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नयी दिल्ली : अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की उपस्थिति को सुदृढ़ करने और अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए विदेशी निवेश को आकृष्ट करने के सिलसिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज से 14 नवंबर तक ब्रिटेन यात्रा पर हैं. इस तीन-दिवसीय यात्रा के दौरान वे दोनों देशों के बीच वाणिज्य-व्यापार की बेहतरी की कोशिशों के साथ आप्रवासी भारतीयों को भी देश में निवेश के लिए आमंत्रित करेंगे. करीब दस वर्ष पूर्व 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की यात्रा के बाद हो रही प्रधानमंत्री के इस दौरे से बहुत उम्मीदें हैं क्योंकि पिछले एक-डेढ़ साल में द्विपक्षीय व्यापार में कमजोरी आयी है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन जैसे विषय भी इस यात्रा में महत्वपूर्ण मुद्दे होंगे.

ब्रिटेन के युवाओं के बीच भारत के प्रति अज्ञानता से भारत-ब्रिटेन के बीच विशेष संबंधों पर असर पड़ सकता है. ब्रिटिश काउंसिल की रिपोर्ट की माने तो ब्रिटेन को भारत के साथ पुराने संबंधों को महत्व देते हुए व्यापार और अन्य क्षेत्रों में पसंदीदा सहयोगी होना चाहिए. यह रिपार्ट पिछले महीने ही जारी हुआ है. इस रिपोर्ट में लिखा गया है कि ऐसा न हो कि कॉमनवेल्थ के देशों का ध्यान कहीं दूसरी ओर चला जाये. लेकिन दोनों देशों के बीच कई अड़चनें हैं और दूरियां भी काफी बढ़ी हैं. भारत में इसे लेकर निराशा बढ़ती जा रही है और कुछ लोगों का मानना है कि ब्रिटेन के लोगों की औपनिवेशिक सोच के कारण संबंधों को नयी गति नहीं मिल पा रही है. कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता है कि ब्रिटेन अभी भी भारत को समान सहयोगी नहीं मानता है. इस रिपोर्ट के प्रस्तावना में बिजनेस सेक्रेटरी साजिद जावेद ने चेता चुके हैं कि पूर्व के सहभागी रिश्ते मौजूदा संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए काफी नहीं हैं और दावा किया है कि आज की भारतीय युवा पीढ़ी ब्रिटेन से दूरी बना सकती है, अगर युवा ब्रिटिश लोगों द्वारा उनकी सोच को महत्व नहीं देंगे.

इपसोस मोरी द्वारा भारतीय युवाओं को लेकर किये गये सर्वे से यह बात सामने आयी है कि तीन में एक भारतीय ने ब्रिटेन का दौरा किया है और पांच से एक भारतीय ने ब्रिटेन के साथ व्यापार किया है. इसके उलट केवल व फीसदी ब्रिटिश युवाओं ने भारत का दौरा किया है और सिर्फ 8 फीसदी ने भारत के साथ व्यापार किया. जबकि 74 फीसदी भारतीय ब्रिटेन के बारे में जानते हैं और केवल 21 फीसदी ब्रिटेन के युवाओं को ही भारत की जानकारी है. भारत के 33 फीसदी लोग यह सोचते हैं कि ब्रिटेन के लोग अन्य देशों के प्रति अनभिज्ञ हैं. पिछले पांच साल में ब्रिटेन में पढ़ाई करनेवाले भारतीय छात्रों की संख्या में बड़े पैमाने पर गिरावट आयी है.

यही नहीं 1999 में भारत के साथ व्यापार में शीर्ष स्थान रखनेवाले ब्रिटेन 2015 में 18वें स्थान पर पहुंच गया है. अन्य देशों से बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा के बीच ब्रिटेन व्यापार बढ़ाने को लेकर उदासीन नहीं रह सकता है. इसके लिए ब्रिटेन को तेजी से भारत के साथ संबंधों को मजबूत बनाने की कोशिश करनी चाहिए. रिपोर्ट में कहा गया है कि संबंधों को नया आयाम देने के लिए ब्रिटेन को स्कूलों के पाठ्यक्रम में भारतीय इतिहास और संस्कृति को तवज्जो देना चाहिए और स्कूली स्तर पर दोनों देशों के बीच सहयोग को बढ़ाना चाहिए. भारत में ब्रिटिश काउंसिल के डायरेक्टर रॉब लैंस का कहना है कि 21वीं सदी में वैश्विक स्तर पर भारत एक महत्वपूर्ण देश होगा. जब तक हम इसें नहीं समझेंगे ब्रिटेन पीछे छूट जायेगा. आॅफ पार्टी पार्लियामेंट्री ग्रुप ऑन इंडिया के प्रमुख वीरेंद्र शर्मा का कहना है कि अगर भविष्य के रिश्ते को बेहतर करने की कोशिश की जाये, तो 21वीं सदी में एक समृद्ध यूनियन की आधारशिला रखी जा सकती है. अगर संबंधों को बेहतर नहीं किया गया, तो इससे किसी को फायदा नहीं होगा.

अगले 35 सालों में भारत विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी और 2050 तक भारत में काम करनेवाले लोगों की संख्या चीन और अमेरिका से भी अधिक होगी. भारत सॉफ्टवेयर का निर्यात 90 देशों को करता है और विश्व की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री यहीं है. वर्ष 2028 तक भारत आबादी के मामले में चीन को पीछे छोड़ देगा और 2035 तक देश की जीडीपी 6 ट्रिलियन पाउंड की होगी. लोगों की खरीद क्षमता के मामले में भारत की हिस्सेदारी 2050 तक वैश्विक जीडीपी में 13.5 फीसदी होगी और यह यूरोपीय यूनियन और अमेरिका से अधिक होगी.

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