।। दक्षा वैदकर ।।
हम परिवर्तनों से डरते हैं, नयी चीजों को आजमाने से घबराते हैं. यही वजह है कि हम सालों वही काम करते रह जाते हैं. आपने कई लोगों को देखा होगा, जो अपनी नौकरी से बेहद परेशान हैं. उन्हें लगता है कि कोई दूसरी कंपनी ज्वॉइन कर लें या अपना खुद का ही कोई बिजनेस शुरू कर लें. लेकिन ये सारी प्लानिंग उनके दिमाग में ही रह जाती है.
आपने उन लोगों को भी देखा होगा, जो सालों एक ही होटल में जाते हैं और एक ही डिश ऑर्डर करते हैं, नये दोस्त बनाने से घबराते हैं, पार्टी में नहीं जाते, नया रास्ता खोजने से डरते हैं.
इसकी वजह कुछ और नहीं, बल्कि नये काम न कर पाने का डर है. उन्हें लगता है कि इस कंपनी का काम तो मैं समझ चुका हूं, लेकिन न जाने दूसरी कंपनी कैसी होगी? गुस्से में नौकरी तो मैं छोड़ दूंगा, लेकिन क्या मेरा बिजनेस सफल हो पायेगा? नया रेस्तरां न जाने कैसा होगा? नया रास्ता मुझे भटका न दें, नया दोस्त धोखेबाज हुआ तो? इससे बेहतर है कि मैं जहां हूं, वही रहूं. जहां खाता हूं, वही खाना खाऊं. जो मेरे दोस्त है, उन्हीं से मिलूं. कुछ नया न आजमाऊं.
चार्ल्स डिकेंस ने एक ऐसे कैदी के बारे में लिखा है, जो सालों तक एक काल कोठरी में कैद रहा. सजा काट लेने के बाद, जब वह आजाद हुआ और उसे बाहर खुली धूप में लाया गया, तो उस आदमी ने चारों ओर देखा. कुछ देर में ही वह आजादी से परेशान हो गया.
उसने वापस काल कोठरी में जाने की इच्छा जाहिर की. वह आजादी और खुली दुनिया के बदलावों को कबूल करने के बजाय काल कोठरी, अंधेरे और हथकड़ियों में ही सुरक्षा और आराम महसूस कर रहा था, क्योंकि वह उन्हीं का आदी हो चुका था.
चार्ली चैपलिन अपनी फिल्म में जेल जाने के लिए बार–बार गलतियां करते हैं. कई कैदी ऐसा व्यवहार करते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि अनजाने संसार से तालमेल बनाने का तनाव उनकी बर्दाश्त से बाहर होता है. वे जान–बुझ कर अपराध करते हैं, ताकि उन्हें जेल भेज दिया जाये. वहां उनकी आजादी पर भले ही पाबंदी रहती हो, लेकिन उन्हें अपने बारे में कम फैसले लेने पड़ते हैं.
बात पते की..
– यदि हमारा नजरिया नकारात्मक है, तो हमारी जिंदगी सीमाओं में कैद है. ऐसे नजरिये की वजह से हमें सीमित कामयाबी ही मिल सकेगी.
– नयी चीजें करने का डर हमें आगे बढ़ने नहीं देता है. इससे हमारे दोस्तों की संख्या कम होगी और हम जिंदगी का कम आनंद उठा सकेंगे.