बदलाव का पहला इशारा दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र की ओर से आया, जब वह अचानक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के जन्मदिन पर लाहौर पहुँचे.
यह भाजपा के लिए दुर्भाग्यपूर्ण रहे साल के अंत में उठाया गया यह अनूठा क़दम बन गया.
1. प्रधानमंत्री की लाहौर यात्रा इसलिए भी अहम रही क्योंकि इससे नरेंद्र मोदी की अल्पसंख्यक-विरोधी छवि बदलने की इच्छा झलकती है.
चूंकि पाकिस्तान के बारे में उठाया गया कोई भी क़दम अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के साथ ही अंदरूनी राजनीति का भी मसला होता है. इसलिए प्रधानमंत्री को यह कोशिश बनाए रखनी चाहिए.
2. साथ ही भाजपा और सरकार को संघ परिवार के कथित अतिवादी एजेंडा के ख़िलाफ़ ज़्यादा मज़बूती से बोलना चाहिए.
हालांकि ऐसा करना मुश्किल होगा क्योंकि सरकार और मंत्रिमंडल में भी बहुत से लोग ऐसे पूर्वाग्रह रखते हैं. इसलिए इस लाइन को पार्टी नेतृत्व को सख़्ती से लागू करना होगा.
3. साल 2015 में भारी चुनावी हार के लिए ज़िम्मेदार पार्टी अध्यक्ष को बदलना चाहिए. सत्ताधारी पार्टी के अध्यक्ष और प्रधानमंत्री के एक ही पार्टी से होने के नाते कुछ शक्ति का असंतुलन भी है.
4. मंत्रिपरिषद का विस्तार और फ़ेरबदल भी बहुत समय से लंबित है. कुछ मंत्रियों को हटाने की ज़रूरत है.
अब चूंकि भाजपा जहां से प्रतिभावान लोगों को लाती है, वहां उनकी बहुतायत नहीं, इसलिए विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों और पेशेवरों को सरकार में शामिल करने की ज़रूरत है.
5. सरकार को शैक्षणिक-तकनीकी संस्थानों और उनके प्रबंधनों से धर्मनिरपेक्ष उदारवादियों को बाहर करने की नीति भी छोड़नी चाहिए. ख़ासकर इसलिए भी क्योंकि जो भी बदलाव उन्होंने किए हैं उनकी गुणवत्ता और शैक्षणिक विशेषज्ञता अच्छी नहीं है.
बेशक, जब तक सरकार महत्वपूर्ण पदों पर नाक़ाबिल लोगों को, उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता की वजह से बैठाने की कोशिश करती रहेगी, उसका विरोध होता रहेगा.
6. कुछ बुद्धिजीवियों और विपक्षी पार्टियों के प्रति जो बदले की राजनीति देखी जा रही है, उसे बंद करे. इसे हाल ही में आप सरकार के दिल्ली सचिवालय में सीबीआई छापों में देखा गया.
अंततः ऐसे क़दम राजनीतिक कुप्रबंधन को दिखाते ही हैं, इनकी वजह से विपक्षी दल मोदी सरकार के विधेयकों को संसद में रोकने के लिए एकजुट भी हो जाते हैं. इसलिए सरकारी प्रबंधकों को विपक्षी दलों के एजेंडा से निपटने के लिए ज़्यादा शांतिपूर्ण तरीक़ा खोजना चाहिए.
8. भाजपा की 2014 में भारी जीत को 30 साल बाद गठबंधन दौर की समाप्ति कहा गया था. पर सत्ताधारी पार्टी को समझना चाहिए कि भारत को चलाने के लिए हमेशा कई तरह के गठबंधन करने पड़ते हैं.
इसलिए पार्टी को इंसानियत का रास्ता अपनाना चाहिए और भारत के हितों से तालमेल बैठाना चाहिए.
9. प्रधानमंत्री कार्यालय के ढांचे को बदलने और ज़्यादा खुलापन लाने की ज़रूरत है. प्रधानमंत्री को मीडिया सलाहकार नियुक्त करने की ज़रूरत है, जो एकमात्र नेता की छवि कुछ कम करे.
10. और अंततः भाजपा को ज़मीन पर उतरना चाहिए और यह समझना चाहिए कि प्रभामंडल अब बुझ गया है और हनीमून काल ख़त्म हो गया है.
इस समय वो झगड़ा करते नासमझों का समूह लगते हैं. उन्हें इसे दुरुस्त करने की ज़रूरत है. लोकतंत्र में संपूर्ण शक्ति और एकमात्र शासक ही सब कुछ नहीं होता.
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