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सीवान का मुद्दा : तबाही से राहत दिलाने की फिर आयी नेताओं को याद

सीवान : विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ नेताजी की दरियादिली गांव की गलियों में दिखने लगी है. दूसरी तरफ पिछले कई चुनावों से किये गये वादे अब तक पूरे नहीं हुए हैं. उन वादों को लेकर मतदाता एकमत हो रहे हैं और सभी दलों एवं प्रत्याशियों से उन पर जवाब मांगने का मन बना […]

सीवान : विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ नेताजी की दरियादिली गांव की गलियों में दिखने लगी है. दूसरी तरफ पिछले कई चुनावों से किये गये वादे अब तक पूरे नहीं हुए हैं. उन वादों को लेकर मतदाता एकमत हो रहे हैं और सभी दलों एवं प्रत्याशियों से उन पर जवाब मांगने का मन बना चुके हैं.
सीवान जिले की गंडकी (गड़ेरी) नदी का मुद्दा इस बार भी चुनाव में उठेगा और नेताओं से जवाब मांगा जायेगा. इस नदी से हर वर्ष जिले के 44 गांवों के लोग तबाही ङोलते हैं. यह उनकी परेशानी का सबसे बड़ा सबब है. इससे यहां के बुनियादी विकास और आर्थिक प्रगति का मामला जुड़ा है.
तीन विस क्षेत्रों में गूंजता रहा है यह सवाल
जिले में कुल आठ विधानसभा ण्क्षेत्र हैं. इनमें से तीन विधानसभा क्षेत्र के लोग इस नदी में हर साल आने वाली बाढ़ से प्रभावित हैं. बड़हरिया विधानसभा क्षेत्र का बड़ा इलाका इसके प्रभाव में आता है, जबकि महाराजगंज व गोरयाकोठी का आंशिक क्षेत्र गंडकी नदी के बहाव बंद से प्रभावित है. बड़हरिया से लेकर गोरयाकोठी होते हुए छपरा जिले के सोनपुर तक गंडकी (गड़ेरी) नदी कुल 116 किलोमीटर बहती है. इस नदी के पेट में गाद भरा है और वर्षा के पानी का बहाव नहीं होता है. इससे हर वर्ष बरसात में बाढ़ की विभीषिका लोगों को ङोलनी पड़ती है. बड़हरिया प्रखंड के खालिसपुर, पतरहठा मठियां, चांड़ी, सिकंदरपुर, अलीनगर, चैनपुर, हरिहरपुर, लालगढ व पतरहठा मठिया, गोरयाकोठी विधानसभा क्षेत्र के चाचोपाली, मिर्जापुर, मेघावार, चांदपुर, लदी व सुल्तानपुर खुर्द तथा महाराजगंज विधानसभा क्षेत्र का माधोपुर गांव इस नदी के कारण बाढ़ से सबसे अधिक तबाह होता है.
बरसात में करना पड़ता है पलायन : हालत यह है कि बरसात के तीन माह यहां के लोग घर-द्वार छोड़ कर दूसरी जगह पलायन कर जाते हैं. अपने साथ माल-मवेशी भी ले जाते हैं. फसलों की बरबादी तो होती है. बुजुर्गो को छोड़ अधिकतर महिलाएं व अन्य सदस्य अपने रिश्तेदारों के यहां शरण लेते हैं. पलायन से बच्च और महिलाओं के स्वास्थ्य तथा बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित होती है. लोग इस संकट से मुक्ति चाहते हैं.
अठारह साल से संघर्ष
इस समस्या के समाधान के लिए पिछले अठारह सालों से लोग संघर्ष कर रहे हैं. इसके लिए गड़ेरी बचाओ अभियान समिति भी बनी है. इस समिति की अगुवाई कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता संजय श्रीवास्तव कहते हैं कि नेताओं और अधिकारियों ने वादे तो खूब किये, लेकिन समस्या जस-की-तस है. इस साल 31 मार्च से एक बार फिर अभियान चलाया गया.
इसका असर हुआ कि शासन ने एक बार फिर सर्वे कराया है. श्रीवास्तव ने कहा कि हमने अलग-अलग जनहित याचिका दायर कर नदी पर बने पुल का नक्शे पर सवाल उठाया है. इंजीनियर ने गलत नक्शा बनाया है. हमने प्रभावित परिवारों को 12 हजार करोड़ मुआवजा देने की मांग की है.
योजना जिम्मेवार
गंडकी (गड़ेरी) नदी गोपालगंज के हीरापाकड़ से निकली है. यह एक सहायक नदी है. एक समय था, जब यह लोगों के लिए सिंचाई के लिहाज से वरदान थी. लोग इस नदी के साथ सहज रूप में जी रहे थे. खेतों की सिंचाई से लेकर अन्य कार्यों में इस नदी का बड़ा सहयोग था.
इस नदी के कारण आसपास की हजारो एकड़ जमीन में खेती आसानी से हो रही थी. समय के साथ नदी के पेटा की सफाई न होने व रेत भर जाने से नदी अका स्वाभाविक बहाव खत्म हो गया है.
इण्डो नेपाल नहर योजना का भी इस पर प्रतिकूल असर पड़ा है. नदी पर बने पुल के चलते भी पानी का बहाव नहीं हो पा रहा है. तरवारा के समीप स्क्रैप चैनल का एसआइएल लेवल ऊपर होने से भी नदी का प्रवाह प्रभावित हुआ है. इससे नदी के तटवर्ती गांवों के बारह हजार परिवारों को हर साल तबाही ङोलनी पड़ रही है.

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