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कांग्रेस ने वादे निभाये

सत्ता का सेमीफाइनल करार दिये जा रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों और 2014 के आम चुनाव के मद्देनजर यूपीए और कांग्रेस की रणनीति पर पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शकील अहमद से बातचीत की संतोष कुमार सिंह ने. पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश. पांच राज्यों के चुनावों को […]

सत्ता का सेमीफाइनल करार दिये जा रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों और 2014 के आम चुनाव के मद्देनजर यूपीए और कांग्रेस की रणनीति पर पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शकील अहमद से बातचीत की संतोष कुमार सिंह ने. पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश.

पांच राज्यों के चुनावों को 2014 का सेमीफाइनल माना जा रहा है. कांग्रेस के लिए कैसी संभावनाएं देखते हैं?
सारे प्रदेशों, जिनमें विधानसभा चुनाव होना है, एकाध को छोड़ कर अच्छी खबर आ रही है. पार्टी के नेता व कार्यकर्ता 8 दिसंबर को जीत की वास्तविक खुशी मनायेंगे. मिजोरम में पूर्ण बहुमत को लेकर संशय हो सकता है, लेकिन सरकार कांग्रेस की ही बनेगी. जहां तक सेमीफाइनल और फाइनल का सवाल है, तो हर चुनाव फाइनल ही होता है. कई लोग तर्क देते हैं कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में मुद्दे अलग होते हैं. वास्तव में ऐसा नहीं होता. लोकसभा चुनाव में भी स्थानीय मुद्दे प्रमुख होते हैं. बिहार में जब लालू यादव की सरकार थी, लोकसभा में उनके दल के लोग ज्यादा पहुंचे. इसी तरह नीतीश कुमार के कार्यकाल में जदयू के ज्यादा सांसद लोकसभा में चुन कर आये. इस लिहाज से देखें, तो लोकसभा चुनाव में भी स्थानीय मुद्दे, राज्य सरकार का कामकाज, उम्मीदवार और जातिगत समीकरण चुनाव परिणाम को प्रभावित करते हैं.

चुनाव पूर्व प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित न करने का कितना लाभ मिलता दिख रहा है?
लाभ-हानि से ज्यादा यह एक नीतिगत बात होती है. जो भी सांसद या विधायक चुनाव में जीतते हैं, उनका अधिकार पार्टी ले ले, इसे कांग्रेस सही नहीं मानती. अपवाद हो सकते हैं, लेकिन सामान्यत: इसे उचित नहीं माना जाता. इसलिए चुनाव के बाद सांसदों-विधायकों से विचार विमर्श के बाद ही आलाकमान घोषणा करता है. लोकतंत्र का यही तकाजा भी है. दूसरे दल क्या करते हैं, यह उनको तय करना है.

इस समय लगभग आधे मतदाता युवा हैं. ऐसे में युवाओं को आकर्षित करने के लिए पार्टी के पास क्या खास रणनीति है?
युवाओं को हमेशा से ही कांग्रेस में पर्याप्त महत्व दिया गया है. राहुल गांधी युवाओं को आगे लाने और राजनीति से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करते रहे हैं. भाजपा दावा करती है युवा मोदी के विचारों से प्रभावित हैं. लेकिन, आज जो युवा मोदी की बातों से आकर्षित नजर आ रहे हैं, दिन गुजरने के साथ उनका साथ छोड़ेंगे, क्योंकि हर रैली में मोदी लगभग एक ही बात बोल रहे हैं. भाजपा मोदी की रैलियों में जुटी भीड़ को बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर रही है. दिल्ली रैली में दावा किया गया कि इसमें 5-7 लाख की भीड़ जुटी है, जबकि इसका दसवां हिस्सा भी इस रैली में उपस्थित नहीं था. अपनी बात को सही ठहराने के लिए भाजपा ने अपने ट्वीट में रामलीला मैदान में कांग्रेस के द्वारा की गयी रैली का फोटो लगा दिया. यह भाजपा की हताशा को दर्शा रहा है. कांग्रेस को हमेशा से युवाओं का समर्थन रहा है. आगे भी वे हमारे नीतियों, विचारों, से प्रभावित होकर हमारी सफलता में अहम योगदान देंगे.

नरेंद्र मोदी अपनी रैलियों में गुजरात के विकास की बात करते हैं. एक रैली में उन्होंने कहा,‘ मैंने अपना हिसाब गुजरात की जनता को दे दिया है. अब देश की जनता 2014 के चुनाव में कांग्रेस से अपना हिसाब मागेंगी.’ आपका क्या कहना है?
कांग्रेस ने देश की जनता से किये गये वादों को हमेशा पूरा किया है. हमने हाल ही में भूमि अधिग्रहण और खाद्य सुरक्षा कानून को पारित करवा कर जनता के साथ किये गये वादों को पूरा किया है. 2014 के चुनाव में मोदी को गुजरात के विकास के अपने झूठे दावों का जवाब देना होगा. बताना होगा कि गुजरात इतना पीछे क्यों हैं? स्वाभाविक है गुजरात के पीछे होने से देश की जनता खुश नहीं होगी, क्योंकि यह महात्मा गांधी और सरदार पटेल की धरती है. अभी रिजर्व बैंक ने एक दस्तावेज प्रकाशित किया है, उसके आंकड़ों पर गौर करें, तो देश के 28 राज्यों में गुजरात का नंबर 12वां है, जबकि छत्तीसगढ़ 25 वें और मध्य प्रदेश 26 वें स्थान पर है. गोवा नंबर एक पर जरूर है, लेकिन 2012 से पहले वहां भाजपा का नहीं, कांग्रेस का शासन था. गुजरात में पिछले 6 विधानसभा चुनावों से भाजपा का शासन रहा है. इसके बावजूद गुजरात प्रति व्यक्ति आमदनी के आंकड़ों के मामले में 10वें, आधारभूत संरचना में 11वें, स्वास्थ्य में 14वें और शिक्षा में 17वें स्थान पर पर है. भाजपा सच का सामना करने के बजाय इस सिद्धांत पर विश्वास करती है कि सच को छुपाने के लिए इतनी बार झूठ बोला जाये कि लोग उसे सच मानने लगें.

हालिया सर्वे केंद्र में कांग्रेस के बहुमत के करीब पहुंचने या सबसे बड़े दल के रूप में उभरने का संकेत नहीं देते. ऐसे में अपने विस्तार के लिए पार्टी की क्या रणनीति है, क्योंकि यूपीए के कई घटक दलों ने गंठबंधन का साथ छोड़ा है?
हम यह मान कर चल रहे हैं कि पिछले चुनाव से इस चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रहेगा और हमें समर्थन जुटाने में परेशानी नहीं होगी. वैसे भी बिहार में राबड़ी देवी का बयान आपने सुना होगा, जिसमें उन्होंने कहा है कि पिछले चुनाव में हमने कांग्रेस से गंठबंधन नहीं कर गलती की. कई अन्य ऐसे दल हैं जो पहले हमारे साथ थे, किसी कारणवश हमसे अलग हो गये. नये दल भी हैं. जदयू ने कहा है कि अक्तूबर के बाद फैसला करेंगे कि किस दल के साथ गंठबंधन करना है. कांग्रेस में एके एंटनी के नेतृत्व में एक समिति है, जो गंठबंधन के सवालों को तय करेगी. हमें गंठबंधन के लिए साथियों की कमी नहीं होगी और यह तय है हमारे पास देश को जोड़नेवाला गंठबंधन होगा, तोड़नेवाला नहीं.

क्या आगामी आम चुनाव राहुल गांधी बनाम मोदी के तौर पर सामने आयेगा?
देखिए, मुङो लगता है कि यह बहुत ही अपरिपक्व किस्म का सवाल है. हमारे देश में प्रेसिडेंशियल फॉर्म ऑफ इलेक्शन नहीं होता है. यहां तो सांसद-विधायक का चुनाव होता है. जो जनतंत्र को नहीं समझता है, वही ऐसी बात कहेगा कि दो लोगों और दो व्यक्तित्व के बीच का चुनाव है. कांग्रेस ने राहुल गांधी के नाम की घोषणा नहीं की है, लेकिन अगर ऐसा होता भी है तो मुङो नहीं लगता कि टकराहट की स्थिति होगी और यह चुनाव मोदी बनाम राहुल होगा. यह संसदीय प्रणाली का ही चुनाव होगा, प्रेसिडेंशियल चुनाव नहीं.

शकील अहमद

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