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मजबूरी ने थमा दी जूठी प्लेट, होटलों व गैराजों में दम तोड़ रहा बचपन
बालश्रम. होटलों व गैराजों में दम तोड़ रहा बचपन कड़ी मेहनत के बाद भी नहीं मिलती बाल श्रमिकों को दो जून की रोटी सासाराम (ग्रामीण) : जिन हाथों में कलम होना चाहिए था, उन बच्चों को लाचारी ने हथौड़ा व जुटी प्लेट थमा दी. यही नहीं, कड़ी मेहनत के बावजूद नन्हें हाथों को दो जून […]
बालश्रम. होटलों व गैराजों में दम तोड़ रहा बचपन
कड़ी मेहनत के बाद भी नहीं मिलती बाल श्रमिकों को दो जून की रोटी
सासाराम (ग्रामीण) : जिन हाथों में कलम होना चाहिए था, उन बच्चों को लाचारी ने हथौड़ा व जुटी प्लेट थमा दी. यही नहीं, कड़ी मेहनत के बावजूद नन्हें हाथों को दो जून की रोटी भी नहीं मिल पाती है. कर्ज के बोझ तले दबे माता-पिता ने इन बच्चों को पढ़ाने के बजाये भुखमरी से निबटने के लिए होटल चलाने वालों के हवाले अपने नन्हें बच्चों की जिंदगी कर देते हैं. चंद रुपये की खातिर बेवस परिवार अपने बच्चों की भविष्य की परवाह भी नहीं कर रहे हैं. लिहाजा, छोटे बच्चे बाल मजदूरी करने को विवश हो रहे हैं. हालांकि, सरकार इसे अपराध मानती है व बच्चों को शिक्षा देने के लिए कई योजनाएं चला रखी हैं. लेकिन, इन योजनाओं का लाभ इन परिवारों को नहीं मिल रहा है.
रोटी की तलाश में बच्चे : छोटे-छोटे बच्चे गरीबी के कारण होटलों व गैरेजों में काम कर रोटी की जुगत में लगे हुए हैं. इन्हें इस कार्य के लिए महज पंद्रह सौ रुपये प्रतिमाह दिये जाते हैं.
होटलों में तो कई सामान बनते हैं, लेकिन इन बच्चों के लिए वे सामान केवल देखने भर ही मिलते हैं. इन बच्चों को ना तो ठीक से पैसे मिलते हैं और न ही कड़ी मेहतन के बाद भरपेट भोजन.
काम नहीं आयी सरकारी योजना : जो बच्चे स्कूल जाने से वंचित रहते हैं, उन बच्चों को स्कूल पहुंचाना व उसकी पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान देने के लिए सरकार के पास पूर्व से ही योजनाएं हैं.
लेकिन, इन योजनाओं का लाभ गरीब परिवारों को नहीं मिल पाता है. स्कूल जाने के लिए बच्चों को जागरूक भी करने का प्रावधान है. अलावा स्कूली ड्रेस, छात्रवृत्ति, मध्याह्न भोजन आदि की व्यवस्था सरकार ने कर रखी है. लेकिन, इन बच्चों को यह सुविधा आज भी मुहैया नहीं करायी जा सकी है.
कर्ज तले दबे हैं बच्चों के परिवार : होटलों व गैराजों में काम करनेवाले बच्चों के परिवार कर्ज तले दबे हुए हैं. सुदखोरों की वजह से परिवार चलाना दूभर है. ऐसी स्थिति में यह परिवार ज्यादा जोखिम उठाने से बेहतर अपने बच्चों को काम पर भेजना ही बेहतर समझ रहे हैं. यहीं कारण है कि पढ़ने की जगह बच्चे नौकरी कर रहे हैं. लिहाजा बच्चों का भविष्य खतरे में पड़ गया है.
बढ़ रही बाल मजदूरी की प्रथा
बाल मजदूरी कराना पूर्णत: अपराध है. इन बच्चों को होटलों से मुक्त कराने की जिम्मेवारी भी स्थानीय प्रशासन की है. लेकिन, पदाधिकारी इस पर ध्यान ही नहीं देते हैं. इसके कारण बाल मजदूरी की प्रथा धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है.
खाने के बिना मर जायेगा परिवार
हुजूर पैसा घर नहीं भेजा जायेगा, तो पूरा परिवार खाने के बिना ही मर जायेगा. हम सुबह सात बजे से आठ बजे रात तक ड्यूटी करते हैं. मुझे इसके एवज में पंद्रह सौ रुपये व खाना मिलता है. मेरे पैसे से ही परिवार चलता है. मेरे पापा पर काफी कर्ज है. वो भी मजदूरी करते हैं. कभी-कभार गांव जाने की छुट्टी दी जाती है. छुट्टी में रहने पर उन दिनों की मजदूरी भी नहीं मिलती है.
रमेश उरांव, पलामू
मुक्त कराये जायेंगे बच्चे
बाल मजदूरी कराना अपराध है. जहां बाल मजदूर कार्यरत हैं, उन्हें मुक्त कराया जायेगा. लंबे समय से अभियान चल रहा है. कई बच्चे मुक्त भी कराये जा चुके हैं. ऐसी मामलों की जांच कर कार्रवाई की जायेगी. बच्चों को मुक्त करा कर उनके परिजनों को सौंपा जायेगा. पूनम कुमारी, श्रम अधीक्षक, डालमियानगर, रोहतास
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