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न सुधरे तो स्लम बन जायेंगे शहर
शुक्र मनाइए कि बिहार में शहरीकरण की रफ्तार धीमी है, वरना जिस तरह यहां के शहर बदहाल और बुनियादी सुविधाएं ध्वस्त हैं, उसमें अगर राज्य में शहरीकरण की रफ्तार तेज हुर्ह, तो परिस्थितियां और भी जटिल होंगीं. बिहार देश का शायद अकेला राज्य होगा, जहां किसी शहर का अपना मास्टर प्लान नहीं है. जैसे-तैसे शहर […]
शुक्र मनाइए कि बिहार में शहरीकरण की रफ्तार धीमी है, वरना जिस तरह यहां के शहर बदहाल और बुनियादी सुविधाएं ध्वस्त हैं, उसमें अगर राज्य में शहरीकरण की रफ्तार तेज हुर्ह, तो परिस्थितियां और भी जटिल होंगीं. बिहार देश का शायद अकेला राज्य होगा, जहां किसी शहर का अपना मास्टर प्लान नहीं है.
जैसे-तैसे शहर बस रहे हैं. कौन देखेगा यह सब? आखिर कब तक कोरे वायदे किये जाते रहेंगे ? क्या किसी राजनीतिक दल के पास बिहार के शहरों को साफ, सुंदर और रहने लायक बनाने की कोई ठोस कार्य योजना है. इसका जवाब कौन देगा कि शहरों का मास्टर प्लान क्यों नहीं तैयार हुआ?
बिहार में शहरीकरण की दर देश में सबसे नीचे से महज एक पायदान ऊपर है, मगर बिहार के लिए यह राहत की बात है. वहज साफ है. शहरों का बेतरतीब विस्तार और नगर निकायों के पास शहरों का किसी मास्टर प्लान का न होना. शायद यह देश का अकेला प्रदेश होगा, जहां आबादी का घनत्व इतना ज्यादा होने और शहरों पर ग्रामीण आबादी के भारी दबाव के बावजूद यहां किसी शहर का मास्टर प्लान नहीं है. जब कोई प्लान ही नहीं है, तो शहर जैसे-तैसे बस रहे हैं.
शहरीकरण सिर्फ 11.3 फीसदी
शहरीकरण का राष्ट्रीय औसत 30 फीसदी है, जबकि बिहार में यह सिर्फ 11.3 फीसदी. बिहार के बाद जो राज्य आता है, वह है हिमाचल प्रदेश है. वहां सिर्फ दस फीसदी शहरी आबादी है.
भले ही विकास की दृष्टि से शहरीकरण की निम्न स्थिति को बेहतर स्थिति नहीं मानी जाये, लेकिन बिहार के लिए यह राहत करने वाली बात है. प्रदेश की आबादी जिस तरह से बढ़ रही है, यदि गांव से लोग बड़ी संख्या में शहरों की ओर पलायन करने लगे, तो बसना तो दूर, चलना-फिरना और यहां तक कि सांस लेना भी दूभर हो जायेगा. हमारे शहरों की आधारभूत संरचना को इस लायक तैयार ही नहीं किया गया कि वे बढ़ती आबादी का बोझ उठा सकें.
पटना, आरा, छपरा, भागलपुर, मुजफ्फरपुर, पूर्णिया जैसे शहरों की स्थिति देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि जहां नयी आबादी बस रही है, पर वहां सीवरेज-ड्रेनेज, सड़क, ट्रैफिक, प्रदूषण आदि की स्थिति कहां तक पहुंच गयी है. शहरों के विकास के लिए न तो कायदे की कोई योजना है और न पुराने बसे शहरों में नागरिक सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए कोई प्रयास दिखता है. जिन शहरों को नगर निगम क्षेत्र घोषित किया गया है, वहां नगर पालिका लायक भी सुविधाएं नहीं हैं.
पटना छोड़ अन्य शहर पर ध्यान नहीं
बिहार के साथ विडंबना रही कि यहां पटना के अलावा किसी अन्य शहर को विकसित करने के बारे में कार्य योजना बनाना तो दूर, कभी सोचा भी नहीं गया. ऐसे में पटना में आबादी का बोझ बढ़ना तो स्वाभाविक है. यूपी में राजधानी लखनऊ के अलावा इलाहाबाद, आगरा, वाराणसी, गोरखपुर जैसे शहर हैं.
लेकिन, बिहार में हाइकोर्ट, विधानसभा, सचिवालय, विद्यालय परीक्षा समिति, एजी ऑफिस जैसे महत्वपूर्ण दफ्तर सिर्फ पटना में हैं. अब पूर्णिया में किसी को छोटा सा सरकारी काम हो तो उसे सीधे पटना आना पड़ता है. यहां तक कि झारखंड में चार महत्वपूर्ण शहर – रांची, धनबाद, जमशेदपुर और बोकारो हैं.
अनुदान पर निकायों की व्यवस्था
राज्य में 11 नगर निगम, 42 नगर परिषद और 88 नगर पंचायतें हैं. उनकी दिक्कत यह है कि वे आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़ी नहीं हैं. कुछ को छोड़ दें, तो ये निकाय राजनीति का अखाड़ा बन गयी हैं. न तो किसी के पास शहर को विकसित करने का विजन है और न दृढ़ संकल्प. चतुर्थ राज्य वित्त आयोग के आलोक में नगर निकायों को वर्ष 2013-14 में 325.85 करोड़ रुपये दिये गये थे. 2014-15 में 406.79 करोड़ रुपये दिये गये.
शहरें आर्थिक और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाती हैं. अर्थशास्त्र के जानकार भी मानते हैं कि बेहतर आर्थिक विकास के लिए शहरीकरण बेहद जरूरी है. लेकिन, साथ ही शहरों की उत्पादकता बनाये रखने के लिए विश्वस्तरीय शहरी तंत्र का होना आवश्यक है.
शहरी समस्याओं का गहन आकलन कर शहरीकरण की प्रक्रि या में तेजी लानी होगी. शहरी क्षेत्रों में आधारभूत संरचनाओं की कमी बिहार के विकास में मुख्य बाधा है. नागरिक सुविधाओं में वृद्धि के लिए अतिरिक्त संसाधनों को जुटाना और व्यविस्थत एवं निर्बाध तरीके से शहरी क्षेत्रों का विकास करना ही होगा.
बिहार की राजधानी पटना के विस्तार के साथ इसकी बुनियादी संरचना में बड़ा बदलाव नहीं आया. कोई इसे स्लम कहता है तो कोई बड़ा गांव. पटना की बिगड़ी दशा को ठीक-ठाक करना आसान काम नहीं है. पर यह भी सच है कि इसे पटरी पर नहीं लाया गया तो इस ऐतिहासिक शहर में सांस लेना भी दूभर हो जायेगा.
हाइकोर्ट ने कहा था पटना सबसे गंदा शहर
दो सितंबर, 2014 को पटना हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति वी एन सिन्हा और न्यायमूर्ति पी के झा की खंडपीठ ने एक मामले पर सुनवाई के दौरान अपनी मौखिक टिप्पणी में कहा कि पटना किसी भी तरह से राजधानी नहीं दिखता. देश में किसी भी राजधानी में इतनी धूल और गंदगी नहीं है. इसे देखकर क्या सरकारी अधिकारी लज्जा महसूस नहीं करते.
स्लम की तरह है पटना
देश के सबसे बड़े वास्तुविद् करीब दो साल पहले पटना आये थे. तब उन्होंने एकं अंगरेजी अखबार को दिये इंटरव्यू में कहा था कि मुंबई के धारावी स्लम की तरह है पटना. दो-तीन सड़कों को छोड़कर यहां सिटी बस के लिए सड़कें भी नहीं हैं. पटना में जो सड़कें हैं उनका न डिजाइन अच्छा है और न रखरखाव सही तरीके से होता है.
शहरीकरण
सौ साल में सिर्फ सात फीसदी वृद्धि
बिहार की 88.70} आबादी न केवल गांवो में रहती है, बल्कि ग्रामीण आबादी में वृद्धि दर भी देश में सबसे ज्यादा है. देश में सबसे ज्यादा ग्रामीण आबादी बिहार में 23.90} (देश का औसत 12.18}) की दशकीय दर से बढ़ी है. शहरीकरण सिर्फ 11.47} है. इस मामले में अन्य प्रदेशों की अपेक्षा बिहार आजादी के पहले से पिछड़ा रहा है.
पिछले सौ वर्षो में बिहार में शहरीकरण में सिर्फ सात फीसदी की वृद्धि हुई है. 2011 की जनगणना के आंकड़ो के मुताबिक, तमिलनाडू में शहरीकरण 48.45}, आंध्रप्रदेश में 33.49}, महाराष्ट्र में 45.23} और पश्चिम बंगाल में 31.89} शहरीकरण है.
पटना सबसे गंदी राजधानी
पिछले साल देश भर में स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया गया था. इस साल अगस्त में इसके असर के आधार पर देश भर के 476 शहरों का सर्वे किया गया. इस सर्वे में बिहार के 27 शहरों को शामिल गया था.
टॉप 100 की सूची में एक भी शहर नहीं आया. यहां तक कि पटना (429वां रैंक) को देश की सबसे गंदी राजधानी का दर्जा दिया गया. सफाई रखने वाले टॉप 10 शहरों में मैसूर नंबर वन पर और त्रिचुरापल्ली दूसरे नंबर पर है. खास बात यह है कि टॉप 10 में कर्नाटक के चार शहर हैं. कर्नाटक के लोग साफसफाई रखने में सबसे आगे हैं.
टॉप 150
बिहार का कोई शहर नहीं
शहर रैंक
मुजफ्फरपुर 150
बिहारशरीफ 155
भागलपुर 179
दानापुर 210
जहानाबाद 218
डेहरी 258
किशनगंज 265
सीवान 327
गया 334
हाजीपुर 336
पूर्णिया 348
सासाराम 375
कटिहार 385
छपरा 390
दरभंगा 434
बेगूसराय 436
जमालपुर 442
मोतिहारी 444
बगहा 453
बक्सर 455
औरंगाबाद 461
1981 के बाद गति धीमी
1951 से 1991 की अविध में बिहार, मध्य प्रदेश और उड़ीसा में नगरीय जनसंख्या की वृद्धि दर प्राय: अधिक रही है, परंतु उड़ीसा और बिहार में 1981 से 1991 के बीच नगरीकरण की गति कुछ धीमी पड़ गई थी. उत्तर प्रदेश, आन्ध प्रदेश, राजस्थान में 1951-61 के दशक में नगरीय जनसंख्या में वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से नीचे थी. पुराने औद्योगिक दृष्टि से विकिसत राज्यों में 1951-61 के दशक में नगरीय जनसंख्या में वृद्धि दर ऊंची थी.
देख लीजिए कैसे हैं हमारे शहर
जवाब दें राजनीतिक दल
भागलपुर
न कचरा प्रबंधन, न ड्रेनेज सिस्टम
बढ़ती आबादी के अनुरूप सुविधाएं नदारद हैं. स्थायी कूड़ा डंपिंग की कोई व्यवस्था नहीं है. ऑटो स्टैंड के लिए भी कोई व्यवस्था नहीं है. सभी सड़कों पर जाम लगा रहता है.
आरा
सिर्फ डीपीआर
हर तरफ ट्रैफिक जाम और बरसात में जल जमाव. स्ट्रीट लाइट के लिए अभी डीपीआर तैयार हो रहा है. बड़े नालों के निर्माण के लिए राशि का इंतजार है.
बेगूसराय
न ड्रेनेज, न सिवरेज
आबादी लगातार बढ़ रही है. लेकिन सुविधाएं नदारद हैं. न तो ड्रेनेज है और न सिवरेज. कचरा के लिए भी आज तक कोई ठोस पहल शुरू नहीं हो पायी है.
पूर्णिया
मोहल्लों में कूड़ा
हल्की बारिश में ही शहर नरक बन जाता है. सफाई, जल निकासी, कचरा निस्तारण की व्यवस्था नदारद है. केवल मुख्य सड़क किनारे कचरा का उठाव. मुहल्लों का हाल बुरा है. मुख्य चौराहे पर ट्रैफिक जाम.
आबादी- 3.10 लाख
बजट (2015-16)- 4.40 अरब
मास्टर प्लान वर्षों पहले बना था, लागू नहीं हुआ.
सफाई की मुकम्मल व्यवस्था नहीं है.
ड्रेनेज व सीवरेज सिस्टम ध्वस्त है.
कटिहार
आयरनयुक्त पानी
बढ़ती आबादी के अनुरूप नागरिक सुविधाएं नहीं हैं. हर दिन ट्रैफिक की समस्या होती है. पार्किंग की व्यवस्था नहीं है. लोग आयरनयुक्त पानी पीने को विवश हैं.
आबादी- 2.90 लाख
बजट (2015-16)- 103.32 करोड़
मास्टर प्लान नहीं बना
ठोस कचरा प्रबंधन की व्यवस्था नहीं है
तीन पानी टंकी के निर्माण के बावजूद सप्लाइ शुरू नहीं.
मुंगेर
बड़े नाले जाम
करोड़ की लागत से बन रही जलापूर्ति योजना का कार्य अधर में है. बड़े-बड़े नाले जाम हैं.
आबादी- 2.23 लाख
बजट (2015-16)-
82.96 करोड़
मास्टर प्लान नही है
ड्रेनेज, सिवरेज व कचरा प्रबंघन की व्यवस्था नहीं
मुख्य सड़कों पर अतिक्रमण
गया
मास्टर प्लान नहीं
हर रोज लगभग 250 टन कचरा निकलता है, लेकिन इसके उठाव का मुकम्मल इंतजाम नहीं है. कई रास्तों पर वन वे ट्रैफिक सिस्टम शुरू किया गया, लेकिन बरकरार नहीं रखा जा सका.
आबादी- 4.65 लाख
बजट (2015-16)- 1.57 अरब
मास्टर प्लान नहीं बना.
ड्रेनेज व सिवरेज की व्यवस्था बेहतर नहीं.
ठोस कचरा प्रबंधन की व्यवस्था नहीं है.
मुजफ्फरपुर
कचरा प्रबंधन नहीं
हर दिन जल जमाव, ट्रैफिक जाम से लोगों को दो-चार होना पड़ता है. कूड़ा प्रबंधन की कोई व्यवस्था नहीं है. ऑफिस टाइम में ही कूड़ा उठता है. आउटलेट भी सालों से जाम हैं.
आबादी- 3.50 लाख
बजट (2015-16)
119 करोड़
मास्टर प्लान नहीं है
सफाई व्यवस्था- दो शिफ्ट में सफाई
ड्रेनेज व सीवरेज नहीं
ठोस कचरा प्रबंधन नहीं
दरभंगा : 40 फीट वाली सड़कें 15 फीट तक सिमट गयी हैं. कचरा डंपिंग यार्ड के लिए जगह नहीं.
बिहारशरीफ : जल निकासी की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है. दो साल पहले बने मास्टर प्लान को मंजूरी नहीं.
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