आम लोगों के लिए कितनी ही लाइफस्टाइल पत्रिकाएं बाजार में उपलब्ध हैं, लेकिन जो दृष्टिहीन हैं, क्या उनके लिए ऐसी पत्रिका है. शायद नहीं. यह विचार मन में आते ही 25 वर्षीय उपासना मकाती को लगा उन्हें जिंदगी का मकसद मिल गया. और ब्रेल में भी एक ऐसी पत्रिका शुरू करने का निश्चय किया और उसे पूरा करने में जुट गयीं. आइए, जानते हैं उपासना की लगन को, जिसके बल पर वह ब्रेल लाइफस्टाइल पत्रिका की संस्थापक, प्रकाशक व संपादक बनीं. और देश में पहली ब्रेल लाइफस्टाइल पत्रिका ‘ह्वाइट प्रिंट’ शुरू हुई.
सेंट्रल डेस्क
मुंबई के एक पीआर कंपनी में अपनी नयी नौकरी छोड़ने के बाद एक रात उपासना मकाती जीवन के मकसद के बारे में सोच रही थीं. खुद से सवाल पूछ रहीं थीं- क्या उन्हें सिर्फ पैसा कमाने के लिए काम करना है या फिर खुशी के लिए. इसी सोच में डूबी उपासना को लगा कि उन्हें समाज के लिए कुछ करना चाहिए, जिससे जीवन को सार्थक किया जा सके. इसी उधेड़बुन में उनका ध्यान अंगरेजी की लाइफस्टाइल पत्रिकाओं पर गया. नाम गिनने शुरू किये, तो 60 पत्रिकाओं का नाम याद आ गये. इसी दौरान ख्याल आया कि ये सब पत्रिकाएं तो सामान्य लोगों के लिए हैं, लेकिन जो देख नहीं सकते, उनके लिए क्या कोई इस तरह की पत्रिका है. काफी सोचा.
खोजा, लेकिन एक भी नाम नहीं मिला. उसी समय ठाना कि ऐसी पत्रिका शुरू करनी है. इस विचार के साथ उन्हें अपने जीवन का मकसद मिल गया था.
‘ह्वाइट प्रिंट’ नाम की पहली ब्रेल लाइफस्टाइल पत्रिका को शुरू करना आसान नहीं था. हर कदम पर चुनौतियों से वह नहीं घबरायीं. यह भी निर्णय कर लिया कि वह एक एनजीओ बना उसके मार्फत अनुदान लेकर यह काम नहीं करेंगी. निश्चय किया कि वे इस पत्रिका को भी अन्य पत्रिकाओं की ही तरह लायेंगी, जो विज्ञापन के आधार पर चलती हैं. इसके बाद उन्होंने सबसे पहले नेशनल एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड (एनएबी), मुंबई से संपर्क किया और उनसे इसे ब्रेल में प्रकाशित करने के लिए सहयोग मांगा. इस संस्था ने उपासना को ब्रेल की प्रकाशन प्रक्रिया की जानकारी दी और हरसंभव मदद करने की बात कही. उपासना ने भी कुछ सॉफ्टवेयर प्रोग्राम सीखा, जो टाइप किये गये शब्दों को ब्रेल में बदल देते हैं.
20 से 300 प्रतियों का सफर : उन्होंने अपनी सोच और कार्ययोजना को देश के 200 से अधिक कॉरपोरेट कंपनियों को मेल किया. उन्हें पहला जवाब रेमंड से मिला और पहली बार पांच पेज का विज्ञापन भी मिला. इससे उत्साहित उपासना ने 64 पृष्ठोंवाली ‘ह्वाइट प्रिंट’ नाम से पहली ब्रेल लाइफस्टाइल मासिक पत्रिका को मूर्त रूप दिया. पहले माह कुछ कांप्लीमेंटरी कॉपी का प्रकाशन किया और दूसरे ही माह उन्हें पहले 20 सब्स्क्रिपशन मिले. उन्होंने प्रसिद्ध उद्योगपति रतन टाटा को भी पत्र भेज कर सहयोग लिया. आज उन्हें कोका-कोला इंडिया, एयरसेल जैसी बड़ी कंपनियों से भी सहयोग मिल रहा है. आज 30 रुपये वाली इस पत्रिका की 300 प्रतियां प्रकाशित हो रही हैं, जो पूरे देश में वितरित हो रही हैं.
विज्ञापन का नया स्वरूप : आर्थिक संकट दूर करने के लिए उसके पास विज्ञापन ही रास्ता था. पर इसके पहले कभी भी ब्रेल में विज्ञापन प्रकाशित नहीं हुआ था. कभी किसी ने ऐसा सोचा भी नहीं था. इसमें विभिन्न आकर्षक रंगीन चित्रों की कोई भूमिका नहीं थी. विज्ञापन को ब्रेल में प्रकाशित करना या आवाज के साथ पेश करना एक बड़ी चुनौती थी. उन्होंने इसका भी हल निकाला. म्यूजिकल कार्ड की ही तर्ज पर ऑडियो को अपनी पत्रिका में जोड़ दिया. कोकाकोला के सौजन्य से पहली बार म्यूजिकल विज्ञापन को इसमें प्रस्तुत किया गया.
पत्रिका के कॉलम : इसमें भी अन्य पत्रिकाओं की ही तरह विभिन्न तरह के लाइफस्टाल के कॉलम प्रकाशित होते हैं. जैसे कहानियां, कविताएं, लेख, ताजा खोज-परख रिपोर्ट और पाठकों के विचार व लेख. पत्रकार बरखा दत्त ने भी उनके आग्रह को स्वीकार किया और अब वे इस पत्रिका की रेगुलर कॉलमिस्ट हैं. सुधा मूर्ति की इजाजत के बाद उनकी छोटी-छोटी कहानियां इसमें प्रकाशित हो रही हैं. इस पत्रिका में खुद उपासना के तीन कॉलम आते हैं. इसके अलावा यात्रा, भोजन, बच्चों की देखभाल, क्विज, संगीत, फिल्म, कला, प्रेरणादायक कहानियों आदि से जुड़े कॉलम भी प्रकाशित होते हैं. अपनी पत्रिका के लिए वे स्वतंत्र लेखकों को सहयोग करने के लिए आमंत्रित भी करतीं हैं.
और बढ़ा उत्साह : विभिन्न हिस्सों से मिल रही प्रतिक्रियाओं ने उन्हें और उत्साहित किया है. अब उन्होंने इसे देश के कोने-कोने तक पहुंचाने का निर्णय लिया है. उपासना अंगरेजी ब्रेल में प्रकाशित होनेवाली ‘ह्वाइट प्रिंट’ को देश के विभिन्न भाषाओं में भी प्रकाशित करना चाह रहीं हैं.
एक नजर : मुंबई के जय हिंद कॉलेज से पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद उपासना कनाडा चली गयीं. यूनिवर्सिटी ऑफ ओटावा से कॉरपोरेट कम्यूनिकेशन की पढ़ाई पूरी कर वापस मुंबई आ गयीं और एक पीआर कंपनी में नौकरी कर ली.