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ट्रेन लेट, युवाओं का हुजूम और अपने-अपने चुनावी गणित

समय : रात के 9.15 बजे, स्थान : लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन का प्लेटफॉर्म नंबर 6. चारों तरफ सिर्फ युवा ही युवा, फुटओवर ब्रिज से लेकर प्लेटफार्म तक खचाखच भीड़. नौजवानों की भीड़. बगल में खड़े एक युवक से पूछा तो उसने बताया कि एफसीआइ और बैंक की परीक्षा थी. इसी बीच एनाउंसमेंट होता […]

समय : रात के 9.15 बजे, स्थान : लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन का प्लेटफॉर्म नंबर 6. चारों तरफ सिर्फ युवा ही युवा, फुटओवर ब्रिज से लेकर प्लेटफार्म तक खचाखच भीड़. नौजवानों की भीड़. बगल में खड़े एक युवक से पूछा तो उसने बताया कि एफसीआइ और बैंक की परीक्षा थी. इसी बीच एनाउंसमेंट होता है. 12392 श्रमजीवी एक्सप्रेस दो घंटे की देरी से आने वाली है. रेलवे अपने परंपरागत अंदाज में यात्रियों से खेद प्रकट कर रहा है.
छात्रों के एक ग्रुप से आवाज आयी-अब इनके खेद को कहा रखें. दो घंटे बता रहे हैं, तीन घंटे से पहले आयेगी नहीं ट्रेन. बेंच पर बैठे-बैठे पसीना पोंछ रहे विकास कुमार आनंद सुपौल के हैं और पटना में तैयारी कर रहे हैं, लखनऊ एफसीआइ की परीक्षा देने आए थे. मैंने पूछा, इस बार बिहार में किसकी सरकार बनते देख रहे हैं.
पूरी दिलचस्पी के साथ कहते हैं, कांटे की टक्कर है. इतना तय है कि पूर्ण बहुमत किसी को नहीं मिलने जा रहा. मेरा सवाल, क्यों भई ऐसा क्यों? वह कहते हैं देखिए महागंठबंधन में लालू के साथ मुसलिम, यादव वोट बैंक है, जो कहीं और वोट नहीं करेगा, इसी तरह से सवर्ण और पचपनिया सीधे-सीधे भाजपा को वोट करेंगे. बिहार में मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश का कोई ऑप्शन नहीं है, इसलिए उन्हें भी इस इमेज का फायदा शर्तिया मिलेगा. वहीं प्रदेश की आधी आबादी महिलाओं की है, और उनके बीच नीतीश काफी लोकप्रिय हैं. मेरा सवाल, ओवैसी और पप्पू यादव फैक्टर, क्या ये कुछ कर पायेंगे? विकास कहते हैं, नहीं. ये अगले चुनाव या दस साल बाद कुछ कर सकते हैं, लेकिन आज तो मुसलिम और यादव सिर्फ लालू के ही साथ हैं.
हमारे बगल में बैठे पंकज कुमार गया में बीए तीसरे वर्ष के छात्र हैं, एफसीआइ की परीक्षा देने आये थे. हमारी बातें ध्यान से सुन रहे थे, मैंने पूछा, आपका क्या कहना है तो पहले बोले भाजपा की सरकार बन रही है, फिर थोड़ा हिचकिचाए और बोले वैसे कांटे की टक्कर है, कुछ भी हो सकता है. युवाओं में सिर्फ मोदी का नहीं, नीतीश का भी क्रेज है. क्षेत्र के हिसाब से युवाओं की विचारधारा बदल जाती है. गया में जहां युवा भाजपा की तरफ दिखेंगे, वहीं नालंदा चले जाइए, वहां जेडीयू के समर्थक ज्यादा मिलेंगे.
इसी बातचीत में तीन घंटे का समय कैसे बीत गया पता ही नहीं चला. और जैसा कि छात्रों के ग्रुप ने अंदाजा लगाया था, ठीक तीन घंटे इंतजार के बाद रात 12.15 पर ट्रेन आई. इसमें भी पांच मिनट पहले एनाउंसमेंट किया गया कि प्लेटफार्म में तब्दीली की गयी है, ट्रेन आज प्लेटफार्म नंबर दो पर आयेगी. हजारों की संख्या में लोग तेजी से प्लेटफार्म नंबर 6 से 2 की तरफ भागे. हम ट्रेन में सवार हो गये. रास्ते में बाथरूम के पास किसी तरह खुद को टिकाए लड़के खड़े मिले.
उनसे बातचीत शुरू हुई. इन्हें बक्सर जाना था. इन्हीं में से एक रमेश कुमार ने बताया कि देखिए नीतीश कुमार के बराबर काम बिहार में किसी ने नहीं कराया. हम छोटे थे, तो जब भी बुआ के घर पटना जाते थे तो रात वहीं रुकना पड़ता था, अगले दिन सुबह ही हम बक्सर लौट पाते थे, लेकिन अब हम कभी भी वापस आ सकते हैं. रमेश कुमार के दोस्त राधेकृष्ण उन्हीं से सवाल करते हैं, ये बात सही है तो फिर लालू के साथ नीतीश क्यों चले गए? नीतीश ने इतना काम किया था तो उन्हें खुद पर ही विश्वास होना चाहिए था. रमेश तपाक से बोलते हैं, लड़े तो थे लोकसभा में, रिजल्ट क्या मिला?
राधेकृष्ण कहते हैं, सब जानते हैं कि लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में अंतर होता है. बिहार में नीतीश के टक्कर का मुख्यमंत्री और किसी को देखते हो क्या? आज वह लालू के साथ खड़े हैं, हम उन पर भरोसा कैसे करें. रमेश बस इतना कहते हैं कि अब वैसी बात नहीं है. इस यात्र के दौरान दिलचस्प बात ये रही कि तीन घंटे लेट लखनऊ पहुंचने वाली श्रमजीवी सुबह तीन घंटे लेट ही सवा 10 बजे पटना स्टेशन पर पहुंची. जाहिर है लखनऊ और पटना के बीच के 500 किलोमीटर की दूरी उसने बिना लेट हुए पूरी की.

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