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हवा से मुफ्त में हासिल होगी बिजली!
मानवता को पर्यावरण प्रदूषण के भयावह परिणामों से बचाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा तकनीक पर पूरी दुनिया में खासा जोर दिया जा रहा है. हालांकि सौर और पवन ऊर्जा हासिल करने की प्रक्रिया इतनी महंगी है कि अब तक इन माध्यमों से ज्यादा बिजली उत्पादन शुरू नहीं हो पाया है. इस बीच हवा से मुफ्त […]
मानवता को पर्यावरण प्रदूषण के भयावह परिणामों से बचाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा तकनीक पर पूरी दुनिया में खासा जोर दिया जा रहा है. हालांकि सौर और पवन ऊर्जा हासिल करने की प्रक्रिया इतनी महंगी है कि अब तक इन माध्यमों से ज्यादा बिजली उत्पादन शुरू नहीं हो पाया है.
इस बीच हवा से मुफ्त में बिजली हासिल करने की एक नयी तकनीक के बारे में दुनियाभर में कौतूहल पैदा हुआ है. कैसी है हवा से बिजली हासिल करने की यह तकनीक, क्या है इससे जुड़े विशेषज्ञों का दावा और क्या कहते हैं अन्य वैज्ञानिक, साथ ही हवा से बिजली हासिल करने की कुछ अन्य तकनीकों के बारे में पढ़ें आज के नॉलेज में…
दिल्ली : आज दुनियाभर में ऊर्जा हासिल करने के लिए तरह-तरह के तरीके आजमाये जा रहे हैं. खासकर धरती को पर्यावरण प्रदूषण से बचाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा तकनीक पर विशेष जोर दिया जा रहा है.
धरती पर जीवाश्म ईंधन का भंडार सीमित है और सौर एवं पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का विकास सही तरीके से अब तक नहीं हो पाया है, ताकि जरूरत के मुताबिक बिजली का उत्पादन किया जा सके. ऐसे में हवा से मुफ्त में बिजली बनाने जैसी काल्पनिक कहानियों पर आधारित कुछ फिल्में लोगों में कुछ देर के लिए ही सही, एक उम्मीद जगाती रही हैं. हालांकि कुछ वैज्ञानिक इस काल्पनिक कहानी को हकीकत में तब्दील करने के लिए लंबे अरसे से जुटे थे. इसी कड़ी में अब ब्रिटेन से एक खबर आयी है, जिससे हवा से मुफ्त बिजली मिलने की उम्मीद बढ़ गयी है. कारोबारी एवं पूर्व वैज्ञानिक लॉर्ड ड्रेसन को इस संदर्भ में कुछ हद तक कामयाबी मिली है.
‘बीबीसी’ की रिपोर्ट के मुताबिक, ड्रैसन ने हाल ही में लंदन के रॉयल इंस्टीट्यूशन में एक ऐसी तकनीक का प्रदर्शन किया है, जिससे हवा से बिजली बनायी जा सकती है. उनका दावा है कि फ्रीवोल्ट नामक यह टेक्नोलॉजी हवा में मौजूद तरंगों की ऊर्जा को इस्तेमाल कर बहुत कम ऊर्जा से चलनेवाले उपकरणों- जैसे सेंसरों आदि, को बिजली मुहैया करा सकती है.
असल में इस टेक्नोलॉजी में हवा में 4जी और डिजिटल टेलीविजन की रेडियो तरंगों की ऊर्जा का इस्तेमाल होता है. लॉर्ड ड्रेसन के हवाले से इस रिपोर्ट में बताया गया है कि यह दुनिया की पहली ऐसी तकनीक है, जिसके लिए किसी अतिरिक्त बुनियादी ढांचे की जरूरत नहीं है. इसके लिए अतिरिक्त ऊर्जा प्रसारित करने की जरूरत नहीं होती है. दरअसल, यह ऐसी ऊर्जा को रिसाइकिल करता है, जो इस्तेमाल से बची रह जाती है. उल्लेखनीय है कि जिस रॉयल इंस्टीट्यूट में इस तकनीक का प्रदर्शन किया गया है, वहां माइकल फैराडे ने 19वीं शताब्दी में विद्युत चुंबकत्व पर काम किया था.
फ्रीवोल्ट
लॉर्ड ड्रेसन ने पहले यह प्रदर्शित किया कि कमरे में कितनी रेडियो फ्रीक्वेंसी है और इसके बाद उन्होंने एक लाउडस्पीकर को चलाने के लिए फ्रीवोल्ट का इस्तेमाल किया. उन्होंने एक पर्सनल पॉल्यूशन मॉनीटर क्लीनस्पेस टैग के संचालन के जरूरतभर बिजली पैदा करने का प्रदर्शन किया.
यह पॉल्यूशन मॉनीटर ड्रेसन टेक्नोलॉजीज द्वारा एक अभियान के तहत बनाया गया है, ताकि शहरों में वायु गुणवत्ता को सुधारा जा सके और लोगों को प्रदूषण के स्तर की जानकारी दी जा सके. इस उपकरण में एक बैट्री होती है, जो फ्रीवोल्ट के माध्यम से रिचार्ज होती रहती है. इस तकनीक का पेटेंट भी कराया गया है. कई स्थानों पर अब इसका इस्तेमाल किया जा सकता है, जहां अगले चरण की इंटरनेट सुविधाओं की तैयारी चल रही है. आखिर ड्रेसन ने परीक्षण के लिए पर्सनल पॉल्यूशन मॉनीटर क्लीनस्पेस टैग को ही क्यों चुना.
‘द गार्डियन’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि लंदन में रहनेवाले ड्रेसन अस्थ्मा से प्रभावित हैं और महानगरों में वायु प्रदूषण के खतरों के बारे में लोगों को वे आगाह करना चाहते हैं. इसलिए हवा से ही ऊर्जा हासिल करके संचालित इस डिवाइस को उन्होंने विकसित किया है.
दूसरा पहलू
हालांकि, डिसरप्टिव एनॉलीसिस के संस्थापक और तकनीकी विशेषज्ञ डीन बब्ले फ्रीवोल्ट को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं हैं. उनका मानना है कि वायु प्रदूषण सेंसर का विचार तो दिलचस्प है, लेकिन इसके लिए फ्रीवोल्ट की जरूरत को वे तर्कसंगत नहीं मान रहे हैं. उनका कहना है कि एक बैट्री और बहुत कम ऊर्जावाले ट्रांसमीटर से भी यह काम हो सकता है.
डीन बब्ले का कहना है कि इस सिस्टम को विकसित करने पर इसका असर मोबाइल नेटवर्क पर भी पड़ सकता है और अभी इस तथ्य को जांचना शेष है. दरअसल, माना जा रहा है कि बिजली पैदा करने के लिए फ्रीवोल्ट जिसका इस्तेमाल कर रहा है, वह एक तरह से मोबाइल का ही स्पेक्ट्रम है. डीन बब्ले का कहना है कि जिसे ‘मुफ्त ऊर्जा’ कहा जा रहा है, हो सकता है कि वह संचार कार्यों के लिए जरूरी हो. अब तक यह नहीं स्पष्ट हो सका है कि इस सिस्टम से मोबाइल का स्पेक्ट्रम कहां तक प्रभावित होगा, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यदि ऐसा होगा, तो इसके लिए नये सिरे से नीतियां तय करनी होंगी.
रिपोर्ट के मुताबिक, डीन बब्ले ने लॉर्ड ड्रेसन को बताया है कि इसके लिए मोबाइल नेटवर्क मुहैया करानेवाले फीस भी मांग सकते हैं. हालांकि, फिलहाल उन्हें भरोसा है कि इसका कोई कानूनी आधार नहीं है और वे इस इस तकनीक को एक बड़ी उपलब्धि मान रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि उद्योग जगत इसकी सराहना करेगा, क्योंकि इसके लिए अलग से ढांचा बनाने की जरूरत नहीं है. हालांकि, इस तरह के प्रयास पूर्व में भी हो चुके हैं, लेकिनव्यावसायिक रूप से टिकाऊ तकनीक विकसित करने में अब तक कारगर सफलता नहीं मिल पायी है.
हवा से ऊर्जा हासिल करेगा बैट्री-फ्री मोबाइल डिवाइस
वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के इंजीनियरों ने एक नये वायरलेस कम्युनिकेशन सिस्टम का इजाद किया है, जिसके माध्यम से इस सिस्टम के डिवाइस बिना किसी तारयुक्त पावर या बैट्री के संचार कायम करने में सक्षम पाये गये हैं. शोधकर्ताओं का कहना है कि यह नयी तकनीक टीवी और सेल्युलर ट्रांसमीशन के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकती है. इसमें सिगनल पैदा करते हुए दो डिवाइस आपस में सूचनाओं का आदान-प्रदान करने में सक्षम पाये गये हैं.
‘एनर्जी हारवेस्टिंग जर्नल’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने एंटिनायुक्त एक छोटा सा बैट्री-फ्री डिवाइस बनाया है, जो टीवी सिगनल को डिटेक्ट कर सकता है. इस तकनीक के तहत ऊर्जा हासिल करने के लिए ऐसा नेटवर्क बनाया गया है, जो स्वयं हवा से इसे हासिल करेगा. यानी अलग से किसी प्रकारी ऊर्जा की दरकार नहीं होगी.
वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के कंप्यूटर साइंस व इंजीनियरिंग के प्रोफेसर और इस शोधकार्य का नेतृत्व करनेवाले श्याम गलकोटा का कहना है,’हमारे आसपास मौजूद जो वायरलेस सिगनल्स हैं, हमारी कोशिश है कि हम उसे ऊर्जा और संचार का माध्यम बनायें. स्मार्ट होम्स और सेल्फ -सस्टेनिंग सेंसर नेटवर्क में इस एप्लीकेशन के लागू हो पाने की उम्मीद है.’ इसी यूनिवर्सिटी के कंप्यूटर साइंस व इंजीनियरिंग विभाग के एक अन्य प्रोफेसर और इस रिपोर्ट के सह-लेखक जोशुआ स्मिथ का कहना है,’हमारा डिवाइस थिन एयर यानी हवा की पतली परत के बीच एक नेटवर्क कायम करता है. संचार के मोर्स कोड का सृजन करते हुए बैट्री-फ्री डिवाइसों के बीच सिगनल्स को भेजा जा सकता है.’
किसी भी स्ट्रक्चर में स्थायी रूप से स्मार्ट सेंसर्स को लगाया जा सकता है और उन्हें आपस में जोड़ते हुए संचार कायम किया जा सकता है.
उदाहरण के तौर पर किसी पुल में सेंसर लगाने पर वह कंक्रीट और स्टील की सेहत की निगरानी करता है. पुल के ढांचे में कहीं भी दरार आने पर सेंसर उसे समझ लेता है और अलर्ट जारी करता है. संचार के लिए भी इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकता है. शोधकर्ताओं ने क्रेडिट कार्ड के आकारवाले इसके प्रोटोटाइप का परीक्षण किया है. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें किसी बाहरी ऊर्जा की जरूरत नहीं होती यानी इसके संचालन के लिए जरूरी ऊर्जा का सृजन यह खुद करता है.
यह तकनीक उन डिवाइसों के लिए भी ज्यादा उपयोगी है, जो बैट्री से ऊर्जा हासिल करते हैं- जैसे स्मार्टफोन्स. स्मार्टफोन की बैट्री पूरी तरह से डिस्चार्ज होने के बावजूद हवा में आसपास मौजूद टीवी सिगनल से ऊर्जा हासिल करते हुए टेक्स्ट मैसेज भेजा जा सकता है. शोधकर्ताओं को इस तकनीक में असीम संभावनाएं दिख रही हैं और उन्हें उम्मीद है कि इसकी क्षमता को रेंज को काफी बढ़ाया जा सकता है.
पवन ऊर्जा से दुनिया को
रोशन करने के लिए पर्याप्त है हवा
जीवाश्म ईंधनों के खत्म हो रहे भंडार और ऊर्जा संकट से जूझ रही दुनिया को रोशन करने के लिए हवा ही काफी है. वैज्ञानिकों का दावा है कि यदि इस क्षेत्र में व्यापक निवेश किया जाये, तो हवा से ही पूरी दुनिया को रोशन किया जा सकता है.
अमेरिका की नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस के मुताबिक, पवन चक्की से कई सौ टेट्रावॉट बिजली पैदा की जा सकती है, जो पूरी दुनिया को रोशन करने के लिए काफी है. इस रिपोर्ट को तैयार करनेवाले मार्क जेकोब्सन का कहना है कि इसके लिए समुद्र के किनारे करीब डेढ़ अरब विंड टरबाइन को इंस्टॉल करना होगा.
हालांकि, पिछले एक दशके दौरान अनेक देशों ने पवन ऊर्जा के क्षेत्र में काफी निवेश किया गया है, लेकिन इस क्षेत्र में मौजूदा संभावनाओं और दुनियाभर में ऊर्जा की जरूरत को देखते हुए काफी कम है. मौजूदा समय में दुनिया में पवन ऊर्जा से महज 250 गीगावॉट बिजली है पैदा हो रही है, जो दुनिया में कुल ऊर्जा की खपत का सौवां हिस्सा होगा. जेकोब्सन का मानना है कि वर्ष 2030 तक दुनिया की ऊर्जा जरूरत का आधा हिस्सा भी पूरा करने के लिए लगभग 40 लाख मेगावॉट टरबाइन की जरूरत पड़ेगी. उनका कहना है,’इस समय पूरी दुनिया में हर वर्ष 7-8 करोड़ कारें बनायी जा रही हैं. जबकि ऊर्जा हासिल करने के लिए विंड टरबाइनों के निर्माण पर ज्यादा जोर नहीं दिया जा रहा है.
हालांकि, अमेरिका के ऑरगोने नेशनल लेबोरेटरी में ऊर्जा पर शोध करनेवाले ऑडेन बोटर्ड का कहना है कि पैसे के निवेश के अलावा इसमें दूसरी समस्या हवा की गति की भी है. बोटर्ड का मानना है कि हवा की बदलती गति समस्या पैदा कर सकती है और इसे कम करके नहीं आंका जाना चाहिए.
हवा से बिजली हासिल करनेवाला इलेक्ट्रोमैग्नेटिक हारवेस्टर
जर्मनी के एक छात्र ने हाल ही में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक हारवेस्टर का निर्माण किया है, जो हवा में पर्यावरण विकिरण को सोख कर ऊर्जा हासिल करता है, जिससे बैट्री को रिचार्ज किया जाता है. ‘एक्सट्रीम टेक’ की रिपोर्ट के मुताबिक, यह हारवेस्टर ओवरहेड पावर लाइंस से तो बिजली हासिल करता ही है, कॉफी मशीन, रेफ्रीजरेटर और यहां तक कि स्मार्टफोन या वाइफाइ राउटर के उत्सर्जन से निकलने वाली फ्री इले्ट्रिरसिटी को भी एकत्रित करता है.
यूनिवर्सिटी ऑफ आर्ट्स ब्रेमेन के छात्र डेनिस स्लीगल ने इस सिस्टम को विकसित किया है. हालांकि, इसकी तकनीक के बारे में रिपोर्ट में विस्तार से नहीं बताया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक, स्पीगल किसी इले्ट्रिरकल इंजीनियर के साथ काम कर रहे हैं और शायद वे नहीं चाहते होंगे कि इसकी तकनीक को फिलहाल किसी से साझा किया जाये, क्योंकि वे इसका पेटेंट हासिल करना चाहते होंगे.
माना जा रहा है कि स्लीगल के इलेक्ट्रोमैग्नेटिक हारवेस्टर का कॉन्सेप्ट बहुत दिलचस्प है. एक सिंगल हारवेस्टर अपनेआप में ज्यादा दिलचस्प नहीं है, लेकिन जब आप कई हारवेस्टर को एकसाथ इस मकसद से काम में लाते हैं, तो यह कमाल की चीज बन सकती है.
खासकर उन छोटे उपकरणों के लिए, जिसमें कम ऊर्जा की जरूरत होती है, उसके लिए तो यह हारवेस्टर कमाल है ही. छोटे उपकरणों के लिए यह हारवेस्टर पर्यावरण से मुफ्त में ऊर्जा हासिल कर सकता है. हालांकि, इससे संबंधित कुछ सवाल भी हैं, जिनका जवाब तलाशना होगा. पर्यावरण में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन कितनी तादाद में उपलब्ध है? क्या इससे संबंधित कंपनियों के सिस्टम पर कोई असर होगा? वायरलेस आधारित अन्य सेवाओं पर इसका क्या असर हो सकता है? इन सबका जवाब भी तलाशना होगा.
रिपोर्ट में यह उम्मीद जतायी गयी है कि यदि ये समस्याएं इसकी राह में बाधा बन कर नहीं आयेंगी, तो निश्चित तौर पर यह तकनीक दुनियाभर में ऊर्जा हासिल करने की दिशा में एक नयी क्रांति का आगाज कर सकती है.
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