लैटिन अमेरिकी देशों ने तकनीक का लिया सहारा
लैटिन अमेरिकी देशों में इंटरनेट अपराध पर नियंत्रण करने का कारगर औजार सिद्ध हो रहा है. स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के जरिये लोग आपस में अपराध की घटनाओं को शेयर कर रहे हैं, असुरक्षित जगहों को चिह्न्ति कर सावधान कर रहे हैं. इसका असर देखने को मिल रहा है.
इंटरनेशनल जर्नल, स्टैबिलिटी ऑफ सिक्योरिटी एंड डेवलपमेंट के मार्च 2013 अंक में बताया गया था कि दुनिया के सर्वाधिक हिंसाग्रस्त शहरों में शुमार मैक्सिको के स्यूदाद जुआरेज में संगठित अपराध के खिलाफ लोग ऑनलाइन इकट्ठा हो रहे हैं. स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के जरिये वो क्राइम मैनेजमेंट कर रहे हैं.
डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगेन स्थित डिग्निटी इंस्टीट्यूट के प्रोग्राम मैनेजर फिन जारूल्फ के अनुसार, मैक्सिको में लोग टेक्स्ट मैसेज और मोबाइल पर कॉल करके अपराध की घटनाओं के संबंध में एक-दूसरे को सावधान कर रहे हैं. सुरक्षा के लिए नीति बनाने, सरकार पर दबाव बनाने और संगठित रूप से विरोध करने के लिए सोशल मीडिया पर लोगों को एकजुट किया जा रहा है.
मैक्सिको, अर्जेटीना और ब्राजील में अपराध नियंत्रण के लिए आम लोग इंटरनेट का बेहतर इस्तेमाल कर रहे हैं. टूट रही है चुप्पी : विशेषज्ञों के अनुसार, लैटिन अमेरिकी देशों में हिंसक अपराधों की दर दुनिया के किसी भी देश के मुकाबले छह गुनी अधिक है.
यूएनडीपी की 2013 की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2011 में प्रति एक लाख जनसंख्या पर हत्या की दर 29 थी, जो वैश्विक औसत से चार गुनी अधिक है. लेकिन अब संगठित अपराध और ड्रग्स माफियाओं के खिलाफ सोशल मीडिया एक सशक्त माध्यम साबित हो रहा है.
मैक्सिको के मोंटरे से संचालित ब्लॉग डेल नारको ड्रग्स से जुड़े अपराधों का ब्योरा तैयार करता है. साइट के अनुसार, प्रतिदिन 1400 विजिटर्स इससे जुड़ते हैं और चार हजार पेज देखे जाते हैं.
उत्तर-पूर्वी मैक्सिको के शहर सालटिलो की एक शिक्षक मार्था मोंटोया के अनुसार, देश में क्या कुछ हो रहा है, उसे जानने के लिए यह ब्लॉग ही एक मात्र सहारा है. अगस्त 2010 और नवंबर 2011 के बीच मैक्सिको के चार शहरों में सर्वे कराया गया. इसमें पता चला कि लोगों ने सोशल मीडिया को एक प्लेटफॉर्म के रूप में इस्तेमाल करते हुए करीब छह लाख ट्विट किये. माइक्रोसॉफ्ट ने इन्हें नारको ट्विट कहा था.
मेनस्ट्रीम मीडिया की कमी पूरी : प्रेस की स्वतंत्रता के लिए काम करने वाली संस्थाएं मैक्सिको को पत्रकारों के लिए दुनिया का सबसे खतरनाक जगह मानती हैं. ड्रग माफियाओं के आतंक से मेनस्ट्रीम मीडिया पूरी तरह धराशायी हो गयी है. सालटिलो और मोंटरो जैसे शहरों में तो क्राइम रिपोर्टिग नहीं के बराबर है. इसकी कमी ब्लॉग, माइक्रो ब्लॉग और दूसरे सोशल साइटों के जरिये पूरी हो रही है.
मैक्सिको के मोंटरो शहर में पीपीपी मोड में चलाये जा रहे द सेंट्रो डि इंटिग्रेसिन स्यूदादाना (सीआइसी) ने ट्विटर और फेसबुक के जरिये अपराध से संबंधित डाटा तैयार किया है. सीआइसी प्रतिदिन हजारों टेक्स्ट, फेसबुक पोस्ट, ई-मेल और मोबाइल कॉल रिसीव करती है. प्रशासनिक प्राधिकरण इन सोशल मीडिया रिपोर्टो का इस्तेमाल सुरक्षा की समीक्षा और जांच के लिए करती हैं.
सूचनाओं का बेहतर इस्तेमाल : अर्जेटीना में सिक्योरिटी एंड जस्टिस नामक एनजीओ इनसिक्योरिटी मैप तैयार करती है, जो राजधानी ब्यूनस आयर्स में अपराध से संबंधित आंकड़े जारी करती है और अपराध के अड्डों की पहचान करती है. जब 2009 में इसकी शुरुआत की गयी, तो महज एक सप्ताह के भीतर ही अपहरण, डकैती, हत्या आदि की दो हजार से अधिक घटनाओं के बारे में आम नागरिकों ने सूचना दी.
गारेप इंस्टीट्यूट के अनुसार, इन सूचनाओं में कई चीजें दर्ज होती हैं, मसलन घटना कब घटी, अपराधियों की पहचान क्या थी, पीड़ित कौन हैं, वे किन तकनीकों से लैस थे, उनमें किस तरह का ट्रेंड है, हथियार कैसे थे आदि-आदि. अपराध से निबटने का इससे कारगर दूसरा तरीका नहीं हो सकता.
पुलिस में भरोसा नहीं : अमेरिका के हार्वर्ड ह्यूमेनिटेरियन इनिशियेटिव (एचएचआइ) के शोधकर्ता और अर्बनाइजेशन एंड सिक्योरिटी 2012 रिपोर्ट के लेखक रौनक पटेल के अनुसार, लैटिन अमेरिकी देशों में हिंसा के शिकार अधिकांश लोग न्याय के लिए सार्वजनिक संस्थानों में नहीं जाते. यह सुनने में आश्चर्यजनक लगेगा कि मैक्सिको में अपराध की 92 प्रतिशत घटनाओं के बारे में कोई रिपोर्ट नहीं की जाती. ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूट के अनुसार, लोगों का सुरक्षा बलों में भरोसा नहीं है.
वास्तव में पुलिस बड़े-बड़े गैंगों से निबटने में ही अपनी शक्ति लगाती है. अर्जेटीना सरकार ने ब्यूनस आयर्स में इमरजेंसी कॉल लेने, तुरंत एक्शन लेने और 1200 कैमरों के संचालन के लिए पांच रिजनल सेंटर बनाये हैं, पर इसके बावजूद लोगों का पुलिस में भरोसा नहीं जगा है. आप किसी आम अर्जेटीनी व्यक्ति से बात करें, तो वह बतायेगा कि फलां दिन को उसे लूटा गया था.
डाटा बहुत विश्वसनीय नहीं : रौनक पटेल के अनुसार यह सही है कि सोशल मीडिया कारगर साबित हो रहा है, पर यह पूरी तरह विश्वसनीय नहीं है. ओपेन सोसाइटीज फाउंडेशंस की 2011 की रिपोर्ट के अनुसार, मैक्सिको की मात्र एक तिहाई जनसंख्या के पास ही कंप्यूटर थे. सोशल मीडिया के जरिये उपलब्ध होने वाले डाटा की सत्यता को परखना बहुत कठिन है. यह गुमराह भी कर सकता है.
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि अपराधी भी सोशल मीडिया का दुरूपयोग कर सकते हैं. हाल के दिनों में मैक्सिको में कम से कम चार ब्लॉगरों की हत्या कर दी गयी. जून 2012 की एक रिपोर्ट के अनुसार, जिन देशों जैसे अर्जेटीना, ब्राजील, मैक्सिको में अधिक ऑनलाइन यूजर्स हैं, वहां साइबर क्राइम भी दुनिया के किसी भी देश के मुकाबले अधिक है.
साइबर अपराधी धड़ल्ले से उन तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे वे अपनी आपराधिक गतिविधियों को और विस्तार दे सकें. पहचान चुराना, बाल यौन उत्पीड़न, इंटरनेट धोखाधड़ी, ई-मेल से संबंधित फर्जीवाड़ा आदि तो साइबर अपराधियों के लिए बायें हाथ का खेल है. पटेल के अनुसार सोशल मीडिया तभी कारगर हो सकेगा, जब पारंपरिक उपायों मसलन सार्वजनिक संस्थानों और मेनस्ट्रीम मीडिया इससे जुड़ कर काम करे.