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बिचौलिये उठाते हैं लाभ

सरकार ने राज्य के अधिकतर जिलों को सुखाड़ घोषित कर दिया. स्थिति भी सुखाड़ वाली है, लेकिन किसानों को क्या मिला. अभी केंद्रीय टीम आयेगी, जायजा लिया जायेगा, उसके बाद जो मिलना होगा, मिलेगा. लेकिन अभी तो किसान भूखे मर रहे हैं. वहीं दूसरी ओर से सभी झंझावतों से लड़ते हुए यदि किसान फसल उपजाने […]

सरकार ने राज्य के अधिकतर जिलों को सुखाड़ घोषित कर दिया. स्थिति भी सुखाड़ वाली है, लेकिन किसानों को क्या मिला. अभी केंद्रीय टीम आयेगी, जायजा लिया जायेगा, उसके बाद जो मिलना होगा, मिलेगा. लेकिन अभी तो किसान भूखे मर रहे हैं. वहीं दूसरी ओर से सभी झंझावतों से लड़ते हुए यदि किसान फसल उपजाने में सफल रहे रहे, तो उसका उचित कीमत नहीं मिलेगा. अभी सरकार को किसानों के उत्पाद को लेने के लिए और कारगर नीति बनानी होगी.अधि प्राप्ति केंद्र व पैक्स दोनों की व्यवस्था को सुदृढ़ करना होगा.

बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है. यहां की 80 प्रतिशत आबादी अपने जीविकोपाजर्न के लिए कृषि एवं कृषि आधारित कार्यो पर निर्भर है. यहां का मौसम भी कृषि कार्यो के अनुकूल है. यहां की जलवायु खरीफ, रबी और गरमा तीनों के लिए उपयुक्त है. अब बिहार के किसान औषधीय खेती भी करने लगे हैं. किसानों के लिए केंद्र व राज्य सरकार के कई योजनाएं हैं. बैंक कम दर पर कर्ज देते हैं, फिर यहां के किसानों की स्थिति दयनीय है. ऐसे ही अनेक सवालों को लेकर सीवान के प्रगतिशील किसान हामिद खां से उमाशंकर राम की खास बातचीत :

आपकी नजर में किसानों की स्थिति क्या है?
राज्य के किसानों की स्थिति एक जुआरी की है. खेती एक जुआ है. कभी हार, तो कभी जीत होती है. और स्थिति से उबारने के लिए कोई स्थायी समाधान या व्यवस्था नहीं हो रही है. आज विज्ञान कहां-से-कहां पहुंच गया, फिर भी हम खेती के लिए मौसम पर ही निर्भर है. कहीं कोई सिंचाई की व्यवस्था नहीं है. सरकार से डीजल अनुदान मिल रहा है. कोई किसान उतने पैसे में कैसे फसल उपजा सकता है. यही कारण है कि आज खेती लाभकारी नहीं रह गयी है. खेती में लागत इतनी बढ़ गयी है कि छोटे और सीमांत किसानों को उनकी वास्तविक लागत भी नहीं मिल पाती. ऐसे में ज्यादातर किसान विकल्पहीनता के शिकार हैं. वे मजबूरी में खेती करते हैं. जैसे ही उन्हें बेहतर विकल्प मिलता है, वे खेती को छोड़ कर किसी अन्य कार्य में लग जाना चाहते हैं.

यहां तक कि वे कृषि मजदूर के रूप में काम कर अपने परिवार का भरण-पोषण करने की इच्छा रखते हैं, लेकिन खेती को लाभकारी नहीं मानते. यह तो छोटे किसानों की बात रही. जहां तक बड़े भूमिपतियों का सवाल है, तो वे ज्यादातर भूमि बंटाई पर लगा देते हैं. मंझोले किसान भी अपनी जरूरत के मुताबिक ही खेती करते हैं. इस तरह से देखा जाये, तो किसानों के देश में किसानों की अधिकतर आबादी बेहतर कल की तलाश में खेती-किसानी छोड़ रही है. जो लोग कर भी रहे हैं, वे सिर्फ इसलिए, क्योंकि उनके पास विकल्प नहीं है. यानी राज्य की अधिकतर आबादी वैसे काम में लगी है, जिससे उसे कोई मुनाफा नहीं होता. ऐसी स्थिति में किसान कैसे अच्छे रह सकते हैं. आज समाज में जिसकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होती, उसकी सामाजिक स्थिति भी अच्छी नहीं मानी जाती.

कृषि लागत कम हो और किसानों को लाभ हो, इसके लिए सरकार किसान को हर मौके पर मदद करती है, फिर ऐसी स्थिति क्यों हैं?
देखिए, सरकार किसान की मदद कर रही है. इससे इनकार नहीं है. सिंचाई के लिए डीजल अनुदान मिल रहा है. कृषि यंत्रों में भी अनुदान मिल रहा है. लेकिन यह कितने किसानों तक समय पर पहुंचता है यह जांच का विषय है. राज्य सरकार ने राज्य के अधिकतर जिलों को सुखाड़ घोषित कर दिया. स्थिति भी सुखाड़ वाली है, लेकिन किसानों को क्या मिला. अभी केंद्रीय टीम आयेगी, जायजा लिया जायेगा, उसके बाद जो मिलना होगा, मिलेगा. लेकिन अभी तो किसान भूखे मर रहे हैं. वहीं दूसरी ओर से सभी झंझावतों से लड़ते हुए यदि किसान फसल उपजाने में सफल रहे रहे, तो उसका उचित कीमत नहीं मिलेगा.

अभी सरकार को किसानों के उत्पाद को लेने के लिए और कारगर नीति बनानी होगी.अधिप्राप्ति केंद्र व पैक्स दोनों की व्यवस्था को सुदृढ़ करना होगा. बड़े किसानों को तो कुछ हद तक उत्पाद का समर्थन मूल्य मिल जाता है. लेकिन सबसे ज्यादा परेशानी छोटे किसानों को अपने उत्पाद बेचने में होती है. केंद्र समय पर नहीं खुलता. पैक्सों में धांधली, ट्रांसपोर्टिग का झंझट. इन सब कारणों के कारण आज भी ग्रामीण क्षेत्रोंमें जिसे बोल चाल की भाषा में बनिया कहा जाता है. उनका बर्चस्व है. वे छोटे किसानों के उत्पाद कम मूल्य दे कर खरीद लेते हैं.

अभी बिहार के किसान सुखाड़ से परेशान थे, अभी आयी चक्रवाती फैलीन का क्या असर है ?
किसान बड़े आशावादी होते हैं. यही कारण है कि हर बार लुटने के बावजूद खेती करने से बाज नहीं आते हैं. धान रोपने के समय वर्षा नहीं हुई. सभी बिचड़े सूख गये या धूप में झूलस गये. फिर भी किसान हारे नहीं और भले हीं कर्ज लेना पड़ा, मगर कुछ हद तक धान की खेती को बचा लिया. धान के फसल तैयार थे. धान की बाली पकने को थी. घर में नये-नये सपने संजाये जा रहे थे, तभी फैलिन ने अपना कहर बरपा दिया. आज धान के किसान ही नहीं, बल्कि ईंख, मक्के, अरहर आदि की खेती करने वाले रो रहे हैं. घरों में मातम है.

बैंक की योजनाओं को लाभ कितने किसानों तक पहुंच पाता है?
किसानों के लिए लगभग सभी बैंकों के पास योजनाएं हैं, लेकिन इनका अधिकतर लाभ बैंक कर्मचारी एवं बिचौलिये उठाते हैं. आये दिन बैंक कर्मचारी के घोटाला में शामिल होने की बात सामने आती रहती है. पूरी योजना पर बिचौलिये हावी हैं. किसी एक को अगर आसानी से कर्ज मिल गया, तो समझे वह भाग्यशाली है. हालांकि कृषि ऋृण योजनाएं किसानों के लिए काफी लाभप्रद है. उन्हें जरूरत के समय कम सूद पर कर्ज मिल जाते हैं. सरकार को इस पर ध्यान देने की जरूरत है. बैंक के वरीय अधिकरियों को भी अपने कर्मचारियों पर नजर रखना चाहिए, ताकि योजनाओं का लाभ सही व्यक्ति को समय पर पहुंच सके.

खेती के लिए कैसा हो जल प्रबंधन?
अच्छी और लाभकारी खेती के लिए जल प्रबंधन बेहद जरूरी है. ‘खेत का पानी खेत में और गांव का पानी गांव में.’ यह फॉमरूला किसानों को अपनाना चाहिए. बारिश के पानी को यों ही बरबाद नहीं होने देना चाहिए. खेतों में फसल नहीं लगी होने की स्थिति में भी यदि मेढ़ बांध कर खेतों में पानी जमा करते हैं, तो मिट्टी के अंदर पानी जाकर लाभ पहुंचायेगा. आसपास के जल को रिचार्ज करेगा. निचले स्तर की जमीन पर तालाब भी बनवाना चाहिए, ताकि जरूरत पर फसल की सिंचाई में यह पानी उपयोगी साबित हो सके. बारिश का पानी जमा करने और बचाने की प्रवृत्ति होगी, तो यह खेती और पशुपालन के लिए लाभकारी होगा. ईंट बनाने के लिए खेत से मिट्टी काट रहे हैं, तो यह ध्यान रखना चाहिए कि सभी खेतों की मिट्टी नहीं काट कर एक ही खेत की आठ फीट तक मिट्टी निकाल ली जाये. इसे तालाब का रूप देकर मछलीपालन किया जा सकता है. सभी खेतों की मिट्टी काटने से उपजाऊ मिट्टी बरबाद होगी. तालाब बनने से मछलीपालन भी होगा और ग्राउंड वाटर रिचार्ज भी होगा.

सरकार कृषि यांत्रिकीकरण को बढावा दे रही है, इससे किसानों को कितना लाभ है?
आज मजदूरों की बहुत कमी हो रही है. मजदूर खेत के कामों नहीं लगना चाहते हैं. खेती में मशीनों का प्रयोग लाभकारी है. इससे कृषि मजदूरों की समस्या दूर होती है, वहीं समय की भी बचत होती है. समय पर खेती होने से अधिक उत्पादन मिलता है. राज्य में यांत्रिकीकरण को बढ़ावा देने के लिए सरकार योजनाएं चला रही है. कृषि यंत्रों की खरीद पर सरकार 30 से 90 प्रतिशत तक अनुदान उपलब्ध करा रही है. अनुदानित दर पर कृषि यंत्र खरीदने के लिए राज्य स्तर से लेकर जिला स्तर तक कृषि यांत्रिकीकरण मेला का आयोजन किया जाता है.

कृषि यंत्रों पर अनुदान के लिए बजट बढ़ाये जा रहे हैं. अनुदान मिलने से राज्य में काफी संख्या में किसान फसल काटने वाली मशीन कंबाइन हार्वेस्टर की खरीद कर रहे हैं. कृषि यंत्रों पर अनुदान के लिए 300 करोड़ से अधिक के बजट का प्रावधान किया जाता है. सरकार ने पैडी ड्रम सीडर व पैडी ट्रांसप्लांटर को प्रोत्साहित करने के लिए योजना शुरू की है. समय पर धान की रोपनी होने से गेहूं की खेती भी समय से हो सकेगी.

सरकार खेती के लिए किसानों को विशेष रूप से बिजली आपूर्ति कर रही है, इसका किसान कितना लाभ उठा रहे हैं. सरकार के प्रयास से कुछ गांवों में बिजली पहुंची है और किसानों को लाभ भी मिल रहा है.कम खर्च में सिंचाई के लिए बिजली महत्वपूर्ण है. कृषि रोड मैप में यह प्रावधान किया गया है कि किसानों को चरणबद्ध तरीके से खेती के लिए पर्याप्त बिजली उपलब्ध करायी जायगी.

इसके लिए अलग से डेडिकेटेड फीडर लगाने का भी प्रावधान किया गया है. लेकिन यह सब कागजों में ही सीमित है. यदि किसानों पर्याप्त बिजली मिलने लगे, तो समय पर फसलों की सिंचाई हो सकेगी, तो उत्पादन अधिक मिलेगा. बिजली उपलब्ध रहे, तो किसान एक साल में दो की जगह तीन फसल पैदा कर सकेंगे. हाल के दिनों में सरकार ने किसानों के लिये पांच घंटे विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करने की घोषणा की थी. इससे थोड़ा बहुत फायदा हुआ हैे. शायद ही कभी पांच घंटे लगातार बिजली मिल पा रही है. सरकार को खेती के लिए कम-से-कम 12 घंटे निर्वाध बिजली देनी चाहिए.

हामिद खां

सीवान जिले के लहेजी गांव के प्रगतिशील किसान

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