुरु वार को वह लाफिंग क्लब में जाते हैं और शनिवार और रविवार पत्र-पत्रिकाओं को देखने में बिताते हैं.

अपनी सेहत के लिए इस उम्र में ऐसी जागरूकता, बहुत कम देखने में आती है. वापस घर आने के बाद समाचार पत्रों पर नजर डालना और फिर उन पर अपने विचार लिखना. आजकल वो डीएनए (मुंबई से प्रकाशित अंगरेजी अखबार) के लिए लिखते हैं. अपनी दैनिक दिनचर्या से से मुक्त होकर वह ई-मेल के जवाबों पर ध्यान देते हैं, जो कि उनके प्रतिदिन चल रहे कामों से संबंधित होते हैं.

दोपहर में कुछ देर आराम के बाद शाम में अपने सहयोगियों से मुलाकात करते हैं और अन्य नये मुद्दों पर बातचीत भी करते हैं. उनके द्वारा चलाये गये मुहिम से संबंधित मीटिंग भी होती है, जिसमें वह भी सम्मिलित होते हैं और रात के 10.30 बजे तक दिनचर्या समाप्त हो जाती है.

हमारे समाज में ऐसे हजारों लोग भरे पड़े हैं. हम उषा मार्टिन ग्रुप के संस्थापक श्री बृजकिशोर झंवर जी को लें. असीमित सुविधाओं के उपलब्ध होने के बावजूद, व्यापार अपनी अगली पीढ़ी को सौंप कर, सहजता और सरलता से आम लोगों के स्तर को ऊपर उठाने का जो कार्य वह कर रहे हैं, वह अपने-आप में मिसाल है.

ट्रांसपैरेंट शीट द्वारा अंधेरे में डूबे घरों को रोशन करने का जो प्रयोग उन्होंने किया और इसे अब लोग स्वत: अपना रहे हैं. उनके पास सरकारी पद भले न हो, पर आत्म संतुष्टि होगी. ऐसे ही कई उदाहरण हैं जिन्होंने अपने प्रयास से संस्थाओं का निर्माण किया है अथवा संचालन कर रहे हैं.

(लेखक झारखंड के जानेमाने व्यवसायी हैं.)

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