2014 सिविल सेवा परीक्षा में टॉप करने वाली इरा सिंघल ने अपने फ़ेसबुक पन्ने पर समाज-व्यवस्था पर सवाल किए हैं.
24 दिसंबर को मसूरी से दिल्ली लौट रहीं इरा और उनके साथ तीन लोग रात क़रीब आठ बजे मुरादनगर के पास एक सड़क दुर्घटना देखकर रुके.
इरा के मुताबिक़ ग्रामीण घायलों को निकालने की कोशिश में थे, पर उन्हें अस्पताल ले जाने के लिए कोई वाहन नहीं था.
इरा ने रास्ते पर चलती कई गाड़ियों को रोकना चाहा, पर हादसे को देखकर कोई नहीं रुका.
बीबीसी से बातचीत में इरा ने बताया, "हमने एंबुलेंस के लिए फ़ोन किया था लेकिन बताया गया कि एंबुलेंस कहीं और गई है और आधे घंटे तक नहीं पहुँच पाएगी."
वह बताती हैं कि, "मौक़े पर पुलिसकर्मी थे लेकिन उनके पास भी कोई गाड़ी नहीं थी. जब हमने उन्हें अपने आईएएस होने का परिचय दिया तब उन्होंने गाड़ी बुलाई और एक घायल को अस्पताल पहुंचाया."
इस हादसे में एक घायल की मौक़े पर ही मौत हो गई थी.
इरा कहती हैं कि शायद उसे बचाना मुश्किल था लेकिन लोगों का घायलों को देखकर भी न रुकना पीड़ादायक है.
वे कहती हैं, "हमारे समाज में एक अजीब सा डर है. जो लोग मदद करना चाहते हैं, वो भी डरते हैं. बावजूद इसके कि सुप्रीम कोर्ट सड़क हादसे में घायलों की मदद करने वालों के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश दे चुका है. शायद जागरूकता की कमी है या हमने दूसरे का दर्द महसूस करना बंद कर दिया है."
ये फ़ेसबुक स्टेट्स उन्होंने क्यों पोस्ट किया? इस पर इरा कहती हैं, "रोज़ हादसे होते हैं और रोज़ लोग सड़कों पर दम तोड़ते हैं लेकिन हम नहीं रुकते. मैंने बस यही सोचकर लिखा कि शायद इसे पढ़ने के बाद आगे ऐसा हो तो कोई रुक जाए."
जुलाई में राजस्थान के एक आईएएस अधिकारी नीरज पवन सड़क हादसे में घायल एक लड़की को लेकर जब अस्पताल पहुँचे थे, तब उन्हें वहां बेहद कड़वे अनुभव हुए थे.
नीरज पवन के मुताबिक़ घायल लड़की को देखकर तमाशबीन तस्वीरें तो खींच रहे थे लेकिन मदद के लिए कोई आगे नहीं आ रहा था.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक़ भारत में औसतन हर घंटे 16 लोगों की मौत सड़क हादसों में होती है.
2014 में एक करोड़ 41 लाख लोगों की मौत सड़क हादसों में हुई थी. रिपोर्टों के मुताबिक़ तुरंत प्राथमिक चिकित्सा न मिल पाना हादसों में मौतों का एक बड़ा कारण है.
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