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फैसले का दिन : किस तरफ ले जायेंगे ये नतीजे देश व बिहार को

बिहार की जनता आज अपना फैसला सुनायेगी. फैसला इस बात का कि अगले पांच वर्षो तक बिहार की दशा-दिशा तय करने का जिम्मा किनके कंधों पर होगा. बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान जिस तरह की राजनीतिक गोलबंदी हुई और आक्रामक शैली में चुनाव प्रचार हुए, उससे पूरे देश की नजर आज के फैसले पर है. […]

बिहार की जनता आज अपना फैसला सुनायेगी. फैसला इस बात का कि अगले पांच वर्षो तक बिहार की दशा-दिशा तय करने का जिम्मा किनके कंधों पर होगा. बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान जिस तरह की राजनीतिक गोलबंदी हुई और आक्रामक शैली में चुनाव प्रचार हुए, उससे पूरे देश की नजर आज के फैसले पर है.
बिहार का जनादेश राष्ट्रीय राजनीति से लेकर अगले एक-दो वर्षो में होने वाले दूसरे राज्यों के विधानसभा चुनावों पर क्या असर डालेगा, इस पर चर्चा शुरू है. आज के समय में चर्चा इस पर कि बिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम किस तरह प्रदेश और देश की राजनीति, सामाजिक समीकरण और बाजार पर असर डालेगा.
श्रवण गर्ग
वरिष्ठ पत्रकार
उत्तर भारत के एक ‘राज्य’ की विधानसभा की 243 सीटों के परिणामों को लेकर अगर समूचे देश में करोड़ों लोगों की सांसें ऊपर-नीचे हो रही हों तो समझ लिया जाना चाहिए कि मई, 2014 के बाद एक बार फिर से भारत की राजनीति की दिशा और उसका भविष्य तय होने जा रहा है.
पांच चरणों में खत्म हुए बिहार के चुनावों को लेकर विभिन्न चैनलों द्वारा जारी किये गये एक्जिट पोल ने पूरी तरह से भरोसा करने जैसी कोई स्थिति तो नहीं छोड़ी है, पर इतना अवश्य निश्चित कर दिया है कि ईवीएम से नतीजे न तो लोकसभा चुनावों की तरह या फिर दिल्ली विधानसभा के लिए हुए चुनावों की तरह ही एकतरफा तरीके से बाहर आने वाले हैं.
बिहार के निर्णायक परिणाम न केवल केंद्र में संसद की कार्रवाई को प्रभावित करने वाले सिद्ध होंगे, बल्कि विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं के लिए होनेवाले चुनावों के गंठबंधन भी तय करेंगे. बिहार के चुनाव परिणामों को लेकर हुए एक्जिट पोल में अधिकांश ने नीतीश-लालू के नेतृत्व वाले महागंठबंधन की जीत के दावे किये हैं, जबकि दो प्रमुख सर्वे भाजपा के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनने की घोषणा कर रहे हैं. अत: सवाल उठना स्वाभाविक है कि अगर महागंठबंधन की जीत हो जाती है तो उसका क्या प्रभाव देश की राजनीति पर पड़ेगा?
दूसरी ओर, अगर भाजपा के नेतृत्व में एनडीए की हूकुमत पटना में काबिज हो जाती है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ताकत किस तरह से और बढ़ जायेगी और वह भारतीय जनता पार्टी के अंदरु नी समीकरणों के साथ-साथ, संघ और सहयोगी दलों के साथ पार्टी के संबंधों को किस तरह से प्रभावित करेगी.
बिहार विधानसभा चुनावों में अगर नीतीश-लालू का गंठबंधन सत्ता में आता है तो वह लोकसभा चुनावों के बाद से देश की विपक्षी पार्टियों के चेहरों पर छाई उदासी और बेबसी को एक नये उत्साह में बदल सकता है.
अगले साल पश्चिम बंगाल और केरल में तथा वर्ष 2017 में उत्तरप्रदेश में होने वाले चुनावों पर भी बिहार के परिणाम असर डालेंगे. लोकसभा चुनाव में भाजपा गंठबंधन को उत्तरप्रदेश में 80 में से 73 सीटें मिली थीं. विपक्ष की राजनीति का मजबूत होना देश में लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थानों की हैसियत को और मजबूती प्रदान करेगा. केंद्र को विपक्ष के सहयोग की जरूरत के प्रति अधिक उदार बनायेगा.
बिहार में नीतीश-लालू गंठबंधन की जीत का लाभ विपक्ष के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी को भी मिलेगा. पार्टी में आंतरिक प्रजातंत्र ज्यादा मुखरता के साथ स्थापित होगा और बिहार में हार के कारणों का मूल्यांकन करने की जरूरत पर जोर दिया जायेगा. दिल्ली चुनाव में पार्टी की हार के बाद ऐसा मुखरता से नहीं हो पाया था.
‘धार्मिक असहिष्णुता’ के मुद्दे पर जिस तरह के आरोपों का सामना प्रधानमंत्री को करना पड़ रहा है, उसे लेकर बहुत मुमकिन है कि पार्टी के उन नेताओं को ज्यादा कड़े शब्दों में चेतावनी दी जाये, जिनके वक्तव्यों के कारण चुनाव परिणाम प्रभावित हुए माने जायेंगे. बिहार की हार भाजपा को ज्यादा विनम्र बना सकती है और प्रधानमंत्री की छवि को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नयी संभावनाओं के साथ स्थापित करने का अवसर प्रदान कर सकती है.
वे तमाम नेता जो अन्यान्य कारणों से पार्टी में अपनी ‘असहमति’ को आवाज नहीं दे पा रहे हैं वे अपने लिए भी कुछ ‘स्पेस’ तलाश कर सकते हैं. बिहार के परिणाम भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को ‘धार्मिक असहिष्णुता’ और ‘गो मांस’ जैसे मुद्दों से बचने के साथ-साथ ‘‘सांप्रदायिक ध्रुवीकरण’’ की रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिए बाध्य कर सकती है जिससे कि नरेंद्र मोदी की स्वीकार्यता का विस्तार होगा और सरकार के काम-काज के ‘‘फोकस’’ में पूरी तरह से ‘‘सबका साथ और सबका विकास’’ ही रहेगा.
पर महागंठबंधन की जीत के साथ जुड़ा हुआ एक मुद्दा यह भी बना रहेगा कि नीतीश कुमार और लालू यादव, दोनों नेता कितनी दूरी और कितने समय तक एक-दूसरे के साथ चल पायेंगे. खास कर ऐसी स्थिति में जबकि राजद को जद (यू) के मुकाबले ज्यादा सीटें मिल जाये.
विकास की अवधारणा को लेकर भी दोनों ही नेताओं के एजेंडे अलग-अलग हैं. दूसरा यह कि एक्जिट पोल के मुताबिक एनडीए के विधायकों की संख्या भी लगभग बराबरी की ही रहने वाली है. ऐसी स्थिति में महागंठबंधन पर विपक्ष का समुचित दबाव बना रहेगा.
अत: महागंठबंधन की जीत के बावजूद अगर दोनों नेता अपनी सरकार को आगामी लोकसभा चुनाव तक नहीं खींच पाते हैं तो उसका लाभ नरेंद्र मोदी को ही मिलेगा. इतना ही नहीं, महागंठबंधन की सफलता-असफलता का असर सबसे ज्यादा उत्तरप्रदेश के चुनावों पर पड़ेगा जिस पर कि भाजपा की सबसे ज्यादा नजरें टिकी हुई हैं. तय है कि उत्तरप्रदेश के चुनावों के साथ ही आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भी तैयारियां शुरू हो जायेंगी.
बिहार चुनाव में अगर एनडीए की सरकार बन जाती है, जैसी कि घोषणा कुछ प्रमुख एक्जिट पोल में की गयी है, तो प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी और उनके विश्वसनीय सहयोगी अमित शाह की सरकार और संगठन पर पकड़ और बढ जायेगी.
दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणामों को लेकर निराशा का जो माहौल बना था वह अमित शाह के पक्ष में बदलेगा. एनडीए की जीत से राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष और भाजपा में अंदरूनी तौर पर उपस्थित ‘असहमति का स्वर’ और कमजोर हो जायेगा. जीत की स्थिति में प्रधानमंत्री अपने राजनीतिक और विकास के एजेंडे को ज्यादा ताकत के साथ लागू करेंगे.
बिहार की विजय, मोदी की जीत मानी जायेगी, क्योंकि चुनाव में मुख्यमंत्री पद के लिए किसी के नाम की घोषणा नहीं की गयी थी. बिहार में एनडीए की जीत का प्रभाव न सिर्फ दूसरे राज्यों (खासकर उत्तरप्रदेश) में होने वाले चुनावों पर पड़ेगा, केंद्र सरकार में शामिल सहयोगी दलों की हैसियत भी प्रभावित होगी. महाराष्ट्र में शिवसेना का भाजपा विरोध भी कमजोर पड़ेगा.
भाजपा शासित जिन राज्यों में मुख्यमंत्री अपने काम-काज या अन्य कारणों से कमजोर नजर आ रहे हैं वहां प्रधानमंत्री परिवर्तन कर सकेंगे. एनडीए की जीत का एक बड़ा प्रभाव देश की राजनीति पर यह पड़ सकता है कि भाजपा और संघ द्वारा इसे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की रणनीति की सफलता मान कर उत्तरप्रदेश में और ज्यादा ताकत के साथ प्रयोग में लाया जा सकता है.
बिहार के चुनाव परिणाम चाहे जिस करवट बैठें, एक बात तो तय नजर आती है वह यह कि इस बहाने से ही सही संगठित हुए विपक्ष की ताकत देश में लोकतंत्र को ही मजबूत करेगी. प्रधानमंत्री के सामने भी चुनौती बढ़ जायेगी कि वे अपने विकास के एजेंडे को और ज्यादा तेजी से लागू करके दिखाएं.
2010 का परिणाम
जदयू 115 सीट 22.58}
भाजपा 91 सीट 16.49 }
राजद 22 सीट 18.84 }
कांग्रेस 04 सीट 8.37 }
लोजपा 03 सीट 6.74 }
2015 : 56.80} मतदान
पहला चरण 57} 49 सीट
दूसरा चरण 55} 32 सीट
तीसरा चरण 53.32} 50 सीट
चौथा चरण 57.59} 55 सीट
पांचवां चरण 60 } 57 सीट
बिहार का परिणाम सोचने को नया आधार भी देगा
अरुण कुमार त्रिपाठी
वरिष्ठ पत्रकार व विश्‍लेषक
बिहार के चुनाव परिणाम पर देश की नजर है. बिहार कई बार अलग किस्म का जनादेश देता रहा है. यह जागरूक प्रांत है और वहां से अनेक आंदोलन हुए. बिहार देश को रास्ता भी दिखाता है.
विधानसभा के चुनाव परिणाम चाहे जैसे हों, एक बात साफ है कि वह राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करने वाले साबित होंगे. 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं. हिंदी पट्टी के इन दोनों राज्यों की राजनीति का रुख राष्ट्रीय राजनीति को बहुत हद तक तय करने वाले साबित होंगे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जिस तरह से उदय हुआ है, बिहार चुनाव से साफ होगा कि वहां उन्हें कितना महत्व मिला. इससे लोगों के सोचने-समझने के बारे में पता चलेगा. बिहार के लोगों के रूझान से पता चलेगा कि प्रधानमंत्री की लोकप्रियता कैसी है. क्या उनकी लोकप्रियता अब भी बनी हुई है या उसमें कमी आयी है. इस पर आम लोगों की उत्सुकता बनी हुई है. हालांकि बिहार चुनाव के दौरान राष्ट्रीय नेताओं के जिस तरह के बयान आये, उससे प्रबुद्ध वर्ग को धक्का ही लगा है. इससे पता चलता है कि राजनीति का स्तर किस तरह गिर रहा है.
राजनीतिक का काम अवाम को रास्ता भी दिखाना है. सामाजिक स्तर पर इन बयानों का बड़ा असर होता है. आमलोग नेताओं की बातों को गंभीरता से सुनते हैं. आखिर जिस प्रकार की बयानबाजी हुई, उससे उन्हें क्या सबक मिलेगा? देश के लोग जानना चाहते हैं कि इन बयानों पर बिहार के लोग किस किस्म की प्रतिक्रिया देते हैं. बिहार का चुनाव परिणाम सोचने का नया आधार भी देगा.
बिहार को राजनीति तौर पर चेतनशील समाज माना जाता है. भले वहां आर्थिक पिछड़ेपन की खाई गहरी हो, पर आम लोग राजनीति के कहकरे से वाकिफ हैं. उसे रोजर्मे की तकलीफों और राजनीति की दिशा के बारे में समझ है. महंगाई की बात करें, तो पूर्ववर्ती सरकार की तुलना में राहत जैसी बात नहीं हुई.
अरहर दाल की कीमत रिकॉर्ड बनाते हुए आम लोगों की थाली से गायब हो गयी है. घरेलू उपयोग की चीजों के दाम बढ़े हैं. इन दो वास्तविकताओं के बीच बिहार के वोटरों ने क्या परिणाम दिया है, यह जानने की भी उत्सुकता है. आम आदमी इन वास्तविकताओं को कैसे ले रहा है. आम आदमी की प्राथमिक चिंता दाल-रोटी है. बिहार की जमीन से इन चिंताओं के बीच से राजनीति कैसा स्वरूप लेकर निकलती है, इसे देखा जाना है. इसलिए इस चुनाव को इतना महत्व दिया जा रहा है.
इस राज्य की पहचान समाजवादी आंदोलनों से रही है. लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन की यह धरती रही है. डॉॅ लोहिया की प्रयोग भूमि. बिहार में जातिवादी राजनीति ने चीजों को गड्मड्ढ कर दिया. यह एक सच्चई है. दूसरी ओर हम देखते हैं कि राज्य की बहुसंख्यक आबादी आर्थिक-सामाजिक रूप से भयानक तौर पर पिछड़ी हुई है. एक छोटा वर्ग बेहद समृद्ध है. वह प्राय: पावर में रहा है. यह बिहारी समाज का अंतरविरोध है. राजनीति को इस अंतरविरोध को पाटना है. यह बड़ी चुनौती है. नयी सरकार को इस वास्तविकता से मुकाबला करना पड़ेगा.
ऐसा लगता है कि बिहार का चुनाव एकतरफा नतीजा देने वाला नहीं होगा. बिहार में भाजपा के जिस विस्तार की बात कही जा रही है, उसकी वजह लोगों की राजनीतिक चेतना से जुड़ी हुई है. लोग किसी एक दल के साथ उसका पिछलग्गू होकर नहीं रहना चाहते हैं. इसे लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए सकारात्मक तत्व माना जा सकता है.
बिहारी समाज के फैसले पर बाजार की भी नजर
नतीजे कुछ भी रहें सुधार जारी रहेगा
राहुल बजाज
बिहार विधानसभा चुनावों के नतीजे कुछ भी रहें, आर्थिक सुधार जारी रहेगा. कुछ लोगों का मानना है कि विधानसभा चुनाव के नतीजों का अर्थव्यवस्था पर कुछ प्रभाव नहीं होगा. मैं उनसे सहमत नहीं हूं. बिहार बड़ा राज्य है और वहां के चुनाव परिणाम को कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता है.
मेरा मानना है कि एनडीए चुनाव हारता है, तो वह सुधारों को संभवत: अधिक तेजी से आगे बढ़ायेगा. मैं बिहार चुनाव के नतीजों के बारे में नहीं जानता. लेकिन मेरा मानना है कि सुधार जारी रहेंगे.
(राहुल बजाज ने विश्व आर्थिक मंच की बैठक में पत्रकारों से बातचीत में यह बात कही थी)
नतीजों का बाजार पर खास असर नहीं
संदीप सभरवाल
बिहार के चुनावी नतीजे बाजार के लिए बहुत मायने नहीं रखते. बाजार का प्रदर्शन अर्थव्यवस्था की स्थिति, सरकारी घाटे में कमी और कंपनियों की आय में वृद्धि जैसी बातों पर निर्भर करता है.
बिहार में चुनावी नतीजे चाहे जैसे भी हों, उनसे इन सब बातों में से कोई भी चीज जोखिम में नहीं पड़ती. केंद्र ने अर्थव्यवस्था को संभालने के जो प्रयास किये हैं, उनका फल मिलना शुरू हो गया है. कंपनियों के कारोबारी नतीजों में सुधार तीसरी तिमाही से दिखना शुरू हो जायेगा. इसलिए बाजार की मौजूदा कमजोरी खरीदारी करने के लिए अच्छा अवसर दे रही है.
(संदीप सभरवाल सन कैपिटल के सीइओ हैं)
एक से दो दिन रहेगा असर
बाजार के जानकार उदयन मुखर्जी का कहना है कि बिहार चुनाव के नतीजों का असर बाजार पर एक -दो दिन से ज्यादा नही होगा. अगर बीजेपी हार जाती है, तो बाजार में 100 से 200 अंकों की कमजोरी आ सकती है. इससे ज्यादा की नहीं.
एक्जिट पोल ने कयासों को हवा दी
बिहार के चुनाव परिणाम पर सिर्फ आम लोगों की ही नजर नहीं है, दलाल स्ट्रीट के कारोबारी भी दिल थाम कर रिजल्ट का इंतजार कर रहे हैं. आठ नवंबर को परिणाम आना है. इससे पहले कयासों का बाजार गर्म है. एक्जिट पोल ने कयासों को और हवा दे दी है.
बाजार और इसमें पैसा लगाने वालों की चाह है कि भाजपा जीते. निवेशक को ऐसा आशा है कि भाजपा के जीतने पर केंद्र सरकार आíथक सुधारों की गति को तेज करेगी. राज्यसभा में सरकार की ताकत बढ़ेगी, जो उसे सुधारवादी आíथक नीतियों को लागू करने में मदद करेगी. बाजार के जानकारों का मानना है कि अगर परिणाम भाजपा के पक्ष में आयेगा, तब सेंसेक्स में दो फीसदी तक का उछाल आ सकता है.
बाजार के जानकार यह भी मानकर चल रहे हैं कि अगर परिणाम त्रिशंकु हुआ, तब भी यह केंद्र सरकार के लिए सकारात्मक संदेश होगा. बाजार के जानकार मान रहे हैं कि अगर बिहार विधानसभा चुनाव में राजग की हार होती है, तब बाजार में जबरदस्त गिरावट होगी. तब केंद्र सरकार अपने सुधारवादी कदमों को पीछे खीचेगी. इसलिए निवेशक भी पैसा लगाने से कतरायेंगे. गिरावट की सबसे बड़ी वजह यही होगी.
चुनाव में
क्या खास
वोट बढ़ा
2000 के चुनाव के बाद पहली बार वोटरों ने बढ़-चढ़ कर मतदान में भाग लिया. 2010 के चुनाव में 52.65 }, 2014 के लोस चुनाव में 56.28 } वोट पड़े थे. इस बार 56.80} वोट पड़े.
आक्रामक प्रचार
चुनाव प्रचार के दौरान बदजुबानी हुई. निजी स्तर पर आरोप-प्रत्यारोप और गड़े मुर्दे उखाड़े गये. कुछएक नेताओं को छोड़ दें, तो दोनों गंठबंधन इसमें पीछे नहीं रहे. यह देश भर में चर्चा का विषय बनाप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव की घोषणा के पूर्व तीन रैलियां की. चुनाव की घोषणा के बाद बिहार में उनकी 26 रैलियां हुईं. बिहार में किसी प्रधानमंत्री की एक माह के भीतर इतना दौरा पहली बार.
कभी बिहार में चुनाव के दौरान हिंसा, बूथ लूट, नक्सली हमले होते थे. इस बार पांच चरणों के चुनाव में अच्छी बात रही कि हिंसा की कोई बड़ी वारदात नहीं हुई.
नयी सरकार
आज, रविवार को चुनाव परिणाम के साथ यह तय हो जायेगा कि बिहार में सरकार किसकी बनेगी. सरकार जिसकी भी बने, उसके सामने कुछ चुनौतियां होंगी, तो आम जनता की कई उम्मीदें भी नयी सरकार से जुड़ी हुई हैं.
सामने खड़ी चुनौतियां
– जनता से किये गये वायदों को समय सीमा के भीतर पूरा करना
– गंठबंधन के घटक दलों की सत्ता में हिस्सेदारी, उनका साथ
– विपक्ष को भरोसे में रखना
– कैबिनेट में सभी वर्गो और क्षेत्रों की समुचित भागीदारी
– बिजली, सड़क, स्वास्थ्य और कृषि से जुड़ी योजनाओं व कार्यक्रमों पर तेज गति से काम
– शिक्षा की आधारभूत व्यवस्था को दुरुस्त करना
– केंद्र व राज्य के बीच बेहतरसमन्वय, ताकि विकास बाधित न हो
– विकास का बेहतर माहौल, जिसमें सबकी हिस्सेदारी.
– युवाओं के लिए बिहार में ही रोजगार की व्यवस्था.
– समाज में सद्भाव का माहौल
– उच्च शिक्षा में सुधार और तकनीकी शिक्षा की आधारभूत सुविधाएं
– आर्थिक विकास की प्रक्रिया को सतत, गतिशील रखना
– कृषि और कृषि आधारित उद्योगों का विकास तथा किसानों को उनकी उपज का वाजिब दाम
– बिजली उत्पादन के मामले में बिहार को आत्मनिर्भर बनाना
इन वादों को रखना होगा याद
नीतीश के सात निश्चय
– आर्थिक हल-युवाओं को बल
– आरक्षित रोजगार- महिलाओं को अधिकार
– हर घर बिजली लगातार
– पक्की गली-नालियां
– हर घर नल का जल
-शौचालय निर्माण
-अवसर बढ़े
– आगे बढ़ें
मोदी के छह सूत्र
-बिजली
– पानी
– सड़क
– पढ़ाई (शिक्षा)
– कमाई (रोजगार)
– दवाई (स्वास्थ्य)

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