।। अनुज सिन्हा।।
(वरिष्ठ संपादक प्रभात खबर)
जब सचिन तेंडुलकर क्रिकेट को अलविदा कह रहे थे तो पूरी दुनिया के अखबारों-टीवी में छाये हुए थे. 24 साल खेलने, इतिहास रचने की सभी जगह प्रशंसा हो रही थी. स्वाभाविक था, पाकिस्तानी मीडिया में भी सचिन की वाहवाही हो रही थी. लेकिन, यह बात तालिबान पाकिस्तान पचा नहीं पाया. उसे लगा कि एक भारतीय खिलाड़ी की इतनी प्रशंसा पाकिस्तान में क्यों? उसने पाकिस्तानी मीडिया को धमकी दे डाली कि सचिन की तारीफ और मिसबाह (पाकिस्तानी कप्तान) की आलोचना उसे कतई स्वीकार नहीं. यह सब बंद होना चाहिए. सचिन की तारीफ से एतराज इसलिए क्योंकि सचिन भारतीय हैं. मिसबाह की आलोचना इसलिए नहीं, क्योंकि वह पाकिस्तानी है. तालिबान पाकिस्तान ने देशभक्ति का नया फार्मूला गढ़ लिया. हालांकि, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कहां का मीडिया सचिन की तारीफ करता है और कहां का आलोचना, सचिन तो अपना काम कर चुके है. पूरी दुनिया में अपना और देश का नाम बुलंद कर चुके हैं.
इसे तालिबान पाकिस्तान का दोहरा चरित्र ही कहेंगे जिसने कबूल किया कि सचिन महान खिलाड़ी हो सकते हैं, पर वे हैं तो भारतीय. दरअसल ऐसे आतंकी संगठनों का जन्म ही भारत और भारतीयों के विरोध के नाम पर होता है. अगर वे ऐसा न करें-कहें, तो उनकी दुकान फौरन बंद हो जायेगी. लेकिन यह भी सच है कि ऐसे बयान देनेवालों, धमकी देनेवालों, ऐसी घटिया सोचवालों को अब पाकिस्तान में भी कम समर्थन मिल रहा है. तालिबान पाकिस्तान कहां-कहां और किसे धमकाते चलेगा. इतिहास गवाह है कि जिस पाकिस्तान में देशभक्ति के नाम पर वह समर्थन हासिल करना चाहता है, वहां के सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग भारतीय खिलाड़ियों की प्रशंसा करते रहे हैं. वहां के खिलाड़ियों ने सचिन की प्रशंसा की है.
चाहे वह इमरान खान हों, वकार युनूस हो, रमीज रजा हों या शाहिद अफरीदी, सभी सचिन के प्रशंसक रहे हैं. दोनों देशों के बीच के संबंध भले बेहतर नहीं हों, पर खेल तो इससे अलग है. इस बात को कौन भूल सकता है कि पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने 2007 में लाहौर में धौनी के खेल और लंबे बालों की तारीफ की थी. 1960 की घटना याद कीजिए. भारत का विभाजन हुए बहुत दिन नहीं बीते थे. विभाजन के दंगे में मिल्खा सिंह के माता-पिता मारे गये थे. पाकिस्तान में जब एथलेटिक्स प्रतियोगिता हुई थी, तो मन नहीं रहने के बावजूद मिल्खा सिंह तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कहने पर पाकिस्तान गये और दो सौ मीटर की दौड़ में पाकिस्तान के अब्दुल खालिक को हराया था. उन दिनों वहां के राष्ट्रपति थे जनरल अयूब खां. उन्होंने मिल्खा सिंह की प्रशंसा करते हुए कहा था-तुम दौड़े नहीं हो, तुम उड़े हो. क्या पाकिस्तान राष्ट्रपति नहीं जानते थे कि मिल्खा सिंह भारतीय हैं? वहां मिल्खा सिंह की दौड़ की तारीफ हुई थी, ठीक उसी प्रकार जैसे इस बार सचिन के खेल कीहुई है.
आतंकी संगठन भले ही यह संदेश देना चाहते हों कि उन्हें अपने देश से बहुत प्यार है, वे लोग देशप्रेमी हैं, पर आतंकियों के चरित्र को हर कोई पहचानता है. इस बात को कैसे भूला जा सकता है कि आतंकी संगठनों ने उसी पाकिस्तान में श्रीलंका टीम के खिलाड़ियों को ले जा रही बस पर हमला किया था. छह खिलाड़ी घायल हो गये थे. पूरी दुनिया में पाकिस्तान की थू-थू हुई थी. ऐसे कदमों से न तो आतंकियों का भला हो सकता है और न उसके देश का. चंद घटनाओं को छोड़ दें, तो दुनिया के इतिहास में खेल को कलंकित करनेवाली घटना नहीं घटी है. 1972 के ओलिंपिक में फिलिस्तीनी आतंकियों ने इस्राइल के खिलाड़ियों की हत्या कर दी थी. लेकिन पूरी दुनिया में कहीं भी इसे समर्थन नहीं मिला.
नहीं लगता कि पाकिस्तान का मीडिया आतंकी संगठनों के दबाव में आयेगा. सचिन की खबर रोक देने और आतंकियों की धमकी के आगे झुक जाने से न तो पाकिस्तानी मीडिया का भला होगा और न ही पाकिस्तान का. हो सकता है कि पाकिस्तान खेल की दुनिया में अलग-थलग पड़ जाये.