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निराशा के बाद भी बंधती है आशा

।। स्थापना दिवस-3।।स्थानीय लोगों को विश्वास में लेकर ही लगें उद्योग–धंधे स्थापना दिवस श्रृंखला की कड़ी में आज पेश है रोशन गोप के विचार. एक आम आदमी, लेकिन सामाजिक सरोकार लबरेज रोशन गोप रांची निवासी हैं. फिलहाल वह आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं. भले […]

।। स्थापना दिवस-3।।
स्थानीय लोगों को विश्वास में लेकर ही लगें उद्योगधंधे

स्थापना दिवस श्रृंखला की कड़ी में आज पेश है रोशन गोप के विचार. एक आम आदमी, लेकिन सामाजिक सरोकार लबरेज रोशन गोप रांची निवासी हैं. फिलहाल वह आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं. भले ही वह इनदिनों राज्य से बाहर रहते हों, लेकिन झारखंड से संबंधित हर खबर, बदलाव पर उनकी पैनी नजर रहती है.

रांची में ही मेरा जन्म हुआ. यहीं पला-बढ़ा. स्कूल से लेकर कॉलेज तक की शिक्षा यहीं हुई. पिछले डेढ़ वर्षो से आजमगढ़ (यूपी) में हूं. बाहर जाने के बाद अपने प्रदेश को नये सिरे से जानने-समझने का मौका मिला. पुराने लोग बताते हैं कि यहां बेहद शांत माहौल था. अलग पहचान, विशिष्ट संस्कृति. वैसे आज भी झारखंडी मिजाज से सरल ही हैं. सहिया की परंपरा जिसने आदिवासी-मूलवासियों के बीच भाईचारा व एकता के बंधन को और प्रगाढ़ किया. अलग राज्य की मांग के पीछे मंशा सिर्फ यह नहीं थी कि झारखंड राजनीतिक व प्रशासनिक रूप से बिहार से अलग हो, बल्कि यह भी था कि विकास के केंद्र में भी झारखंडी हो.

दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो पाया. यहां यूपी में, जब लोगों से झारखंड के संदर्भ में बातें होती हैं, तो बेहद अशांत क्षेत्र के रूप में. हाल की घटनाओं से असुरक्षा की भावना और बढ़ी है. अविश्वास का वातावरण बढ़ा है. जितना विकास होना चाहिए था उतना नहीं हो पाया. कई कारण हैं. राजनीतिक अस्थिरता व अक्षम नेतृत्व इसके मूल में है. हालांकि रांची, धनबाद, जमशेदपुर जैसे शहरों में चकाचौंध बढ़ी है. पर इस चकाचौंध में झारखंडी कहां हैं? बेशक, कई क्षेत्रों में विकास हो रहा है, पर यह अनियंत्रित है. अब तो सुनने में आया है कि बालू भी मुंबई की कंपनी बेचेगी, तो कहां जायेंगे झारखंडी? क्या असंतोष और नहीं बढ़ेगा? बहरहाल राज्य का अतीत और यहां के लोगों की जिंदगी संघर्षमय रहा है.

इसलिए तमाम निराशाओं के बाद भी इन्हीं के बीच से आशा बंधती है. बेशक, किसी राज्य का आकलन महज 13 वर्षो में नहीं किया जा सकता. मेरे ख्याल से झारखंड का भी विकास तभी हो सकेगा, जब राज्य को सक्षम नेतृत्व मिलेगा. चीजें धीरे-धीरे ही ठीक होंगी. विकास ऐसा हो, जिसमें यहां की संस्कृति, पर्यावरण में ज्यादा छेड़छाड़ न हो. स्थानीय जनता को विकास में भागीदारी का मौका मिले. उद्योग-धंधे लगे तो स्थानीय लोगों को विश्वास में लेकर. बड़ों के साथ छोटे और कुटीर उद्योगों का भी विकास हो. यह देखकर अभी अच्छा लग रहा है कि रांची व आसपास कई अच्छे शिक्षण संस्थान (केंद्रीय विश्वविद्यालय, आइआइएम आदि ) खुले हैं. कई और संस्थान खुलने वाले हैं, पर, यहां की स्कूली शिक्षण व्यवस्था को और सुधारने की जरूरत है. झारखंड में पलायन एक बड़ी समस्या है, जब लोगों को अपने ही क्षेत्रों में रोजगार मिलेगा, तो उन्हें बाहर का रुख करने की जरूरत नहीं होगी. ग्रामीणों के लिए चलाये जाने वाले योजनाओं का क्रियान्वयन सही तरीके से हो और इसका उन्हें लाभ मिले. राज्य के मानव संसाधन को केंद्र में रखकर योजनाएं बने. जब भी ऐसी पहल ईमानदारी से होगी इस राज्य में भी विकास की प्रक्रिया तेज होगी. (बातचीत: प्रवीण मुंडा)

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