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फीका पड़ रहा है टेलीविजन का चस्का

स्मार्टफोन, प्लेस्टेशन और आइपॉड जैसे उपकरणों के दौर में लोगों को मनोरंजन के लिए घंटों एक स्थान पर टिके रहना मंजूर नहीं. अब लोग ऐसे उपकरण की ओर आकर्षित हो रहे हैं, जो राह चलते कहीं भी, कभी भी उन्हें मनोरंजन की दुनिया से जोड़ सकते हैं. इसी के चलते लोगों में टेलीविजन की लोकप्रियता […]

स्मार्टफोन, प्लेस्टेशन और आइपॉड जैसे उपकरणों के दौर में लोगों को मनोरंजन के लिए घंटों एक स्थान पर टिके रहना मंजूर नहीं. अब लोग ऐसे उपकरण की ओर आकर्षित हो रहे हैं, जो राह चलते कहीं भी, कभी भी उन्हें मनोरंजन की दुनिया से जोड़ सकते हैं. इसी के चलते लोगों में टेलीविजन की लोकप्रियता पहले स्थान से घट कर अंतिम स्थान पर आ गयी है..

आधुनिक युग में आये दिन होनेवाले आविष्कारों ने ऐसे कई उपकरणों को जन्म दिया है, जो पलक झपकते ही हमें मनोरंजन की दुनिया से जोड़ देते हैं. अब लोगों को अपनी पसंदीदा फिल्म या गाने देखने के लिए घंटों टेलीविजन के आगे नहीं बैठना पड़ता, बल्कि हर वक्त जेब में रहनेवाले टीवी यानी स्मार्टफोन और टैबलेट उन्हें कहीं भी, कभी भी यह सुविधा उपलब्ध करा देते हैं. इसी के चलते अब टेलीविजन लोगों के लिए मनोरंजन की दुनिया से जुड़ने का बेहतरीन माध्यम नहीं रहा. आधुनिकता की ओर बढ़ते कदमों ने मनोरंजन के इस साधन की लोकप्रियता को पहले स्थान से अंतिम स्थान पर ला दिया है.

सीरियल की जगह सोशल नेटवर्किग
एक वक्त था जब महिलाएं अपने पसंदीदा सीरियल देखने के लिए वक्त पर अपना काम खत्म कर लिया करती थीं और सीरियल का वक्त होते ही हाथ में रिमोट लेकर टेलीविजन के सामने बैठ जाया करती थीं. मगर वक्त के साथ महिलाओं की पसंद में आये परिवर्तन ने उनके इस शौक को भी बदल दिया है. अब वे दोपहर के खाली समय में टेलीविजन देखना नहीं, बल्कि सोशल नेटवर्किग साइटों पर अपने ऑन लाइन फ्रेंड्स से चैट करना पसंद करती हैं. दिल्ली की 29 वर्षीय चित्र शाह बताती हैं कि वह रोजाना दोपहर के वक्त सोशल नेटवर्किग साइट पर ऑनलाइन रहती हैं. चित्र कहती हैं कि मुङो टेलीविजन देखने से ज्यादा रोचक अपने दोस्तों से बाते करना लगता है. सीरियल्स का क्या है, टेलीविजन पर आये दिन तो उनका रिपीट टेलीकास्ट आता है. उन्हें कभी भी देखा जा सकता है और यदि मुङो किसी सीरियल का खास एपिसोड देखना होता है, तो मैं उसे भी इंटरनेट से डाउनलोड कर लेती हूं. इसके लिए मुङो घड़ी देखने या फिर टीवी के सामने चिपके रहने की जरूरत नहीं पड़ती.

टैबलेट पर फिल्में देख रहें हैं युवा
जो युवा वर्ग कभी टेलीविजन देखने के लिए अभिभावकों के गुस्से और डांट का सामना करने को तैयार रहता था, अब वह भी टेलीविजन देखने में खास रुचि नहीं रखता. ऐसा नहीं है कि युवाओं की फिल्में या गाने देखने की पसंद बदल गयी है. कुछ बदला है, तो वह है इन्हें देखने का माध्यम. तकनीकी को अपनी जेब में रखनेवाले युवा भला पसंदीदा फिल्में देखने के लिए एक जगह पर क्यों चिपके रहे. वे तो जब चाहें, जहां चाहें पॉकेट में रखे स्मार्टफोन पर अपनी पसंदीदा फिल्में और गाने देख सकते हैं. जैसा कि पटना के राजेश भी कुछ ऐसा ही करते हैं. राजेश कहते हैं कि मैंने अपने स्मार्टफोन में लेटेस्ट फिल्मों और गानों का कलेक्शन बनाया हुआ है. ऑटो, बस या फिर कॉलेज के लंच ब्रेक में जब भी मन करता है, उन्हें देख कर मूड फ्रेश कर लेता हूं. सच कहूं, तो इन गैजेट्स के चलते अब टेलीविजन देखने को लेकर घरवालों की डांट भी नहीं सुननी पड़ती.

भारत ही नहीं अमेरिका में भी घट रही है टेलीविजन की लोकप्रियता..

1.13 लाख ग्राहकों ने 2013 में टीवी सेवा प्रदाताओं से मुंह मोड़ लिया.

50 लाख से ज्यादा ग्राहकों ने बंद कर दी है, केबल और ब्राडबैंड की सेवा.

4 करोड़ ग्राहक इस साल के अंत तक छोड़ सकते हैं, केबल टीवी का साथ.

40 } से ज्यादा उपभोक्ता मोबाइल पर यूट्यूब देख कर कर रहे हैं अपना मनोरंजन.

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