बिहार विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार चरम पर है और एनडीए के सबसे बड़े कैंपेनर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिल्ली में हैं. महागंठबंधन के नेता सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर मोदी बिहार का दौरा क्यों नहीं कर रहे हैं. आरोप यह भी लगाया जा रहा है कि मोदी ने पार्टी की खराब संभावनाओं के मद्देनजर 16 अक्तूबर की रैलियां रद्द कर दीं. हालांकि, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने साफ किया है कि मोदी की कोई रैली स्थगित या रद्द नहीं की गयी है, यह सिर्फ महागंठबंधन के नेताओं का दुष्प्रचार है. मोदी अब 25, 26 और 27 अक्तूबर को बिहार में लगातार तीन दिन प्रचार करनेवाले हैं.
इस दौरान वो कुल आठ रैलियों को संबोधित करेंगे. ये सभी रैलियां उन इलाकों में होने जा रही हैं, जहां तीसरे और चौथे चरण के मतदान 28 अक्तूबर और एक नवंबर को होनेवाले हैं. ऐसे में ठीक मतदान के पहले उन इलाकों में जाकर मोदी एनडीए के उम्मीदवारों के लिए मतदाताओं को लुभाने की कोशिश करेंगे. समय और चुनाव तारीखों का समीकरण तो एक तरफ, मोदी का इन दिनों बिहार नहीं आने का एक कारण और भी है. दरअसल, 13 अक्तूबर से नवरात्रि शुरू हुई है, जो 21 अक्तूबर तक जारी रहनेवाली है. नवरात्र के इस मौके पर मोदी मां जगदंबा की उपासना में जुट जाते हैं. उपासना का आलम ये रहता है कि मोदी इन नौ दिनों में अन्न नहीं खाते, यानी उपवास पर रहते हैं. अगर कुछ लेते हैं, तो सिर्फ पानी. मोदी के उपवास का ये सिलसिला चार दशकों से भी अधिक समय से जारी है. मोदी की नवरात्र के दौरान कोशिश ये होती है कि अगर संभव हो, तो इस दौरान बाहर कम से कम निकला जाये. हालांकि ऐसे कई मौके रहे हैं, जब मोदी को दौरे करने पड़े हैं, लेकिन इस दौरान भी मोदी का उपवास जारी रहता है.
पिछले साल अमेरिका में थे : पिछले साल नवरात्र के दौरान जब मोदी को पहले से तय संयुक्त राष्ट्र महासभा की सालाना बैठक में हिस्सा लेने के लिए अमेरिका जाना पड़ा था, तो वो नवरात्र का ही समय था. ऐसे में मोदी विदेश के उस दौरे में भी उपवास पर रहे. औपचारिकता के तौर पर व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भले ही मोदी के सम्मान में रात्रिभोज का आयोजन किया, लेकिन मोदी सिर्फ पानी पीते रहे, क्योंकि नवरात्र के समय उपवास रखने की अपनी आदत में वो कोई बदलाव नहीं करना चाह रहे थे, भले ही भोजन पर ओबामा ने ही क्यों न बुलाया हो. नवरात्र के मौके पर किये जाने वाले उपवास की चर्चा एक दफा खुद मोदी ने विस्तार से की थी. मौका था वर्ष 2011 का, जब गांधीवादी समाजसेवी अन्ना हजारे लोकपाल की मांग को लेकर दिल्ली में उपवास पर बैठे थे. नवंबर का पहला हफ्ता और नवरात्र का समय था.
ऐसे में मोदी ने अन्ना को एक चिट्ठी लिखी थी, जिसमें इस बात का जिक्र किया था कि जिस तरह अन्ना उपवास कर रहे हैं, उसी तरह वो भी फिलहाल उपवास पर हैं. उस पत्र में मोदी ने कहा था कि नवरात्र शक्ति की उपासना का सबसे बड़ा प्रतीक है और ऐसे में वो मां जगदंबा की आराधना में जुटे हुए हैं, उपवास के साथ. दरअसल मोदी की नवरात्र के समय उपवास करने की आदत इतनी पुरानी हो चुकी है कि उनके शरीर पर इसका कुछ खास असर नहीं दिखता. रोजाना का काम वैसे ही करते हैं, जैसे नवरात्र के पहले या बाद में. नवरात्र के दौरान शक्तिपीठों का दर्शन करने भी चले जाते हैं, कभी कामाख्या दर्शन, तो कभी अंबाजी दर्शन. नवरात्र के बाद विजयादशमी को मोदी शस्त्र पूजा भी करते हैं. बतौर गुजरात के मुख्यमंत्री, 2001 से 2014 के बीच हर विजयादशमी पर अपने सुरक्षाकर्मियों के साथ बैठ कर मोदी शस्त्रपूजा करते थे. प्रधानमंत्री के तौर पर दिल्ली पहुंचने के बाद भी मोदी ने उपवास का सिलसिला जारी ही रखा है, शस्त्रपूजा से भी परहेज बरतने का कारण नहीं. अंतर सिर्फ ये होगा कि गुजरात पुलिस और एनएसजी के जवानों की जगह एसपीजी के सुरक्षाकर्मियों के साथ शस्त्रपूजा करते नजर आयेंगे मोदी. मोदी के लिए शस्त्रपूजा भी शक्ति की उपासना का ही प्रतीक है.
मोदी को शक्ति की आवश्यकता है. बिहार के चुनाव सामने हैं. मोदी को भली-भांति पता है कि बिहार के चुनावों का असर किस तरीके से न सिर्फ बिहार, बल्कि देश की राजनीति पर भी पड़ेगा. ऐसे में शक्ति की उपासना नवरात्र के दौरान करने के बाद बिहार में अपनी पूरी ताकत लगायेंगे मोदी. उपासना बिहार के हिसाब से कितनी कारगर रहती है, ये तो आठ नवंबर को आनेवाले नतीजे ही बतायेंगे.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)
ब्रजेश कुमार सिंह
एडिटर-नेशनल अफेयर्स एबीपी न्यूज़