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सुपर मानव की क्षमता, शरीर में तकनीक के समावेश से हासिल हो सकती है
अनोखी या मायावी शक्ति हासिल करने के लिए इंसान सदियों से प्रयासरत रहा है. मौजूदा युग में भी ऐसे बहुत से लोग हैं, जो तकनीक के समावेश के साथ नैतिक-अनैतिक तरीकों से इसे पाने की चाहत रखते हैं और चाहे-अनचाहे उसे अंजाम भी दे देते हैं. आज के नॉलेज में जानते हैं कुछ ऐसी ही […]
अनोखी या मायावी शक्ति हासिल करने के लिए इंसान सदियों से प्रयासरत रहा है. मौजूदा युग में भी ऐसे बहुत से लोग हैं, जो तकनीक के समावेश के साथ नैतिक-अनैतिक तरीकों से इसे पाने की चाहत रखते हैं और चाहे-अनचाहे उसे अंजाम भी दे देते हैं. आज के नॉलेज में जानते हैं कुछ ऐसी ही चीजों और उनके इस्तेमाल से किये गये विविध प्रयोगों के बारे में, जिनसे इंसान अनोखी शक्ति हासिल करने में कामयाब रहा, भले ही नैतिक रूप से उसकी मंजूरी न मिली हो…
जा दूगर बड़ी सफाई से आपके सामने ऐसे गेम प्रदर्शित करते हैं, जिन्हें देख कर आप दंग रह जाते हैं. कई बार वे अपने शरीर के किसी खास हिस्से से किसी चीज को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं, कई बार किसी भारी वस्तु को बिना हाथ या शरीर के किसी अन्य हिस्से से छूए उसे उठा लेते हैं.
हालांकि, नजदीक जाकर यदि आप वहां की पूरी स्थिति का जायजा लेंगे, तो हो सकता है कि आपको हकीकत समझ में आये, लेकिन ऐसा हो नहीं पाता, क्योंकि इस काम को बेहद सफाई के साथ अंजाम दिया जाता है. दरअसल, स्टेज पर किसी खास या नये गेम को प्रदर्शित करने से पहले जादूगर या गेमर अनगिनत बार उसे अकेले में या किसी सहयोगी के सहयोग से दोहराते हैं. इसे दोहराने की प्रक्रिया के दौरान वे अपने भीतर स्किल को इंप्रूव करते हैं. कुल मिला कर कहा जा सकता है कि सुपरस्किल्स पैदा करने के लिए गेमर अपने शरीर को कुछ इस तरह से हैक कर लेता है, जिसके माध्यम से वह अपना कौशल लोगों को दर्शाने में सक्षम होता है.
यदि आप अपने शरीर को होम साइंस किट की भांति ट्रीट करेंगे, तो उसके घातक नतीजे सामने आ सकते हैं. ऐसा करने पर आपको जख्म हो सकता है, खून निकल सकता है या तेज दर्द हो सकता है. वैज्ञानिक नजरिये से मानव अंगों के प्रति छेड़छाड़ के मामले सदियों पहले से होते रहे हैं.
पीठ के रीढ़ में किसी तरह की समस्या होने की स्थिति में टाइटेनियम प्लेट से उन्हें आपस में जोड़ने की प्रक्रिया काफी पहले से जारी है और अब इसे एक सामान्य प्रक्रिया समझा जाता है. आज के ट्रांसह्यूमैनिस्ट अब इसे और आगे ले जा रहे हैं. वाइफाइ को डिटेक्ट करते हुए, मैग्नेटिक सेंस को समझते हुए और अंधेरे में देखने जैसे कौशल का विकास करते हुए चेतना से जुड़े इस विज्ञान को ऐसे विशेषज्ञ आगे बढ़ा रहे हैं. मौजूदा दौर तकनीक का है और तकनीक ट्रेंड को संचालित करती है. लेकिन कुछ पाखंडी विशेषज्ञ हैं, जो इन क्षेत्रों में नैतिकता के दायरे को समेट रहे हैं.
वर्ष 1998 में यूनाइटेड किंगडम के एक प्रोफेसर केविन वारविक ऐसे पहले इंसान बने, जिन्होंने अपने शरीर में त्वचा के भीतर ट्रांसपोंडर चिप को इंप्लांट करवाया था. हालांकि, इसे इंप्लांट कराने और उसके प्रयोग के लिए उन्होंने सक्षम प्राधिकरण से नैतिक मंजूरी ली थी.
साथ ही इस कार्य को कुशलता से अंजाम देने के लिए उन्होंने डॉक्टर की मदद भी ली थी. इसके बाद यह प्रयोग उस वक्त सुर्खियों में आया, जब वर्ष 2005 में सिएटल के एक आइटी कंसलटेंट एमल ग्राफस्ट्रा ने बिना किसी सक्षम प्राधिकरण की मंजूरी के शरीर के भीतर चिप इंप्लांट किया. इस घटना के बाद से उनके जीवन में एक नया बदलाव आया.
दरअसल, ग्राफस्ट्रा इस चिप का इस्तेमाल अपने घर और कार के दरवाजे को खोलने के लिए करने लगे. इसी से वे अपना कंप्यूटर भी लॉग ऑन करते थे. इतना ही नहीं, इस खतरनाक चीज को वे अपनी वेबसाइट के माध्यम से बेचने भी लगे.पिछले वर्ष ग्राफस्ट्रा ऐसे इंसान बने, जिसके शरीर में छोटे फोटोवोल्टिक पैनल को इंप्लांट किया गया.
उन्होंने अपने फोरआर्म (अग्र बाहु या पहुंचे से कोहनी तक हाथ) के भीतर इसलिए इंप्लांट किया, ताकि यह जाना जा सके कि त्वचा के भीतर से लाइट कितनी तादाद में गुजरती है और क्या हार्ट मॉनीटर की तरह यह आंतरिक सेंसरों को ऊर्जा मुहैया करा सकती है.
हालांकि, यह तीन वोल्ट पर 50 माइक्रोएम्प्स जेनरेट करने में सक्षम है, लेकिन एलइडी के संचालन के लिए इसके महज 400वें हिस्से के बराबर ही ऊर्जा की जरूरत होती है. उसी समय उन्होंने यह महसूस किया कि यह सिटीजन साइंस के मूल्यों को साबित कर सकता है. हालांकि, विशेषज्ञों की सख्त हिदायत है कि सामान्य व्यक्ति इसे बिना पूर्ण कौशल हासिल किये इस्तेमाल में न लायें, अन्यथा उन्हें नुकसान झेलना पड़ सकता है.
इसी तरह के कुछ खास कौशल को अनेक अलग-अलग लोगों ने जाने-अनजाने में विकसित किया. जानते हैं इनमें से कुछ प्रमुख के बारे में, जो इंसान को सुपर इंसान बनाने की राह में कारगर साबित हो सकते हैं
टच इलेक्ट्रोमेग्नेटिक फील्ड्स
मैग्नेट ऐसी चीज है, जिसे शरीर के भीतर आसानी से इंस्टॉल किया जा सकता है और यही कारण है कि सान चढ़ानेवालों ने सबसे पहले इसका प्रयोग किया. धातु के बर्तनों में छेद करनेवाली दुकान में काम करनेवालों में से ज्यादातर चावल के दाने के आकार का नीयोडाइमियम अपनी अंगुली के भीतर स्किन में इंस्टॉल करवाते हैं. ये मैग्नेट्स टाइटेनियम नाइट्राइड, सिलिकॉन और टेफलॉन की तरह बायो-प्रूफ मैटेरियल से कोटेड होते हैं.
जैसे ही किसी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड से सामना होता है, यह नर्व्स के प्रति वाइब्रेट करने लगता है, जिससे यूजर को वस्तु के मैटेरियल की समझ हो जाती है. इससे कई बार ये नये ट्रिक्स भी अपना लेते हैं, जैसे- अंगुली से पेपर क्लिप को खींच लेना.
सोनार इंस्टॉल करना
क्या आप डोल्फिन की भांति दूरी की समझ को विकसित करना चाहते हैं. इसके लिए ‘सोनार’ की अवधारणा पर आधारित किट बनाया गया है. इसके माध्यम से डार्क रूम में अल्ट्रासोनिक डिस्टेंस सेंसर के इस्तेमाल से किसी वस्तु को खोजा जा सकता है.
यूजर की अंगुली में मैग्नेट की मदद से यह इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पल्स भेजता है, जिससे किसी वस्तु के मौजूद होने की दूरी को समझा जा सकता है. यूजर जैसे-जैसे वस्तु के नजदीक आयेगा, सेंसेशन ज्यादा मजबूत होगा. अल्ट्रावॉयलेट लाइट और कंपास को भी ये सेंसर समझ सकते हैं.
कंपास
किसी अनजान इलाके में जब हम खो जाते हैं या रास्ता भटक जाते हैं, तो सबसे पहले हम दिशा के बारे में जानना चाहते हैं. जर्मनी की एक यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने यह जानने का प्रयास किया है कि राह भटक जाने की दशा में इंसान किस तरह दिशा को समझ सकता है.
प्रयोग के तौर पर कुछ लोगों में इलास्टिक फैब्रिक में 30 वाइब्रेटिंग मोटर्स स्टिच किये गये, जो उन्हें दिशा के बारे में सूचित करते थे. ये लोग लगातार भ्रमण में रहे और इसे बेहतर बनाया गया. इस बेल्ट को पहनने के बाद दिशा ज्ञान के संबंध में भ्रम दूर हो जाता है. इससे पहनने वाले एक व्यक्ति का कहना है कि कहीं भी ट्रेन से उतरने पर उन्हें तत्काल दिशा का ज्ञान हो जाता है.
रात में देखने की क्षमता
दक्षिणी गोलार्ध में गहरे समुद्र में पाया जानेवाला ड्रैगनफिश पानी की सतह से एक मील भीतर तैरता है. उसकी आंखों में पाये जानेवाले क्लोरोफिल डेरिवेटिव (यौगिक) की मदद से वह इतने अंधेरे में तैरने में सक्षम होती है. इसी वर्ष मार्च में कैलिफोर्निया के बायोहैकर्स गैब्रिएल लिसिना और जेफ री टाइबेट्स की इच्छा ‘क्लोरिन इ6’ के तौर पर इस खास यौगिक को हासिल करने की हुई. किसी मेडिकल सप्लायर से उन्होंने इसे 39 डॉलर में 100 मिलिग्राम खरीदा.
चूंकि इसका हेवी डोज आंखों को नुकसान पहुंचा सकता था, इसलिए इन्होंने इसे सेलाइन में इंसुलिन के साथ डाइलूट किया और ऑर्गेनिक सॉल्वेंट डाइमिथाइल सल्फोक्साइड को मिलाया. इसका डोज लेने के करीब दो घंटे बाद ये दोनों ही 100 फीसदी अंधेरे में 50 फीट की दूरी से पहचान पाने में सक्षम हुए. हालांकि, पूरे परीक्षण के दौरान यह करीब 33 फीसदी तक सफल पाया गया और अब तक इसका कोई साइड इफेक्ट सामने नहीं आया है.
वाइफाइ से सुनना
कल्पना करिये कि किसी कॉफी शॉप में घुसते समय उसके दरवाजे पर लगे छोटे से वाइफाइ स्टीकर पर आपकी नजर नहीं जाये और ब्लूटूथ से आपका स्मार्टफोन लिंक हो जाये. लंदन के एक जर्नलिस्ट फ्रैंक स्वैन को कुछ कम सुनाई देता है.
पिछले दिनों वे सुननेवाला एक उपकरण कानों में लगाये एक ऐसे ही कॉफी हाउस में पहुंचे और वहां ब्लूटूथ से उनका स्मार्टफोन लिंक हो गया. उनके एक साउंड इंजीनियर दोस्त ने फोन का सॉफ्टवेयर हैक कर लिया और वाइफाइ जोन में आने पर उसमें वे अच्छे गाने भेज देते. दरअसल, राउटर के संपर्क में आने पर उनका उपकरण डिजिटल सिगनल हासिल कर लेता था.
अंगुलियों को फ्लैश ड्राइव में तब्दील करना
कंप्यूटर-रीडेबल आइडी चिप्स अब इतने छोटे (3 एमएम से 6 एमएम के बीच) आ गये हैं कि इन्हें नीडिल की मदद से त्वचा के भीतर इंसर्ट किया जा सकता है. गेमर्स के लिए किसी चीज को हैक करने का यह एक आसान तरीका हो गया है.
मैग्नेट की तरह इस चिप्स को भी नाक या कान छेदने वाली दुकान में बिना बेहोशी की दवा दिये हुए आसानी से इंसर्ट किया जा सकता है. रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (आरएफआइडी) और नियर फील्ड कम्युनिकेशन (एनएफसी) के इस्तेमाल से इस चिप्स के माध्यम से दर्जनों कंज्यूमर डिवाइसेज को ऑपरेट किया जा सकता है.
हेडफोन्स इंप्लांट करना
उटाह के सेंट जॉर्ज इलाके में रहनेवाले रिच ली एक सेल्समैन और गेमर हैं, जो एक सटीक वायरलेस हेडफोन्स चाहते थे. इसके लिए उन्होंने दोनों कानों के भीतरी हिस्से में एक छोटा सा मैग्नेट इंप्लांट किया. अपने स्मार्टफोन को हैक करते हुए उन्होंने एक सिगनल एंप्लिफायर को ऑडियो भेजा, ताकि वायर्ड ‘एंटीना’ नेकलेस से गर्दन के आसपास उसे रिले करे.
नेकलेस से ली के सिर के आसपास इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड सृजित होता है और उससे इयर मैग्नेट में वाइब्रेशन होता है, जिससे ली म्यूजिक सुनते हैं. ली का कहना है कि कानों में जो हम इयरफोन लगाते हैं, उसके मुकाबले इसकी साउंड क्वालिटी भी अच्छी है.
कलर्स को सुनना
कलरब्लाइंड आर्टिस्ट और म्यूजिशियन नील हर्बिसन अपने जीवन में 21 सालों तक वर्णांधता की बीमारी से ग्रसित थे. उन्हें कुछ इस तरह की बीमारी थी, जिसमें सभी तरह के अलग-अलग रंगों को समझ पाना मुश्किल था. दुनिया को देखने का उनका रंग अलग था. उन्हें इसका एक अनोखा समाधान सूझा. दरअसल, दिसंबर, 2013 में उन्होंने बार्सिलोना में बिना किसी एथिकल मंजूरी के चलाये जाने वाले क्लीनिक में एक अनोखे किस्म का ऑपरेशन करवाते हुए खोपड़ी के भीतर एक कैमरा सेट करवाया. बैट्री पावर से चलनेवाले एक उपकरण के माध्यम से हर्बिसन की इस समस्या का निदान हो गया.
शॉक देने पर मेमोरी में सुधार
एकेडमिक अध्ययनों के मुताबिक, इंसान को बिजली का झटका देने पर दिमाग अस्थायी रूप से तेज चलने लगता है या कुछ समय के लिए इंटेलिजेंसी बढ़ जाती है. रेस्ट्रोरेटिव न्यूरॉलोजी एंड न्यूरोसाइंस द्वारा किये गये हालिया अध्ययन में यह बात सामने आयी है कि डायरेक्ट करेंट स्टिमुलेशन और रेंडम न्वॉयज स्टिमुलेशन से दिमाग ज्यादा चलता है. इस संबंध में कुछ प्रयोग भी किये गये हैं. प्रयोगों के दौरान 20 मिनट से कम समय के लिए 2.5 मिलिएंप्स का बिजली का झटका दिया गया.
इसके बाद पाया गया कि मेमोरी की क्षमता बढ़ने के साथ, संज्ञानात्मक नियंत्रण और गणित के सवालों को बेहतर तरीके से हल किया गया. हालांकि, कुछ क्रेजी किस्म के लोग चाहे-अनचाहे इस तरह के प्रयोग करते रहते हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के किसी भी प्रयोग को सामान्य इंसान द्वारा नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि फिलहाल इनका परीक्षण प्रयोगशालाओं में किया जा रहा है. प्रयोगशालाओं में यदि ये अपने पैमाने पर खरे उतरेंगे, तब जाकर इनका प्रयोग किया जा सकता है. फिलहाल, खुद से इस तरह के प्रयोगों को अंजाम देने की दशा में इसके अनेक गंभीर नतीजे सामने आ सकते हैं.
(स्रोत : पॉपुलर साइंस) (प्रस्तुति : कन्हैया झा)
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