दक्षा वैदकर
सुधीर बहुत मेहनती युवक था. उसके काम से सभी खुश थे, सिवाय उसके बॉस के. न जाने क्या कारण था, लेकिन वे उसे पसंद नहीं करते थे. एक दिन जब वे ऑफिस आये, तो उन्होंने देखा कि सुधीर अपनी जगह पर नहीं है. सभी ने बताया कि उसका कोई परिचित आया है.
वह उन्हें लेने स्टेशन गया है. अब बॉस का गुस्सा सातवें आसमां पर था. ऑफिस टाइम से 2 घंटा लेट पहुंचने के बाद वह सीधे बॉस के केबिन में गया. वह उनसे कुछ बोलना चाहता था, लेकिन वे जोर-जोर से चिल्लाने लगे, ‘ये क्या तरीका है.. ये कोई टाइम है ऑफिस आने का..
रिश्तेदारों को रिसीव करने वाला कोई और नहीं था क्या? इस तरह यहां काम नहीं चलेगा. कामचोर लोगों को मैं अपने यहां नहीं रखता. सीधा निकाल देता हूं. आज लेट आने के लिए तुम्हारी आधे दिन का सैलरी काट रहा हूं.
आगे से ध्यान रखना.’ सुधीर ने कहा- ‘सर, एक बार मेरी बात तो..’ बॉस बोले- मुझे कोई सफाई नहीं चाहिए. जाओ यहां से.’ सुधीर बाहर गया और हॉल में बैठे उन लोगों को अंदर ले आया, जिन्हें वह रिसीव करने स्टेशन गया था. वो कोई और नहीं, बॉस की पत्नी व बेटी थीं. केबिन में घुसते ही बॉस की पत्नी ने उन्हें कहा, ‘शादी की सालगिरह मुबारक हो. तुम्हें सरप्राइज देना था, तो बिना बताये आ गयी.
सोचा था कि स्टेशन पहुंच कर तुम्हें कॉल करूंगी, लेकिन तुम्हारा फोन लग ही नहीं रहा. घर का पूरा पता भी मुझे ठीक से याद नहीं था, तो परेशान हो कर मैंने ऑफिस के लैंड लाइन पर फोन लगाया. यहां सुधीर जी ने फोन उठाया और मुझे लेने स्टेशन चले आये. मैंने ही उन्हें कहा था कि सरप्राइज देना है, इसलिए मत बताना कि किसे लेने आ रहे हैं.’
अब बॉस को झटका लगा. सॉरी बोलने में भी इगो आड़े आ रहा था कि मैं बॉस हूं, लेकिन वह तो बोलना ही था. अब वे सॉरी बोलने के अलावा कर भी क्या सकते थे. उन्होंने दबी आवाज में ‘सॉरी’ कहा. सुधीर हामी भरता हुआ केबिन से बाहर निकल गया. बॉस ने मन ही मन कसम खायी कि अब बिना पूरा बात सुने, लोगों को डांटना नहीं है.
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बात पते की..
– कोई कर्मचारी आपको पसंद नहीं है, तो भी उसके साथ इंसाफ जरूर करें. सामनेवाले को अपनी सफाई देने का मौका जरूर दें.
– बिना किसी बात को पूरी तरह समझे निर्णय सुनाना ठीक नहीं. ऊंची आवाज में चिल्ला-चिल्ला कर कर्मचारियों को डांटना बिल्कुल ठीक नहीं.