भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर में ग्राम सुरक्षा समितियों को भंग करने की मांग फिर ज़ोर पकड़ने लगी है.
भारत प्रशासित कश्मीर में एक महिला और उसका चार वर्षीय बेटा उन तीन मृतकों में शामिल हैं जिनकी हत्या उन सशस्त्र ग्रामीणों ने की है जो सेना और पुलिस के लिए काम करते हैं.
इन सशस्त्र ग्रामीणों को विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) कहा जाता है. ये दरअसल, कश्मीर के पीरपंजाल क्षेत्र में चरमपंथियों की गतिविधियों पर नज़र रखने में सेना और पुलिस की मदद करते हैं.
इन हत्याओं से एक बार फिर ये समितियां सुर्ख़ियों में आ गई हैं और इन्हें भंग करने की मांग ज़ोर-शोर से उठाई जाने लगी है.
अधिकारियों का कहना है कि जम्मू के राजौरी, पुंछ और डोडा इलाक़े में इन समितियों के तहत 3000 से अधिक हथियारबंद ग्रामीण आते हैं. क्योंकि समितियों में अधिकतर हथियारबंद हिंदू हैं, कश्मीर में अलगाववादियों का आरोप है कि इन समितियों की आड़ में धीरे-धीरे जम्मू क्षेत्र से मुस्लिमों का ‘धीमा नरसंहार’ किया जा रहा है.
शीर्ष अलगाववादी नेताओं सैयद अली शाह गिलानी, यासिन मलिक और मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़ ने रक्षा समितियों के हाथों लोगों के मारे जाने की घटनाओं के विरोध में शनिवार को बंद का आह्वान किया था.
उत्तरी कश्मीर के लांगेट क्षेत्र के विधायक इंजीनियर रशीद कहते हैं, “अगर भाजपा और पीडीपी भारतीय संविधान को कश्मीर में बनाए रखना चाहते हैं तो उन्हें बग़ैर समय गंवाए इन समितियों को भंग कर देना चाहिए.”
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार जम्मू-कश्मीर में 3000 ग्राम सुरक्षा समितियों में 24602 विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) हैं. पुलिस और सेना की मदद के लिए इन समितियों का गठन 1990 के दशक में किया गया था.
मानवाधिकार कार्यकर्ता ख़ुर्रम परवेज़ ने ग्राम सुरक्षा समितियों के ख़िलाफ़ जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में जनहित याचिका भी दाख़िल की है.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए यहां क्लिक करें. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं.)