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नालंदा : दबदबा कायम रखने की जुगत में नीतीश
मिथिलेश लोकसभा चुनाव में विपरीत परिस्थितियों में भी जदयू की लाज नालंदा ने बचायी थी. इस बार के चुनाव में भी नीतीश कुमार की प्रतिष्ठा गृह जिले नालंदा में दावं पर है. अपने दो मौजूदा विधायक राजीव रंजन और डॉ सुनील के भाजपा में चले जाने के बाद जदयू ने चुनावी जीत के लिए इस […]
मिथिलेश
लोकसभा चुनाव में विपरीत परिस्थितियों में भी जदयू की लाज नालंदा ने बचायी थी. इस बार के चुनाव में भी नीतीश कुमार की प्रतिष्ठा गृह जिले नालंदा में दावं पर है. अपने दो मौजूदा विधायक राजीव रंजन और डॉ सुनील के भाजपा में चले जाने के बाद जदयू ने चुनावी जीत के लिए इस बार फुल प्रुफ व्यवस्था की है.
भाजपा जहां अपने सहयोगी दलों के साथ मुख्यमंत्री को उनके घर में ही घेरने की रणनीति बना रही है. इसके लिए नये समीकरण गढ़े जा रहे हैं. भाजपा ने जिले से आने वाले सत्ताधारी दल जदयू के दो सीटिंग विधायकों को अपने पाले में कर मनौवैज्ञानिक दबाव बनाने की कोशिश की है. वहीं इसलामपुर की चर्चित सीट पर यादव उम्मीदवार को उतार कर जदयू की राह में कांटे बो दिये हैं. नालंदा नीतीश कुमार का गृह जिला रहा है. यहां विधानसभा की कुल सात सीटें हैं. महागंठबंधन में सीटों के बटवारे में जदयू के पास छह सीटें रह गयी हैं.
जबकि एकमात्र सीट हिलसा राजद के खाते में गयी है. 2010 के विधानसभा चुनाव में जब भाजपा और जदयू में समझौता था, राजगीर (सु) सीट पर भाजपा के उम्मीदवार सत्यदेव नारायण आर्य चुनाव जीते थे. बाकी की सभी छह सीटों पर जदयू का परचम लहराया था. इस बार परिस्थितियां बदली हुई हैं.
भाजपा राजगीर के अलावा अन्य सीटों पर भी नजर टिकाये हुए है. पार्टी ने यहां से नालंदा, इसलामपुर, राजगीर(सु), बिहारशरीफ में अपने उम्मीदवार के नामों की घोषणा कर चुकी है. हरनौत और अस्थावां के लिए उम्मीदवारों के नाम पर अभी जिच कायम है. हिलसा की सीट लोजपा को दी गयी है.
जिले की सात विधानसभा सीटों में कम से कम चार पर जदयू ने मजबूत किलेबंदी कर ली है. बाकी की तीन में राजगीर(सु) और इसलामपुर में भाजपा के साथ कांटे की टक्कर की उम्मीद की है.
मुकाबले को त्रिकोणात्मक बनाने के लिए वाम दल और सपा व राकांपा तथा जन अधिकार पार्टी मैदान में उतर चुकी है. नालंदा की सीट पर 1995 से लगातार चुनाव जीत रहे श्रवण कुमार की इस बार टक्कर भाजपा के कौशलेंद्र कुमार से है. 2010 के विधानसभा चुनाव में श्रवण कुमार को 58067 वोट आये थे. उनके मुकाबले दूसरे स्थान पर रहे राजद उम्मीदवार को 37029 वोट आये. इस बार जदयू और राजद महागंठबंधन के सहयोगी हैं.
जानकारों के मुताबिक महागंठबंधन के आधार वोट कुरमी, यादव और मुसलमान वोट निर्णायक स्थिति में है. कोइरी मतदाताओं पर भाजपा की नजर है. इस सीट पर पूर्व विधायक रामनरेश सिंह के भी उम्मीदवार बनने की संभावना है. रामनरेश सिंह और भाजपा प्रत्याशी के आधार वोट कमोबेश एक ही माने जा रहे हैं. ऐसे में त्रिकोणात्मक मुकाबले का रोचक नजीता निकल सकता है.
राजगीर सीट पर आठ बार से चुनाव जीत रही भाजपा की प्रतिष्ठा फंसी है. सत्यदेव नारायण आर्य को विधानसभा में पहुंचने से रोकने के लिए महागंठबंधन मजबूत उम्मीदवार की तलाश में है.
इसलामपुर विधानसभा सीट पर इस बार जदयू की प्रतिष्ठा दावं पर है. 2010 के चुनाव में जदयू को यहां भारी सफलता मिली थी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले राजीव रंजन को जदयू के टिकट पर जीत हासिल हुई थी. लेकिन, धीरे-धीरे प्रदेश की राजनीतिक तसवीर बदलती गयी तो इसलामपुर भी इससे अछूता नहीं रह गया. कभी नीतीश कुमार के खास माने जाने वाले राजीव रंजन ने पाला बदला और उनकी दूरियां जदयू से बढती गयी.
मांझी सरकार बनने के बाद वह तत्कालीन सीएम जीतन राम मांझी के करीब होते गये. चुनाव से पहले वह भाजपा में शामिल हो गये.राजीव रंजन पहले जदयू विधायक थे जिन्होंने भाजपा की सदस्यता हासिल की. लेकिन, भाजपा ने उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया. भाजपा ने यहां 2010 क ेचुनाव में दूसरे स्थान पर रहे राजद प्रत्याशी वीरेंद्र गोप को अपना उम्मीदवार घोषित किया है.
जानकारों के मुताबिक इसलामपुर मे ंयादव मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है. भाजपा ने इन्हीं वोटरों को ध्यान में रखा कर अंतिम क्षणों में यादव उम्मीदवार उतारे हैं. वैसे भी, इसलामपुर में सबसे अधिक कुरमी मतदाता हैं. भाजपा की नजर सवर्ण, दलित और महादलित तथा यादव मतदाताओं पर टिकी है.
इनके अलावा वैश्य और कुरमी मतदाताओं के बड़े हिस्से को अपनी ओर मोड़ने की कोशिश कर रही है. दूसरी ओर जदयू को यादव मतदाताओं के साथ और नीतीश कुमार की छवि पर पूर्ण भरोसा है. ऐसी स्थिति में जदयू हर हाल मे इस सीट पर कब्जा बरकरार रखने की जुगत लगा रहा है.
इसी प्रकार बिहारशरीफ, अस्थावां, हिलसा और हरनौत में एनडीए और महागंठबंधन में कांटे की टक्कर होने की संभावना है. हिलसा की सीट महागंठबंधन में राजद को दी गयी है. 2010 के चुनाव में यहां से जदयू की उषा सिन्हा जीती थीं.
इस बार यह सीट राजद को चली गयी है. हालांकि उम्मीदवार चयन को लेकर राजद में भी एकमत नहीं हो पाया है. बावजूद इसके राजद को यहां आधार वोट यादव और मुसलिम मतदाताओं पर भरोसा है. नीतीश कुमार की स्थानीयता का लाभ और माय समीकरण के साथ कुरमी मतदाताओं के साथ महागंठबंधन अपने को बेहतर
मानता है.
एनडीए में यह सीट लोजपा को दी गयी है. नीतीश कुमार का गृह क्षेत्र हरनौत में भी रोचक मुकाबले के आसार हैं. यह जदयू का मजबूत किला रहा है. जदयू इस बार अपनी परंपरागत सीट को बचाये रखने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेगा. वहीं भाजपा यहां नये उम्मीदवार उतार कर जदयू को पटखनी देने की रणनीति बना रही है.
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