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एक इतिहास है रणजी ट्रॉफी

हरियाणा के रोहतक के लाहली में रविवार, यानी 27 अक्तूबर से शुरू हुआ रणजी ट्रॉफी सत्र का पहला मुकाबला, मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंडुलकर का आखिरी प्रथम श्रेणी मैच होगा. सचिन का इस मैच में प्रदर्शन कैसा रहता है, यह इतिहास में दर्ज किया जायेगा, लेकिन सचिन का इस मैच में खेलना बता रहा है कि […]

हरियाणा के रोहतक के लाहली में रविवार, यानी 27 अक्तूबर से शुरू हुआ रणजी ट्रॉफी सत्र का पहला मुकाबला, मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंडुलकर का आखिरी प्रथम श्रेणी मैच होगा. सचिन का इस मैच में प्रदर्शन कैसा रहता है, यह इतिहास में दर्ज किया जायेगा, लेकिन सचिन का इस मैच में खेलना बता रहा है कि रणजी ट्रॉफी अपने आप में एक जीता-जागता इतिहास है.

वर्षो तक यह एकमात्र ऐसी प्रतियोगिता रही है, और कई मायनों में आज भी है, जिसमें प्रदर्शन के आधार पर राष्ट्रीय टेस्ट टीम के लिए खिलाड़ियों का चयन किया जाता है और उन्हें भारतीय क्रिकेट टीम की प्रतिष्ठित टोपी पहनने का सौभाग्य मिलता है. रणजी ट्रॉफी और भारत के अन्य घरेलू क्रिकेट प्रतियोगिताओ के बारे में बता रहा है आज का नॉलेज.

व्यालोक

हरियाणा के रोहतक के लाहली में रविवार, यानी 27 अक्तूबर से शुरू हुआ रणजी ट्रॉफी सत्र का पहला मुकाबला मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंडुलकर के खेलने से बेहद अहम बन गया है. दो दशकों से भी अधिक के क्रिकेट जीवन के बाद घरेलू प्रथम श्रेणी क्रिकेट में यह सचिन का अंतिम मैच है. यह प्रतिष्ठित रणजी मुकाबला भविष्य में सिर्फ सचिन के लिए याद रखा जाए, तो कोई हैरानी की बात नहीं होनी चाहिए. रिकॉर्ड के लिए बताते चलें कि तेंडुलकर जब भी रणजी ट्रॉफी में खेलने के लिए उतरे हैं, तो उनके बल्ले से रनों की अच्छी खासी बौछार हुई है.

सचिन ने दिसंबर, 1988 में 16 साल की उम्र में रणजी ट्रॉफी खेलना शुरू किया था. अब तक, तेंडुलकर ने केवल 37 रणजी ट्रॉफी मैच खेले हैं. उन्होंने अपना पिछला रणजी मैच इस साल जनवरी में सौराष्ट्र के खिलाफ वानखेड़े स्टेडियम में फाइनल के रूप में खेला था. सचिन का प्रथम श्रेणी में भी बेहतरीन रिकॉर्ड रहा है. उन्होंने अभी तक 55 पारियों में 4,197 रन बनाए हैं और उनका औसत 87.43 का रहा है. तेंडुलकर ने 18 शतक और इतने ही अर्धशतक इस चैंपियनशिप में लगाए हैं. यह देखना खासा दिलचस्प होगा कि वह अपने घरेलू क्रिकेट कैरियर का अंत शतक के साथ कर पाते हैं या नहीं? इस मैच में कई स्टार खिलाड़ी मुंबई का प्रतिनिधित्व करेंगे, जिसमें तेंदुलकर के अलावा जहीर खान, अजिंक्या रहाणो, धवल कुलकर्णी और अभिषेक नायर भी शामिल हैं.

रणजी सत्र के लिए मुंबई के कप्तान बनाए गये रोहित शर्मा ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मौजूदा वनडे सीरीज में खेल रहे हैं और इसी के कारण इस मैच के लिए उपलब्ध नहीं रहेंगे. इस मैच के महत्व को देखते हुए अमित मिश्र के नेशनल ड्यूटी पर होने की वजह से हरियाणा टीम की कमान अनुभवी क्रिकेटर अजय जडेजा को सौंपी गयी है. जडेजा और सचिन कभी टीम इंडिया के लिए पारी का आगाज किया करते थे. जडेजा ने लंबे समय बाद घरेलू क्रिकेट में वापसी की है.

क्रिकेट के भगवान कहे जानेवाले सचिन रमेश तेंदुलकर इस मैच के साथ ही घरेलू क्रिकेट को भी अलविदा कह देंगे. यह बात अलग है कि प्रथम श्रेणी क्रिकेट में सचिन बहुत अधिक नहीं खेले, फिर भी मैदान पर उनकी कमी तो चाहनेवालों को अखरेगी ही, फॉर्मेट चाहे जो भी हो. सचिन का इस मैच में प्रदर्शन कैसा रहता है, यह इतिहास में दर्ज किया जायेगा, लेकिन हम यहां आपको बताते हैं, उस जीते-जागते इतिहास के बारे में जिसे रणजी ट्रॉफी कहा जाता है. वर्षो तक यह एकमात्र ऐसी प्रतियोगिता रही है, और कई मायनों में आज भी है, जिसमें प्रदर्शन के आधार पर राष्ट्रीय टेस्ट टीम के लिए खिलाड़ियों का चयन किया जाता है और उन्हें भारतीय क्रिकेट टीम की प्रतिष्ठित टोपी पहनने का सौभाग्य मिलता है.

क्या है रणजी ट्रॉफी

भारत की घरेलू क्रिकेट में विभिन्न क्षेत्रीय क्रिकेट संघों की नुमाइंदगी वाले क्रिकेट टीमों के बीच फर्स्ट क्लास क्रिकेट की चैंपियनशिप रणजी ट्रॉफी के नाम से खेली जाती है. यह इंगलैंड की काउंटी क्रिकेट (चैंपियनशिप) और ऑस्ट्रेलिया के शेफील्ड शील्ड की बराबरी का माना जाना चाहिए. इस ट्रॉफी का नाम नवानगर के महाराज और इंग्लैंड व ससेक्स काउंटी के लिए खेलनेवाले महाराजा रंजीतसिंह के नाम पर किया गया है. भारत में फस्र्ट क्लास क्रिकेट की एक और ट्रॉफी महाराजा दिलीपसिंहजी के नाम पर दिलीप ट्रॉफी होती है. इसके अलावा देवधर ट्रॉफी भी भारत में खेली जाती है, जो लिस्ट ए क्रिकेट होती है. दरअसल, लिस्ट ए क्रिकेट सीमित ओवरों की क्रिकेट होती है और यह अंतरराष्ट्रीय एकदिवसीय के स्तर के बराबर घरेलू स्तर पर मानी जाती है, जैसे अंतरराष्ट्रीय टेस्ट मैचों के मुकाबले फस्र्ट क्लास क्रिकेट को माना जाता है.

रणजी ट्रॉफी का इतिहास

रणजी ट्रॉफी की शुरूआत जुलाई 1934 में बीसीसीआइ की एक बैठक के बाद हुई थी. इसके पहले मुकाबले 1934-35 में हुए थे, यानी इस ट्रॉफी को इस वर्ष आठ दशक पूरे हो जायेंगे. इसके लिए ट्रॉफी पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह ने दिया था. पहला चैंपियन मुंबई रहा था, जिसने उत्तर भारत को फाइनल में हरा कर चैंपियनशिप जीती थी. अब तक की रणजी ट्रॉफी के इतिहास में मुंबई का नाम सबसे प्रभावी टीम के तौर पर दर्ज है. यह अब तक 40 बार विजेता रह चुकी है. 1958-59 से लेकर 1972-73 तक तो यह लगातार 15 वर्षों तक विजेता बनी रही.

अपनी शुरूआत से लेकर 2001-02 तक के सत्र तक, टीमों को भौगोलिक आधार पर चार या पांच क्षेत्रों में बांटा जाता रहा है. 1952-53 में केंद्रीय क्षेत्र को भी जोड़ा गया. इसके अलावा उत्तर, पश्चिम, पूर्व और दक्षिण के चार क्षेत्र भी इसमें शिरकत करते थे. 1956-57 तक सारे मैच विभिन्न क्षेत्रों के भीतर पहले नॉकआउट आधार पर होते थे, उसके बाद विजेता का निर्धारण करने के लिए विविध जोनों के एक-एक विजेताओं के बीच नॉकआउट आधार पर मैच होता था. इसके विजेता को ही रणजी ट्रॉफी का विजेता माना जाता था. 1970-71 के सत्र में नॉकआउट के चरण को बढ़ा कर हरेक क्षेत्र से शीर्ष दो टीमों को चुना जाने लगा, यानी कुल दस क्वालिफाइंग टीमें होने लगीं. इसको 1992-93 में बढ़ा कर हरेक क्षेत्र से तीन टीमों को चुनने लगे और कुल 15 टीमें सेकंडरी स्टेज में भिड़ने लगीं.

2002-03 में जोन की व्यवस्था को पूरी तरह छोड़ दिया गया और द्वि-स्तरीय व्यवस्था अपना ली गयी. ‘एलीट’ ग्रुप में पंद्रह टीमों को रखा गया और ‘प्लेट’ ग्रुप में बाकी टीमों को. हरेक समूह में दो उप-समूह थे, जो राउंड-रोबिन आधार पर खेलते थे. हरेक उप-समूह से दो शीर्ष टीमों को चुना जाता था, जो विजेता का चुनाव करने के लिए नॉकआउट टूनार्मेंट में खेलते थे. हरेक ‘एलीट’ उपसमूह में आखिर में आनेवाली टीम छंट जाती थी, और ‘प्लेट’ ग्रुप का फाइनल खेलनेवाली टीमों को अगले सत्र के लिए प्रमोट कर दिया जाता था. 2006-07 के सत्र में इस विभाजन को ‘सुपर लीग’ और ‘प्लेट लीग’ का नाम फिर से दिया गया. 2010-11 के सत्र में तब इतिहास रचा गया, जब प्लेट ग्रुप से राजस्थान ने न केवल एलीट ग्रुप में प्रवेश किया, बल्कि पहली बार रणजी ट्रॉफी के फाइनल में भी प्रवेश किया.

2012-13 के सत्र में रणजी के प्रारूप को पूरी तरह बदल दिया गया. ‘सुपर’ और ‘प्लेट’ ग्रुप को रद्द कर दिया गया और उसकी जगह ‘ए’, ‘बी’ और ‘सी’ नामक समूह बनाये गये. ‘ए’ और ‘बी’ समूह से तीन टीमें नॉकआउट राउंड में पहुंचती थीं, जबकि ग्रुप सी से दो टीमें पहुंचती थी. समूह ए में सबसे नीचे रही टीम को अगली बार ग्रुप ‘बी’ में निम्नतम रही टीम को ग्रुप ‘सी’ में डाल दिया जाता था. इसी के उलट ग्रुप ‘सी’ की शीर्षस्थ टीम को ग्रुप ‘बी’ और ग्रुप ‘बी’ में सबसे शीर्ष पर रही टीम को ग्रुप ‘ए’ में प्रमोट कर दिया जाता था. नॉकआउट प्रारूप को उसी तरह रखा गया है, बस अब नतीजा निकले, इसके लिए एक अतिरिक्त छठे दिन (पांच दिनों के बजाय) की भी व्यवस्था रखी गयी है.

रणजी ट्रॉफी मैचों में नॉकआउट मैच का नतीजा पहली पारी के आधार पर निकाला जाता है, अगर अंतिम फैसला ड्रॉ हो. नॉकआउट मैचों को छोड़ कर बाकी मैच चार दिन के होते हैं, जबकि नॉकआउट मैच पांच दिनों के टेस्ट मैच की तरह ही होते हैं.

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