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हम युवाओं को भी गांव जरूर जाना चाहिए

ट्यूब वेल का पानी छोटी-छोटी नालियों के जरिये खेतों में जाते देखना झरना, वंशिका व वैभव के मन में कौतुहल भर रहा था. तभी रूपेश ने कहा क्यों वैभव यहां नहाना है क्या? यहां और खुले में? नो वे पापा. वैभव ने कहा. अरे बेटा यही तो असली मजा है. मैं तो चला नहाने और […]

ट्यूब वेल का पानी छोटी-छोटी नालियों के जरिये खेतों में जाते देखना झरना, वंशिका व वैभव के मन में कौतुहल भर रहा था. तभी रूपेश ने कहा क्यों वैभव यहां नहाना है क्या? यहां और खुले में? नो वे पापा. वैभव ने कहा. अरे बेटा यही तो असली मजा है. मैं तो चला नहाने और मन करे तो आ जाना. रूपेश ने जींस-शर्ट उतारी और नहाने लगा.

रूपेश के साथ भवेश, जयेश व संजेश भी पानी में उतर गये. सभी को मस्ती करते देख वैभव से रुका नहीं गया और वो भी खूब नहाया. लौटते समय बच्चों को सब्जियों के खेत भी दिखाए. कहीं भिंडी, बैगन, फूल गोभी, बंद गोभी, लौकी, तोरई व करेला सब देख कर बच्चों को मजा आ रहा था. सब्जियों की बेलों पर लटकी तोरई व करेला देखना उनके लिए बिल्कुल नया अनुभव था. उनको आलू भी खोद कर दिखाया गया. उसे देख कर वंशिका ने कहा अरे, जमीन से ऐसे निकलता है आलू. वाव ग्रेट! मैं तो घर जाकर कैबेज व लेडी फिंगर लगाऊंगी. संजेश ने कहा नहीं बेटा हमारे यहां जगह नहीं है. इसलिए तुम ये सब नहीं लगा सकोगी. फ्लैट में पहली बात तो जगह ही नहीं होती और फिर धूप भी नहीं मिलती. इसलिए ये सब देखने के लिए तुम्हें यहीं आना होगा. तो फिर ठीक है मैं विंटर वेकेशन में गांव दोबारा आऊंगी. वंशिका ने कहा.

लौटते-लौटते वैभव को छींके आनी शुरू हो गयी थीं. उसने कहा पापा, लगता है मुङो सर्दी हो गयी. उसकी हालत देख कर सब हंसने लगे. भवेश ने कहा ये है हमारा शहरी पहलवान. जरा-सा खुले में नहाया और लगा छींकने. तुमसे ज्यादा इम्युनिटी पावर यहां के बच्चों की है. तुमने देखा ना कि कितने लोग वहां नहा रहे थे. वो पहली बार नहीं अकसर यहीं नहाते हैं, पर उनको तो जुकाम-बुखार नहीं होता और तुम हो कि थोड़ी देर बाहर पानी में क्या रहे कि जुकाम हो गया. ये अंतर है गांव के और शहर के बच्चों में. उनकी प्रतिरोधक क्षमता शहरी बच्चों से कहीं ज्यादा होती है. यहां वो असली जीवन जीते हैं. यहां का जीवन उन्हें मजबूत बनाता है. उसकी बात पर संजेश ने कहा कि इसमें बच्चों का कोई दोष नहीं.

हम ही उन्हें कमजोर बनाते हैं. जरा-सा जुकाम हुआ, लेकर दौड़े डॉक्टर के पास. बच्चा खाना ना खाए, छींकें आएं और जरा-सी थकान क्या आयी कि आंखों के सामने तुरंत डॉक्टर दिखता है. हर कदम पर इंफेक्शन का खतरा और यहां देखो बच्चे रोटी हाथ में लेकर खेलते-खेलते खाते रहते हैं और उनको क्यों देख रहे हैं. हम भी यही पले-बढ़े हैं. हम भी ऐसे ही घूमा करते थे. धूल-मिट्टी में खेल कर बड़े हुए. हमें कहां कुछ होता था ? बच्चों के खान-पान को लेकर मांएं परेशान रहती हैं. बच्चे हेल्दी डाइट नहीं, बल्कि जंक फूड खाते हैं तो क्या असर होगा? यही होगा कि शारीरिक रूप से वो वीक होंगे. यहां का जीवन बच्चों को स्वस्थ बनाता है, क्योंकि यहां अब भी प्रदूषण ना के बराबर है. धुआं छोड़ती गाड़ियां नहीं हैं. बड़े-बड़े कारखानों का कचरा पानी को प्रदूषित नहीं करता. अभी भी पॉलिथीन और प्लास्टिक का प्रयोग यहां बहुत कम है. देखो शहरों में कितना प्रदूषण है.

हां, बड़े पापा आप ठीक कह रहे हैं. यहां कितना शुद्ध वातावरण है. मैं सोच रहा था कि मुङो यहां अच्छा नहीं लगेगा, लेकिन यहां के लोगों में कितना प्यार है. हमारे फ्लैट कल्चर में कोई किसी से मतलब नहीं रखता.

मेरे व मेरे फ्रेंड्स के विचार गांव के बारे में बहुत गलत थे, लेकिन यहां आकर मेरे विचार बदल गये. काश! आप पहले यहां लाए होते. यहां जब एक-दूसरे से मिलते हैं, तो विश करते हैं और हमारी सोसाइटी में कोई किसी को पहचानता ही नहीं. मैं तो छोटा था जब यहां आया था. उस वक्त का मुङो बहुत ज्यादा नहीं याद. मुङो लगता है हम युवाओं को भी साल दो साल में किसी गांव जरूर जाना चाहिए. आखिर हम लोग घूमने जाते ही हैं, तो अपने किसी फ्रेंड के गांव भी जा सकते हैं.

वीणा श्रीवास्तव
लेखिका व कवयित्री

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