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मुनाफा नहीं, आस्था है इनके लिए सबकुछ

पटना: दीवाली बीतते ही अब छठ की तैयारी शुरू हो गयी है. इस व्रत की महिमा ऐसी है कि अन्य धर्मो के लोगों की भी इसमें आस्था है. अन्य धर्मो के लोग भले ही छठ का व्रत न रखें, लेकिन वे कुछ ऐसा कर रहे हैं, जो किसी व्रत से कम नहीं है. यहां बात […]

पटना: दीवाली बीतते ही अब छठ की तैयारी शुरू हो गयी है. इस व्रत की महिमा ऐसी है कि अन्य धर्मो के लोगों की भी इसमें आस्था है. अन्य धर्मो के लोग भले ही छठ का व्रत न रखें, लेकिन वे कुछ ऐसा कर रहे हैं, जो किसी व्रत से कम नहीं है. यहां बात हो रही है. पटना में वर्षो से छठ पूजा के लिए चूल्हा बना रहीं उन मुसलिम महिलाओं की, जो मुनाफा कमाने के लिए नहीं, बल्कि आस्था के नाम पर यह काम रही हैं. दारोगा राय पथ के आसपास ऐसे कई घर हैं, जहां मुसलिम महिलाएं इस काम में जुटी हैं. उन्हें इससे न तो कोई विशेष आमदनी होती है और न ही यह उनके जीवन-यापन का जरिया है.

थो व्यापारी ले जाते हैं
शाहिना खातून 30 वर्षो से छठ व्रत के लिए चूल्हा बनाने का काम कर रही हैं. इनके बने चूल्हे थोक व्यवसायी ले जाते हैं. वे प्रति वर्ष लगभग 400-500 चूल्हे तैयार करती हैं. वैसे इस बार उनकी तबीयत उनका साथ नहीं दे रही है, जिससे वे अब तक मुश्किल से ढ़ाई सौ चूल्हे ही बना सकी हैं. इस बारे में बात करने पर उन्होंने कहा, छठ पूजा में जब तक मैं चूल्हा बना कर नहीं बेचूंगी, तब तक मेरी तबीयत नहीं सुधरेगी. इस पर्व में मेरी बड़ी आस्था है और मेरा पूरा परिवार इसमें सच्ची श्रद्धा रखता है. यह छठ मइया की ही महिमा है कि मेरे परिवार का पेट किसी तरह से भर जा रहा है. उन्होंने बताया कि करीब 35-36 वर्ष बीत गये, लेकिन एक भी साल ऐसा नहीं गया कि उन्होंने चूल्हा नहीं बनाया हो. वैसे इस पर्व में इन चूल्हों की मनचाही कीमत भी मिल जाती है, लेकिन वे कभी भी मजदूरी से ज्यादा पैसे नहीं लेती. बड़े बाबू आते हैं. अच्छा दाम दे कर जाते हैं. चूंकि यह हमारी आस्था से जुड़ा पर्व है, इसलिए मैं ग्राहकों से ज्यादा मोल-भाव नहीं करती और जो मिलता है, रख लेती हूं.

व्रत से कम नहीं
रेहाना खातून 25 वर्ष की हैं. वे 10 वर्षो से चूल्हा बना रही हैं. वे कहती हैं कि मिट्टी महंगी हो गयी है. एक ट्रैक्टर केवाल मिट्टी मंगाने में 1000 से 1200 रुपये तक खर्च हो जाते हैं. भूसा भी 10 रुपये प्रति किलो के दर से मिलता है. फिर इसे बनाने, सुखाने व रंगाई करने में भी वक्त लग जाता है. इसके बावजूद वे चूल्हा बनाती हैं. वे इसे पेशा नहीं मानतीं. चूल्हा बनाना ही उनके लिए छठ का व्रत रखने जैसा है.

बेटे की कामना हुई पूरी
आसमा खातून कहती हैं, मैं वर्षो से बेटे की कामना कर रही थी. छठ मइया की कृपा से मुङो बेटा मिला है. इसलिए इस वर्ष मैंने करीब 20 चूल्हे बनाये हैं. मेरी मां भी चूल्हा बनाने का ही काम करती थीं. तब कीमत 15-20 रुपये हुआ करती थी. आज इसकी कीमत 50 -60 रुपये है. चूल्हा बनाने में तीन से चार दिन का वक्त लगता है. फिर इसे धूप में अच्छी तरह से सुखाना भी पड़ता है.

पांच दिनों का कारोबार
नसीमा खातून बोलीं, दशहरे के समय से चूल्हा बनाने के काम में जुट जाती हूं. इस वर्ष बारिश के कारण नहीं बना सकी. इससे कम चूल्हे ही बन पाये हैं. मैं चूल्हा बनाने का काम मुनाफा कमाने के उद्देश्य से नहीं करती. पूरे वर्ष किसी अन्य कारोबार के सहारे घर चलाना होता है. यह छठ मइया की ही महिमा है कि हमारा पूरा साल ठीक से निकल जाता है.

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